कार्यक्रम आज की बातः दिल्ली दंगे की कुछ ऐसी सच्चाई जो शायद आपने अबतक नहीं सुनी होगी, दिल्ली दंगे से हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को नुक़सान पहुंचा लेकिन
भारत में संशोधित नागरिकता क़ानून के विरोध के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगा में 53 लोगों की मौत हुई थी और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे।
उत्तर पूर्वी दिल्ली का इलाक़ा अपनी धुन में चल रहा था, सड़कें हर समय गाड़ियों से भरी रहती थीं, चारों तरफ हॉर्न का शोर सुनाई देता रहता था और बजबजाते लंबे नाले से लगातार दुर्गंध आती रहती थी, ज़्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश से आए लोग यहां की संकरी गलियों में किसी तरह अपने जीवन की गाड़ी खींच रहे हैं। कुछ कट्टरपंथी नेताओं को यहां का सुगम माहौल पसंद नहीं आया है और उन्होंने यहां नफ़रत के एसे बीज बो दिए जिसके बाद हिन्दु और मुसलमान आपस में उलझ गये। एक साल पहले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगों का घाव अभी तक हरा है। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने पिछले साल फरवरी में हुए दंगों के लिए अपनी फ़ैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में भाजपा नेताओं पर उंगली उठायी और उन पर विधानसभा चुनाव के दौरान भाषण के ज़रिए कथित तौर पर लोगों को ‘उकसाने’ का आरोप लगाया। बीजेपी सांसद परवेश वर्मा ने कहा था कि चुनाव जीतते ही शाहीन बाग़ को 24 घंटों के भीतर खाली करां देंगे और उनके संसदीय क्षेत्र में सरकारी ज़मीन पर बनी सभी मस्जिदों को ध्वस्त कर देंगे। वहीं मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री अनुराग ठाकुर ने तो लोगों को भड़काउ नारे लगना के लिए उकसाया, वैसे कहते हैं न कि जब घर का बड़ा ही ख़राब हो तो छोटे तो अपने आप वैसे ही निकल जाते हैं। भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने भी दिल्ली दंगों से पहले शहीन बाग़ में अपने अधिकारों की मांग को लेकर धरना दे लोगों पर निशाना साधते हुए कहा था कि वोट ऐसे देना कि बटन बाबतपूर में दबे तो करंट शाहीन बाग़ में लगे। डीएमसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा नेता कपिल मिश्रा द्वारा मौजपुर में दिए भाषण के बाद उत्तर-पूर्वी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में दंगे भड़के थे। मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि यदि पुलिस इन प्रदर्शनकारियों को नहीं हटाती है तो उनके लोग सड़क खाली कराने के लिए उतर जाएंगे।
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष कहते हैं कि हमने पूरी निष्पक्षता के साथ दिल्ली दंगे की जांच की है और हमने पाया है कि दिल्ली दंगे में हज़ारों की संख्या में बाहर से लोग भी आए थे, जिससे लगता है कि यह दंगा पूरी तरह सुनियोजित था। उस समय दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में विवादित नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। दिल्ली दंगे से हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को नुक़सान पहुंचा लेकिन रिपोर्टों और ज़मीनी सच्चाई पर नज़र डालने से पता चलता है कि सबसे ज़्यादा नुक़सान मुसलमानों को हुआ। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में यह बताया है कि हज़ारों लोग दिल्ली के दंगाग्रस्त इलाक़ों को छोड़कर उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा में अपने पैतृक गांव चले गए या दिल्ली में कहीं दूसरी जगह परिजनों के साथ रहने पर मजबूर हैं। आयोग की टीम उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाक़ों में गई थी और उसने पाया कि मकानों, दुकानों, स्कूलों और वाहनों को व्यापक नुक़सान पहुंचा। रिपोर्ट में कहा कि हमारा आकलन है कि दिल्ली के उत्तर–पूर्वी जिले में हिंसा एकतरफा और सुनियोजित थी जिसमें अधिकतम नुक़सान मुसलमानों के मकानों और दुकानों को हुआ। दिल्ली दंगे की कुछ पीड़ित महिलाओं ने दंगे वाले दिन के ख़ौफ़नाक हालात को बताते हुए कहा कि, जय श्रीराम के नारे के साथ हमारे घरों को जलाया जा रहा था। साल 2020 के फरवरी महीने की 24 से 26 तारीख तक चले दंगे में 500 से अधिक लोग घायल हुए थे और करोड़ों रुपये की संपत्ति बर्बाद हुई थी। स्थिति ऐसी हो गई थी कि कई परिवारों को अपने ही शहर में शरणार्थी बनना पड़ा था। दिल्ली दंगों को एक साल का समय हो गया और पुलिस मारे गए 53 लोगों में से 38 लोगों पर ही चार्जशीट फ़ाइल कर सकी है जबकि अभी तक सिर्फ़ 17 मामलों में ही कोर्ट में बहस शुरू हो पाई है। सुप्रीम कोर्ट के वकील एम आर शामशाद ने द वायर से बात करते हुए बताया कि दिल्ली के दंगे की शुरुआत कहां से हुई।
कुल मिलाकर दिल्ली सरकार ने दावा किया है कि उसने दंगे के संबंध में अब तक कुल 26.10 करोड़ रुपये का मुआवज़ा दिया है, जिसमें मृतक, घायल, प्रॉपर्टी और दुकान बर्बाद होने इत्यादि चीजें शामिल हैं। इसके लिए उन्होंने कुल 2,221 आवेदनों को मंज़ूरी दी थी। बहरहाल दिल्ली दंगों में सबसे ज़्यादा नुक़सान मुसलमानों को हुआ और इसके ज़िम्मेदार कट्टरपंथी नेता हैं जिन्होंने लोगों को भड़काया और दंगे कराया है लेकिन खेद की बात यह है कि वह नेता आज भी खुले आम घूम रहे हैं और उनके ज़हरीले भाषण दिन प्रतिदिन और ज़्यादा ज़हरीले होते जा रहे हैं।
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