Feb ०४, २०२४ १५:५८ Asia/Kolkata

तुर्किये की सेंट्रल बैंक की गवर्नर के अप्रत्याशित इस्तीफ़ा से इस देश के आर्थिक जगत में एक नई बहस छिड़ गई है।

तुर्किये की सेंट्रल बैंक की गवर्नर के अप्रत्याशित त्यागपत्र के साथ ही इस देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को एक नया झटका लगा है।

तुर्किये के कुछ संचार माध्यम इस बात पर बल दे रहे हैं कि इस देश के सेंट्रल बैंक की गवर्रन "हफ़ीज़े ग़ाये अरकान" ने स्वेच्छा से अपना पद छोड़ा है किंतु हालात से एला लगता है कि तुर्किये के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान ने इस देश की सेंट्रल बैंक की गवर्नर को त्यागपत्र देने पर मजबूर किया है।  यह बात अर्दोग़ान के आदेश से भी साफ हो जाती है।  इससे पहले अपने एक संबोधन में तुर्किये के राष्ट्रपति यह कह चुके हैं कि उनके मंत्रियों और सरकारी संस्थाओं के प्रमुखों को उनका अनुसरण करना चाहिए। 

तुर्किये के आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि रजब तैयब अर्दोग़ान द्वारा इस प्रकार की नीति अपनाने और देश की वित्तीय नीतियों में हस्तक्षेप करने के कारण ही तुर्किये की अर्थव्यवस्था को 100 अरब डालर से अधिक का नुक़सान पहुंचा है।  यही कारण है कि तुर्किये के वित्तमंत्री और वहां की सेंट्रल बैंक की गवर्नर ने इसी शर्त पर अपने पद संभाले थे कि अर्दोग़ान, उनके कामों में हस्तक्षेप न करें।  जैसे ही तुर्किये की सेंट्रल बैंक की गवर्नर हफीज़े ग़ाए अरकान के अप्रत्याशित त्यागपत्र का मामला सामने आया, वैसे ही इस देश के आर्थिक मामलों के जानकारों और विशेषज्ञों ने इस बारे में अपने विचार रखने शुरू कर दिये। 

तुर्किये की वर्तमान हालत को देखते हुए एसा लगता है कि इस देश की अर्थव्यवस्था उस स्थान पर पहुंच चुकी है कि वह अपने पैरों पर खड़े रहने में सक्षम नहीं रही है।  यही कारण है कि तुर्किये में मुद्रास्फीति की दर में अभूतपूर्व वृद्धि के अतिरिक्त वहां की राष्ट्रीय मुद्रा का अवमूल्यन, बेरोज़गारी में वृद्धि और ब्रेनड्रेन जैसे विषयों के साथ ही वहां से घरेलू और विदेशी पूंजी का भी पलायन हुआ है। 

इन ज्वलंत समस्याओं के बावजूद अंकारा सरकार की ओर से अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाना तथा इराक़ और सीरिया जैसे देशों में अपने सैनिकों की उपस्थति के साथ ही काकेशिया क्षेत्र में भी सैन्य उपस्थिति बनाने के प्रयासों ने तुर्किये की आर्थिक समस्याओं में तेज़ी से वृद्धि कर दी है। 

अपनी आर्थिक समस्याओं का समाधान करने के लिए तुर्किये के पास पड़ोसी देशों में सैन्य हस्तक्षेप को छोड़ने और उनके अतिग्रहण को समाप्त करने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग बाक़ी नहीं बचा है।  हालांकि तुर्किये की सरकार ने अपनी आर्थिक समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से लघु एवं मध्य अवधि की नीतियां निर्धारित की हैं किंतु हालात बताते हैं कि यह पर्याप्त नहीं हैं।  इन सारी बातों के दृष्टिणत यह कहा जा सकता है कि तुर्किये में आर्थिक दृष्टि से एक उच्च पद पर आसीन व्यक्ति को हटाकर उसके स्थान पर सत्तारूढ पार्टी के किसी विश्वसनीय इंसान को लाने से वहां का आर्थिक संकट समाप्त नहीं हो पाएगा। 

इस बात को तुर्किये के अधिकारी अच्छी तरह से जानते हैं  कि इस देश का आर्थिक संकट उसी समय से विकट हुआ है जबसे इस देश के सैनिकों ने अपने पड़ोसी देशों सीरिया और इराक़ के कुछ भाग का अतिग्रहण किया है।

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