Sep २२, २०२४ १४:२९ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन में सामाजिक न्याय पर संक्षिप्त दृष्टि और न्याय के आधार पर सरकार के गठन की ज़रूरत

पार्सटुडे- दुनिया में नबी- इमाम सहित जितने भी समाज सुधारक आये हैं सबकी सबसे महत्वपूर्ण इच्छा व मनोकामना समाज में न्याय की स्थापना रही है।

ईरान में जो इस्लामी क्रांति आयी उसका भी नारा समाज में न्याय की स्थापना रहा है।

 

न्याय एक मानवीय आकांक्षा है जिसे इंसान आरंभ से ही एक बातिनी व निहित रुझान व झुकाव के रूप में देखता है और न्याय को फ़ैसलों व क़ानूनों का आधार क़रार दिया है। भेदभाव, मज़लूमों के अधिकारों का हनन और अन्याय वह चीज़ है जिससे न्यायप्रेमी लोगों के दिलों को तकलीफ़ होती है। इसी प्रकार न्याय का अभाव बहुत से सामाजिक आंदोलनों और क्रांतियों का कारण रहा है।

 

न्याय का अर्थः

पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम न्याय की परिभाषा में फ़रमाते हैं कि हक़दार को उसका हक़ दे देने को न्याय कहते हैं। इसी प्रकार हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने न्याय को बीच का रास्ता बताया है। मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्र में भी अन्याय व भेदभाव से दूर व ख़ाली व्यवस्था बनाये जाने का दावा किया गया है और मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय घोषणापत्र की 31वीं धारा के समस्त अनुच्छेदों में भी आज़ादी और लोगों के अधिकारों की आपूर्ति पर बल दिया गया है यद्यपि इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने वाले उसके सबसे बड़ा उल्लंघनकर्ता हैं।

 

इब्ने सीना, इब्ने रुश्द, अल्लामा तबातबाई, शहीद मुर्तुज़ा मुतह्हरी और उन सबमें सर्वोपरि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह, वह हस्ती हैं जिन्होंने न्याय पर आधारित सरकार के गठन के संबंध में अपने दृष्टिकोणों को बयान किया है। जो चीज़ स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के बयान को महत्वपूर्ण बनाती है वह यह है कि उन्होंने अपने दृष्टिकोणों को सार्वजनिक और लोकप्रिय बनाया और लोगों की मदद से न्याय पर आधारित इस्लामी सरकार का गठन किया।

 

क़ुरआन में सामाजिक न्याय का महत्व

पवित्र क़ुरआन की दृष्टि से सामाजिक न्याय का महत्व इस सीमा तक है कि महान ईश्वर पूरी दृढ़ता से न्याय का आदेश देता और उसे वाजिब करता है। क़ुरआन इस्लामी समाज और मुसलमानों को आदेश देता है कि वे न्याय से काम लें यहां तक दुश्मनों के साथ भी न्याय से काम लें और दुश्मनों की बुराइयां इस बात का कारण न बनें कि मुसलमान न्याय के रास्ते से हट जायें। इस आधार पर पैग़म्बरों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य न्याय की स्थापना है। न्याय के संचालन को पैग़म्बरे इस्लाम की ज़िन्दगी में अमली तौर पर देखा जा सकता है।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं जो कुछ अज्ञानता के काल में होता था पैग़म्बरे इस्लाम ने उसे बातिल क़रार दे दिया और अदालत से लोगों के साथ बर्ताव आरंभ किया। समाज में न्याय इतना महत्वपूर्ण है कि पवित्र क़ुरआन ने उसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आम कर दिया है। जैसे गवाही देने में न्याय, बात करने में न्याय और फ़ैसला करने में न्याय से काम लेना चाहिये। दूसरे शब्दों में जीवन के समस्त क्षेत्रों में न्याय, न्याय के महत्व का सूचक है।

 

जो चीज़ फ़साद का कारण बने पवित्र क़ुरआन ने उसे फ़िस्क़ का नाम दिया और उसे हराम क़रार दिया है। यहां तक कि एक झूठी ख़बर देना भी ग़लत है क्योंकि वह लोगों की भावनाओं में असर करती है। जिस समाज में लोगों के साथ समान बर्ताव होगा और माल-दौलत और शक्ति में सब बराबर होंगे तो स्वाभाविक रूप से समाज के लोगों के मध्य न्याय और भाईचारा स्थापित होगा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि न्याय मनपसंद और उल्फ़त का कारण है। न्याय के मुक़ाबले में अन्याय है। अन्याय महान ईश्वर के क्रोध का कारण बनता है। इसी प्रकार अन्याय दुश्मनी पैदा करने वाला और समाज में सभ्यता और उसकी समाप्ति का कारण बनता है।

 

न्याय के संचालन में सरकार की भूमिका

पैग़म्बरों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज में न्याय की स्थापना रहा है और न्याय लागू करने के लिए सरकार का गठन बहुत ज़रूरी है। दूसरे शब्दों में समाज में न्याय लागू करने की शर्त सरकार का गठन है। इस आधार पर पैग़म्बर और उनके उत्तराधिकारी हमेशा न्याय स्थापित करने के लिए प्रयासरत रहते थे। वे दुनिया पर हुकूमत करने के चक्कर में नहीं थे। महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में कहता है बेशक हमने रसूलों को दलीलों, तर्कों और चमत्कारों के साथ भेजा और उन पर हमने किताब और न्याय का मीज़ान नाज़िल किया ताकि लोगों के मध्य स्थापित कर सकें।

 

पैग़म्बर और ईश्वरीय दूत केवल परलोक में इंसानों की भलाई नहीं चाहते थे बल्कि इस दुनिया में भी वे लोगों की भलाई चाहते थे इसी वजह से बहुत से लोग उनके विरोधी और उनके दुश्मन थे। अगर ऐसा न होता तो उनके प्रचार- प्रसार के मार्ग में विरोधियों और दुश्मनों के विरोध का कोई अर्थ न होता। इस्लामी क़ानूनों को बनाना और उन्हें लागू करने के लिए सरकार का गठन ज़रूरी है। इसी वजह से हज़रत सुलैमान बिन दाऊद और पैग़म्बरे इस्लाम ने सरकार के गठन के लिए प्रयास किया ताकि लोगों के अधिकारों की पूर्ति हो सके और उनके मध्य न्याय क़ायम हो सके।

 

मानवीय प्रगति और उसकी परिपूर्णता में अदालत की भूमिका

महान ईश्वर ने समस्त इंसानों को पैदा किया है। उनके पैदा करने का उद्देश्य इंसान को परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचाना है। जो चीज़ इंसान को इस उद्देश्य तक पहुंचा सकती है वह सामाजिक अदालत है। जब समाज का हर सदस्य यह देखेगा कि उसका अधिकार सुरक्षित है और उसका सम्मान किया जा रहा है तो समाज के दूसरे सदस्यों के साथ उसके संबंध बेहतर हो जायेंगे और वह समाज में सकारात्मक भूमिका निभाने की कोशिश करेगा।

 

ज़ुल्म व अन्याय समाजों, क़ौमों और समाजों की सभ्यताओं की बर्बादी का कारण है। पवित्र क़ुरआन की आयतों से यह नतीजा निकलता है कि व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन और व्यवहार को सही करने में अदालत का ध्यान रखना इतना महत्वपूर्ण है कि अल्लाह ने आंशिक कार्यों में अदालत की सिफ़ारिश की है। पवित्र क़ुरआन में महान ईश्वर कहता है कि बेशक अल्लाह लोगों को एहसान और भलाई का आदेश देता है और बुराई व बुरे कार्यों से रोकता है।

 

एक अन्य स्थान पर क़ुरआन कहता है "मुझे तुम्हारे मध्य अदालत से काम लेने का अम्र व हुक्म दिया गया है।" इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर कहा गया है कि हे पैग़म्बर कह दो कि हमारे पालनहार ने न्याय से काम लेने का आदेश दिया है। हे ईमान लाने वालो अदालत से काम लेने वाले बनो और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले बनो। mm

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