Aug ०६, २०२३ १६:१३ Asia/Kolkata
  • क्या आप जानते हैं कि आशूरा का आंदोलन क्यों अमर हो गया? अरबईन के मौक़े पर कर्बला में ऐसा क्या दिखता है कि जिसका बयान करना असंभव है!

जैसे-जैसे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का चेहलुम क़रीब आता है, उनके चाहने वालों में एक विशेष प्रकार का जोश और जज़्बा जागने लगता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों के कथनों में बताया गया है कि मोमिन की एक निशानी, अरबईन की ज़ियारत है। इमाम हुसैन के चेहलुम के दिन करबला में उपस्थिति का अपना एक विशेष महत्व है।  इस दिन करबला में जो चीज़ दिखाई देती है उसका बयान करना संभव ही नहीं। क्योंकि उसको देखने के लिए अरबईन के मौक़े पर कर्बला में होना और अपनी आंखों से देखना ज़रूरी है।

हदीसों की किताबों में साल के कुछ विशेष दिनों के लिए विशेष निर्देष दिए गए हैं किंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों के चेहलुम का विषय इन सबसे बिल्कुल अलग है। इस दिन विश्व के कोने-कोने से इमाम हुसैन के श्रद्धालु कर्बला पहुंचते हैं। वे लोग मीलों दूर का सफ़र तै करके पूरी निष्ठा और हर प्रकार के ख़तरों को अनदेखा करते हुए पवित्र नगर कर्बला जाते हैं। इनमे बहुत से इमाम हुसैन के चाहने वाले एसे भी हैं जो दसियों नहीं बल्कि सैकड़ों मील का सफ़र तै करके कर्बला पहुंचते हैं। यहां पर सवाल यह पैदा होता है कि हर तरह से ख़तरे मोल लेकर लोग विश्व के विभिन्न हिस्सों से चेहलुम या अरबईन के दिन कर्बला क्यों पहुंचते हैं? तो इसकी वास्तविकता यह है कि बड़ी संख्या में मुसलमानों, विशेषकर शिया मुसलमानों का यह मानना है कि यदि इमाम हुसैन का बलिदान न होता तो इस समय सही या शुद्ध इस्लाम मिट गया होता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला में अपनी और अपने परिजनों की क़ुर्बानी देकर वास्तविक इस्लाम की रक्षा की और इसे बचा लिया। इमाम हुसैन ने मानवता की रक्षा करते हुए ईश्वर की राह में तन, मन,धन सबकुछ लुटा दिया।

यदि इतिहास का अध्ययन किया जाए तो इतिहास के पन्नों में अत्याचार की बहुत सी घटनाएं मिल जाएंगी। इन घटनाओं को पढ़ने से पता चलता है कि विगत में बहुत से लोगों को अत्यंत भयानक और निर्मम ढंग से मारा गया और बहुत सी घटनाओं में बड़ी संख्या में लोगों को मार दिया गया किंतु वे घटनाएं अब भुला दी गईं और केवल इतिहास तक सीमित होकर रह गईं। इसके मुक़ाबले में कर्बला की घटना आज भी जीवित है और इसने लोगों के भीतर विशेष प्रकार का उत्साह भर दिया है। कर्बला की घटना के भुलाए न जाने का मुख्य कारण यह है कि इमाम हुसैन ने ईश्वर के धर्म को सुरक्षित करने के लिए पूरी निष्ठा के साथ अपना आन्दोलन आरंभ किया। क्योंकि ईश्वर का धर्म कभी समाप्त नहीं होगा इसलिए इसकी सुरक्षा करने वाले को भी सदा याद किया जाएगा। यही कारण है कि इमाम हुसैन का नाम सदा के लिए अमर हो गया। इसको मिटाने वाले मिट जाएंगे किंतु यह कभी नहीं मिटेगा। यहां यह बताना आवश्यक है कि इमाम हुसैन का शोक केवल शिया मुसलमान ही नहीं मनाते बल्कि सुन्नी मुसलमान, इसाई और इराक़ के अन्य संप्रदाय भी अरबईन के दिन इमाम हुसैन के शोक में भाग लेते हैं। (RZ)

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