फ़िलिस्तीन अभी ज़िन्दा है, अलअक़्सा तूफ़ान ने बहुत सारी तस्वीरों को किया साफ़, एक झटके में नेतन्याहू का सपना हुआ चकनाचूर!
(last modified Tue, 17 Oct 2023 11:24:48 GMT )
Oct १७, २०२३ १६:५४ Asia/Kolkata
  • फ़िलिस्तीन अभी ज़िन्दा है, अलअक़्सा तूफ़ान ने बहुत सारी तस्वीरों को किया साफ़, एक झटके में नेतन्याहू का सपना हुआ चकनाचूर!

एक ओर 75 वर्षों से फ़िलिस्तीनी जनता का ख़ून बहाने वाला अवैध आतंकी शासन इस्राईल है और दूसरी ओर सात दशक पहले दर-दर भटक रहे यहूदियों को सिर छिपाने के लिए अपनी जगह देने वाले दयालु, बाहदुर, धैर्यवान और इस समय दुनिया की सबसे पीड़ित फ़िलिस्तीनी जनता है। हंसी के साथ-साथ शर्म आती है उन नेताओं, पत्रकारों और संस्थाओं पर जो फ़िलिस्तीन के संघर्षकर्ताओं को आतंकवादी और इस्राईली आतंकियों को आत्मरक्षा करने वाले सिपाही बता रहे हैं।

सात अक्तूबर शनिवार की सुबह जब फ़िलिस्तीनी जियालों ने आतंकी इस्राईल के ख़िलाफ़ जवाबी कार्यवाही के तहत अल-अक़्सा स्टॉर्म ऑप्रेशन शुरू किया तो पूरी दुनिया में एक तुफ़ान सा आ गया। ऐसा लगने लगा कि इस्राईल पर परमाणु बम गिर गया हो। वैसे इसमें भी कोई शक नहीं है कि जो इस्राईल वर्षों से पूरी दुनिया के सामने अपने आपको को एक शक्तिशाली शासन के तौर पर पेश करता आ रहा था उसके इस झूठ की पोल इस्लामी प्रतिरोध संगठन हमास ने एक ही झटके में खोल दी। लेकिन यहां यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध संगठन हमास को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उसके अलअक़्सा तुफ़ान ऑपरेशन के बाद क्या स्थिति होगी? तो इसका बहुत आसान सा जवाब है। पहली बात तो यह है यह पहली बार नहीं है कि जब इस्राईल ग़ाज़ा पर इस तरह के पाश्विक हमले कर रहा है। इस्राईल की आतंकवादी कार्यवाहियां पिछले 70 वर्षों से अधिक समय से जारी हैं। अब तक लाखों फ़िलिस्तीनियों को वह शहीद कर चुका है, लगभग डेढ़ लाख से अधिक फ़िलिस्तीनी बच्चों की वह हत्याएं कर चुका है। इसी तरह हज़ारों महिलाओं का नरसंहार कर चुका है। लाखों घरों को ध्वस्त करके उनपर अवैध कॉलोनियों का निर्माण कर चुका है। अब आख़िर ऐसा क्या बचा है कि फ़िलिस्तीनी उसके छिन जाने पर आंसू बहाएंगे। बल्कि अब फ़िलिस्तीनियों के वजूद का मामला है, अब उनका अस्तित्व पूरी तरह ख़तरे में है। यही कारण है कि अब उन्होंने अपने सिरों पर कफ़न बांध लिया है और निर्णायक जंग के लिए निकल पड़े हैं।

वैसे दुनिया में यह देखा गया है कि जो जितना ख़ुद को शक्तिशाली दिखाने का नाटक करता है वह भीतर से उतना ही डरपोक होता है। इसी तरह पश्चिमी एशिया का अवैध और आतंकी शासन इस्राईल भी है जो ख़ुद को हमेशा शक्तिशाली दिखाने का प्रयास करता रहता है। साथ ही अमेरिका, ब्रिटेन समेत और लगभग ज़्यादातर पश्चिमी देश इस अवैध शासन का समर्थन करते हैं। ऐसे में हमास जैसी छोटी सी सेना का इस्राईल पर हमला एक अत्यंत आश्चर्यजनक घटना है, जिसकी गुत्थी दुनिया भर के विश्लेषकों के लिए सुलझाना भी कठिन हो गया है। एक सप्ताह बीत चुका है और यह क़रीब-क़रीब साफ़ होने लगा है कि इस हमले के पीछे हमास का आख़िर मक़सद क्या था। हमास का मक़सद यही था कि जो दुनिया फ़िलिस्तीन को क़रीब-क़रीब भुला चुकी थी, उसे याद दिलाना था कि फ़िलिस्तान अभी भी एक समस्या है। उसका मक़सद है कि इक्कीसवीं सदी के युवा को पता चले कि फ़िलिस्तीन एक जीवित क़ौम है और आज भी अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है। या यूं कहें कि फ़िलिस्तीन अभी ज़िन्दा है। साथ ही जिस मक़सद से हमास का तुफ़ान आया था वह मक़सद पूरी तरह कामयाब हो चुका है।

इस बीच 75 वर्षों साम्राज्यवादी शक्तियां लगातार जिस प्रयास में थीं कि किसी भी तरह फ़िलिस्तीन का नाम पूरी तरह मिट जाए और उसकी जगह पर केवल नक़ली और अवैध शासन इस्राईल का नाम लिया जाए। वहीं इसी सपने को लेकर ज़ायोनी प्रधानमंत्री और इस दौर का सबसे बड़ा आतंकवादी बिन्यामिन नेतन्याहू भी मन ही मन ख़ुश रहा करता था, लेकिन हमास के एक तुफ़ान ने उसका और उसके सारे समर्थकों की दशकों पुरानी मेहनत पर पानी फेर दिया, साथ ही नेतन्याहू का सपना भी चकनाचूर हो गया। 7 अक्तूबर के बाद से दुनिया भर के मीडिया में सिर्फ हमास या कहें फ़िलिस्तीन छाया हुआ है। कोई उसका विरोध कर रहा है तो कोई उसके संघर्ष में उसके साथ है। इसी तरह आज का युवा जो फ़िलिस्तीन और इस्राईल की समस्या को भूल चुका था, वह फिर से इस समस्या से अवगत हो चुका है। वह यह जानता है कि 1949 में पश्चिमी देशों और ख़ासकर अमेरिका की मदद से यहूदी फ़िलिस्तीन में कैसे इकट्ठा हुए थे। फ़िलिस्तीनियों को उनके ही देश से निकालकर इस्राईल नाम के एक अवैध शासन को कैसे अस्तित्व में लाया गया। (RZ)

लेखक- रविश ज़ैदी, वरिष्ठ पत्रकार। ऊपर के लेख में लिखे गए विचार लेखक के अपने हैं। पार्स टुडे हिन्दी का इससे समहत होना ज़रूरी नहीं है। 

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