सन 2003 में इराक़ पर अमरीका और ब्रिटेन के हमले में इस्राईल की भूमिका
अमरीका की ज़ायोनी लाबी ने इराक़ पर हमले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
पार्सटुडे- सन 2003 में इराक़ पर अमरीका का हमला या दूसरे शब्दों में इस देश पर क़ब्ज़े में इस्राईली दावों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस हमले को इराक़ द्वारा जनसंहारक शस्त्रों की प्राप्ति और आतंकवादी गुटों के साथ संपर्क के आरोप में किया गया था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इराक़ पर हमला करने के लिए जार्ज बुश को उकसाने में अमरीका में रहने वाली ज़ायोनी लाबी ने बढचढकर हिस्सा लिया था। इस हमले का एक कारण इराक़ की भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और क्षेत्र में जनसंख्या की शक्ति को बताया गया।
अमरीका में इस्राईल के तत्कालीन राजदूत डेनी एलन के अनुसार इस्राईल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरून ने अमरीका के उस समय के राष्ट्रपति जार्ज बुश को बताया था कि इराक़ के पास जनसंहार हथियार मौजूद हैं।
वर्तमान समय में अवैध ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री बेनयमिन नेतनयाहू ने जार्जबुश को इराक़ पर हमला करने के लिए उकसाते हुए कहा था कि मध्यपूर्व को बचाने के लिए यह बहुत उपयुक्त कार्यवाही होगी।
एक ज़ायोनी समाचारपत्र हआरेत्ज़ ने 2003 के अपने एक संस्करण में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था, "श्वेत व्यक्ति की ज़िम्मेदारी"। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि इराक़ पर हमला करने का प्रस्ताव अमरीका के 25 से 30 नेओकंज़रवेटिव पर आधारित एक छोटे से गुट की ओर से पेश किया गया था।
उसी ज़माने में ब्रिटेन के कुछ अधकारियों और समाचारपत्रों ने अप्रैल 2002 को अमरीकी राष्ट्रपति जार्जबुश के आवास पर इराक़ के मुद्दे पर ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानामंत्री टोनी ब्लेयर की मुलाक़ात की ओर संकेत किया था। सूत्रों के अनुसार यह मुलाक़ात बंद दरवाज़ों के पीछे हुई थी जिसमें टेलिफोन के माध्यम से ज़ायोनी भी उपस्थित थे।
अमरीका के भूतपूर्व उप राष्ट्रति डिक चेनी द्वारा विदेशी युद्धों में भाग लेने वाले पुराने सैनिकों को जज़बाती भाषण देने से 11 दिन पहले 16 अगस्त 2002 को वाशिग्टन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि इस्राईल ने अमरीकी अधिकारियों से मांग की है कि इराक़ पर हमले को वे किसी भी हालत में विलंबित न करें।
एरियल शेरून के अनुसार उस दौर में इस्राईल और संयुक्त राज्य अमरीका के बीच रणनीतिक समन्वय उच्च चरण पर था। उसी दौर में इस्राईल की गुप्तचर सेवा के अधिकारियों ने इराक़ के पास जनसंहार हथियारों की मौजूदगी पर आधारित कई चिंताजनक रिपोर्टें, अमरीका पहुंचवाई थीं। यह वह झूठ था जिसकी भारी क़ीमत इराक़ी राष्ट्र को चुकानी पड़ी और उसका भुगतान आज भी वह कर रहा है।
अमरीका और ब्रिटेन ने 19 मार्च 2003 को, "इराक़ की आज़ादी" के नारे के साथ हमला आरंभ किया था। यह वह हमला था जो इराक़ियों के लिए आज़ादी तो नहीं लाया बल्कि इराक़ी अधिकारियों के कथनानुसार इस देश के हज़ारों लोगों की हत्या और लाखों इराक़ियों के पलायन का कारण बना।
ज़ायोनी समाचारपत्र मआरियों के अनुसार अगस्त 2002 में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 57 प्रतिशत इस्राईली, इराक़ पर अमरीकी हमले के समर्थक थे।
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