विश्व दर्पणः पश्चिमी एशिया में युद्ध की जलती आग को भड़काने के लिए बाइडन कौन सा खेल खेलने जा रहे हैं? सऊदी अरब और अमरीका के संबंधों का भविष्य क्या होगा?
(last modified Tue, 16 Mar 2021 14:17:58 GMT )
Mar १६, २०२१ १९:४७ Asia/Kolkata

अमरीका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने सत्ता में आने से पहले ही सऊदी अरब के संबंध में कड़ा तेवर अपना लिया था और सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की हत्या के मामले को फिर से उठाने की बात की थी। उन्होंने किया भी यही और हाल ही में ख़ाशुक़जी हत्याकांड के बारे में अमरीकी गुप्तचर विभाग की जो रिपोर्ट सामने आई है, उसमें सऊदी युवराज मुहम्मद बिन सलमान की तरफ़ उंगली उठाई गई है और इस हत्या में उनकी सीधी भूमिका की बात कही गई है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि हम सऊदी अरब में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर सऊदी नरेश से बात करेंगे। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद दोनों देशों के संबंधों के भविष्य के बारे में कई समीक्षाएं सामने आई हैं। इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि सऊदी अरब में सत्ता का जो ढांचा है, वह अमरीका के दृष्टित लिब्रल डेमोक्रेसी से बहुत फ़ासला रखता है और इन दोनों देशों के संबंध, पश्चिमी देशों के संबंधों से बहुत अलग है। यमन पर सऊदी गठजोड़ के हमले और ख़ाशुक़जी हत्याकांड जैसे मामलों ने अमरीकी जनमत में सऊदी अरब की छवि बुरी तरह से बिगाड़ दी है। यहीं यह बात भी उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब पारंपरिक रूप से अमरीका के रिपब्लिंस से क़रीब रहा है और अमरीका के विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों के शासनकाल में यह बात जगज़ाहिर रही है लेकिन ट्रम्प के सत्ताकाल में बिन सलमान और ट्रम्प के संबंध व्यक्तिगत रूप से भी काफ़ी मज़बूत रहे और ऐसा नहीं लगता कि ये संबंध बाइडन के शासनकाल में भी जारी रहेंगे। ट्रम्प के जाने के बाद अमेरिका और सऊदी अरब के बीच आने वाले दिनों में संबंध कैसे रहने वाले हैं इस बारे में भारत के वरिष्ठ पत्रकार एवं टीकाकार मोहम्मद अहमद काज़मी पार्स टुडे हिन्दी से बात की है और अपनी राय रखी है। अमरीका व सऊदी अरब के गहरे संबंधों के पीछे तेल की अहम भूमिका रही है और अमरीका कुछ दशक पहले तक बड़ी हद तक सऊदी अरब के तेल पर निर्भर था लेकिन 21वीं सदी में उसकी यह निर्भरता कम होती चली गई और ट्रम्प ने खुल कर सऊदी अरब का दोहन शुरू कर दिया। दोनों देशों के संबंध किसी तर्कसंगत आधार पर नहीं बल्कि एक के लोभ और दूसरे के भय पर आधारित रहे हैं और यही कारण है कि सभी अमरीकी सरकारों ने सऊदी अरब को दुधारू गाय समझ का उसका दोहन किया है। ट्रम्प ने तो यह बात खुल कर कही भी थी।

ऐसा लगता है कि बाइडन सरकार मानवाधिकार का हथकंडा अपना कर सऊदी अरब पर अधिक से अधिक दबाव डालने और अपने जायज़ और नाजायज़ हितों को पूरा करने की कोशिश करेगी। बाइडन सरकार के सत्ता संभालते ही ख़ाशुक़जी हत्याकांड की रिपोर्ट का प्रकाशन इसी बात की तरफ़ इशारा करता है। यद्यपि सऊदी अरब के तेल पर अमरीका की निर्भरता कम हो गई है लेकिन अमरीकी हथियारों के सबसे बड़े ख़रीदारों में सऊदी अरब का नाम भी शामिल है और इसी लिए लगता है कि इन दोनों देशों के संबंधों के भविष्य के बारे में भविष्यवाणी करना जटिल होगा। चूंकि दोनों देशों के आपसी हित एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए अगर बाइडन अपनी घोषित नीति के विपरीत सऊदी अरब से संबंध मज़बूत बनाएं तो अप्रत्याशित नहीं होगा। ज़ाहिरी तौर पर अमरीका की नई सरकार की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा भी है कि सऊदी अरब के साथ अमरीका के संबंध एक नई दिशा में आगे बढ़ेंगे लेकिन उनमें बिन सलमान की नहीं बल्कि उनके पिता सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ की ही केंद्रीय भूमिका होगी।  सऊदी अरब और अमरीका के संबंधों का भविष्य क्या होगा? यह किसी हद तक यमन युद्ध और उसके नतीजे पर भी निर्भर है। सऊदी अरब छः साल से तो यमन में आम लोगों के जनसंहार के अलावा कुछ हासिल नहीं कर पाया है और अगर वह पराजित हो कर वापस लौटता है तो न सिर्फ़ यह कि क्षेत्र में उसका प्रभाव ख़त्म हो जाएगा बल्कि अमरीका के साथ उसके संबंध भी बुरी तरह प्रभावित होंगे। ज़मीनी स्थिति यह है कि यमनी बल सऊदी अरब को निरंतर खदेड़े हुए हैं और रियाज़ को अब वाशिंग्टन का भी समर्थन हासिल नहीं है। अभी हाल में यमनी बलों ने सऊदी अरब के अंदर जो व्यापक कार्यवाही की है उससे सऊदी अरब की चूलें हिल गई हैं। इसी के साथ यमनी बलों के ये जवाबी हमले बाइडन सरकार के लिए भी यह संदेश लिए हुए हैं कि अगर अमरीका सही अर्थों में मानवाधिकार का समर्थक है तो उसे सऊदी अरब के साथ नहीं बल्कि यमन के साथ खड़ा होना चाहिए। वहीं बाइडन सरकार की ओर से जो ताज़ा बयान आए हैं उसमें यह साफ़ ज़ाहिर है कि वह सऊदी अरब से यमन पर हमले बंद करने के लिए नहीं कह रहे हैं बल्कि यमन से सऊदी अरब के अंदर हमले बंद करने के लिए कह रहे हैं। इस बारे में जब पाकिस्तान के वरिष्ठ राजनीतिक टीकाकार शहबाज़ अली अब्बासी से पूछा तो उन्होंने विस्तार से इस संबंध में चर्चा की।

सऊदी अरब के थनों में मौजूद दूध की अमरीका को जो ज़रूरत ट्रम्प के शासनकाल में थी, वह बाइडन सरकार के दौर में भी रहेगी, और वह भी सऊदी अरब के दोहन में पीछे नहीं रहेगी। जब अमरीका के लिए सऊदी अरब की उपयोगिता ख़त्म हो जाएगी या दूसरे शब्दों में उसके थनों का दूध सूख जाएगा तो अमरीका उससे मुंह फेरने में एक पल की भी देरी नहीं करेगा। कुल मिला कर यह लगता है कि इस समय सऊदी अरब और बाइडन प्रशासन के बीच लेन-देन की बात हो रही होगी और अगले कुछ हफ़्तों में दोनों देशों के संबंधों का भविष्य स्पष्ट हो जाएगा। जहां तक यमन युद्ध की बात है तो इस युद्ध की इस समय जो स्थिति है उसकी सन 2015 की स्थिति से किसी भी रूप में तुलना नहीं की जा सकती। उस समय सऊदी अरब मज़बूत और यमन कमज़ोर था लेकिन आज यमनी प्रतिरोध सऊदी अरब को हर स्तर पर पराजित करता जा रहा है।

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