रूस पर लगे प्रतिबंध यूरोप की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर सकते हैंः हंगरी की चेतावनी
हंगरी के प्रधानमंत्री का कहना है कि यूरोपीय संघ की ओर से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधो से यूरोप की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर ख़तरे पैदा हो जाएंगे।
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के साथ एक बैठक में वीडियो कांफ्रेंसिंग में विक्टर आरबन ने इस संघ के सदस्यों से मांग की है कि रूस पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिए वे समीक्षा करना शुरू कर दें क्योंकि यह प्रक्रिया यूरोप की अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरे की घंटी है।
हंगरी के प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान यूक्रेन युद्ध को तत्काल रोकने की मांग करते हुए कहा है कि रूस पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के उद्देश्य से कूटनीतिक प्रयास आरंभ किये जाने चाहिए। हंगरी के प्रधानमंत्री के अतिरिक्त इस देश के कई अन्य अधिकारी रूस के विरुद्ध पश्चिम के प्रतिबंधों को हटाए जाने की मांग कर चुके हैं। यूक्रेन संकट को आरंभ हुए अब 12 महीनों का समय गुज़र रहा है। इस दौरान यूरोपीय संघ ने रूस के विरुद्ध कठोन प्रतिबंध लगाए हैं।
अमरीका के नेतृत्व में पश्चिम ने रूस के विरुद्ध जो कुछ सोचकर प्रतिबंध लगाए थे वह उसको हासिल होता दिखाई नहीं दे रहा है। उसका मुख्य उद्देश्य रूस को कमज़ोर करना था। पश्चिम का प्रयास था कि रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाकर माॅस्को को आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर कर दिया जाए जिसके परिणाम स्वरूप यूक्रेन में उसका सैन्य अभियान कमज़ोर पड़ जाएगा। एसे में उसको यूक्रेन में भी पराजित किया जा सकता है और उसकी अर्थव्यवस्था के कमज़ोर होने से एक महाशक्ति पर दबाव डाला जा सकेगा। वर्तमान हालात यह बता रहे हैं कि पश्चिम की यह सोच पूरी तरह से ग़लत साबित हुई।
गार्डियन समाचारपत्र ने 2020 के अन्तिम दिनों में लिखा था कि रूस के विरुद्ध पश्चिम की कार्यवाहियां, उलटकर रह गईं। यह पश्चिम का दूरदर्शिता से अलग फैसला था। रुस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद पुतीन मज़बूत हुए हैं और उनके कमज़ोर होने की कोई निशाई अभी दिखाई नहीं दे रही है। यह मुद्दा, पश्चिम की खुली पराजय के अर्थ में है क्योंकि यूक्रेन को अरबों डालर की सहायता देने के बावजूद अब रूस आर्थिक दृष्टि से भी और सैनिक दृष्टि से भी सक्षम दिखाई दे रहा है। अपने साथियों के साथ मिलकर माॅस्को, वर्तमान परिस्थतियों पर नियंत्रण पा चुका है। इस समय वह चीन, भारत और तुर्किये के साथ बड़े पैमाने पर आर्थिक एवं व्यापारिक क्षेत्र में सहयोग कर रहा है।
आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि यूरोपीय देशों पर यूक्रेन युद्ध के आर्थिक दुष्परिणाम लंबे समय तक बाक़ी रहेंगे। उनका मानना है कि यह समय अवधि 20 वर्षों से अधिक की हो सकती है। राजनीतिक विशेषों का मानना है कि इस समय यूरोप जिस संकट से गुज़र रहा है उसका मुख्य कारण अमरीका के नेतृत्व में यूरोपीय देशो का रूस के विरुद्ध खड़े होना है।
रूस के विरुद्ध कड़े प्रतिबंधों के बाद अब पश्चिम में आम लोगों का जीवन प्रभावित हुई है। वहां ऊर्जा का संकट खड़ा हो गया है। खाद्य पदार्थों में कमी आई है और चीजों के मू्ल्य अभूतपूर्व ढंग से बहुत बढ़ गए हैं। शायद इन्ही बातों को देखते हुए हंगरी के प्रधानमंत्री ने कहा है कि रूस पर लगे प्रतिबंध यूरोप की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर सकते हैं।
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