यूरोप के सैन्य खर्च में हुई अभूतपूर्व वृद्धि
सन 2022 में यूरोप में सैन्य ख़र्च, शीतयुद्ध की समाप्ति केे बाद सबसे अधिक दर्ज किया गया।
पिछले तीन दशकों के दौरान एसा कभी नहीं हुआ कि यूरोपीय देशों का सैन्य ख़र्च इतना अधिक हो गया हो। यूक्रेन युद्ध को इसका सबसे प्रमुख कारण बताया जा रहा है।
पिछले कुछ दशकों के दौरान पोलैण्ड, हालैण्ड और स्वीडन जैसे देशों ने रक्षा के क्षेत्र में अधिक पूंजीनिवेश किया है। केवल यूक्रेन में एक साल में सैन्य ख़र्च बढ़कर 44 अरब डालर हो गया है। यह राशि, इस देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद का एक तिहाई भाग है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी जगत ने यूक्रेन को अरबों डालर की सहायता की है। सर्वेक्षणों से यह पता चलता है कि इसी दौरान रूस ने भी रक्षा के क्षेत्र में 9.2 प्रतिशत का पूंजी निवेश किया है।यूरोपीय देशों ने पिछले वर्ष अपनी सशस्त्र सेनाओं में लगभग 480 अरब डालर की लागत का पूंजी निवेश किया।
रक्षा मामलों के एक विशेषज्ञ Nan Tian कहते हैं कि यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों ने अपने सैन्य ख़र्चों में अभूतपूर्व वृद्धि की। इस हिसाब से यह कहा जा सकता है कि यूक्रेन युद्ध, यूरोप में सैन्यवाद के रूप में सामने आया है। जर्मनी की पूर्व चांसलर मर्केल ने नैटो के एक सदस्य के रूप में सैन्य ख़र्चों में बचत के प्रयास किये जो बर्लिन और वाशिग्टन के बीच मतभेदों का कारण बने।
बात इतनी बढ़ गई कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने जर्मनी को सबक़ सिखाने के लिए जर्मनी में तैनान बहुत से अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने का आदेश जारी कर दिया था। हालांकि जर्मनी ने जो बाइडेन के काल में कुछ नर्मी का प्रदर्शन करते हुए सैन्य बजट में वृद्धि की घोषणा कर डाली। एक हिसाब से यूक्रेन युद्ध ने ही जर्मनी को अपने सैन्य बजट में वृद्धि के लिए उकसाया। अब जर्मनी ने 100 अरब यूरो का बजट विशेष किया है जिसका वाशिगटन की ओर स्वागत किया गया।
जर्मनी की ओर से अमरीका के एफ-35 के आधुनिक युद्धक विमान ख़रीदने की इच्छा व्यक्त की गई है। हालांकि जर्मनी की सरकार के इस फैसले का देश के भीतर के राजनैतिक गुटों की ओर से विरोध किया जा रहा है। फिलहाल नेटो के ठेकेदार होने के नाते अमरीका, अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों की पूर्ति के उद्देश्य से अपने यूरोपीय सहयोगियों को यूक्रेन के लिए अधिक से अधिक हथियार भेजने को प्रेरित कर रहा है। इसके अतिरिक्त वह स्वयं पर यूरोपीय देशों की सैन्य निर्भरता को बढ़ाने के लिए दूसरे तरीके से भूमिकाएं प्रशस्त करता जा रहा है।
वाशिग्टन के इस काम से अमरीका की हथियार बनाने वाली कंपनियों को बहुत लाभ होगा जिससे अमरीका के हथियार उद्योग के वारे-न्यारे हो जाएंगे। अमरीका की ओर से अपने पश्चिमी घटकों को सैन्य क्षेत्र में ख़र्च करने के लिए उकसाने की कार्यवाही का नतीजा यह निकला है कि जर्मनी जैसे देश, जो पहले हथियारों की ख़रीदारी के प्रति इतने गंभीर नहीं थे अब अमरीका से हथियार ख़रीदने वालों की लाइन में बहुत आगे दिखाई देने लगे हैं।
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