Sep ०८, २०२३ १८:०१ Asia/Kolkata
  • जर्मनी की इंडस्ट्रीज़ को भारी सेटबैक, पूरे यूरोप में चिंता की लहर

जर्मनी के वित्त मंत्रालय ने रिपोर्ट दी है कि देश में बीते जुलाई महीने में औद्योगिक उत्पादन की मात्रा तेज़ी से घटी है और यूरोप की सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था के सामने मौजूद परेशानियां उजागर हो गई हैं। जून में भी गिरावट आई थी लेकिन वो इतनी ज़्यादा नहीं थी मगर जुलाई में तो दशमलव 8 प्रतिशत की गिरावट आ गई।

विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे थे कि दशमलव पांच प्रतिशत की गिरावट हो सकती है।

अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि जर्मनी की आधी आबादी सरकार की गतिविधियों और नीतियों को देखते हुए रूस पर लगे प्रतिबंधों, इनफ़्लेशन और अर्थ व्यवस्था का विकास रुक जाने जैसे विषयों को लेकर बहुत परेशन है।

पिछले कई दशकों में यह पहला मौक़ा है जब जर्मनी ने पिछले साल मई महीने में कहा था कि वह व्यापार घाटे से जूझ रहा है और यह घाटा लगभग 1 अरब यूरो का है। एक दशक के दौरान जर्मनी इस हालत में पहुंचा है वरना हमेशा उसका निर्यात ज़्यादा और आयात कम होता था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यूरोप की बड़ी अर्थ व्यवस्थाओं की क्या हालत है।

जर्मन अर्थ शास्त्री हांस वरनर ज़ीन का कहना है कि जर्मनी की अर्थ व्यवस्था की हालत यह है कि उसे फिर से यूरोप का बीमार मर्द कहा जाने लगे तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। इसकी एक वजह जर्मन में तेज़ी से बढ़ता दक्षिणपंथी रुजहान है। उनका कहा है कि जर्मनी में जो भी ऊर्जा रणनीति है उससे दक्षिणपंथी धड़ों को लाभ मिलता है।

पिछले हफ़्तों के दौरान देखने में आया कि जर्मनी को एक बार फिर यूरोप का मुर्दा व्यक्ति कहा जाने लगा क्योंकि जर्मनी में जो यूरोप की सबसे बड़ी इकानामी है उत्पादन की समस्या गंभीर हो चली है। 1998 में जर्मनी को यूरोप का बीमार पुरुष कहा गया था जब पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के बाद यह देश गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था।

हालियां के पिछले दो साल में जर्मनी में बढ़ने वाली आर्थिक समस्याओं के कई कारण गिनवाए जाते हैं। लेकिन मुख्य रूप से रूस के बारे में जर्मनी की गठबंधन सरकार की नीतियों और गतिविधियों, मास्को के ख़िलाफ़ पाबंदियां लगाने में पश्चिमी देशों की मुहिम में जर्मनी का शामिल होना और रूस की गैस पर निर्भरता ख़त्म करना वो बड़े क़दम हैं जिन्हें जर्मनी की आर्थिक मुश्किलों की वजह माना जाता है।

इस समय यूरोप की सबसे बड़ी इकानामी और दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकानामी के रूप में जर्मनी मंदी की चपेट में आ गई है और इसके नकारात्मक प्रभाव पूरे यूरोपीय संघ को प्रभावित कर सकते हैं और इस क्षेत्र में चिंताएं बढ़ सकती हैं। आंकड़े बताते हैं कि जारी वर्ष के शुरुआती तीन महीनों में जर्मनी की अर्थ व्यवस्था मंदी की चपेट में रही है।

आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी की अर्थ व्यवस्था अनुमानों से कहीं अधिक गंभीर संकट में है।

रूस और जर्मनी के बीच ऊर्जा का सहयोग रुक जाने से जर्मनी पर बहुत गहरा पड़ा है।

यूरोपीय संसद में जर्मन सांसद गोनार बिक का कहना है कि सरकार ने ऊर्जा के क्षेत्र में कई मूर्खतापूर्ण नीतियां अपनाई हैं और नतीजे में जर्मनी की अर्थ व्यवस्था संकट में चली गई है।

चूंकि जर्मनी की अहमियत बहुत ज़्यादा थी और इसका असर पूरे यूरोप की अर्थ व्यवस्था पर पड़ता इसलिए अब जब जर्मनी की अर्थ व्यवस्था संकट में है तो निश्चित रूप से इसका असर पूरे यूरोप पर पड़ेगा।

 

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