ग़रीब देशों से नर्सों को पलायन करवाना अफ़्रीक़ा के स्वास्थ्य सिस्टम के लिए संकट खड़ा करने का पश्चिमी मंसूबा
पार्स टुडे- इंटरनैशनल काउंसिल आफ़ नर्सेज़ आईसीएन का कहना है कि अमीर देश अपने यहां वर्क फ़ोर्से की क़िल्लत को दूर करने के लिए ग़रीब देशों से नर्सेज़ की भर्ती कर रहे हैं जिसकी वजह से दक्षिणी गोलार्ध के देशों में स्वास्थ्य व चिकित्सा सिस्टम बड़े गंभीर हालात से रूबरू है।
आईसीएन के डायरेक्टर होवर्ड कैटन ने बताया कि रोवांडा में जारी महीने में अफ़्रीक़ा महाद्वीप के नर्सेज़ विभागों के अधिकारियों की बैठक में उत्तरी गोलार्ध के देशों की योजनाओं और गतिविधियों पर भारी आक्रोश जताया गया। कैटन ने कहा कि इन देशों पर अपनी आर्थिक सम्पन्नता को इस्तेमाल करके दक्षिणी गोलार्ध की नर्सों की भर्ती करने के कार्यक्रम से यह नेता नाराज़ थे।
उन्होंने कहा कि अमीर देश ग़रीब देशों से नर्सों की भर्ती कर लेते हैं और नतीजतन लंबे समय के लिए इन ग़रीब देशों को अपना मोहताज बना लेते हैं। इससे दक्षिणी गोलार्ध के देशों में स्वास्थ्य व चिकित्सा क्षेत्र का विकास ठप्प पड़ जाता है। यह भी एक प्रकार का साम्राज्यवाद है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के प्रकाशित नियमों के अनुसार ग़रीब देशों के हेल्थ व मेडिकल सेक्टर की वर्क फ़ोर्स की दूसरे देशों में भर्ती नहीं की जानी चाहिए। डब्ल्यूएचओ ने सारे देशों से कहा है कि जो दिश रेड लिस्ट में हैं वहां के मेडिकल व हेल्थ विभाग के लोगों की किसी भी तरह की भर्ती इन देशों की सरकारों की सहमति से होनी चाहिए।
होवर्ड कैटन का मानना है कि यह नियम नैतिकता की बातों से अधिक महत्व नहीं रखते। व्यवहारिक रूप से यही नज़र आता है कि नर्सों की भर्ती में सरकारों के बीच समझौते बहुत कम ही होते हैं।
नेशनल असोसिएशन आफ़ गाम्बिया नर्सेज़ के अध्यक्ष डाक्टर बाबूकर चाम कहते हैं कि गाम्बिया से नर्सेज़ यूरोप और अमरीका चली जाती हैं जिससे गाम्बिया के अवाम को भारी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं।
उन्होंने एक सुझाव यह रखा कि दौलतमंद देश में जाने वाली हर नर्स के एवज़ दो नर्सों की शिक्षा पर आने वाला ख़र्च इस ग़रीब देश को दिया जाए ताकि गाम्बिया के लोगों को नर्सों की कमी का सामना न करना पड़े।
गार्डियन अख़बार ने लिखा कि ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा, आस्ट्रेलिया और अमरीका सभी को नर्सों की कमी का सामना है और इस कमी को पूरा करने के लिए वो ग़रीब देशों से भी नर्सों की भर्ती कर रहे हैं।
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