राष्ट्र संघ में सुधार प्रक्रिया में रोड़े अटकाने की आलोचना
(last modified Wed, 21 Sep 2016 11:49:50 GMT )
Sep २१, २०१६ १७:१९ Asia/Kolkata

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने इस संगठन के ढांचे में सुधार की राह में कुछ देशों की ओर से रुकावटें डाले जाने की आलोचना की है।

बान की मून ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अधिवेशन में अपने अंतिम भाषण में राष्ट्र संघ के ढांचे में सुधार की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा कि अब तक कई बार संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रभावी व संतुलित बनाने के लिए आवश्यक सुधार पेश किए जा चुके हैं लेकिन कुछ देशों की ओर से रोड़े अटकाए जाने के कारण ये प्रयास विफल रहे हैं।

 

एेसा प्रतीत होता है कि बान की मून ने महासभा में अपने अंतिम भाषण में उस विषय पर बल दिया है जिसे सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय संगठन की सबसे बड़ी समस्या समझा जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ का ढांचा, दूसरे विश्व युद्ध के बाद के हालात को देखते हुए बनाया गया था जो निश्चित रूप से आज के समय के लिए पूरी तरह से उपयोगी नहीं है। यही वजह है कि जापान और जर्मनी जैसे विकसित औद्योग देश और भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीक़ा जैसी नई आर्थिक शक्तियां इस ढांचे में सुधार की मांग कर रही हैं। अमरीका व वीटो का अधिकार रखने वाले अन्य बड़े देशों की इच्छा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ पर छोटे देशों का तनिक भी प्रभाव न हो और यह संगठन उनकी इच्छा के अनुसार काम करे। दूसरी ओर अन्य देश वीटो के अधिकार पर ही आपत्ति करते हैं और उनका कहना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ विशेष कर सुरक्षा परिषद के ढांचे में बुनियादी सुधार होना चाहिए।

वास्तविकता यह है कि सुरक्षा परिषद में संसार के सभी देशों का सही ढंग से प्रतिनिधित्व है ही नहीं। तेल पैदा करने वाले देशों और इसी प्रकार डेढ़ अरब से अधिक की आबादी वाले मुस्लिम देशों का कोई भी प्रतिनिधि सुरक्षा परिषद में नहीं है।71 साल से इस परिषद के ढांचे में कोई बदलाव नहीं आया है। विकसित व उभरती हुई आर्थिक शक्तियों के समूह जी-20 के सदस्य कई देश चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के ढांचे को बदला जाए। इसी तरह सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की ओर से वीटो के अधिकार को अपने हितों के अनुसार प्रयोग किए जाने के कारण भी संसार के देश सुरक्षा परिषद के ढांचे में सुधार की निरंतर मांग कर रहे हैं। (HN)

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