मुसलमानों में रिश्ता तलाश करने के पीछे छिपा जातीवाद का कड़वा सच
हम जातीवाद को उस वक़्त तक नहीं ख़त्म कर पाएंगे जब तक हम अपनी पसंद और अपने बच्चों की पसंद पर सांस्कृतिक पक्षपात को हावी होने देंगे।
क्वारंटाइन के दिनों की तन्हाई से बचने के लिए मैंने नेटफ़्लिक्स पर नई रियालिटी सिरीज़ देखनी शुरु की जो भारतीयों में रिश्ता तलाश करने के बारे में थी। आठ एपिसोड की इस सिरीज़ के अंत में मुझे घिन आने लगी, क्योंकि इस सिरीज़ में जिस तरह से वर्गीकरण, नस्लपरस्ती और रंग को अहमियद दी गयी, मुझे बहुत तकलीफ़ हुयी।
मुझे एक अरब मर्द से प्यार हुआ जिनसे मेरी बोस्टन की मस्जिद में मुलाक़ात हुयी थी। उन्होंने बहुत सी चीज़ों के साथ मेरी ज़िन्दगी को आस्था पर केन्द्रित करना सिखाया। जब मैने दोस्ती को शादी में बदलने की कोशिश की तो हमें उनके घर वालों के पक्षपाती रवैये का सामना हुआ। उनके घर वालों से कभी मुलाक़ात नहीं हुयी लेकिन घरवालों ने पहली बार में साफ़ तौर पर रिश्ते को ‘बेमेल’ कहते हुए रद्द कर दिया। यह वह शब्दावली है जो जातिवाद पर आधारित तकलीफ़ देने वाली आस्था को छिपाने के लिए आम तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
हमारे प्रिय पैग़म्बर को इस्लाम से पहले की उन रस्म रिवाज को ख़त्म करने के लिए भेजा गया जो वर्गीकरण, नस्लपरस्ती और क़बायली सिस्टम का समर्थन करती थी।
उन पर उतरी एक आयत यह हैः हे मानवजाति, हमने तुम्हें मर्द और औरत के एक जोड़े से पैदा किया और तुमको राष्ट्रों और क़बीलों में बांट दिया ताकि तुम एक दूसरे को जान सको। जब शादी की बात आती है तो बहुत से लोग इस तरह की आयतों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
जॉर्ज फ़्लॉइड की मौत के वक़्त से मुस्लिम नेताओं व कार्यकर्ताओं की, हमारे समाज में नस्लपरस्ताना अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष और अफ़्रीक़ी जिस्म के समर्थन में जागरुकता लाने की संयुक्त कोशिश शुरू हुयी। हमारे घरों और मस्जिदों में नस्लपरस्ती की गहरी जड़ को ख़त्म करने के लिए अनेक ऑललाइन भाषण दिए गए।
लेकिन मुझे डर है कि हमारे समाज से नस्लपरस्ती को ख़त्म करने की सभी कोशिशें नाकाम हो जाएंगी अगर हम शादी के बाज़ार में निहित व विदित नस्लपरस्ताना व सांस्कृतिक पक्षपात के ख़िलाफ़ नहीं बोलेंगे। मुझे डर है कि जब तक हम अपनी पसंद और अपने बच्चों की पसंद पर क्रूर सांस्कृतिक पक्षपात को हावी होने देंगे, हम निष्कृय बने रहेंगे। (MAQ/N)
अलजज़ीरा के लेख का अनुवाद
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