वीडियो रिपोर्टः क्या जो बाइडन यमन युद्ध के दलदल में फंसे सऊदी अरब को बाहर निकालेंगे? बिन सलमान पर कसता शिकंजा!
(last modified Wed, 03 Feb 2021 09:56:02 GMT )
Feb ०३, २०२१ १५:२६ Asia/Kolkata

ट्रम्प अमरीका की सत्ता से बहुत बेइज्ज़त होकर बाहर निकले और उनका स्थान बाइडन ने लिया तो इस बड़े बदलाव के असर भी अब विश्व स्तर पर नज़र आने लगे हैं। विशेष रूप से पश्चिम एशिया के इलाक़े में यह बदलाव साफ़ नज़र आ रहा है जहां पहले से तनाव मौजूद है।

हाल ही में सऊदी अरब की राजधानी रियाज़ पर कई मीज़ाइल और ड्रोन हमले हुए जिसके बाद से पश्चिमी एशिया सहित कई अरब देशों की राजधानियों में चिंता की लहर पैदा कर दी है। इधर हमले हुए और उधर अमरीका सक्रिय हो गया और उसने हमलों की निंदा करते हुए हमलों को रोकने के लिए सऊदी अरब को हर तरह की मदद देने का वादा किया। यहां पर इस बात का उल्लेख भी आवश्यक है कि लंदन, पेरिस, बर्लिन और क़तर सहित कई अरब और पश्चिमी देशों ने रियाज़ पर हमले की निंदा की जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हमले काफ़ी बड़े थे। जो बाइडन ने सऊदी अरब के साथ संबंधों, आले सऊद शासन के विरोधी पत्रकार के मामले को दोबारा खोलने और यमन युद्ध के बारे में खुलकर बयान दिए थे। 2020 के चुनावी कैम्पेन में मध्यपूर्व में अमरीका के निकटवर्ती घटक सऊदी अरब पर तीखे हमले किए थे और कहा था कि अब हम सऊदी अरब को हथियार नहीं बेचेंगे। 2019 में बाइडन ने सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़्जी की हत्या की जवाबदेही की मांग की थी, यहां तक कि जमाल ख़ाशुक़्जी की मंगेतर ने खुले शब्दों में कह दिया था कि उनके पति की हत्या में बिन सलमान का हाथ है।  बात यहीं पर ख़त्म नहीं हुई कुछ डेमोक्रेट सांसद, बाइडन प्रशासन पर सऊदी अरब के साथ सख़्ती बरतने का दबाव डाल रहे हैं जबकि कुछ मानवाधिकार संस्थाएं और संगठन तथा सामने आने वाली डाक्युमेंट्री फ़िल्म, रियाज़ पर दबाव डालने में मददगार साबित हो रही है। अमरीका और सऊदी अरब के संबंध दुनिया की नज़रों से छिपे नहीं हैं और यहां पर ह्यूमन राइट्स फ़ाउंडेशन के संस्थापक और निदेशक थोर हैलवोरसेन का कहना है कि काफ़ी समय से सऊदी अरब और अमरीका के संबंध पूरी तरह से पैसे और सुरक्षा पर आधारित हैं जबकि नैतिकता और नैतिक मूल्यों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया गया है।  उनका कहना था कि इस प्रारूप के संबंधों की जड़ें काफ़ी कमज़ोर हैं और अंत में टूटफूट का शिकार हो जाएंगे। यानी जब संबंध केवल स्वार्थों और मजबूरियों पर केन्द्रित हैं तो उनका टिकाऊ बने रह पाना काफ़ी कठिन हो जाता है। ख़ास तौर पर इस समय जब अमरीका के भी हालात बहुत बदल चुके हैं और सऊदी अरब भी अनेक गंभीर संकटों से जूझ रहा है।

इस अमरीकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी हाल ही में कहा कि वाशिंग्टन, यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन को आतंकवादी क़रार दिए जाने की फिर से समीक्षा करेगा। अमरीकी विदेशमंत्रालय के एक प्रवक्ता का कहना है कि विदेशमंत्रालय ने पूर्व ट्रम्प प्रशासन की ओर से अलहौसी आंदोलन को आतंकवादी गुट घोषित किए जाने के फ़ैसले की फिर से समीक्षा शुर कर दी है और जल्द ही इस बारे में फ़ैसला ले लिया जाएगा। इसका कारण यह है कि यमन का अंसारुल्लाह आंदोलन जिसे कुछ गलियारे हूती विद्रोही संगठन भी कहते हैं यमन का बहुत प्रभावशाली और बेहद लोकप्रिय संगठन है। इस समय यमन की सबसे बड़ी राजनैतिक और सामरिक शक्ति अंसारुल्लाह आंदोलन ही है। ट्रम्प प्रशासन ने आंख बंद करके बल्कि शायद बाइडन सरकार को कठिनाइयों में डालने की नीयत के तहत अंसारुल्लाह आंदोलन को आतंकी घोषित कर दिया था। अमरीकी विदेशमंत्री ने कहा कि हमारे पास कुछ नीतियों के बारे में वास्तविक चिंताएं हैं जो हमारे सऊदी भागीदारों ने अपनाई हैं। उन्होंने कहा है कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए संबंधों की संपूर्णता की समीक्षा करेंगे। लंदन में रहने वाले बुद्धिजिवी और वरिष्ठ टीकाकार अली जाफ़र ज़ैदी का कहना है कि बाइडन के व्हाइट हाउस पहुंचने के बाद यह संभावनाएं पाई जाती हैं कि वह अंसारुल्लाह आंदोलन को आतंकवादी संगठनों की सूची से बाहर निकाल दे। सऊदी अरब की बात करें तो वह यमन पर बेशक लगातार बमबारी कर रहा है लेकिन दूसरी ओर सऊदी संस्थाओं और प्रतिष्ठानों पर होने वाले हमलों को रोक पाने में पूरी तरह नाकाम हो गया है। हाल ही में कई बड़े हमले हुए जिनमें दो हमले तो राजधानी रियाज़ पर हुए। यमनी सेना द्वारा सऊदी गठबंधन के पाश्विक हमलों का जवाब दिए जाने पर वरिष्ठ टीकाकार अली जाफ़र ज़ैदी का कहना है कि यमनी सेना की बढ़ती ताक़त को देखकर अब सऊदी अरब और अमेरिका सभी यह समझ चुके हैं कि वे यमन से युद्ध में कभी भी नहीं जीत सकते हैं।  फ़िलहाल तो यह नहीं मालूम की इस हमले में कौन लिप्त है मगर सऊदी अरब पर अब तक जो कई बड़े हमले हुए हैं उनके बारे में कुछ इंटेलीजेन्स रिपोर्टें कहती हैं कि इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह हमले सऊदी अरब के भीतर से ही किए गए हों।

बहरहाल सऊदी अरब पर होने वाले हमले के बाद रियाज़ अपना ग़ुस्सा यमन की ग़रीब जनता पर निकालता और जनता को निशाना बनाकर ताबड़तोड़ हमले करता है। सऊदी अरब के अंधांधुध हमले इस समय सारी दुनिया में चर्चा का विषय हैं क्योंकि इन हमलों में यमन की सामरिक और रक्षा शक्ति को नुक़सान नहीं पहुंच रहा है लेकिन आम नागरिक इसमें निशाना बनते हैं। इस बात पर सऊदी अरब की लगातार आलोचना की जा रही है।इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सऊदी प्रशासन से एक यमनी परिवार को निशाना बनाने पर जवाबदेही की मांग की। स्काई न्यूज़ की एक टीम ने सऊदी अरब-यमन के सीमावर्ती क्षेत्र का दौरा किया जहां सऊदी अरब के हवाई हमले में एक ही परिवार के बारह लोग मारे गये थे।  रिपोर्ट में बताया गया कि हमले के पहले ही दिन नौ लोगों की मौत हो गयी, सब बच्चे और महिलाएं ही थीं, एक मां अपने बच्चे को दूध पिला रही थी जब हमले का शिकार हुई। पहले तो सऊदी अरब ने कहा कि अंसारुल्लाह के लड़ाके जनता में छिपे हुए हैं और उन्हीं को निशाना बनाकर यह हमला किया गया लेकिन जब स्काई न्यूज़ की टीम ने ख़ुद ही घटना स्थल का दौरा किया और सारी हक़ीक़तें सामने आ गयीं तो सऊदी अरब ने अपनी ग़लती मानी और कहा कि कोहरे और धुंध की वजह से हमारे पायलटों से निशाना निर्धारित करने में ग़लती हुई। क्षेत्र के हालात कुछ अलग की कहानी सुना रहे हैं सऊदी अरब यमन की दलदल से निकलने के लिए हाथ पैर मार रहा है जबकि बाइडन प्रशासन भी सऊदी अरब के बारे में अपनी नीतियां स्पष्ट करता नज़र आ रहा है। इन सब को देखने के बाद यह महसूस होने लगा है कि आने वाले दिनों में चौंका देने वाली कुछ घटनाएं हो सकती हैं और यह घटनाएं शायद उससे कहीं अधिक बड़ी होंगी जो ट्रम्प के ज़माने में हुईं।

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