फ्रांस की संसद में इस्लाम विरोधी क़ानून हुआ पास, फ्रांसीसी राष्ट्रपति का इस विवादित क़ानून के पीछे का क्या है प्लान?
(last modified Wed, 17 Feb 2021 05:19:15 GMT )
Feb १७, २०२१ १०:४९ Asia/Kolkata
  • फ्रांस की संसद में इस्लाम विरोधी क़ानून हुआ पास, फ्रांसीसी राष्ट्रपति का इस विवादित क़ानून के पीछे का क्या है प्लान?

फ्रांस की संसद में इस्लाम एवं मुसलमान विरोधी क़ानून पारित हो गया है।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, पिछले कुछ वर्षों से लगातार पश्चिमी देशों में इस्लाम के प्रति आम लोगों के बढ़ते रुझान से चिंतित साम्राज्यवादी शक्तियों ने इस्लामोफ़ोबिया को हवा देने में अपनी पूरी ताक़त झोंक रखी है, इसी के अंतर्गत मंगलवार को फ्रांस की इमैनुएल मैक्रां की सरकार ने संसद में विवादित इस्लाम विरोधी क़ानून का एक प्रस्ताव पेश किया था जहां इस देश के 347 सांसदों ने इस क़ानून के पक्ष में वोट किया वहीं 151 सांसदों ने इसके विरोध में वोट किया और आख़िरकार इस्लाम और मुसलमान विरोधी क़ानून फ्रांस की संसद में पास हो गया। फ्रांसीसी संसद में पास हुए इस्लामी विरोधी नए क़ानून के अनुसार, सभी धार्मिक संस्थाओं और संगठनों को अब अपने वित्तीय स्रोतों की घोषणा करनी होगी और साथ ही बैंक खाते पूरी तरह पारदर्शी हो एवं सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया हो।

फ्रांस में लगातार इस्लामोफ़ोबिया को बढ़ावा देने एवं धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित किए जाने वाले इस क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शन में शामिल लोगों का कहना है कि यह क़ानून न केवल उनकी धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करेगा, बल्कि उन्हें इसके ज़रिए निशाना बनाया जाएगा। जानकारों का भी मानना है कि, फ्रांस में पहले से आतंकवादी हिंसा से लड़ने के लिए पर्याप्त क़ानून है, इसलिए नया विवादित क़ानून बनाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। जानकारों का यह भी मानना है कि इमैनुएल मैक्रां की नज़रें फ्रांस में अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर हैं और उसी को ध्यान में रखते हुए इस्लाम विरोधी क़ानून को बनाया गया है ताकि इस क़ानून के ज़रिए रूढ़िवादी और दक्षिणपंथी मतदाताओं को रिझाया जा सके।

याद रहे कि, पेरिस के एक स्कूल में अभिव्यक्ति की आज़ादी की क्लास में अपने छात्रों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) का अपमानजनक कार्टून दिखाने वाले टीचर की हत्या ने फ्रांस में एक बार फिर इस्लामोफ़ोबिया को हवा दी है। वहीं मैक्रां सरकार को यह बहाना मिला है कि वह इस देश के मुसलमानों के ख़िलाफ़ दमनात्मक कार्यवाही कर सकें। टीचर की हत्या के बाद फ्रांसीसी अधिकारियों ने दर्जनों इस्लामी संगठनों, खेल संगठनों और समासजेवी संगठनों पर चरमपंथ फैलाने के संदेह में छापा मारा। पेरिस के उपनगर पैन्टीन में एक बड़ी मस्जिद को अस्थायी रूप से बंद भी कर दिया गया। इस मस्जिद ने एक वीडियो जारी कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) का अपमानजनक कार्टून दिखाने वाले टीचर को बुरा भला कहा था। मैक्रां सरकार ने कट्टरपंथ फैलने का आरोपी ठहराते हुए सैकड़ों की संख्या में शरणार्थियों को उनके देश भेजने का भी एलान किया है। इस बीच कई अंतर्राष्ट्रीय टीकाकारों का कहना है कि, कट्टरपंथ और चरमपंथ किसी भी देश के लिए बहुत ही बड़ी समस्या है, लेकिन इसको किसी धर्म विशेष से जोड़कर देखना सही नहीं है। टीकाकारों का मानना है कि दुनिया भर में किसी भी धर्म की पवित्र हस्तियों को अगर कोई बुरा-भला कहता है तो उस धर्म के लोगों की प्रतिक्रिया हमेशा तीव्र रहती है। ऐसे में अगर कोई मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम (स) का अपमान करने वालों के ख़िलाफ़ कोई प्रतिक्रिया देता है तो उसको तुरंत आतंकवाद और चरमपंथ से जोड़कर देखा जाने लगता है। टीकाकारों के अनुसार, यह पूरी दुनिया जानती है कि तकफ़ीरी आतंकवाद की जड़ सऊदी अरब है लेकिन यह सारे देश उसके साथ हर तरह का सहयोग करते दिखाई देते हैं, लेकिन वे देश जो लगातार आतंकवाद और चरमपंथ का शिकार हैं उनका सहयोग करने के बजाए यही पश्चिमी देश उनके ख़िलाफ़ प्रतिबंध और दूसरे तरह की कार्यवाहियां अंजाम देते हैं। (RZ)

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