Feb ०१, २०२२ १६:४९ Asia/Kolkata

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. 14 वर्ष तीन महीने देश से दूर रहने के बाद 12 बहमन 1357 हिजरी शमसी को स्वदेश वापस आये थे।

सुबह नौ बजकर 27 मिनट 30 सेंकेड पर उनका विमान फ्रांस से तेहरान के मेहराबाद हवाई अड्डे पर उतरा था। उनके ईरान आने के 10 दिनों के बाद इस्लामी क्रांति सफल हो गयी और इन दिनों को ईरान में स्वतंत्रता प्रभात व दहे फज्र के रूप में मनाया जाता है। बहुत से विश्लेषकों, बुद्धिजीवियों और विचारकों का मानना है कि ईरान की इस्लामी क्रांति हर चीज़ से पहले अध्यात्म पर आधारित संदेशों, इस्लामी मूल्यों और उसकी विशुद्ध शिक्षाओं की याद दिलाने वाली थी। ईरान की इस्लामी क्रांति ने दुनिया के हज़ारों नहीं बल्कि लाखों लोगों की उन धारणों और सोच को बदल कर रख दिया जो यह सोचते थे कि इस्लाम धर्म मस्जिदों और लोगों के व्यक्तिगत जीवन तक सीमित है। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी (रह) ने इस्लामी क्रांति का नेतृत्व करके और ईरान में इस्लामी मूल्यों के आधार पर इस्लामी व्यवस्था का गठन करके यह बता दिया कि इस्लाम एक सामाजिक धर्म है वह पूरे मानव समाज का नेतृत्व कर सकता है। महान ईश्वर ने इस धर्म को इंसान के व्यक्तिगत जीवन के लिए ही नहीं बल्कि पूरे मानव समाज और मानवता के नेतृत्व के लिए भेजा है। इंसान इस्लाम धर्म की विशुद्ध शिक्षाओं पर अमल करके लोक- परलोक में अपने जीवन को सफल बना सकता है। यही नहीं न केवल एक इंसान बल्कि पूरा मानव समाज सफल हो सकता है। आज दुनिया के बहुत से लोग ईरान को एक आदर्श समाज के रूप में देखते हैं और उनका मानना है कि ईरानी राष्ट्र का अनुसरण करके वे भी साम्राज्यवादी शक्तियों का मुकाबला कर और अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं।

चौदह वर्षों से अधिक समय के बाद जब स्वर्गीय इमाम खुमैनी (रह) स्वदेश वापस आये थे तो ईरानी जनता ने उनका भव्य स्वागत किया था। इमाम के स्वदेश आने पर ईरानी जनता बहुत खुश थी और उसका मनोबल बहुत ऊंचा था। ईरान में बहुत से लोग उनके अस्तित्व को शक्ति और प्रेरणा का स्रोत समझते थे।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. की एक विशेषता यह थी कि वे दुनिया की वर्चस्ववादी शक्तियों से लेशमात्र भी नहीं डरते थे और जो सही बात होती थी उसे स्पष्ट शब्दों में बयान कर देते थे। इमाम खुमैनी रह. की यह वह विशेषता थी जिसे दुनिया के वर्चस्ववादी बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। वे स्वर्गीय इमाम खुमैनी (रह) के अस्तित्व को अपने साम्राज्यवादी रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट समझते थे। वे इस बात को बहुत अच्छी तरह समझते थे कि अगर इस्लाम धर्म की शिक्षाओं पर आधारित इमाम खुमैनी रह. की बातें व विचार पूरी दुनिया में फैल गये तो उनके साम्राज्य और वर्चस्ववाद का अंत हो जायेगा। इसलिए उन्होंने ईरान की इस्लामी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने और उसके खिलाफ षडयंत्र रचने में किसी प्रकार के प्रयास में संकोच से काम नहीं लिया।

 

सवाल यह पैदा होता है कि ईरान की इस्लामी क्रांति ने किसी भी देश व समाज के साथ कोई बुरा नहीं किया फिर भी साम्राज्यवादी और दुनिया की वर्चस्वादी शक्तियों ने इसे मिटाने की क्यों सोची? उसका जवाब बिल्कुल स्पष्ट है। ईरान की इस्लामी क्रांति के फलने- फूलने का मतलब इस्लाम का फलना- फूलना है। इस्लाम अत्याचार का विरोधी है ईरान की इस्लामी क्रांति भी अत्याचार की विरोधी है। इस्लाम मज़लूमों समर्थक है इस्लामी क्रांति भी मज़लूमों का समर्थक है। सारांश यह कि ईरान की इस्लामी क्रांति का आधार ईश्वरीय धर्म इस्लाम है और इस्लाम किसी प्रकार के अत्याचार व वर्चस्व को स्वीकार नहीं करता है और जिन देशों की व्यवस्थाओं का आधार ही अत्याचार, अन्याय और दूसरों के शोषण पर रखा गया हो उनका ईरान का विरोधी व दुश्मन होना स्वाभाविक है।

ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. न्याय के ध्वजावाहक थे, साम्राज्य के विरोधी थे। उन्होंने ईरान में जिस व्यवस्था की बुनियाद रखी है आज दुनिया के मजलूम और कमजोर राष्ट्र व समाज उसे आदर्श व अपने सहारे के रूप में देखते हैं जबकि ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल हुए 43 वर्षों का समय बीत चुका है और इस क्रांति के दुश्मनों ने इसे मिटाने के लिए किसी भी प्रयास में संकोच से काम नहीं लिया है।

जब पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों की संख्या लगभग चालिस हो गयी तो उन्हें खुलकर इस्लाम का प्रचार- प्रसार करने का आदेश दिया गया। पैग़म्बरे इस्लाम ने अरब समाज के कुछ लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि  क्या आप लोगों ने आज तक मुझसे कोई झूठ सुना है? क्या मुझसे कोई बात वास्तविकता के खिलाफ सुनी है? सबने कहा कि नहीं, हमने कभी भी आपसे न कोई झूठ सुना और न ही वास्तविकता के खिलाफ कोई बात। लोगों की इस बात के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया कि अगर मैं आप लोगों से यह कहूं कि खतरनाक दुश्मन घात लगाये बैठा है और आप लोगों पर हमला करना चाहता है तो क्या आप लोग मुझे झुठलायेंगे और आराम से बैठ जायेंगे? इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया अगर मैं यह कहूं कि सवार दुश्मन इस पहाड़ के पीछे से आकर आप लोगों पर हमला करने वाले हैं तो क्या आप लोग मेरी बात पर विश्वास करेंगे? जान लो और होशियार हो जाओ कि इस दुनिया के बाद दूसरी दुनिया भी है। उस दुनिया में बहुत अधिक समस्यायें और पीड़ायें हैं। इस आधार पर तुम्हारे सामने जो समस्यायें और पीड़ायें हैं उनमें मैं तुम्हें डरा रहा हूं, तुम्हें सावधान कर रहा हूं।

 

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. इस्लामी क्रांति के माध्यम से वास्तव में इस्लाम को जीवित करना चाहते थे, वह मानव समाज का कल्याण चाहते थे। वह लोगों को जागरुक करने के लिए भाषण देते थे। वर्ष 1343 हिजरी शमसी बराबर 1964 में उन्होंने कैप्लिचुलेशन कानून के खिलाफ और अमेरिका को दी जाने वाली विशिष्टता के बारे में भाषण दिया और चेतावनी देते हुए कहा था कि हे लोगो मैं एलान कर रहा हूं, हे ईरान की सेना मैं एलान कर रहा हूं, मैं खतरे की घोषणा कर रहा हूं, हे राजनेताओं मैं खतरे का एलान कर रहा हूं, हे व्यापारियों व उद्दमियों मैं खतरे की घोषणा कर रहा हूं। हे ईरान के विद्वानों और धर्मगुरूओं मैं खतरे की घोषणा कर रहा हूं। हे नजफ, कुम, मशहद,तेहरान और शीराज के धार्मिक छात्रो, मैं खतरे की घोषणा कर रहा हूं।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. महान व सर्वसमर्थ के एक निष्ठावान बंदे थे। वह समस्त हालात में महान ईश्वर और अपने पालनहार की उपासना करते और उनका मूल उद्देश्य महान ईश्वर की प्रसन्नता की प्राप्ति थी। स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. के उत्तराधिकारी और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज्मा सैयद अली खामनेई उनकी इस विशेषता के बारे में कहते हैं” इमाम खुमैनी रह. एक अच्छे उपासक थे। उन्होंने स्वंय को गैर ईश्वरीय प्रेम के बंधन से मुक्त कर लिया था। वह अच्छे दिल के स्वामी थे। उन्होंने आत्मनिर्माण कर लिया था अपना आंतरिक प्रकाशमयी बना लिया था और स्वंय को ईश्वरीय प्रेम में विलीन कर लिया था। उन्होंने महान ईश्वर पर भरोसा करके और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के पद चिन्हों का अनुसरण करके और राष्ट्र की क्षमताओं पर भरोसा करके एसी क्रांति की बुनियाद रखी जो इस्लामी इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति बनी और इस क्रांति ने ईरान की उस तानाशाही सरकार का अंत कर दिया जिसकी जड़ें ढ़ाई हज़ार साल पुरानी थीं। स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. समस्त सफलताओं को महान ईश्वर की दया व कृपा समझते थे।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा कहते हैं कि जब देश के अधिकारियों और ज़िम्मेदारों को बंद गली का सामना होता था वे स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. के पास जाते थे और इमाम उन्हें ढ़ारस दिलाते और शांति का आभास कराते थे। इस बारे में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता कहते हैं स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. महान ईश्वर पर अटूट विश्वास रखते थे, हमेशा अचल पर्वत की भांति डटे व जमे रहते थे। कोई भी चीज़ उन्हें विचलित व परेशान नहीं कर पाती थी। देश और क्रांति की बहुत सी घटनाओं की ज़िम्मेदारी इमाम पर थी। कठिनाइयों और परेशानियों में समस्त अधिकारियों और लोगों का मार्ग दर्शन करते और परेशानियों व चिंताओं का अंत कर देते थे।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. बहुत महान हस्ती थे। वे बहुत विन्रम थे। वह कभी भी स्वंय को दूसरों से बड़ा व श्रेष्ठ नहीं समझते थे बल्कि स्वंय को लोगों और जनता का सेवक समझते थे और कभी भी वह अपने लिए किसी प्रकार का पद नहीं चाहते थे। इसी कारण वह बारमबार लोगों को अपनी प्रशंसा व सराहना करने से मना करते थे।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई स्वर्गीय इमाम खुमैनी (रह) की शक्ति और विनम्रता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं” इमाम वह शक्ति थे जिन्होंने अपनी शक्ति से पूरी दुनिया की राजनीति को बदल दिया। उनके संकल्पों के सामने पहाड़ भी बौने व छोटे नज़र आते थे। उनकी बातों में बहुत असर था वे पूरी दुनिया में असर करतीं और अपना प्रभाव छोड़ती थीं। जब भी लोगों की बात होती थी तो वह स्वंय को सबसे छोटा समझते थे। लोगों के आभास, ईमान, त्याग और बलिदान के सामने शीश झुकाते थे और विनम्रता के साथ कहते थे कि लोग हमसे बेहतर हैं। बुद्धिमान इंसान की एक निशानी यह है कि वह दूसरों को स्वंय से बेहतर समझता है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे अनफ़ाल की 24वीं आयत में इस्लाम धर्म को जीवित करने की ओर संकेत करते हुए करता और ईमान लाने वाले लोगों को संबोधित करते हुए कहता है हे ईमान लाने वालो जब अल्लाह और रसूल तुम्हें उस चीज़ के लिए बुलायें जिसमें तुम्हारा जीवन है तो उनका जवाब दो और जान लो कि अल्लाह इंसान और उसके दिल के बीच में हाएल हो जाता है यानी वह समस्त इंसानों के आंतरिक भेदों से पूर्णरूप से अवगत है और तुम सब उसी की ओर पलटाये जाओगे।“

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वही धर्म मानवता को मुक्ति दिला सकता है जो ज़िन्दा हो। ईश्वरीय धर्म इस्लाम जिन्दा है और वह अपने अनुयाइयों के दिलों को मरने से रोक सकता है। इस्लाम का अनुसरण करके इंसान लोक- परलोक में अपने जीवन को सफल बना सकता है। स्वर्गीय इमाम खुमैनी (रह) की नजर में वह इस्लाम विशुदध है जिसकी शिक्षाओं का स्रोत पवित्र कुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन हों और महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत अर्थात नज़रों से ओझल काल में धार्मिक नेता लोगों का पथप्रदर्शन करें।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. का मानना था कि शुद्ध इस्लाम इस बात की अनुमति नहीं देता कि मुसलमानों पर काफिरों का वर्चस्व रहे और मुसलमान पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों के प्रकाश में अपने भविष्य का निर्धारण स्वंय कर सकते हैं।

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