Jun १५, २०२१ १४:०८ Asia/Kolkata
  • ईरान में लोकतंत्र का जश्न, 13वें राष्ट्रपति के चुनाव के लिए  चढ़ा चुनावी पारा

इस्लामी गणतंत्र ईरान में 18 जून को राष्ट्रपति पद का चुनाव होने वाला है जिसमें देश के आठवें राष्ट्रपति को जनता चुनेगी। अब यह चुनाव होने में बहुत कम वक़्त बचा है। इस बार के चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों का आधिकारिक रूप से एलान होने के बाद, चुनावी प्रचार शुरू हो गया और राजनैतिक दलों ने चुनावी माहौल बनाने के लिए अपनी अपनी कोशिशें शुरू कर दीं।

उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा में क्रियाकलापों की समीक्षा हुयी। उम्मीदवारों ने अपने अपने विचार व प्रोग्राम पेश किए जो एक ओर सबसे योग्य के चयन में प्रभावी हो सकते हैं तो दूसरी ओर अन्य उम्मीदवार जनता की मांगों को पूरा करने के लिए प्रभावी प्रोग्राम व योजना पेश करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।

इस नज़र से चुनाव का मंच ख़ास तौर पर राष्ट्रपति पद का चुनाव ऐसा चुनाव है जिसमें जनता में बहुत उत्साह नज़र आता और वह बड़ी तादाद में मतदान केन्द्रों में पहुंचती है। ईरान में क़रीब सभी संस्थाएं जैसे कार्यपालिका, विधिपालिका और सुप्रीम लीडर का चयन करने वाली विशेषज्ञ परिषद, चुनाव के दायरे में आती हैं। इसी तरह नगर व ग्रामीण परिषद का भी चुनाव होता है।

धार्मिक प्रजातंत्र में जनता की इच्छा व इरादा विशेष अहमियत रखता है और उसी के इरादे से इस्लामी गणतंत्र की प्रभुसत्ता वजूद में आयी और चल रही है। इस्लामी व्यवस्था में जनता चुनती, फ़ैसला करती है और देश के भविष्य को ख़ुद से चुने हुए प्रतिनिधियों के हवाले करती है। इसलिए धार्मिक व्यवस्था में जनता के रोल के मद्देनज़र, विभिन्न चुनावों में उसकी भागीदारी पर हमेशा ताकीद की गयी है।   

 

सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई चनावों में जनता की बड़े पैमाने पर भागीदारी और उसकी अहमियत के बारे में कहते हैः “हमारा देश जनता के मत पर टिका है। जो चीज़ अब तक देश की ज़मीन और संसाधन पर बरसों से राष्ट्र के दुश्मनों को नुक़सान पहुंचाने से रोके रखी वह विभिन्न मंचों पर जनता की मौजूदगी, इरादा और भागीदारी है। देश के भविष्य में भागीदारी, देश के संचालन और संचालक को तय करने के साथ साथ दुश्मनों के दुश्मनी को नाकाम बनाने में भी प्रभावी होती है।”

यह ताकीद बताती है कि ईरान की इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था में वर्णित प्रजातंत्र के आदर्श में जनता को साधन के तौर पर नहीं देखा जाता बल्कि उसे सभी राजनैतिक चरणों और सामाजिक जीवन,  मानवीय व आध्यात्मिक मूल्यों में अहमियत दी जाती है।

राजनैतिक टीकाकार सालेह इस्कंदरी कहते हैः “राष्ट्रपति पद के चुनाव में मुख्य रूप से सत्यवादी व कर्तव्य परायण रवैये और राजनैतिक व आर्थिक प्रेरणा की वजह से मतदाता मतदान केन्द्र पहुंचते हैं।”

इस आधार पर ईरान में धार्मिक प्रजातंत्र के मॉडल में, जनता राजनैतिक मंच और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के लिए लोकप्रियता बनाने के लिए चुनाव में भागीदारी के लिए पूरी तरह आज़ाद है और पहली व आख़िरी बात उसी की होती है।

इस बारे में कुवैती लेखक मीसम मोहम्मद जूशी एक रोचक बिन्दु की ओर इशारा करते हुए कहते हैः “अरब देशों का प्रजातंत्र, इस्लामी ईरान के प्रजातंत्र के मुक़ाबले में कुछ नहीं है। ईरानी अपने अधिकारियों की बिला झिझक आलोचना कर सकते हैं, लेकिन अफ़सोस अरब देशों में जनता सिर्फ़ डेन्टिस्ट के सामने अपना मुंह खोल सकती है और उसे व्यवस्था के ख़िलाफ़ किसी तरह का एतेराज़ व आलोचना करने का अधिकार नहीं है।”

इस सच्चाई के बावजूद, ईरान में होने वाले हर चुनाव के मौक़े पर विरोधी मीडिया, चुनाव के ख़िलाफ़ झूठा माहौल बनाना शुरू कर देता है। विरोधी मीडिया को पता है कि ईरान में चुनावों में जनता की भागीदारी पश्चिम एशिया में अभूतपूर्व और दुनिया में भी बेजोड़ है।

बड़े पैमाने पर विभिन्न समाज के वर्गों की भागीदारी, दुश्मनों की साज़िशों से व्यवस्था की रक्षा में रणनैतिक हैसियत रखती है। इसी वजह से चुनाव में जनता की भागीदारी का स्तर सत्ता का अहम तत्व बन गया है। दूसरे शब्दों में बड़े पैमाने पर चुनाव में भागीदारी से ईरान सुरक्षि व ताक़तवर होगा और उसकी मौजूदा स्थिति और बेहतर होगी।

 

यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर व राजनैतिक कार्यकर्ता नजफ़ अली हबीबी का मानना है कि ईरान में चुनाव, देश के संचालन का मुख्य स्तंभ है। लोग चुनाव में भाग लेकर अपने भविष्य के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का पता देते हैं। हर हाल में आम लोग हैं जो वैचारिक, आर्थिक और राजनैतिक दृष्टिकोणों और अपने भविष्य के बारे में चुनाव में भाग लेकर फ़ैसला करते हैं। ईरानी जनता इस बात को बहुत अहमियत देती है कि देश का भविष्य किस तरह की राजनैतिक हस्तियों के हाथ में हो।

सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं कि सभी लोग, उम्मीदवार, सरकार और संबंधित लोग चुनाव की अहमियत को समझें। बड़े पैमाने पर जनता की चुनाव में भागीदारी इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के लिए भंडार की तरह और उसे बहुत सुरक्षा प्रदान करेगा। 

चुनाव में उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा 

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों ने, चुनावी प्रचार की क़ानूनी मोहलत के दौरान अपने अपने प्रोग्रामों व योजनाओं से जनता का आगाह करने की कोशिश की है। ईरान में चुनाव की दो आयाम से समीक्षा होनी चाहिए। एक बड़े पैमाने पर जनता की भागीदारी और दूसरे जागरुकता के साथ भागीदारी। जैसा कि सुप्रीम लीड़र भी कह चुके हैः “चुनाव एक दिन होगा लेकिन उसका असर जनता के लिए बरसों रहेगा।” इसलिए जागरुकता बहुत अहम है।

सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने सांसदों के साथ हालिया वर्चुअल मीटिंग में अपने भाषण में 18 जून के चुनाव में जनता की कम भागीदारी को लेकर कुछ चिंताओं का ज़िक्र करते हुए कहाः “मुझे यक़ीन है कि जनता की भागीदारी के स्तर का किसी उम्मीदवार से संबंध नहीं है, बल्कि लोग ऐसा उम्मीदवार चाहते हैं जिसमें प्रशासन की क्षमता है, मज़बूत इरादा रखता हो और जनता की मुश्किलो के हल के लिए उपयोगी हो। लोगों के लिए यह बात अहमियत नहीं रखती कि अमुक उम्मीदवार किस धड़े का है या उसकी क्या पोस्ट है, अलबत्ता हो सकता है यह विषय राजनैतिक दलों की नज़र में अहम हो, लेकिन आम लोगों की नज़र में नहीं।”

 

सुप्रीम लीडर इस बात पर बल देते हुए कि कार्यपालिका की ज़िम्मेदारी वह संभाले जो जनता की मुख्य मुश्किल को समझता और उन्हें हल कर सकता हो, कहाः इस वक़्त सबसे अमह मुद्दा देश की अर्थव्यवस्था है, उम्मीदवारों को चाहिए कि वे आर्थिक मुश्किल को हल करने के अपने प्रोग्राम जनता के सामने पेश करें और उसे संतुष्ट करें कि मुश्किलों को हल कर सकते हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने ताकीद करते हुए कहाः “चुनाव का मैदान सेवा और अच्छाई में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा का मैदान है और लोक लुभावन व अवास्तविक नारों से बचने की अनुशंसा की।” उन्होंने कहाः “उम्मीदवार देश के सही हालात और संभावनाओं के मद्देनज़र नारा दें और वादा करें। सर्वे बताते हैं कि जनता के सामने उम्मीदवार का नाम या पार्टी नहीं बल्कि उसकी योग्यता प्राथमिकता रखती और प्रेरित करती है।”

उम्मीदवारों के प्रचारिक प्रोग्राम स्पष्ट होने के साथ ही चुनाव गंभीर चरण में दाख़िल हो गया है। यह भी हक़ीक़त है कि सभी उम्मीदवारों की शख़्सियत है और वे देश की राजनैतिक हस्तियां हैं। ये लोग व्यवस्था में विभिन्न पदों पर रहे हैं, इसलिए उन्हें देश की वित्तीय व ढांचागत क्षमता का अंदाज़ा है। इसके विपरीत जनता प्रचारिक मंच पर वास्तविकता पर आधारित डिबेट चाहती है। इसमें ख़ुद उम्मीदवारों और लोगों का भी फ़ायदा है कि लोग प्रोग्राम के आधार पर अपेक्षा रखेंगे और प्रशासन में सरकार को जनता का समर्थन हासिल रहेगा।

लेखक व पत्रकार मोहम्मद ईमानी का मानना है कि चुनाव सेवा देने की प्रतिस्पर्धा है और ऐसी प्रतिस्पर्धा के संस्कार को मद्देनज़र रखना चाहिए।

इस प्रतिस्पर्धा का नतीजे में एक राष्ट्र सुरक्षा, सुविधा, सम्मान, ताक़त और उम्मीद का आभास करे, न राष्ट्र की ताक़त के कम और दो ध्रुवीय होने का, जैसा कि अमरीका के चुनावी सर्कस में नज़र आया।

इन दिनों लगभग सभी यह मान रहे हैं कि ईरान बहुत अहम ऐतिहासिक मोड़ से गुज़र रहा है। शहर और देश भर में बेहतर भविष्य और मौजूदा स्थिति में बदलाव की उम्मीद का माहौल है। जवान, अधेड़ और बूढ़े सभी 18 जून को निकलेंगे। ईरान के पुराने दुश्मन उस दिन की आस लगाए हुए हैं जब जनता की ओर से चुनाव में कम भागीदारी को अंतर्राष्ट्रीय दबाव व पाबंदी का बहाना बना सकें, लेकिन इस बार भी चुनाव के बाद लिखेंगेः “ईरान चुनावों में विजयी”

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