क्या बात है कि इंटरनेट और मीडिया की आज़ादी के सारे उसूल पश्चिमी सरकारों के स्वार्थों के आगे दम तोड़ देते हैं?
पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमरीका और यूरोपीय संघ की नीतियों पर नज़र डालने से पता चलता है कि आतंकवाद, इंटरनेट और साइबर स्पेस जैसे मुद्दों के बारे में उनका दोहरा रवैया है।
वास्तव में पश्चिमी देश अपने हितों के अनुसार इन मुद्दों का इस्तेमाल करते हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण इन देशों द्वारा सीरिया में आतंकवादी गुटों का व्यापक समर्थन करना है।
यूरोप और अमरीका ने साइबर स्पेस और इंटरनेट के उपयोग को लेकर पक्षपाती रुख़ अपना रखा है। दूसरे शब्दों में, जब पश्चिम के प्रतिद्वंद्वी या दुश्मन देशों में साइबरस्पेस के उपयोग की बात आती है, तो वह इंटरनेट की पूर्ण स्वतंत्रता पर ज़ोर देते हैं। लेकिन जब साइबरस्पेस के उपयोग से उनके हित या सुरक्षा ख़तरे में पड़ती है, तो व्यापक प्रतिबंधों और कड़े नियंत्रण की मांग करते हैं।
ईरान के ख़िलाफ़ पश्चिमी मीडिया का नया हमला ईरानी संसद द्वारा पारित किए गए उस प्रस्ताव को लेकर है, जिसमें साइबर स्पेस और उससे जुड़े कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लेख किया गया है। जबकि इसी पश्चिमी मीडिया ने फ्रांस द्वारा इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की निगरानी बढ़ाने और उनकी आज़ादी सीमित करने की आलोचना तक नहीं की।
फ़्रांसीसी सरकार यूरोपीय संघ के सबसे व्यापक आतंकवाद-रोधी नियमों में से एक को लागू कर रही है, जिससे इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की व्यापक निगरानी की जा सकती है। फ़्रांसीसी संवैधानिक परिषद ने 30 जुलाई को नए क़ानून को मंज़ूरी दे दी, जिसे 22 जुलाई को फ्रांसीसी नेशनल असेंबली द्वारा पारित किया गया था।
यह क़ानून कंप्यूटर एल्गोरिथम से संबंधित है, जिससे यह निर्धारित किया जा सकता है कि कौन से उपयोगकर्ता संदिग्ध आतंकवादी सामग्री साझा करते हैं। फ़्रांस आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए सोशल मीडिया पर अत्यधिक निंयत्रण कर रहा है।
फ़्रांसीसी सरकार को आशा है कि इस योजना को लागू करके आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में सुरक्षा बल पहले ही अतिवादियों की खोज निकाल सकेंगे। ऐसे मामलों की खोज के बाद, ख़ुफ़िया एजेंसियां उन पर कड़ी नज़र रखेंगी और पुष्टि के बाद अतिवादियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही कर सकेंगी।
फ़्रांसीसी सरकार का दावा है कि वह इस तरह आतंकवाद के नए ख़तरों से निपट सकेगी और ऐसे मामलों का पता लगा सकेगी, जो ख़ुफ़िया एजेंसियों की नज़रों से बच जाते हैं। 2015 में फ़्रांस में आतंकवादी हमलों की नई लहर के बाद इस देश की सरकार ने कई आतंकवाद विरोधी कड़े क़ानून बनाए और कभी-कभी वर्तमान क़ानूनों में विशेष नियमों को भी जोड़ा।
नए क़ानून के तहत इंटरनेट सर्विलांस वृद्धि के ज़रिए घर में नज़रबंद करने और रेज़िडेंस परमिट रद्द करने जैसे दंड अब केवल उन लोगों पर ही लागू नहीं होंगे, जो वास्तविक ख़तरा पैदा करते हैं, बल्कि उन पर भी लागू होंगे, जिनका व्यवहार सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है। क़ानून में यह भी प्रावधान है कि जेल से रिहा होने के बाद, आतंकवादी हमलों के प्रयास के लिए दोषी ठहराए गए लोगों को कड़ी निगरानी में रखा जाएगा। हालांकि विशेषज्ञों और राजनेताओं ने इस क़ानून की आलोचना की है। आलोचकों का कहना है कि इस क़ानून से नागरिकों की निगरानी में वृद्धि होगी, और इंटरनेट प्राइवेसी कमज़ोर पड़ जाएगी।
फ़्रांसीसी वामपंथी पार्टी के एक सदस्य ह्यूगो बर्नालिसिस का कहना हैः इस्राईल के स्पाइवेयर पेगासस के ज़रिए जासूसी का मुद्दा साबित करता है कि नागरिकों की निगरानी के लिए तकनीक का किस तरह तेज़ी से दुरुपयोग किया जा सकता है। हालांकि पश्चिम ने ईरानी संसद के क़ानून को लेकर ईरान के ख़िलाफ़ मानसिक और मीडिया वार शुरू कर दी है।
उपयोगकर्ताओं के अधिकारों और साइबरस्पेस की बुनियादी सेवाओं की सुरक्षा शीर्षक वाला ईरानी संसद का प्रस्ताव, साइबरस्पेस के उपयोग में अनुशासन पैदा करने और उल्लंघनों की जांच की संभावना और साइबरस्पेस के दुरुपयोग को रोकने के लिए तैयार किया गया है।
28 जुलाई को ईरान की संसद में इस प्रस्ताव की समीक्षा को मंज़ूरी दी गई थी। संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार, संसद सदस्यों ने उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने और राष्ट्रीय सूचना नेटवर्क की बुनियादी सेवाओं का समर्थन करने के लिए इस योजना की समीक्षा करने की ज़रूरत को मंज़ूरी दी और क़ानून बनाने के लिए एक संयुक्त आयोग को निर्णय लेने की अपनी शक्ति सौंप दी।
इस प्रस्ताव का यह संयुक्त आयोग जायज़ा लेगा और इसके परिणाम निर्धारित किए जाएंगे। सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं और स्थानीय और स्वदेशी अनुप्रयोगों की सुरक्षा के लिए मानदंडों और नियमों की तैयारी इस प्रस्ताव में शामिल हैं। इसी तरह से उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी की सुरक्षा और उनके डेटा तक ग़ैर क़ानूनी पहुंच की रोकथाम करने का भी प्रावधान है। इस प्रस्ताव में इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी सोशल नेटवर्किंग और मैसेजिंग साइट्स से ईरान में एक प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित करने के लिए कहा गया है। ईरानी अधिकारियों ने पहले टेलीग्राम मैसेंजर से अपने सर्वर को ईरान में स्थानांतरित करने के लिए कहा था, ताकि उसके नेटवर्क पर आदान-प्रदान की गई सामग्री को तेहरान के अनुरोध पर एक्सेस किया जा सके।
इस प्रस्ताव को तैयार करने वालों में से एक रूहुल्लाह मोमिन का कहना है कि क्योंकि इंस्टाग्राम को ईरानी लोगों की उपस्थिति से लाभ पहुंच रहा है, इसलिए उसे अनुमति लेने की कोई ज़रूरत महसूस नहीं हो रही है, लेकिन अगर ईरानी यूज़र्स उसके हाथ से निकल जायेंगे तो हो सकता है वह अनुमति के लिए कोशिश करे।
इस प्रस्ताव के ईरान में भी समर्थक और विरोधी हैं। इसकी समीक्षा के बाद, फ़ार्सी भाषा के विदेशी चैनलों ने ईरानी यूज़र्स में भय और निराशा उत्पन्न करने का प्रयास किया और नकारात्मक समीक्षाओं के ज़रिए एक नकारात्मक वातावरण उत्पन्न करना चाहा। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स जैसे कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने साइबर स्पेस में उपयोगकर्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने और सोशल मीडिया को व्यवस्थित करने के प्रस्ताव की निंदा की और इस क़ानून को डिजिटल भेदभाव क़रार दिया और इसे चीन के सेंसरशिप के समान बताया।
इस योजना के समर्थक सांसद रज़ा तक़ीपूर का कहना हैः उपयोगकर्ताओं के अधिकारों और साइबरस्पेस की बुनियादी सेवाओं की रक्षा के प्रस्ताव के पारित होते ही गूगल और इंस्टाग्राम को बंद करने जैसे संदेह व्यर्थ हैं, क्योंकि जब तक समान घरेलू सॉफ़्टवेयर विकसित नहीं हो जाते हैं और वे सभी सेवाएं प्रदान नहीं करने लगते हैं, तब तक किसी भी विदेशी सॉफ़्टवेयर को नहीं छुआ जाएगा।
विरोधी फ़ार्सी भाषा के मीडिया का नेतृत्व करने वाले के रूप में बीबीसी फ़ार्सी ने इस योजना के विभिन्न आयामों को सूचीबद्ध करते हुए ईरानी यूज़र्स के लिए हमदर्दी और उनके इंटरनेट व्यवसायों के बारे में चिंता जताई। बीबीसी फ़ार्सी ने इस प्रस्ताव के बारे में दावा किया कि आलोचकों का मानना है कि इस योजना का नाम उसके उद्देश्य से एकदम अलग है। जो एक तरह से अधिकारों का उल्लंघन करता है और ईरानी उपयोगकर्ताओं को स्वतंत्र रूप से इंटरनेट के उपयोग और सामाजिक नेटवर्किंग साइट्स से दूर रखता है। हालांकि यह योजना इंस्टाग्राम जैसे सामाजिक नेटवर्क के ईरानी उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाती है और इन साइट्स पर सक्रिय ईरानी नागरिकों को कि जो छोटी-छोटी आर्थिक गतिविधियों में लगे हुए हैं, जैसे कि सामान और सेवाएं बेचना, निश्चित रूप से इनके फ़िल्टर से उन्हें बहुत नुक़सान पहुंचेगा।
इस बीच, संसद के सांस्कृतिक आयोग के प्रवक्ता मजीद नसीराई ने कहा है कि वर्तमान योजना पूर्व योजना से 70 प्रतिशत अलग है, और वर्तमान संस्करण में फ़िल्टरिंग के मुद्दे को कोई प्राथमिकता नहीं दी गई है, बल्कि इसमें साइबर स्पेस का प्रबंधन और सेवाएं प्रदान करने का प्रावधान है।
फ़ारसी भाषा के अन्य दुश्मन मीडिया आउटलेट जैसे कि वीओए (वॉयस ऑफ अमरीका), ड्यूच वेले (वॉयस ऑफ़ जर्मनी), आरएफ़ए (रेडियो फ्रांस इंटरनेशनल) और अन्य असंतुष्ट मीडिया आउटलेट ईरानी संसद की योजना का विरोध करने और उसके ख़िलाफ़ नकारात्मक माहौल उत्पन्न करने में जुट गए।
यहां सवाल यह है कि क्यों इसी मीडिया ने फ़्रांस में इस तरह के निंयत्रण और निगरानी में वृद्धि के ख़िलाफ़ मोर्चा नहीं खोला है, हालांकि फ़्रांस मानवाधिकारों में अग्रणि होने का दावा करता है, बल्कि इसके विपरीत मोटे तौर पर उसके प्रति सकारात्मक रुख़ अपनाया गया है। इससे ईरान के प्रति पश्चिमी मीडिया के दोग़लेपन और दोहरे रवैये का पता चलता है, ताकि ईरान की छवि को ख़राब किया जा सके।
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