Oct १९, २०२१ १०:१५ Asia/Kolkata

    पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के जन्म दिवस के बारे में दो तारीख़ें मशहूर हैं एक 17 रबीउल अव्वल जबकि दूसरी 12 रबीउल अव्वल। 17 रबीउल अव्वल की तारीख को शिया मुसलमान और 12 रबीउल अव्वल को सुन्नी मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म दिवस मनाते हैं। दोनों तारीखों के बीच एक सप्ताह का समय है और मुसलमानों के मध्य एकता व एकजुटता के लिए ईरान में इसे एकता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।

हर इंसान को नैतिक सदगुणों से सुसज्जित होने और परिपूर्णता के शिखर तक पहुंचने के लिए एक अच्छे आदर्श की ज़रूरत होती है। पवित्र कुरआन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम सर्वोत्तम आदर्श हैं। उनका पूरा जीवन महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की उपासना में व्यतीत हुआ है। यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि उपासना करने का यह मतलब नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम हर वक्त नमाज़ पढ़ते थे बल्कि नमाज़ पढ़ने के अलावा जीवन के दूसरे कार्यों को भी अंजाम देते थे। इस्लाम में केवल नमाज़ पढ़ने को उपासना नहीं कहते हैं बल्कि हर वह कार्य जो महान ईश्वर की इच्छा के मुताबिक और उसकी प्रसन्नता हासिल करने के लिए अंजाम दिया जाये उसे उपासना कहते हैं। नमाज़ के अलावा पैग़म्बरे इस्लाम के दूसरे सुकर्मों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।

हदीस में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम जब नमाज़ के लिए खड़े होते थे तो महान ईश्वर के भय से उनका चेहरा पीला पड़ जाता था और उनकी आवाज़ भयभीत व्यक्ति की भांति हो जाती थी।

एक रिवायत में पैग़म्बरे इस्लाम की धर्मपत्नी के हवाले से आया है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम उनसे बात करते रहते थे और जैसे ही नमाज़ का वक्त हो जाता था उनकी एसी हालत हो जाती थी जैसे वह न मुझे पहचानते हैं और न मैं उनको। वह सभी हालत और परिस्थिति में महान ईश्वर के समक्ष नतमस्तक थे। पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि जो इंसान महान ईश्वर के समक्ष नतमस्तक रहता है कहा जा सकता है कि स्वंय यह हालत ईश्वरीय भय व सदाचारित की बेहतरीन अलामत है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे अनआम की 162वीं और 163वीं आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है कि हे पैग़म्बर कह दीजिये कि मेरी नमाज़, अनुसरण, ज़िन्दगी, मौत, सब ब्रह्मांड के पालनहार के लिए है, उसका कोई शरीक व सहभागी नहीं है और मुझे इन्हीं कार्यों के लिए भेजा गया है और मैं पहला वह इंसान हूं जो ईश्वर के आदेशों के समक्ष नतमस्क है।

लोगों के साथ विनम्रता और खुश अखलाकी से पेश आना, और इसी प्रकार लोगों के साथ कड़ाई से पेश न आना पैग़म्बरे इस्लाम की कामयाबी का राज़ है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की 159वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है कि हे पैग़म्बर अगर आप कठोर दिल के होते तो लोग आपके पास से चले जाते। उन्हें माफ कर दीजिये, उनके लिए क्षमा याचना कीजिये, कार्यों में उनसे विचार- विमर्श कीजिये।

पैग़म्बरे इस्लाम की कामयाबी का राज़ मृदु व नम्र स्वभाव है। पैग़म्बरे इस्लाम का नम्र व सुशील व्यवहार वह जादू था जिसकी वजह से सख्त से सख्त दिल के काफिरों व अनेकेश्वरवादियों पर पैग़म्बरे इस्लाम की बातों का असर होता था। दूसरे शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम की कामयाबी का सबसे बड़ा राज़ उनका नम्र स्वभाव था।  पैग़म्बरे इस्लाम कितनी भी तार्किक बात करते मगर अगर वह सभ्य व सुशील स्वभाव के स्वामी न होते तो कभी भी अपने ईश्वरीय मक़सद में कामयाब न हो पाते।

पैग़म्बरे इस्लाम का नम्र स्वभाव ही था जिसने अरब के अज्ञानी व गुमराह लोगों को मुक्ति व कल्याण का रास्ता दिखाया। पैग़म्बरे इस्लाम के नम्र, सभ्य, सुशील और शालीन व्यवहार के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अच्छे लोगों के दिलों को पैग़म्बरे इस्लाम के व्यवहार ने अपनी ओर खींच लिया। लोगों की नज़रें उनकी ओर हो गयीं। ईश्वर ने उनकी वजह से पुराने द्वेष को दफ्न कर दिया, दुश्मनी की ज्वाला को बुझा दिया, लोगों के दिलों को एक दूसरे से जोड़ दिया, लोग एक दूसरे से प्रेम करने लगे और एक दूसरे के भाई बन गये।“

पैग़म्बरे इस्लाम समस्त लोगों के साथ इस प्रकार से व्यवहार करते थे कि सभी लोगों को अपने सम्मान का आभास हो। पैग़म्बरे इस्लाम कभी भी न तो किसी को गिरी हुई नज़र से देखते थे और न कभी किसी की हंसी उड़ाते थे। रिवायत में है कि जब कोई पैग़म्बरे इस्लाम के घर आता था तो आप घर में सबसे बेहतरीन स्थान पर उसे बिठाते थे। इस प्रकार से कि जब कोई मेहमान पैग़म्बरे इस्लाम के घर आता था और घर में दूसरे लोग पहले से बैठे होते थे और जगह कम होती थी तो खुद वहां बैठ जाते थे जहां फर्श नहीं होता था। यही नहीं नये आने वाले मेहमान के लिए अपनी अबा बिछा देते थे। अबा उस वस्त्र को कहते हैं जो कपड़े के उपर पहना जाता है।

एक प्रसिद्ध इतिहासकार इब्ने मसऊद लिखता है कि एक दिन एक आदमी पैग़म्बरे इस्लाम से बात कर रहा था और वह कांप रहा था। वह पैग़म्बरे इस्लाम के रोब से प्रभावित था। पैग़म्बरे इस्लाम का ध्यान जब इस ओर गया तो उन्होंने उससे फरमाया भाई आराम से बात करो मैं कोई राजा- महाराजा नहीं हूं।   

पैग़म्बरे इस्लाम का जीवन बिल्कुल सादा था। वह गरीब व दरिद्र लोगों के साथ गेहूं की रोटी खाने से परहेज़ करते थे। दूसरे शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम ग़रीबों, दरिद्रों और गुलामों के साथ खाना खाते थे परंतु उनके साथ बहुत अच्छा खाना नहीं खाते थे और गेहूं की रोटी का शुमार खाने की अच्छी चीज़ों में होता था और हर आदमी गेहूं की रोटी नहीं खा सकता था। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम गरीबों व दरिद्रों के साथ गेहूं की रोटी नहीं खाते थे। एक रिवायत में है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से पूछा गया कि क्या आपके पूर्वज पैग़म्बरे इस्लाम ने कभी गेहूं की रोटी पेट भर कर नहीं खाई यह बात सही है या नहीं? तो इमाम ने फरमाया कि नहीं पैग़म्बरे इस्लाम ने कभी भी गेहूं की रोटी नहीं खाई और जौ की रोटी भी उन्होंने कभी पेट भर कर नहीं खाई।

पैग़म्बरे इस्लाम का आम खाना जौ की रोटी और खजूर था। अपने फटे हुए जूते और कपड़े वह खुद ही सिलते थे। पैग़म्बरे इस्लाम सादा जीवन व्यतीत करते थे मगर इसका यह मतलब नहीं है कि वह ग़रीबी और निर्धनता के पक्षधर थे बल्कि वह समाज के लोगों के आध्यात्मिक विकास के साथ भौतिक विकास के भी पक्षधर थे। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते थे कि कितना अच्छा वह धन है जो वैध व हलाल तरीके से हासिल होता है।

पैग़म्बरे इस्लाम की पावन जीवन शैली की एक विशेषता यह थी कि जहां वह बैठते थे वह जगह इस प्रकार से होती थी कि हर बैठने वाला स्वंय को किसी से कम न समझे और कोई अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ न समझे। पैग़म्बरे इस्लाम हमेशा अपने अनुयाइयों से फरमाते थे कि गोला बना कर बैठें ताकि कोई स्वंय को दूसरों से श्रेष्ठ न समझे। पैग़म्बरे इस्लाम के एक निष्ठावान अनुयाइ अबूज़र ग़फ़्फ़ारी के हवाले से एक रियावत आयी है जिसमें अबूज़र ग़फ्फारी कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम बैठने में भी अपनी अनुयाइयों के मध्य थोड़े से भी भेदभाव से काम नहीं लेते थे और किसी प्रकार के भेदभाव के बिना उनके मध्य बैठते थे इस प्रकार से कि जब कोई अजनबी व नया व्यक्ति आता था तो उसकी समझ में नहीं आता था कि पैग़म्बरे इस्लाम कौन हैं? यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम को जानने के लिए उसे सवाल करना पड़ता था। अबूज़र गफ्फारी कहते हैं कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम से अनुरोध किया कि आपके बैठने के लिए एसी जगह बनाई जाये जिससे आने वाले को यह पता चल जाये कि पैग़म्बरे इस्लाम कौन हैं। पैग़म्बरे इस्लाम से अनुमति लेने के बाद हमने मिट्टी और पत्थर का एक ऊंचा स्थान बनाया जहां पैग़म्बरे इस्लाम बैठते थे और उसके दोनों ओर हम लोग बैठते थे।  

विनम्रता एक पसंदीदा मानवीय विशेषता है। विनम्रता यह है कि इंसान दूसरों से इस प्रकार नम्र स्वभाव से पेश आये कि स्वंय को दूसरों से बड़ा न समझे। हदीस में है कि विनम्रता इंसान को ऊंचा करती है जबकि घमंड इंसान को नीचा करता है। विनम्र इंसान से सब मिलना पसंद करते हैं जबकि घमंडी इंसान से सब दूर भागते हैं। कोई भी घमंडी इंसान को पसंद नहीं करता है यहां तक कि घमंडी इंसान भी इस बात को पसंद नहीं करता है कि कोई दूसरा उससे घमंड से पेश आये। घमंड व अहंकार वह बुरी आदत व विशेषता है जिसकी वजह से महान ईश्वर ने शैतान को अपनी बारगाह से निकाल दिया और प्रलय तक उस पर लानत व धिक्कार पड़ती रहेगी।

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर पवित्र कुरआन में अपने अच्छे बंदों की एक विशेषता बयान करते हुए कहता है कि वे ज़मीन पर अकड़ कर नहीं चलते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि इंसान किस चीज़ पर घमंड करता है उसका आरंभ नजिस नुत्फ़ा, उसका अंत मुर्दार और इन दोनों के बीच में वह अपने पेट में मल लिये फिरता रहता है। वास्तव में अगर इंसान यह सोचे कि किस चीज़ से उसकी रचना हुई है और मरने के बाद उसका क्या अंजाम होने वाला है, वह पहले चरण में मुर्दार हो जायेगा और उसे कोई छूना भी पसंद नहीं करेगा तो हमेशा वह अपनी सीमा में रहेगा। आम तौर पर वही लोग ज़्यादा अकड़ते हैं जो स्वंय को भूल जाते हैं कि वे क्या हैं।

महान ईश्वर के नेक बंदों की एक अलामत नम्र स्वभाव है। जो इंसान नम्र स्वभाव का होता है वह कभी यह नहीं सोचता कि सामने वाली महिला है या पुरूष या बच्चा है या बूढ़ा वह सबके साथ नम्रता से पेश आता है। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम बच्चों को भी सलाम करने में पहल करते थे।

एक बार पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने अनुयाइयों से कहा कि मैं तुम्हारे अंदर उपासना की मिठास नहीं देख रहा हूं? तो इस पर उनके अनुयाइयों ने पूछा कि उपासना की मिठास का क्या अर्थ है? तो इसके जवाब में पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया विनम्रता। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि ईश्वर पांच चीज़ों पर गर्व करता है उनमें से एक ईश्वर के लिए विनम्रता है।  एक स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने विनम्रता को सबसे बड़ी उपासना करार दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि चार चीज़ें हैं जिन्हें ईश्वर किसी को नहीं देता मगर यह कि उसे दोस्त रखता हो। पहली चीज़ मौन, दूसरी चीज़ ईश्वर पर भरोसा तीसरी चीज़ विनम्रता और चौथी चीज़ दुनिया में ज़ोहद।  

बहरहाल नम्रता सज्जनता का आभूषण है और उसका संबंध बुद्धि और ज्ञान से है और एक हदीस में नम्रता को ज्ञान की सवारी कहा गया है। पैग़म्बरे इस्लाम एक हदीस में फरमाते हैं कि जो ईश्वर के लिए नम्रता करेगा ईश्वर उसे बुलंद करेगा।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम सदगुणों व सदाचरण की प्रतिमूर्ति हैं और इंसान उनका अनुसरण करके लोक- परलोक में अपने जीवन को सफल बना सकता है।

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