Oct २०, २०२१ १६:०७ Asia/Kolkata
  • एकता सप्ताह (4)

इतिहास में 17 रबीउल अव्वल एक ऐसी तारीख़ के रूप में दर्ज है, जिसमें मानवीय इतिहास की दो महान हस्तियों ने जन्म लिया। इन महान हस्तियों का मानवता के मार्गदर्शन में मूल्यवान योगदान रह है।

शिया मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार, पैग़म्बरे इस्लाम (स) का जन्म 17 रबीउल अव्वल सन् 570 ईसवी को हुआ था, जबकि अधिकांश सुन्नी मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार, 12 रबीउल अव्वल को अंतिम ईश्वरी दूत हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) का जन्म हुआ था।

17 रबीउल अव्वल वर्ष 83 हिजरी क़मरी बराबर सन् 702 ईसवी को इस्लाम की एक और महान हस्ती, पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र एवं शिया मुसलमानों के छठे इमाम, जाफ़र सादिक़ (अ) का जन्म हुआ।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के शुभ जन्म दिवस के संबंध में शिया मुसलमानों और सुन्नी मुसलमानों के दृष्टिकोणों को एकता की माला में पिरोने, मुसलमानों के बीच एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने और इस महान अवसर पर मिलजुलकर जश्न मनाने के लिए ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने रबीउल अव्वल महीने के तीसरे सप्ताह को एकता सप्ताह घोषित किया था। यहां एकता से तात्पर्य यह है कि मुसलमान अपने-अपने धार्मिक विश्वासों की सुरक्षा के साथ एकेश्वरवाद, क़ुरान और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के संबंध में संयुक्त रूप से इस्लामी शत्रुओं का मुक़ाबला करें। समस्त मुसलमान एकजुट रहें और धार्मिक, राजनीतिक, क्षेत्रीय एवं भाषाई मतभेदों में न पड़ें। समस्त मुसलमानों को चाहिए कि ईश्वर के आदेशों का पालन करते हुए ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम (स) को अपना आदर्श बनाएं।

वास्तव में मुसलमानों के बीच एकता और एकजुटता की बुनियाद ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम ने रखी थी। मुसलमानों के मदीने की ओर पलायन को अभी पांच महीने भी नहीं गुज़रे थे कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने साथियों से फ़रमायाः ख़ुदा के मार्ग में दो-दो लोग आपस में भाई बन जाओ। इस तरह से मक्का और मदीना के मुसलमान, जिन्हें मुहाजिर और अंसार कहा जाता था, उन्होंने आपस में दो-दो लोगों ने भाई बनने का संकल्प लिया। इस तरह से मुसलमानों के बीच पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने एकजुटता और भाईचारे की बुनियाद डाली और अज्ञानता के दौर के मतभेदों की जगह, एकजुटता और भाईचारे के रूप में इस्लाम के महत्वपूर्ण और उच्च मूल्यों ने ले ली।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने क़ुरान की आयतों के आधार पर मुसलमानों को मज़बूदी से ख़ुदा की रस्सी थाम लेने और आपसी फूट से बचने की नसीहत की। इस आहवान पर मुसलमान भी एकजुट हो गए। भाईचारे की भावना के साथ एकजुटता ने मुसलमानों की शक्ति में इज़ाफ़ा कर दिया, जिसके नतीजे में वे दुश्मनों पर वे हावी हो गए।  इस प्रकार उन्हें जीत और सफलताएं हासिल हुईं। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने इस क़दम से साबित कर दिया कि मुसलमानों के बीच एकता से उनकी शक्ति बढ़ेगी और सम्मान में वृद्धि होगी। मुस्लिम उम्मत के लिए यह एक महान सबक़ था कि वे उच्च हितों और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे मतभेदों को भुला दें और विनम्रता, दयालुता और भाईचारे के साथ आपस में एक मज़बूत एकता की बुनियाद डालें।

पैग़म्बरे इस्लाम ने मुहाजेरीन और अंसार के बीच भाईचारे के रिश्ते की बुनियाद डालकर मुसलमानों में एकजुटता और एकता को बढ़ावा दिया।  इस तरह से उन्हें सब्र और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया। वे जानते थे कि एकता से मुसमलानों में आश्चर्यचकित करने वाले शक्ति पैदा होगी, जो दुश्मनों के हमलों के मुक़ाबले में उन्हें मज़बूती प्रदान करेगी। आज इस्लामी जगत को किसी भी समय से ज़्यादा, पैग़म्बरे इस्लाम की इस नसीहत पर अमल करने की ज़रूरत है। मुस्लिम और अरब देश यमन पिछले कई वर्षों से भयानक युद्ध में झुलस रहा है और सऊदी अरब के हमलों से उसे मुक्ति नहीं मिल पा रही है।

अफ़ग़ानिस्तान में बम धमाकों और मुसलमानों के जनसंहार की ख़बरें, एक सामान्य ख़बर बनती जा रही है। ऐसा लगता है कि अफ़ग़ान जनता की पीड़ा और दुख का कोई अंत ही नहीं है। इराक़ और सीरिया के शरीर पर दाइश के गहरे घावों से अबतक ख़ून रिस रहा है। जले हुए घर, बेघर होने वाले बच्चे और महिलाएं, यतीम होने वाले बच्चे और हज़ारों दुख और दर्द उन मतभेदों का नतीजा हैं, जिन्हें धर्म के नाम पर बढ़ावा दिया गया है और आपसी नफ़रतों में बदल दिया गया है।

क्या अब समय नहीं आ गया है कि दुनिया, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स) की शिक्षाओं का पालन करे और लोग फूट डालने और हिंसा फैलाने से बचें? क़ुरान मजीद के सूरए हुजरात की 10वीं आयत में मुसलमानों को आपस में भाई-भाई बताया गया है, चाहे वे किसी भी जाति या क़बीले से संबंध रखते हों। क्या क़ुरान के सूरए मोमेनून की 52वीं आयत को नज़र अंदाज़ किया जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि तुम्हारी यह उम्मत अद्वितीय और एकजुट है और मैं तुम्हारा पालनहार हूं, अतः मेरी इबादत करो।

इस्लाम के दुश्मनों ने इस्लाम की शुरूआत से ही मुस्लिम समाज में फूट डालने और मुसलमानों को आपस में बांटने की साज़िशें शुरू कर दी थीं। मुसलमानों के दुश्मनों का एक ही नारा है कि फूट डालो और हुकूमत करो। दुश्मनों ने शुरूआत से ही धोखा, छलकपट, मक्कारी लालच और झूठे वादों से मुसलमानों के बीच फूट डालने का काम किया है और झूठे और कट्टरपंथी सम्प्रदायों को जन्म दिया है, ताकि साम्प्रदायिकता भड़काकर मुसलमानों को आपस में लड़ा सकें और अपने हित साध सकें।  मुस्लिम समाज में फूट डालने में ब्रिटेन सबसे आगे रहा है। उसके अलावा, अब ज़ायोनीवाद कि जो समस्त इस्लाम दुश्मन शक्तियों का गठबंधन है, मुसलमानों के बीच फूट डालने का काम कर रहा है।  वह इस्लाम और मुसलमानों को नष्ट करने की योजनाएं बना रहा है। मतभेद उत्पन्न करना और फूड डालना मुसलमानों के दुश्मनों की मूल रणनीति रही है, जिससे वह इस्लाम को नुक़सान पहुंचा रहे हैं। इसलिए मुसलमानों को अधिक समझदारी से काम लेते हुए उनकी इन चालों को समझना होगा और उनका मुक़ाबला करना होगा।

मुसलमानों के बीच एकता और एकजुटता पैदा करके और असली दुश्मनों के चेहरे से नक़ाब हटाकर मुस्लिम विद्ववान और धर्मगुरु महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उनकी यह भूमिका बहुत अहम एवं निर्णायक है क्योंकि इससे मुस्लिम उम्मत का भविष्य रौशन और सफल हो सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का अनुसरण करते हुए धर्मगुरु बेहतरीन समाज सुधारक और एकता के ध्वजवाहक बन सकते हैं।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना है कि एकजुटता और एकता, मुस्लिम समाज की सबसे महत्वपूर्ण ज़रूरत है। वे एक-दूसरे के धार्मिक विश्वासों का सम्मान करने की सिफ़ारिश करते हैं और दूसरे सम्प्रदायों के धार्मिक विश्वासों का अपमान करने के प्रति कड़ी चेतावनी देते हैं। एकता को मुसमलमानों की सबसे बुनियादी ज़रूरतों में से एक बताते हुए वे कहते हैः इस्लामी जगत को आज इस्लाम के असली दुश्मन को पहचानने की ज़रूरत है, हमें दुश्मनों को पहचानना चाहिए, इसी तरह से अपने दोस्तों को भी पहचानना चाहिए। कभी हम देखते हैं कि हमारे कुछ मुसलमान भाई, अपने दोस्तों को ही मारने के लिए दुश्मन से हाथ मिला लेते हैं, क्योंकि वे दूरदर्शिता नहीं रखते हैं। मुसलमानों को आज इसी दूरदर्शिता की ज़रूरत है। एकता मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

अफ़सोस की बात है कि शिया और सुन्नी मुसलमनों में कुछ ऐसे धर्मगुरु और विद्वान हैं कि जो अपनी बातों से मतभेदों को बढ़ावा देते हैं या अनजाने में पैग़म्बरे इस्लाम (स) और क़ुरान की शिक्षाओं के विपरीत व्यवहार करते हैं और मुस्लिम उम्मत के हक़ में अत्याचार करते हैं। जिस बात से भी मुसलमानों में फूट पड़ने की गंध आती है, उसका पैग़म्बरे इस्लाम से कोई संबंध नहीं है और वह क़ुरान के ख़िलाफ़ है।

पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसमलों को आपस में भाई क़रार देकर यह सिखा दिया कि ज़माना कोई भी हो मुसमलान, क़ुरान, क़िबले और अंतिम ईश्वरीय दूत पर एकमत हो सकते हैं और इस्लाम की शान और वैभव को प्रकट कर सकते हैं। हालांकि आज पैग़म्बरे इस्लाम जैसी महान हस्ती मुसलमानों के बीच मौजूद नहीं है, लेकिन उनकी शिक्षाएं और उनका आचरण मुस्लिम उम्माह के बीच मौजूद है, इसलिए अगर कोई पैग़म्बर के मापदंडों के मुताबिक़ जीवन गुज़ारेगा तो वह एकजुटता की ही बात करेगा और फूट डालने से बचेगा।

आख़िरी बात यह है कि एकता सप्ताह, पैग़म्बरे इस्लाम और क़ुरान के मातबिक़, मुसलमानों के बीच एकचा औक एकजुटता उत्पन्न करने का एक बेहतरीन अवसर है। अगर मुस्लिम उम्मत के बीच नेक स्वभाव, अच्छी संगति, विचार और पैग़म्बर की तरह सच बोलने का साहस पैदा हो जाए तो यह उम्मत कभी विभाजित नहीं होगी। एसे में दुश्मन अपने विभाजनकारी लक्ष्यों को कभी भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे।

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