Nov ०३, २०२१ १९:२१ Asia/Kolkata
  • विज्ञान की डगर-73

 ईरान के आज़ाद इस्लामी विश्वविद्यालय के शोध और विज्ञान केन्द्र के शोधकर्ता अंडों में साल्मोनेला बैक्टीरिया का पता लगाने में कामयाब रहे हैं।

साल्मोनेला बैक्टिरिया के ग्रुप का नाम है, जो आपकी आंतों को प्रभावित करती है. साल्मोनेला बैक्टिरिया जानवरों जैसे अंडा, बीफ़, कच्चे मुर्गों और फल-सब्ज़ियों के साथ-साथ मनुष्यों के आंतों में भी पाया जाता है। इसके अलावा ये बैक्टिरिया सांप, कछुए और छिपकली से भी फैलता है।

साल्मोनेला बैक्टिरिया के संक्रणित जानवरों के जरिए ये दूसरे जानवरों में फैलता है। वहीं, मनुष्यों में यह कच्चा मांस, अंडा या उससे बने प्रोडक्ट्स, बीफ या उससे बने प्रोडक्ट्स से फैलता है। बता दें, ये बैक्टिरिया छोटे बच्चों और बुजुर्गों को ज्यादा होता है।

अब यह सवाल पैदा होता है कि कैसे पता लगेगा कि आप साल्मोनेला बैक्टिरिया से प्रभावित हैं या नहीं?

 

अगर आपको कुछ खाने के 12 से 36 घंटों के भीतर दिए गए लक्षण नज़र आए तो हो सकता है कि आप साल्मोनेला बैक्टिरिया से संक्रमित हो गए हैं जैसे डायरिया, पेट दर्द, उलटी, बुख़ार, सिर दर्द, जी मतलाना इत्यादि लक्षण हों तो डॉक्टर से ज़रूर दिखाएं।

साल्मोनेला बैक्टिरिया क्यों होता है? ये बैक्टिरिया जानवरों, मनुष्यों और पक्षियों के आंत में रहता है। यह बैक्टिरिया संक्रमित व्यक्ति के मल में रहता है. साल्मोनेला बैक्टिरिया से संक्रमित खाना खाने से ही व्यक्ति इसकी चपेट में आता है।

अब सवाल यह पैदा होता है कि साल्मोनेला बैक्टिरिया से टाइफाइड बुख़ार (Typhoid Fever) होता है?

 

टाइफाइड साल्मोनेला बैक्टीरिया से फैलने वाली खतरनाक बीमारी है. टाइफाइड में पीड़ित व्यक्ति के पाचन तंत्र और ब्लड स्ट्रीम में साल्मोनेला बैक्टिरिया प्रवेश कर जाते हैं, जिससे डायरिया, कमज़ोरी, उलटी, बुखार और दर्द होता है। गंदे पानी, संक्रमित जूस या भोजन की वजह से साल्मोनेला बैक्टीरिया शरीर के अंदर प्रवेश करता है। अब अगर को साल्मोनेला बैक्टिरिया में ग्रस्त हो जाए तो उसका इलाज कैसे करे?

साल्मोनेला बैक्टिरिया में उलटी और डायरिया की वजह से पीड़ित के शरीर में पानी की कमी हो जाती है क्योंकि कुछ खाना या पानी पचता नहीं है। इसलिए मरीज को हल्का खाना दिया जाता है। फ़्रेश तथा जूस और इलेक्ट्रोलाइट पिलाया जाता है। ग्लूकोज़ चढ़ाया जाता है। साथ ही एंटी-बायोटिक देकर इंफेक्शन को खत्म किया जाता है।

 

दोस्तो दक्षिणी कोरोया में आयोजित होने वाले नैनो तकनीक के पहले अंतर्राष्ट्रीय ओलंपियाड में ईरान की टीम ने ट्रेड और व्यापार के क्षेत्र में पहला स्थान हासिल किया और 2 हज़ार यूरो का ईनाम अपने नाम कर लिया, इसी तरह मलेशिया की टीम ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में तथा ताइवान ने आल रैंकिंग में पहला स्थान हासिल किया तथा क्रमशः 2000 और 3000 यूरो का ईनाम हासिल किया।

नैनो तकनीक विस्तार की कमेटी के अनुसार इस ओलंपियाड के आयोजन का एक लक्ष्य, नैनो तकनीक के क्षेत्र में व्यापार को विस्तृत करने वाली कंपनियों को प्रेरित करना है। इस ओलंपियाड का मक़सद, पर्यावरण के क्षेत्र में कंपनियों को प्रशिक्षित करना है। यह इस ओलंपियाडा का महत्वपूर्ण आयाम था और पर्यावरण के क्षेत्र में नैनो तकनीक के विस्तार में मदद कर सकता है।

दोस्तो स्वीज़रलैंड विश्वविद्यालय में ईरानी छात्र के नेतृत्व में आयोजित होने वाले ग्रुप ने आविष्कार किया है कि सूडान में एक दशक पहले ज़मीन पर गिरा उल्का पिंड, एक गृह का ग़ायब हुआ एक भाग है। आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्याओं में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्त्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना अर्थात स्ट्रक्चर के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये पिंड ही हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं।

 

 

पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय और स्विट्जरलैंड में लुडविग कैंसर अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं ने कैंसर के इलाज के लिए एक व्यक्तिगत टीका विकसित किया। वैक्सीन को रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं से लिया जाता है और रोगी के ट्यूमर कोशिकाओं की सामग्री के साथ प्रयोगशाला में शामिल किया जाता है और फिर रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली में व्यापक प्रतिक्रिया बनाने के लिए रोगी के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है।

यह परीक्षण उन्नत अंडाशय के कैंसर वाले रोगियों में इस उपचार की सुरक्षा और प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए किया गया था और इस टीके की प्रभावशीलता के स्पष्ट संकेत दिखाए गए थे। वैक्सीन प्राप्त करने वाले लगभग आधे रोगियों में टी-सेल एंटीट्यूमर के लक्षण दिखाई दिए। ऐसी प्रक्रियाओं वाले लोग ट्यूमर के विकास के बिना लंबे समय तक जीवित रहे। यहां तक ​​कि एक मरीज भी वैक्सीन दिए जाने के दो साल बाद बीमारी से ठीक हो गया था और उसे पांच साल तक इलाज की जरूरत नहीं पड़ी थी। अंडाशय के कैंसर के रोगियों का इलाज करना बहुत मुश्किल होता है और इसमें कीमोथेरेपी के बाद सर्जरी शामिल होती है। यद्यपि उपचार का परिणाम आमतौर पर शुरुआत में अच्छा दिखता है, रोग फिर से शुरू हो जाता है और वे उपचार के रास्ते में रोड़े अटकाते हैं।

 

 

सांस फूलना एक ऐसा लक्षण हैं, जो बहुत आम है। मरीज़ परेशान रहता है एवं भयभीत रहता है कि कहीं जान चली जाए। कई बार तो काफी जांच पड़ताल के बावजूद पता नहीं चलता कि आखिर सांस क्यों फूल रही है। मरीज़ एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर भटकता रहता है, इलाज नहीं हो पाता।

 

ऐसे में ही विशेषज्ञ डॉक्टरों की ज़रूरत पड़ती है। कारण का पता लगते ही, इलाज काफ़ी आसान हो जाता है। सांस फूलना या सांस ठीक से लेने का अहसास होना, संक्रमण, सूजन, एलर्जी, चोट मेटाबोलिक परिस्थितियां एवं अन्य कई कारणों की वजह से हो सकता है।

दमा के मरीजों में यह बीमारी सिगरेट एवं प्रदूषित वातावरण में रहने के कारण होती है। इससे हृदय की बीमारियां, सांस की नली में रुकावट, निमोथोरेक्स,प्लूरल इफ्यूजन, हीमोथोरेक्स, लंग कैंसर और मोटापा इत्यादि बीमरियां बढ़ सकती हैं। खांसी,बुख़ार, सांस लेने में परेशानी, सीने में दर्द, सांस की गति तेज़ होना, धड़कन तेज़ होना, थकावट, ब्लड़ प्रेशर कम होना, सीने से अलग तरह की आवाज़ आना, इससे ख़ास लक्षण हैं। ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से मिलें। क्लिनिकल जांच, खून जांच एवं छाती का एक्स-रे द्वारा निमोनिया की पहचान की जाती है।

 

फेफड़े के सूजन को निमोनिया कहते है। दुनिया की 7 प्रतिशत आबादी की मौत निमोनिया एवं इससे जनित जटिल समस्याओं से होती है। निमोनिया किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन निमोनिया सबसे ज्यादा पांच साल से कम उम्र के बच्चों में होता है। विकासशील देशों में यह विकसित देशों के अपेक्षा पांच गुना ज्यादा होता है। निमोनिया का सही ढंग से इलाज होने पर, छाती में पानी एवं मवाद बन सकता है, जिससे मरीज़ जटील समस्याओं से घिर जाता है। सांस फूलना, बारंबार खांसी होना, खासकर सुबह के वक्त, बलग़म के साथ, छाती में जकड़न महसूस होना इसके प्रमुख लक्षण है।

 

अगर बीमारी के लक्षण का पता चल जाता है तो इलाज में आसानी होती है। 80 से 90 प्रतिशत यह बीमारी सिगरेट एवं प्रदूषित वातावरण में रहने वालों में होती है। हर खांसी के साथ, सांस की नली एवं फेफड़ा खराब होता चला जाता है। दमे से ब्लड़ प्रेशर एवं हार्ट की बीमारी भी बढ़ जाती है। कई तरह के टेस्ट मौजूद हैं, जिनसे इनकी पहचान हो सकती है। इन बीमारियों से बचने के लिए धूम्रपान, धूल, धुआं एवं दूषित वातावरण से जितना हो सके बचें, ठंडी हवा, ठंडा पानी, ठंडा खाना, सर्द-गर्म, दही, पके केला इत्यादि से परहेज़ करना चाहिए। जाड़े में मॉर्निंग वॉक करें क्योंकि मौसम का तापमान तेज़ी से बदलता है। मौसम का तापमान स्थिर होने पर टहलें, बीमारी से लड़ने के लिए अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं और मरीज़ गर्म पानी में नमक डालकर ग़रारा या गरग़रा जरूर करें।

 

सांस की नली एवं फेफड़े में इंफेक्शन जैसे निमोनिया, दमा, सीओपीडी फेफड़े एवं सांस की नली में सूजन, सांस फूलने का प्रमुख कारण हैं। दमा या सीओपीडी, विश्व में मौत का चौथा सबसे बड़ा कराण है। सिगरेट, धुआं, प्रदूषित वातावरण, सीओपीडी एवं दम्मा के प्रमुख कारण है। दम्मा की बढ़ती संख्या चिंताजनक हैं, इसे रोका जा सकता है। बदलते मौसम में मरीज़ को सावधान रहना चाहिए।

निमोनिया से ग्रसित मरीज़ को छाती में पानी एवं मवाद हो जाता है। निमोनिया जनित, छाती में मवाद का 42 प्रतिशत टी बी बैक्टीरिया के कारण है। दम फूलने वाले मरीज़ का प्रमुख कारण फेफड़े एवं हार्ट में ख़राबी है।