Jan १९, २०२४ १९:२७ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 38-42

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 38 से 40 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ الَّذِي آَمَنَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُونِ أَهْدِكُمْ سَبِيلَ الرَّشَادِ (38) يَا قَوْمِ إِنَّمَا هَذِهِ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا مَتَاعٌ وَإِنَّ الْآَخِرَةَ هِيَ دَارُ الْقَرَارِ (39) مَنْ عَمِلَ سَيِّئَةً فَلَا يُجْزَى إِلَّا مِثْلَهَا وَمَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِنْ ذَكَرٍ أَوْ أُنْثَى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُولَئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ يُرْزَقُونَ فِيهَا بِغَيْرِ حِسَابٍ (40)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और जो शख्स (दर पर्दा) ईमान ला चुका था कहने लगा हे मेरी क़ौम के लोगो! मेरा कहना मानों मैं तुम्हें हिदायत के रास्ते दिखा दूंगा [40:38] हे मेरी क़ौम के लोगो! ये दुनियावी ज़िन्दगी तो बस (नाचीज़) सामान है और आखेरत हमेशा रहने वाला घर है [40:39] जो बुरा काम करेगा उसे बदला भी वैसा ही मिलेगा, और जो नेक काम करेगा मर्द हो या औरत और वह ईमान रखता हो तो ऐसे लोग बहिश्त में दाख़िल होंगे वहाँ उन्हें बेहिसाब रोज़ी मिलेगी। [40:40]

पिछले कार्यक्रमों में हमने बताया कि फ़िरऔन हज़रत मूसा को क़त्ल कर देने का इरादा रखता था ताकि अपने स्तर पर उस व्यक्ति की तरफ़ से निश्चिंत हो जाए जो पैग़म्बरे होने का दावेदार था। फ़िरऔन के दरबार का एक व्यक्ति हज़रत मूसा पर ईमान ला चुका था लेकिन वह अपने ईमान को छिपाए हुए था। उसने फ़िरऔन को हज़रत मूसा के क़त्ल का इरादा छोड़ने पर तैयार करने के लिए फ़िरऔन और उसके दरबारियों से बात की। उसकी बात इतनी प्रभावी साबित हुई कि फ़िरऔन ने फ़ैसला किया कि क़त्ल का इरादा फ़िलहाल टाल दिया जाए। उसने अपने वज़ीर को आदेश दिया कि मूसा को अपमानित करने के लिए एक बहुत ऊंचा स्तंभ बनाए जिस पर फ़िरऔन चढ़कर ऊपर जाए और आसमानों में देखे कि वह ख़ुदा जिसका दावा हज़रत मूसा कर रहे हैं आसमानों में मौजूद है या नहीं?

ज़ाहिर है कि हज़रत मूसा ने इस तरह का कोई दावा नहीं किया था बल्कि फ़िरऔन की चाल थी कि लोगों को फ़रेब देने के लिए यह काम किया जाए। इसीलिए इस जगह पर फ़िरऔन के दरबार के मोमिन इंसान का संबोधन आम लोगों से है ताकि वे चौकन्ने हो जाएं और फ़िरऔन की बातों के धोखे और बहकावे में न आएं और न उसके दिखावटी काम से धोखा खाएं।

फ़िरऔन के दरबार के मोमिन इंसान ने लोगों से कहा कि सही रास्ता यह है जो मैं बता रहा हूं। उन्होंने अपने बात में दो बिंदुओं पर ज़ोर दिया।

एक तो यह कि इंसान की ज़िंदगी इसी दुनिया तक सीमित नहीं है। इस दुनिया की ज़िंदगी तो बहुत जल्द ख़त्म हो जाने वाले सामान की तरह है। चंद दिन की यह ज़िंदगी बहुत जल्द गुज़र जाएगी और मौत का चंगुल इंसानों के गरेबान को आ पकड़ेगा। मौत के बाद हम एक अलग लोक में पहुंच जाएंगे जो हमारा स्थायी ठिकाना होगा।

दूसरे यह कि उस दुनिया में इंसान के काम जो चीज़ आएगी वह उसके भले कर्म हैं जो उसने इस दुनिया में अंजाम दिए हैं। इसलिए कि वह दुनिया हमारी इस वर्तमान दुनिया के हमारे कर्मों की सज़ा या इनाम दिए जाने की जगह है। यह दुनिया अमल और काम करने की जगह है और वह दुनिया अपने कर्मों की फ़सल काटने की जगह है। इंसान के अच्छे या बुरे कामों के अनुसार उसे इनाम या सज़ा मिलेगी। बेशक इस मामले में महिला और पुरुष के बीच कोई अंतर नहीं है। बल्कि अल्लाह की नज़र में उनके बीच बराबरी है।

इन आयतों से हमने सीखाः

मोमिन इंसान हमेशा दूसरों की हिदायत और उन्हें सही रास्ता दिखाने की फ़िक्र में रहता है और उसके कंधे से यह ज़िम्मेदारी कभी ख़त्म नहीं होती।

दुनिया हमेशा रहने वाली नहीं है लेकिन क़यामत और परलोक इंसान का स्थायी ठिकाना है। तो ज़रूरी है कि इंसान दुनिया में अपनी ज़िंदगी को सही अंदाज़ से और सही लक्ष्यों के तहत गुज़ारे और हमेशा वे कर्म करे जिनसे उसे आख़ेरत में फ़ायदा मिले।

आध्यात्मिक बुलंदी पर पहुंचने के मसले में महिला और पुरुष के बीच कोई अंतर नहीं है।

ईमान बग़ैर अमल के किसी काम का नहीं है। इसी तरह ईमान के बग़ैर अमल किया जाए तो वह इसी दुनिया में रह जाएगा आख़ेरत में उसके आधार पर कुछ हासिल नहीं होगा। यानी ईमान और अमल एक दूसरे के बग़ैर पर्याप्त नहीं होंगे।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की 41वीं और 42वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,

وَيَا قَوْمِ مَا لِي أَدْعُوكُمْ إِلَى النَّجَاةِ وَتَدْعُونَنِي إِلَى النَّارِ (41) تَدْعُونَنِي لِأَكْفُرَ بِاللَّهِ وَأُشْرِكَ بِهِ مَا لَيْسَ لِي بِهِ عِلْمٌ وَأَنَا أَدْعُوكُمْ إِلَى الْعَزِيزِ الْغَفَّارِ (42)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और ऐ मेरी क़ौम मुझे क्या हुआ है कि मैं तुमको नजात की तरफ़ बुलाता हूँ और तुम मुझे जहन्नम की तरफ़ बुलाते हो[40:41] तुम मुझे दावत देते हो कि मै ख़ुदा के वजूद का इंकार करूं और उस चीज़ को उसका शरीक बनाऊं जिसका मुझे इल्म भी नहीं, और मैं तुम्हें ग़ालिब (और) बड़े बख़्शने वाले ख़ुदा की तरफ़ बुलाता हूँ। [40:42]

इन आयतों से यह पता चलता है कि फ़िरऔन के दरबार का मोमिन शख़्स इससे ज़्यादा अपना ईमान नहीं छिपा सका और तौहीद और शिर्क के बारे में उसना अपना अक़ीदा खुलकर बयान कर दिया।

इसीलिए फ़िरऔन की क़ौम के बुज़ुर्गों ने उसे नसीहत की कि अपना यह अक़ीदा छोड़ दे। मगर उसने कहा कि तुम लोग अनेकेश्वरवाद में फंसे हो और फ़िरऔन को अपना ख़ुदा मानते हो जिसकी इस कायनात की रचना में कोई भूमिका नहीं है मगर तुम्हे लगता है कि तुम्हारी क़िसमत उसके हाथ में है, तुम्हें भ्रम है कि वह तुम्हारे बारे में हर फ़ैसला कर सकता है और उसका अनुपालन करना तुम्हारी मजबूरी है। तुम उन चीज़ों को अल्लाह का शरीक मानते हो जिनके शरीक होने के बारे में तुम्हारे पास कोई ठोस तर्क नहीं है। बस केवल अनुमान और अंदाज़े के आधार पर तुमने ग़लत और भ्रामक विचारों को अपने दिमाग़ में बिठा लिया है।

तुम मुझे दावत दे रहे हो कि मैं अन्नय ख़ुदा का इंकार कर दूं और उन चीज़ों को अल्लाह का शरीक समझ लूं जिनके बारे में मुझे जानकारी नहीं है। तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी ग़लत आस्थाएं और बेबुनियाद अक़ीदे क़ुबूल कर लूं जबकि मैं बख़ूबी जानता हूं कि तुम्हारी शिर्क से दूषित सोच और कर्म तुम्हें जहन्नम में ले जाएंगे और तुम्हारी तरह मुझे भी मुसीबत में डाल देंगे।

जिस रास्ते पर तुम मुझे बुला रहे हो वह ख़तरनाक और अंधेरे में डूबा हुआ रास्ता है जबकि मैं तुम्हें जिस रास्ते पर बुला रहा हूं वह प्रकाशमान रास्ता है, अल्लाह का रास्ता है जो सर्वसमर्थ और बड़ा बख़्शने वाला है। मैं तुम्हें सारे शरीकों से पीछा छुड़ा लेने की दावत देता हूं चाहे वे इंसान हों या अन्य प्राणी और चीज़ें। मैं चाहता हूं कि तुम लोग केवल उसकी बंदगी करो जिसके अख़तियार में पूरी कायनात है और उसका करम हर इंसान और हर चीज़ तक पहुंचता है। ख़ास तौर पर उन लोगों तक जो ग़लत रास्ता छोड़ कर सही रास्ते पर आ जाते हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

लोगों के मार्गदर्शन और हिदायत के मामले में इस बात से नहीं घबराना चाहिए कि आप अकेले हैं बल्कि तर्क के साथ सत्य बात बयान कर देनी चाहिए। भटके हुए लोगों की बड़ी संख्या देखकर इंसान को हताश नहीं होना चाहिए और किसी संदेह में नहीं पड़ना चाहिए।

इंसान की नजात और ख़ुशक़िस्मती का दारोमदार तौहीद के अक़ीदे और नेक अमल पर है। कायनात के संचालन में दूसरों को अल्लाह का शरीक मानना इंसान को दुनिया और आख़ेरत में अनेक मुश्किलों में फंसा सकता है।

किसी भी चीज़ को अल्लाह का शरीक मानने का कोई तार्किक आधार नहीं है। यह बेबुनियाद विचार है जो अज्ञानता से निकलता है और कभी इंसान की इच्छाओं से यह वजूद में आता है।

अल्लाह सम्मान और प्रतिष्ठा के चरम बिंदु पर है मगर उसकी रहमत और उसकी क्षमा सारे बंदों पर अपनी छाया किए हुए है।

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