Jan १९, २०२४ १९:२९ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 43-47

आइए सबसे पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 43 और 44 की तिलावत सुनते हैं,

لَا جَرَمَ أَنَّمَا تَدْعُونَنِي إِلَيْهِ لَيْسَ لَهُ دَعْوَةٌ فِي الدُّنْيَا وَلَا فِي الْآَخِرَةِ وَأَنَّ مَرَدَّنَا إِلَى اللَّهِ وَأَنَّ الْمُسْرِفِينَ هُمْ أَصْحَابُ النَّارِ (43) فَسَتَذْكُرُونَ مَا أَقُولُ لَكُمْ وَأُفَوِّضُ أَمْرِي إِلَى اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ (44)

इन आयतों का अनुवाद हैः

बेशक तुम जिस चीज़ की तरफ़ मुझे बुलाते हो वह न तो दुनिया ही में पुकारे जाने के क़ाबिल है और न आख़ेरत में और आख़िर में हम सबको ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है और इसमें तो शक ही नहीं कि हद से बढ़ जाने वाले जहन्नमी हैं। [40:43] तो जो मैं तुमसे कहता हूँ अनक़रीब ही उसे याद करोगे और मैं तो अपना काम ख़ुदा ही को सौंपे देता हूँ कुछ शक नहीं की ख़ुदा बन्दों (के हाल) को ख़ूब देख रहा है। [40:44]

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि फ़िरऔन के ख़ानदान का मोमिन व्यक्ति लोगों के रूबरू आ गया और अपने ईमान से पर्दा हटाते हुए खुलकर तौहीद, शिर्क और उसके परिणामों के बारे में बात करने लगा। यह आयतें इसी संवाद के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं,

तुम मुझसे यह चाहते हो कि अनन्य ख़ुदा को छोड़कर तुम्हारे बुतों की इबादत करूं जबकि हर तरह के एहसास और समझ से वंचित यह मूर्तियां न दुनिया में किसी काम आने वाली हैं और न आख़ेरत में, वे न बात करती हैं और न कोई रास्ता दिखाती हैं, न किसी की कोई मुश्किल हल करती हैं और न किसी संकट को दूर कर पाती हैं।

जबकि हर किसी को आख़िरकार लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है और उसके सामने हमें अपने किए धरे का हिसाब देना होगा। ज़ाहिर है कि जो इंसान अल्लाह पर ईमान लाने के बजाए मूर्तियों की इबादत करने लगे क़यामत में उसकी जगह जहन्नम होगी। क्योंकि वह सत्य के रास्ते से भटक गया और सीमाओं को लांघ गया।

हे लोगो मैं तुमसे साफ़ साफ़ कहता हूं कि मैं अल्लाह पर ईमान लाया हूं और मैंने अपने सारे मामले उसी के हवाले कर दिए हैं। मुझे न तुम्हारी धमकियों का कोई डर है और न तुम्हारी बड़ी संख्या और ताक़त से मैं डरता हूं। क्योंकि मैंने ख़ुद को उस हस्ती के हवाले कर दिया है जिसकी शक्ति असीम है और जो अपने बंदों की हालत, सोच और अमल से बख़ूबी अवगत है।

मगर अफ़सोस है कि तुम्हें मेरी बात की सच्चाई का पता तब चलेगा जब तुम अल्लाह की अदालत में हाज़िर होगे और अल्लाह के आक्रोश की आग तुम्हारे दामन को अपनी लपेट में ले चुकी होगी। तब तक काफ़ी देर हो चुकी होगी और तुम्हारे पास दुनिया में लौटने का कोई रास्ता नहीं होगा।

इस तरह आले फ़िरऔन के ख़ानदान का मोमिन इंसान अपने स्पष्ट बयान से अकेले ही क़ौम के सामने डट गया और अपने ईमान की बात ज़ाहिर कर दी और तौहीद का रास्ता अपनाकर ख़ुद को क़ौम के अनेकेश्वरवाद से अलग कर लिया।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह पर ईमान लाने और अल्लाह के अलावा सारी चीज़ों को ख़ारिज करने के सिलसिले में हमें ठोस तर्क के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए और दूसरों को इसी तरह अल्लाह की राह की तरफ़ बुलाना चाहिए।

फ़ुज़ूलख़र्ची सिर्फ़ माल की नहीं होती बल्कि ग़लत रास्ते पर अपनी उम्र और अपनी क्षमताओं को ख़र्च करना भी फ़ुज़ूलख़र्ची के दायरे में आता है जिस की बहुत कड़ी सज़ा है। इसलिए ज़िंदगी का रास्ता चुनने में बहुत तवज्जो और आगाही से काम करना चाहिए।

अपनी ज़िम्मेदारियों पर अमल करने के बाद हमें अल्लाह से मदद मांगनी चाहिए कि वो हमें दुश्मनों की साज़िशों से बचाए। हमें अल्लाह पर ही भरोसा रखना चाहिए क्योंकि उसकी ताक़त सबसे बड़ी है।

अपने कामों को हमें अल्लाह के सिपुर्द कर देना चाहिए क्योंकि वह हमारे हालात से पूरी तरह अवगत है।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 45 और 46 की तिलावत सुनते हैं,

فَوَقَاهُ اللَّهُ سَيِّئَاتِ مَا مَكَرُوا وَحَاقَ بِآَلِ فِرْعَوْنَ سُوءُ الْعَذَابِ (45) النَّارُ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا غُدُوًّا وَعَشِيًّا وَيَوْمَ تَقُومُ السَّاعَةُ أَدْخِلُوا آَلَ فِرْعَوْنَ أَشَدَّ الْعَذَابِ (46)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो ख़ुदा ने उसे उनकी तदबीरों की बुराई से महफ़ूज़ रखा और फिरऔनियों को बड़े अज़ाब ने (हर तरफ़) से घेर लिया [40:45] और अब तो कब्र में दोज़ख़ की आग है कि वे लोग (हर) सुबह व शाम उसके सामने ला खड़े किए जाते हैं और जिस दिन क़यामत बरपा होगी (हुक्म होगा) फ़िरऔन के लोगों को सख़्त से सख़्त अज़ाब में झोंक दो। [40:46]

फ़िरऔन के ख़ानदान के मोमिन इंसान ने फ़िरऔनियों की धमकियों और साज़िशों को देखा तो अल्लाह से मदद मांगी। अल्लाह ने उनकी साज़िशों को नाकाम कर दिया और उस मोमिन इंसान की हिफ़ाज़त फ़रमाई और उसे ईमान और तौहीद के रास्ते पर मज़बूती के साथ बाक़ी रखा जबकि दूसरी ओर फ़िरऔनियों को उनकी ज़िद के कारण और सत्य का इंकार करने की वजह से बहुत कड़ी सज़ा दी।

क़ुरआन की दूसरी आयतें बयान करती हैं कि हज़रत मूसा और बनी इस्राईल नील नदी से सुरक्षित गुज़र गए जबकि फ़िरऔन और उसके साथी नील नदी में डूब गए। वैसे तो वे पानी में डूबे लेकिन दर हक़ीक़त वे जहन्नम की आग में समा गए और क़यामत तक हर सुबह शाम अज़ाब झेलेंगे। अलबत्ता यह अज़ाब बरज़ख़ का अज़ाब है। बरज़ख़ इंसान की मौत से क़यामत आने तक के बीच के समय को कहा जाता है। उनके लिए जिस दूसरे बड़े अज़ाब की बात की गई है वह उन्हें क़यामत के दिन मिलेगा और बहुत सख़्त अज़ाब होगा।

बरज़ख़ के दौर में इंसान अपने कर्मों पर मिलने वाली सज़ा का एक सीमित भाग देखता है और उसका मज़ा चखता है। बरज़ख़ नेक इंसानों के लिए जन्नत का दरवाज़ा है और बुरों के लिए जहन्नम की भस्म कर देने वाली आग है।

इन आयतों से हमने सीखाः

अगर हम अल्लाह पर भरोसा करें तो अल्लाह ज़ालिम और मक्कार दुश्मनों की भीड़ में भी हमारी हिफ़ाज़त करेगा।

अगर हमने अल्लाह पर भरोसा किया तो वह हमारी मदद भी करेगा और दुश्मनों की साज़िशों को कमज़ोर और बेअसर भी बना देगा।

ज़ालिमों की सज़ा उनकी मौत के समय से ही शुरू हो जाती है लेकिन क़यामत के दिन उन्हें बड़ी भयानक सज़ा मिलेगी और वे बेहद कठोर अज़ाब में जा फंसेंगे।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 47 की तिलावत सुनते हैं,

وَإِذْ يَتَحَاجُّونَ فِي النَّارِ فَيَقُولُ الضُّعَفَاءُ لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا إِنَّا كُنَّا لَكُمْ تَبَعًا فَهَلْ أَنْتُمْ مُغْنُونَ عَنَّا نَصِيبًا مِنَ النَّارِ (47)

इस आयत का अनुवाद हैः

और ये लोग जिस वक्त ज़हन्नम में आपस में झगड़ेंगें तो कम हैसियत वाले लोग बड़े सरग़नाओं से कहेंगे कि हम तुम्हारे नक़्शे क़दम पर चलते थे तो क्या तुम इस वक़्त (दोज़ख़ की) आग का कुछ हिस्सा हमसे हटा सकते हो। [40:47]

पिछली आयतों में बताया गया कि फ़िरऔनियों को बरज़ख़ में कड़ी सज़ा मिली और क़यामत के दिन उन्हें ज़्यादा कठोर सज़ा दी जाएगी। यह आयत इसके आगे वह दृष्य बयान करती है जिसमें जहन्नम में जलने वाले लोगों के बीच आपस में बातचीत होगी। उनमें हर कोई दूसरे को ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश करेगा और एक तरह से अपने को बेगुनाह साबित करना चाहेगा। जबकि अल्लाह तो न्याय के अनुसार ही किसी को सज़ा या इनाम देता है। किसी को भी अकारण जहन्नम में नहीं डाला जाता।

स्वाभाविक है कि दुनिया में भ्रामक और ग़लत मतों का अनुसरण करने वाले जो आंख बंद करके कुफ़्र के सरग़नाओं के पीछे पीछे चलते रहे इस उम्मीद में होंगे कि यह सरग़ना उन्हें निजात दिलाएं या कम से कम उनकी सज़ा में कुछ कमी करवा दें। जबकि ज़ुल्म व भ्रष्टाचार के वे सरग़ना ख़ुद ही भयानक अज़ाब झेल रहे होंगे और ख़ुद अपने लिए भी कुछ नहीं कर पाएंगे तो दूसरों की मदद करना तो बहुत दूर की बात है।

इस आयत से हमने सीखाः

दुनियावी दोस्ती और लगाव अगर सत्य के मार्ग में नहीं है तो क़यामत में वह दुश्मनी में बदल जाएगा।

दुनियावी ज़िंदगी की मुश्किलें और परेशानियां इस बात का तर्क नहीं बन सकतीं कि इंसान ख़ुद को ज़ालिमों और सरकशों के गुट में शामिल कर दे।

असत्य के रास्ते पर चलने से इंसान के लिए मुश्किलें पैदा होती हैं। हमें यह देखना होगा कि हम किन लोगों के रास्ते पर चल रहे हैं और क्या इन लोगों के रास्ते पर चलने से हमें  मुश्किलें पैदा होती हैं। हमें यह देखना होगा कि हम किन लोगों के रास्ते पर चल रहे हैं और क्या इन लोगों के रास्ते पर चलने से हमेंक़यामत में निजात मिलेगी या नहीं।

जहन्नम में गुनहगार एक दूसरे को पहचान लेंगे और दुनिया की ज़िंदगी उन्हें याद आ जाएगी, बेबसी की हालत में वे दूसरे गुनहगारों से मदद मांगेंगे।

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