Jan १९, २०२४ १९:४४ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 61-65

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 61 से 63 तक की तिलावत सुनते हैं,

اللَّهُ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ لِتَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا إِنَّ اللَّهَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ (61) ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ فَأَنَّى تُؤْفَكُونَ (62) كَذَلِكَ يُؤْفَكُ الَّذِينَ كَانُوا بِآَيَاتِ اللَّهِ يَجْحَدُونَ (63)

इन आयतों का अनुवाद हैः

ख़ुदा ही तो है जिसने तुम्हारे वास्ते रात बनाई ताकि तुम उसमें आराम करो और दिन को रौशन (बनाया) ताकि काम करो बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा करम और कृपा करने वाला है, मगर अक्सर लोग उसका शुक्र नहीं अदा करते [40:61] यही ख़ुदा तुम्हारा परवरदिगार है जो हर चीज़ का पैदा करने वाला है, और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, फिर तुम कहाँ बहके जा रहे हो। [40:62] जो लोग ख़ुदा की आयतों का इन्कार करते थे वह इसी तरह भटक रहे थे। [40:63]

यह आयतें फिर अल्लाह के एक और अनन्य होने के विषय की तरफ़ पलटती हैं और अल्लाह की कुछ ऐसी नेमतों का ज़िक्र करती हैं जिन पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। आयतें कहती हैं कि यही रात का अंधेरा और दिन का उजाला अल्लाह की दो बड़ी नेमतें हैं जो इंसानों और बहुत सारे जानदारों की ज़िंदगी में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

दिन का उजाला और गर्मी चलने फिरने, कामकाज और दूसरी गतिविधियां करने, वनस्पतियों और अनेक प्रकार की फ़सलों और उत्पादों के विकसित होने में मददगार है। जबकि रात का अंधेरा इंसान के बदन और मन की शांति और विश्राम का माहौल बनाता है जो दिन की थकन के बाद आता है। रात और दिन का यह सिस्टम, उजाले और अंधेरे का यह बारी बारी आना इंसान और अन्य प्राणियों की इस धरती पर ज़िंदगी में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। अगर अंधेरे और उजाले के बारी बारी आने का यह सिलसिला न होता तो बहुत मुमकिन था कि प्रकाश सारे प्राणियों को जला देता और धरती पर जीवन बाक़ी न रह पाता।

मगर आम तौर पर लोग इन अज़ीम नेमतों को देखकर गुज़र जाते हैं और अल्लाह का शुक्र भी अदा नहीं करते। कुछ दूसरे लोग हैं जो अल्लाह का शुक्र अदा करना तो दूर उसके वजूद का ही इंकार करने लगते हैं। वे कायनात को पैदा करने वाले अल्लाह के बजाए उन लोगों के पीछे भागते हैं जिनका उनके भविष्य के निर्माण में कोई किरदार नहीं है। वे बेजान चीज़ों या अपने जैसे इंसानों से आस लगाए बैठे रहते हैं जबकि अल्लाह के अलावा किसी के भी पास कुछ पैदा करने की ताक़त नहीं है और न ही कायनात को चलाने की क्षमता।

आयतें इसके आगे कहती हैं कि जिसने तुम्हें यह सारी नेमतें दी हैं वह वही अल्लाह है जो तुम्हारा मालिक और पालनहार है, वही ख़ुदा जिसने सारी चीज़ों को पैदा किया है और जिसके अलावा कोई इबादत के योग्य नहीं है। ज़ाहिर है कि कायनात को पैदा करने वाले और दुनिया को चलाने वाले अल्लाह की ही इबादत की जा सकती है। इसके बाद आयतें कहती हैं कि इसके बावजूद तुम कैसे हक़ के रास्ते से भटक कर और अल्लाह की इबादत छोड़कर किसी दूसरे के पीछे भागते हो। यक़ीनन जो लोग अल्लाह की आयतों का इंकार करते हैं आख़िरकार हक़ के रास्ते से भटककर ग़लत रास्ते पर चले जाते हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह की बनाई हुई कायनात में रात आराम करने और दिन मेहनत व काम करने के लिए है। उचित है कि अपनी दिनचर्या को इसी प्राकृतिक स्वभाव के मुताबिक़ ढाला जाए।

दुनिया में अल्लाह का करम और उसकी नेमतें सारे इंसानों को मिलती हैं चाहे वे मोमिन हों या काफ़िर, भले हों या बुरे।

अल्लाह इस  इंतेज़ार में नहीं रहता कि बंदे उसका शुक्र अदा करें तब वो नेमतें नाज़िल करे। अल्लाह यह जानते हुए भी कि अधिकतर लोग शुक्र नहीं करते मुसलसल नेमतें प्रदान करता रहता है।

इबादत के योग्य वही है जिसने सारी चीज़ों को पैदा किया और कायनात को संभालता और चलाता है। अल्लाह के अलावा किसी में यह विशेषता नहीं है।

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 64 और 65 की तिलावत सुनते हैं,

اللَّهُ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ قَرَارًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَصَوَّرَكُمْ فَأَحْسَنَ صُوَرَكُمْ وَرَزَقَكُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ فَتَبَارَكَ اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ (64) هُوَ الْحَيُّ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ فَادْعُوهُ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ (65)

इन आयतों का अनुवाद हैः

अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे वास्ते ज़मीन को ठहरने की जगह और आसमान को छत बनाया और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनायीं तो अच्छी सूरतें बनायीं और उसी ने तुम्हें साफ सुथरी चीज़ें खाने को दीं यही अल्लाह तो तुम्हारा परवरदिगार है तो ख़ुदा बहुत ही बरकतों वाला है जो सारे जहान का पालने वाला है। [40:64] वही (हमेशा) ज़िन्दा है और उसके सिवा कोई इबादत के योग्य नहीं तो उसी की शुद्ध इबादत करके उसी से ये दुआ माँगो, सब तारीफ़ ख़ुदा ही के लिए उचित है और जो सारे जहान का पालने वाला है। [40:65]

पिछली आयतों में कुछ नेमतों का ज़िक्र हुआ इसके बाद इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए यह आयतें इंसान की ज़िंदगी में आसमान और ज़मीन की भूमिका को बयान करती हैं। आयतें कहती हैं कि हालांकि ज़मीन ख़ुद अपने इर्द गिर्द और सूरज के चारों ओर चक्कर काटती रहती है और अपने इर्दि गिर्द उसकी गरदिश से दिन और रात आते हैं मगर फिर भी ज़मीन बड़ी शांत और ठहरी हुई जगह प्रतीत होती है। अल्लाह ने विश्राम और ठहराव के लिए ज़मीन में सारे ज़रूरी प्रबंध कर दिए। ज़मीन ठहरी हुई लगती है और उसमें कोई कंपन नहीं है। इंसानों को उसके हिलने और झटकों का एहसास भी नहीं होता। इंसानों को उनकी ज़रूरत के संसाधन और सुविधाएं दे दी गई हैं। नतीजे में इंसान बड़े सुकून से इस ज़मीन पर जीवन गुज़ार रहे हैं और अपने काम अंजाम दे रहे हैं।

इसके बाद आयतें कहती हैं कि आसमान को तुम्हरे ऊपर किसी ख़ैमे और छत की भांति बनाया गया है कि तुम्हें बहुत सारे ख़तरों से सुरक्षित रखा जाए। वायुमंडल ने किसी ख़ैमे और तंबू की भांति ज़मीन को चारों ओर से ढांक रखा है और उसकी सतह को छिपा रखा है। यह वायुमंडल और यह आवरण इंसानों को सूरज की झुलसा देने वाली गर्मी और आकाश की घातक किरणों से बचाता है। दूसरी तरफ़ उल्का पिंडों को ज़मीन पर गिरने और मानव जीवन तबाह कर देने से रोकता है।

रात और दिन, ज़मीन और आसमान जैसी नेमतों का ज़िक्र करने के बाद अल्लाल इंसानों के विषय की तरफ़ पलटता है और इंसान को हासिल अज़ीम नेमतें गिनवाता है। आयतें कहती हैं कि यह अच्छी और आकर्षक सूरत और सुडौल शरीर तुम इंसानों को दिया गया है और तुम्हें सारे प्राणियों में सबसे महान बनाया गया है। यह इंसानों पर अल्लाह के ख़ास करम की मिसाले हैं। उचित है कि यहां हम इस बिंदु का भी ज़िक्र करें कि इंसानी शरीर का ढांचा उसे अनेक प्रकार के कठिन और सूक्ष्म काम करने में सक्षम बनाता है। इंसान अपने शरीर के अलग अलग अंगों की मदद से ज़िंदगी की अलग अलग नेमतों से लाभ उठाता है।

आयतों में इसी तरह खाने पीने की अनेक चीज़ों का ज़िक्र किया गया है जो अल्लाह ने इंसानों को दी हैं जो इंसानों की चाहत और पसंद के मुताबिक़ हैं और उन्हें प्रयोग करके इंसान आनंद हासिल करता है।

क़ुरआन इन महान नेमतों का ज़िक्र करने के बाद कहता है कि यह है अल्लाह, तुम्हारा परवरदिगार, वही ख़ुदा जिसने इंसानों को यह नेमतें दी हैं और कायनात की सारी चीज़ें उसके हाथ में है वह हमेशा रहने वाला है और बरकतों का स्रोत है, नेकी और बरकत के अलावा उससे और कुछ नहीं निकलता।

दुनिया के प्राणी आते हैं और चले जाते हैं जो हमेशा जीवित और बाक़ी रहने वाला है वह तो अल्लाह ही है क्योंकि अल्लाह का जीवन ख़ुद उसके अपने वजूद से है किसी और ने नहीं दिया है। जबकि दूसरे सभी प्राणियों का जीवन अल्लाह ने दिया है। ज़ाहिर है कि इबादत के लायक़ वही है जो हमेशा रहने वाला है, उसके इलावा कोई पूज्य नहीं है। उसकी इबादत भी ख़ुलूस वाली इबादत होनी चाहिए जिसमें किसी तरह का शिर्क और ख़ुराफ़ात न हो।

इन आयतों से हमने सीखाः

ज़मीन में कई प्रकार की हरकत मौजूद है लेकिन अल्लाह ने इंसान के जीवन गुज़ारने के लिए उसमे ठहराव का भी इंतेज़ाम कर दिया है।

ज़मीन का ठहराव, आसमान का निर्माण, इंसानों को पैदा करना, उन्हें पाकीज़ा रोज़ी देना सब कुछ इंसान के सुकून और परवान चढ़ने के लिए है।

अल्लाह ने इंसान को सारे प्राणियों से अच्छा चेहरा दिया है जो अल्लाह की बहुत बड़ी नेमत है।

अल्लाह की रहमत व बरकत सारी कायनात और इंसानों पर छायी हुई है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है तो उसी का गुणगान और उसी की इबादत करना चाहिए।

टैग्स