क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-939
सूरए जासिया, आयतें 33-37
आइये सबसे पहले सूरे जासिया की 33वीं आयत की तिलावत सुनते हैं
وَبَدَا لَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا عَمِلُوا وَحَاقَ بِهِمْ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ (33)
इस आयत का अनुवाद है
और उनके करतूतों की बुराईयाँ उस पर ज़ाहिर हो जाएँगी और जिस (अज़ाब) की ये हँसी उड़ाया करते थे उन्हें (हर तरफ़ से) घेर लेगा। [45:33]
पिछले कार्यक्रम में क़यामत का इंकार करने वालों की बातों का उल्लेख किया गया और इस बात का भी ज़िक्र किया गया था कि क़यामत का इंकार करने वाले मज़ाक़ के अंदाज़ में कहते थे कि मुझे नहीं पता कि क़यामत क्या है और हमें गुमान भी नहीं है कि क़यामत आयेगी।
यह आयत इन लोगों के जवाब में कहती है कि जब क़यामत आयेगी तो उनके कर्म पत्र को उनके हाथों में दिया जायेगा और वे देखेंगे कि उसमें उनके समस्त कर्मों को दर्ज किया गया है और किसी चीज़ का इंकार करने की गुंजाइश नहीं है और जब उनके बुरे काम उनके सामने ज़ाहिर होंगे तो वे समझ जायेंगे कि जिस चीज़ का वे मज़ाक़ उड़ाते थे आज वही चीज़ सामने आ चुकी है और उससे भागने का कोई रास्ता नहीं है।
इस आयत से हमने सीखाः
क़यामत समस्त इंसानों के अच्छे और बुरे कार्यों के परिणामों के ज़ाहिर होने का दिन है।
ईश्वरीय आदेशों और शिक्षाओं का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिये कि इस प्रकार के व्यवहार का नतीजा एक दिन हमारे सामने होगा।
आइये अब सूरे जासिया की 34वीं आयत की तिलावत सुनते हैं"
وَقِيلَ الْيَوْمَ نَنْسَاكُمْ كَمَا نَسِيتُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا وَمَأْوَاكُمُ النَّارُ وَمَا لَكُمْ مِنْ نَاصِرِينَ (34)
इस आयत का अनुवाद है।
और (उनसे) कहा जाएगा कि जिस तरह तुमने उस दिन के आने को भुला दिया था उसी तरह आज हम तुमको अपनी रहमत से जान बूझ कर भुला देंगे और तुम्हारा ठिकाना दोज़ख़ है और कोई तुम्हारा मददगार नहीं। [45:34]
पवित्र क़ुरआन के अनुसार अगर भूलना स्वाभाविक चीज़ है तो उस पर पूछताछ नहीं की जायेगी कि तुम क्यों भूल गये थे? क्योंकि इंसान स्वाभाविक रूप से कुछ चीज़ें भूल जाता है। जैसे कोई किसी समय की नमाज़ पढ़ना ही भूल जाये। लेकिन अगर कोई अल्लाह के आदेश की उपेक्षा करता है तो वह दंड का पात्र है क्योंकि वास्तव में वह भूला नहीं है बल्कि उसने जानबूझ कर अल्लाह के आदेश की उपेक्षा की है।
कुछ लोग प्रलय का इंकार करते हैं और इस इंकार पर आग्रह करते हैं मगर कुछ दूसरे ऐसा नहीं करते। मगर वे क़यामत पर कोई ध्यान नहीं देते और ऐसा अमल करते हैं जैसे वे क़यामत को भूल गये हैं। इस प्रकार के दोनों समूह अपनी आस्था और अमल में दंड के पात्र हैं और अल्लाह इन लोगों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करेगा कि मानो वह इन लोगों को भूल गया है और अपनी असीमित कृपा से उन्हें वंचित कर दिया है।
अलबत्ता यह बात बहुत सख्त व पीड़ादायक है कि अल्लाह किसी को अपनी समस्त रहमतों से वंचित कर दे और उसे उसके हाल पर छोड़ दे। अंत में यह आयत इस बिन्दु की ओर संकेत करती है कि इस प्रकार के लोगों की जगह जहन्नम है और उनका कोई साथी व मददगार नहीं है।
इन आयतों से हमने सीखाः
जो ऐसा अमल करे जिससे यह लगे कि वह क़यामत को भूल गया है तो क़यामत में उसके साथ भुला दिये गये लोगों जैसा व्यवहार किया जायेगा और अल्लाह उसे उसके हाल पर छोड़ देगा।
क़यामत पर केवल ईमान होना काफ़ी नहीं है बल्कि मोमिन इंसान को समस्त हालतों में क़यामत को याद रखना चाहिये।
आइये अब सूरए जासिया की 35वीं आयत की तिलावत सुनते हैं
ذَلِكُمْ بِأَنَّكُمُ اتَّخَذْتُمْ آَيَاتِ اللَّهِ هُزُوًا وَغَرَّتْكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا فَالْيَوْمَ لَا يُخْرَجُونَ مِنْهَا وَلَا هُمْ يُسْتَعْتَبُونَ (35)
इस आयत का अनुवाद है
ये इस सबब से कि तुम लोगों ने ख़ुदा की आयतों को हँसी मज़ाक़ बना रखा था और दुनयावी ज़िन्दगी ने तुमको धोखे में डाल दिया था ग़रज़, ये लोग न तो आज इस दुनिया से निकाले जाएँगे और न उनको इसका मौक़ा दिया जाएगा कि (तौबा करके ख़ुदा को) राज़ी कर ले। [45:35]
यह आयत दो चीज़ों को जहन्नमी होने का मूल कारण मानती है। एक मायामोह और दूसरे अल्लाह की आयतों का मज़ाक़ उड़ाना। जब इंसान का दिल दुनिया में बहुत ज़्यादा लग जाता है तो वह इस बात कारण बनता है कि इंसान मौत के बाद क़यामत का इंकार कर देता है ताकि वह ज़िन्दगी में आराम से रहे और अपनी इच्छाएं पूरी करे।
जो लोग क़यामत के अज़ाब से इन लोगों को डराते हैं वे उन लोगों का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहते हैं कि कौन उस दुनिया से ख़बर लाया है कि प्रलय है और तुम लोग मुझे उससे डरा रहे हो? कौन सी जन्नत, कौन सी जहन्नम? ये खोखले और बेकार के वादे व बातें हैं। नक़द को ले लो और जो बाद में मिलने वाला है उसे नज़रअंदाज़ करो।
स्पष्ट है कि इस प्रकार के लोग न तो तौबा करना चाहते हैं और न ही अपनी सोच में सुधार करना चाहते हैं, वे इसी हालत में दुनिया से चले जाते हैं। प्रलय में इन लोगों को मुक्ति का कोई मार्ग नहीं मिलेगा और इन लोगों के पास कोई क़ाबिले क़बूल बहाना भी नहीं होगा जो नरक की आग से उनकी मुक्ति का ज़रिया बने।
इस आयत से हमने सीखाः
इंसान के बुरे अंजाम की वजह दुनिया, पैसा, शक्ति और दुनिया की लज़्ज़तों से प्रेम है।
अल्लाह ने अपने समस्त बंदों पर हुज्जत तमाम कर दी है। यानी बहाने की गुंजाइश ही ख़त्म कर दी है और क़यामत के दिन कोई भी यह नहीं कह सकता कि हमें पता नहीं था।
आइये अब सूरए जासिया की 36वीं और 37वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं।
فَلِلَّهِ الْحَمْدُ رَبِّ السَّمَاوَاتِ وَرَبِّ الْأَرْضِ رَبِّ الْعَالَمِينَ (36) وَلَهُ الْكِبْرِيَاءُ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (37)
इन आयतों का अनुवाद है
तो सब तारीफ़ ख़ुदा ही के लिए सज़ावार है जो सारे आसमान का मालिक और ज़मीन का मालिक, सारे जहान का मालिक है। [45:36] और सारे आसमान व ज़मीन में उसके लिए बड़ाई है और वही (सब पर) ग़ालिब, हिकमत वाला है। [45:37]
ये सूरए जासिया की अंतिम आयतें हैं और इनमें अल्लाह की महानता का ज़िक्र किया गया है। इन आयतों में अल्लाह कहता है कि विशालकाय आसमान और असंख्य आकाशगंगाओं का संचालन अल्लाह के हाथ में हैं जैसाकि ज़मीन और ज़मीन में रहने वालों के कार्यों का संचालन भी अल्लाह करता है। अल्लाह अपनी असीमित शक्ति, ज्ञान और हिकमत के आधार पर ब्रह्मांड का संचालन करता है। अतः हम इंसानों का दायित्व यह है कि हम अल्लाह और इस ब्रह्मांड में उसकी भूमिका को सही तरह से पहचानें।
निश्चित रूप से यह पहचान अल्लाह का शुक्र अदा करने और उसकी तारीफ़ का कारण बनेगी। क्योंकि हर भलाई का स्रोत अल्लाह की ज़ात है और हर तारीफ़ व प्रशंसा उसकी ओर पलटती है।
सूरए जासिया की अंतिम आयत में इस विषय की ओर संकेत किया गया है कि अल्लाह की महानता विशाल और विस्तृत आसमानों, समूची ज़मीन और पूरे ब्रह्मांड में स्पष्ट है और ज़मीन और आसमानों में जो कुछ भी है सब उसका है।
इन आयतों से हमने सीखाः
समूचे ब्रह्मांड का संचालन महान व सर्वसमर्थ अल्लाह करता है और इस चीज़ में ज़मीन और आसमान में कोई अंतर नहीं है।
इज़्ज़त और ताक़त सही तरह से उसी समय काम आती है जब वह इल्म और हिकमत के साये में हो।
अल्लाह की इबादत उसकी माअरेफ़त पर निर्भर है और प्रशंसा के योग्य केवल अल्लाह ही है।