Mar १२, २०२५ १७:५९ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-972

सूरए क़ाफ़ ,आयतें 38 से 45

आइये सबसे पहले सूरए क़ाफ़ की 38 से 40 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَلَقَدْ خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ وَمَا مَسَّنَا مِنْ لُغُوبٍ (38) فَاصْبِرْ عَلَى مَا يَقُولُونَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوبِ (39) وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَأَدْبَارَ السُّجُودِ (40)

इन आयतों का अनुवाद हैः 

और हमने ही यक़ीनन सारे आसमान और ज़मीन और जो कुछ उन दोनों के बीच में है छह: दिन में पैदा किए और थकान तो हमको छुकर भी नहीं गयी।[50:38]   तो (ऐ रसूल) जो कुछ ये (काफ़िर) लोग कहा करते हैं उस पर तुम सब्र करो और आफ़ताब के निकलने और ग़ुरूब होने से पहले अपने परवरदिगार के हम्द की तस्बीह किया करो। [50:39]  और थोड़ी देर रात को भी और नमाज़ के बाद भी उसकी तस्बीह करो। [50:40]

 

पिछले कार्यक्रम में क़यामत के होने और उसका इंकार करने वालों के बारे में कुछ बिन्दुओं को बयान किया गया था। इन आयतों में एक बार फ़िर महान ईश्वर की असीमित शक्ति की ओर संकेत किया गया है। महान ईश्वर इन आयतों में कहता है कि क़यामत के आने में किस प्रकार संदेह करते हो जबकि समूचा ब्रह्मांड महान ईश्वर की शक्ति से 6 दिन में अस्तित्व में आकर तैयार हो गया और उसको अस्तित्व में लाने के लिए अल्लाह को लेशमात्र भी न तो कष्ट हुआ और न ही वह इस काम से थका। 

उसके बाद अल्लाह अपने पैग़म्बर को संबोधित करते हुए कहता है कि क़यामत का इंकार करने वालों की बातों से आप दुःखी न हों और दिन व रात के विभिन्न हिस्सों में अल्लाह की याद से अपने दिल को मज़बूत और उनकी बातों को बर्दाश्त कीजिये। 

इन आयतों से हमने सीखाः

अल्लाह एक क्षण में समूचे ब्रह्मांड को अस्तित्व में ला सकता है परंतु वह इस बात की ओर संकेत करता है कि समूचा ब्रह्मांड क्रमशः अस्तित्व में आया है और यह इस बात का सूचक है कि समूचे ब्रह्मांड में कारण और व्यवस्था मौजूद है। 

समूचा ब्रह्मांड बहुत विस्तृत व विशाल है। समूचे ब्रह्मांड की भव्यता महान ईश्वर की असीमित शक्ति का जलवा व प्रदर्शन है। 

हक़ को बयान करने के मार्ग में विरोधी और दुश्मन हम पर जो आरोप लगाते और बुरा- भला कहते हैं उससे हमें निराश व हतोत्साहित नहीं होना चाहिये बल्कि धैर्य व प्रयास के साथ अपने कार्य को जारी रखना चाहिये। 

मुश्किलों व कठिनाइयों से मुक़ाबले के मार्ग में हर क्षण अल्लाह की याद सबसे बड़ी सहायक है। 

यद्यपि अल्लाह को याद करने का कोई नियत समय नहीं है यानी इंसान जब चाहे उसे याद कर सकता है परंतु नमाज़ के समय उसे याद करने का अधिक प्रभाव है। 

आइये अब सूरए क़ाफ़ की 41 से 44 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَاسْتَمِعْ يَوْمَ يُنَادِ الْمُنَادِ مِنْ مَكَانٍ قَرِيبٍ (41) يَوْمَ يَسْمَعُونَ الصَّيْحَةَ بِالْحَقِّ ذَلِكَ يَوْمُ الْخُرُوجِ (42) إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي وَنُمِيتُ وَإِلَيْنَا الْمَصِيرُ (43) يَوْمَ تَشَقَّقُ الْأَرْضُ عَنْهُمْ سِرَاعًا ذَلِكَ حَشْرٌ عَلَيْنَا يَسِيرٌ (44)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और कान लगा कर सुन रखो कि जिस दिन पुकारने वाला (इसराफ़ील) नज़दीक ही जगह से आवाज़ देगा। [50:41]  (कि उठो) जिस दिन लोग एक सख़्त चीख़ को बाख़ूबी सुन लेगें वही दिन (लोगों के) कब्रों से निकलने का होगा। [50:42]  बेशक हम ही (लोगों को) ज़िन्दा करते हैं और हम ही मारते हैं। [50:43]  और हमारी ही तरफ़ फिर कर आना है जिस दिन ज़मीन (उनके ऊपर से) फट जाएगी और ये झट पट निकल खड़े होंगे यही उठाना और जमा करना है। [50:44]   

ये आयतें इस बात की सूचक हैं कि क़यामत के महासम्मेलन का आरंभ अरबों- खरबों इंसानों की उपस्थिति और ईश्वरीय व आसमानी आवाज़ से होगा और वह आसमानी आवाज़ इस प्रकार वातावरण में फ़ैल जायेगी कि क़यामत में मौजूद समस्त लोग उसे निकट से सुनेंगे। वह आवाज़ इतनी तीव्र होगी कि ज़मीन और पहाड़ फ़ट जायेंगे और मुर्दे अपनी क़ब्रों से निकल आयेंगे और बिखरे हुए समस्त लोग एकत्रित हो जायेंगे। 

इन आयतों में इस बिन्दु की ओर भी संकेत किया गया है कि जिस अल्लाह ने इंसानों को पहली बार दुनिया में पैदा किया था वही अल्लाह उनको मार देगा और फ़िर वही अल्लाह क़यामत के दिन उन सबको दोबारा ज़िन्दा करेगा।

इन आयतों से हमने सीखा 

क़यामत जिस्मानी होगी। एक- एक इंसान को क़ब्र से ज़िन्दा किया और उठाया जायेगा और उन सबको क़यामत में हाज़िर किया जायेगा। 

मौत और ज़िन्दगी अल्लाह के हाथ में है और यह  अल्लाह द्वारा क़यामत में समस्त इंसानों के दोबारा ज़िन्दा किये जाने की बेहतरीन दलील है। 

आइये अब सूरए क़ाफ़ की 45वीं आयत की तिलावत सुनते हैं,

نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَقُولُونَ وَمَا أَنْتَ عَلَيْهِمْ بِجَبَّارٍ فَذَكِّرْ بِالْقُرْآَنِ مَنْ يَخَافُ وَعِيدِ (45)

इस आयत का अनुवाद हैः

और हम पर बहुत आसान है (ऐ रसूल) ये लोग जो कुछ कहते हैं हम (उसे) ख़ूब जानते हैं और तुम उन पर जब्र तो करते नहीं तो जो हमारे (अज़ाब के) वादे से डरे उसको तुम क़ुरान के ज़रिए नसीहत करते रहो। [50:45]

इस आयत में अल्लाह एक बार फ़िर पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है कि क़यामत का इंकार करने वाले जो तुमसे कहते हैं और दूसरों को तुम पर ईमान लाने से रोकते हैं हम उन सब से पूर्णतः अवगत हैं तुम इस बात की अपेक्षा न करो कि वे सब तुम पर ईमान लायेंगे क्योंकि हमने इंसानों को आज़ाद पैदा किया है और उन सबको चयन का अधिकार है। 

पैग़म्बर व संदेशक के रूप में तुम्हारा दायित्व लोगों तक संदेश को पहुंचा देना और उन्हें उनके कार्यों के अंजाम से अवगत कर देना है। अल्लाह के धर्म को क़बूल करने के लिए किसी को मजबूर करने की तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है। 

इस आयत से हमने सीखाः

चूंकि क़ुरआन याद करने व याद दिलाने का सर्वोत्तम स्रोत है इसलिए अख़लाक़ी बहसों और लोगों की नसीहत का बेहतरीन स्रोत पवित्र क़ुरआन होना चाहिये।

आसमानी धर्मों का सिद्धांत प्राकृतिक है और वह प्रकृति समस्त इंसानों के अस्तित्व में मौजूद है और उसे मात्र याद दिलाने की ज़रूरत है। इसी वजह से पैग़म्बरों का प्रयास इंसानों के अंदर मौजूद सोयी हुई प्रवृत्ति व प्रकृति को जगाना होता था। 

पैग़म्बरों का दायित्व धर्म का प्रचार है। उन्हें ज़ोर -ज़बरदस्ती करने का अधिकार नहीं है क्योंकि धर्म का क़बूल करना स्वतंत्रता और आज़ादी के साथ होना चाहिये। 

अल्लाह ने क़यामत के दिन जो दंड व प्रतिफ़ल देने का वादा किया है उसके प्रति ईमान पैग़म्बरों की नसीहतों को क़बूल करने का मार्ग प्रशस्त करता है।