क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1007
सूरए हदीद आयतें , 21 से 24
आइए सबसे पहले हम सूरए हदीद की आयत 21 की तिलावत सुनते हैं:
سَابِقُوا إِلَى مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ أُعِدَّتْ لِلَّذِينَ آَمَنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ ذَلِكَ فَضْلُ
اللَّهِ يُؤْتِيهِ مَنْ يَشَاءُ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ (21)
इस आयत का अनुवाद इस प्रकार है:
तुम अपने परवरदिगार की बख़्शिश और बहिश्त की तरफ़ लपक के आगे बढ़ जाओ जिसकी चौड़ाई आसमान और ज़मीन की चौड़ाई के बराबर है जो उन लोगों के लिए तैयार की गयी है जो ख़ुदा पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं ये ख़ुदा का फज़्ल है जिसे चाहे अता करे और ख़ुदा का फज़्ल (व क़रम) तो बहुत बड़ा है [57:21]
पिछले कार्यक्रम में दुनिया और उसकी विशेषताओं पर बात हुई थी कि इंसान बचपन और किशोरावस्था में खेल-कूद और मनोरंजन में, और जवानी में साज-सज्जा और खूबसूरती में लगा रहता है; इसके बाद वह माल और ओहदे की होड़ में पड़कर घमंड और लालच का शिकार हो जाता है।
इस आयत में कहा गया है: लेकिन ईमान वाले लोग दुनिया में मिली नेमतों को आख़ेरत की हमेशा रहने वाली जन्नत को पाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
जैसे आम लोग दुनियावी माल और ओहदे को पाने के लिए एक-दूसरे से मुक़ाबला करते हैं, वैसे ही ईमान वाले नेक कामों में एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश करते हैं, और ख़ुदा के हुक्म की पैरवी करके और अच्छे काम करके उसकी रहमत और मेहरबानी को अपनी तरफ़ खींचते हैं।
ऐसे लोग इनाम भी पाते हैं और उनके गुनाह भी माफ़ कर दिए जाते हैं, क्योंकि क़ुरआन की आयतों के अनुसार अच्छे काम गुनाहों की माफ़ी का कारण बनते हैं, और जितना ज़्यादा नेक काम किया जाए, उतने ही ज़्यादा गुनाह माफ़ होते हैं।
जन्नत, जिसकी तरफ़ ख़ुदा हमें बुलाता है, उसकी लम्बाई-चौड़ाई हमें मालूम नहीं है और उसकी विशालता हमारी समझ से बाहर है। इसलिए ख़ुदा ने उसकी तुलना ज़मीन और आसमान की चौड़ाई से की है। ऐसे आसमान से जिसकी शुरुआत, अंत और माप इंसान के लिए अज्ञात है।
आगे आयत एक अहम बात की ओर इशारा करती है, वह ये कि हम दुनिया में जो अच्छे काम करते हैं, वे बेअंत जन्नती नेमतों के मुक़ाबले में बहुत ही मामूली हैं। इसलिए ख़ुदा अपनी रहमत और फ़ज़्ल से जन्नत वालों को इनाम देता है। जैसे कि दूसरी आयतों में भी आया है कि ख़ुदा तुम्हारे अच्छे कामों का कई गुना यहाँ तक कि 700 गुना, इनाम देता है, क्योंकि दुनिया की उम्र सीमित है और इसमें किए जाने वाले काम भी सीमित हैं।
इस आयत से हम सीखते हैं:
वही दुनिया जो दुनिया-परस्तों के लिए घमंड और धोखे का कारण है, ईमान वालों के लिए अच्छे कामों से ख़ुदा की रहमत और माफ़ी का जरिया भी बनती है।
जिस तरह दुनिया-परस्त लोग माल और ताक़त पाने में एक-दूसरे से मुक़ाबला करते हैं, वैसे ही ईमान वाले अच्छे और भले कामों में एक-दूसरे से आगे बढ़ते हैं।
जन्नत दो चीजों से मिलकर बनती है: एक है ख़ुदा की माफ़ी, जो गुनाहों को मिटाती है और इंसान को जन्नत में दाख़िल करती है; दूसरी चीज़ है ख़ुदा का फ़ज़्ल, जो जन्नत वालों के अच्छे कामों का कई गुना इनाम देता है।
अब हम सूरए हदीद की 22वीं और 23वीं आयतों की तिलावत सुनते हैं:
مَا أَصَابَ مِنْ مُصِيبَةٍ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي أَنْفُسِكُمْ إِلَّا فِي كِتَابٍ مِنْ قَبْلِ أَنْ نَبْرَأَهَا إِنَّ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ (22) لِكَيْ لَا تَأْسَوْا عَلَى مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوا بِمَا آَتَاكُمْ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُورٍ (23)
इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार है:
जितनी मुसीबतें रूए ज़मीन पर (जैसे प्राकृतिक आपदाएं) और ख़ुद तुम लोगों पर (जैसे बीमारियां) नाज़िल होती हैं (वह सब) इससे पहले कि हम उन्हें पैदा करें किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी हुई) हैं बेशक ये ख़ुदा पर आसान है[57:22] ताकि जब कोई चीज़ तुमसे जाती रहे तो तुम उसका रंज न किया करो और जब कोई चीज़ (नेअमत) ख़ुदा तुमको दे तो उस पर न इतराया करो और ख़ुदा किसी इतराने वाले घमंडी को पसंद नहीं करता। [57:23]
जो परेशानियाँ और मुसीबतें इंसान पर आती हैं, वे दो तरह की होती हैं: एक वह, जिनमें इंसान की कोई भूमिका नहीं होती — जैसे बाढ़, भूकंप, सूखा, अकाल या महामारी जैसी बीमारियाँ। इस आयत में इन्हीं बातों का ज़िक्र है और कहा गया है: जो भी घटनाएँ ज़मीन पर पेश आती हैं या तुम्हारे शरीर और जान को तकलीफ़ देती हैं, वे सब ख़ुदा के इल्म की किताब में दर्ज हैं।
दूसरी तरह की मुसीबतें वो होती हैं जो इंसान के अपने कामों का नतीजा होती हैं — जैसे कोई आदमी सिगरेट या नशा करके साँस की बीमारी में पड़ जाए, या कोई तेज़ और ग़ैरक़ानूनी ड्राइविंग करके हादसे में घायल हो जाए या मर जाए। सूरए शूरा की आयत 30 में भी इसी दूसरी क़िस्म की मुसीबतों का ज़िक्र है और कहा गया है कि जो भी मुसीबत तुम्हें आती है, वह तुम्हारे अपने किए हुए कामों का नतीजा है।
ये बात साफ़ है कि पहली क़िस्म की मुसीबतों में हमारा कोई हाथ नहीं होता, इसलिए हम ज़िम्मेदार नहीं होते। लेकिन दूसरी क़िस्म की जो मुसीबतें हमारे अपने अख़्तियार और कामों की वजह से आती हैं, उनके लिए हम जवाबदेह हैं।
अगर इंसान ये समझ ले कि इस पूरी कायनात के काम ख़ुदा के इल्म और हिकमत से चल रहे हैं, तो वह अपनी ज़िंदगी में आने वाली ऐसी मुसीबतों से मायूस नहीं होगा जिनमें उसका कोई क़सूर नहीं होता। अगर उसका बच्चा बीमारी से मर गया, तो वह कुफ्र नहीं बकेगा। अगर उसका घर बाढ़ से उजड़ गया, तो वह ज़िंदगी से मायूस नहीं होगा।
इसके उलट, अगर ज़िंदगी की हालत बेहतर हो गई और उसे आराम और ऐश मिला, तो वह घमंड में नहीं पड़ेगा और दूसरों पर शैख़ी नहीं बघारेगा।
इन आयतों से हम सीखते हैं:
जो भी घटनाएँ ज़मीन पर या इंसान की ज़िंदगी में पेश आती हैं, वे पहले से तयशुदा ख़ुदा के इल्म की किताब के अनुसार होती हैं। ये चीज़ें अचानक या बिना ख़ुदा की जानकारी के नहीं होतीं।
जो इंसान ख़ुदा से दूर होता है, वह मुसीबतों में मायूस और सख़्त हाल में टूट जाता है, और आराम में घमंड करता है। इसके विपरीत, एक ईमानदार इंसान मुसीबत में सब्र करता है और सुख में शुक्रगुज़ार होता है।
ग़म और खुशी, अपने आप में बुरी चीज़ें नहीं हैं, लेकिन बीते हुए दुखों पर घुटते रहना या मिल चुकी चीज़ों पर इतराना निंदनीय और ग़लत है।
अब हम सूरए हदीद की आयत 24 की तिलावत सुनते हैं:
الَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ وَمَنْ يَتَوَلَّ فَإِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ (24)
इस आयत का अनुवाद इस प्रकार है:
जो ख़ुद भी कंजूसी करते हैं और दूसरे लोगों को भी कंजूसी करना सिखाते हैं और जो शख़्स (इन बातों से) मुंह फेर ले तो ख़ुदा भी ग़ैर मोहताज हम्द व प्रशंसा का हक़दार है [57:24]
पिछली आयत के आख़िर में कहा गया था कि ख़ुदा उन लोगों को पसंद नहीं करता जो ऐशो-आराम की ज़िंदगी में घमंड करते हैं।
इस आयत में ऐसे लोगों की एक और आदत का ज़िक्र किया गया है — वह यह कि, हालाँकि ख़ुदा ने उन्हें माल और दौलत दी है, फिर भी वे ज़रूरतमंदों को कुछ देने या क़र्ज़ देने के लिए तैयार नहीं होते।
वे ख़ुदगर्ज़ और घमंडी होते हैं और अपने सारे माल और दौलत को सिर्फ़ अपने लिए रखना चाहते हैं।
एक लालची इंसान यह समझता है कि जो कुछ उसके पास है, वही उसकी शान और बड़प्पन का ज़रिया है, इसलिए वह नहीं चाहता कि इस 'बड़प्पन' का हिस्सा किसी और को मिले।
हैरानी की बात यह है कि दुनिया से मोहब्बत करने वाले ये लोग यह सोचते हैं कि उनका यह रवैया ही सही है और दूसरों को भी यही सलाह देते हैं कि वे भी अपनी दौलत ज़रूरतमंदों को देने से बचें और कंजूसी करें।
इस आयत से हम सीखते हैं:
कंजूसी से भी बुरा है, दूसरों को भी कंजूसी की सलाह देना। इसलिए हमारे धर्म की महान हस्तियों ने कहा है कि कंजूसों के साथ न बैठो और न ही उन्हें अपने सलाह-मशविरे में शामिल करो।
दौलत और माल का अस्ल मापदंड यह नहीं कि किसके पास कितना है, बल्कि यह है कि वह कितना बाँटता है। बहुत से अमीर कंजूस होते हैं और बहुत से ग़रीब दानी।