ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-1
आम तौर पर जब सांस्कृतिक धरोहर की बात होती है तो पूर्व काल की वास्तुकला के ऐतिहासिक अवशेष की याद आती है।
आम तौर पर जब सांस्कृतिक धरोहर की बात होती है तो पूर्व काल की वास्तुकला के ऐतिहासिक अवशेष की याद आती है। जैसे शीराज़ के निकट तख़्ते जमशीद और इस्फ़हान का ‘मैदाने नक़्श जहान’ की याद मन में ताज़ा हो जाती है। इसी प्रकार रोम और एथेन्ज़ के शहर या भारत और चीन के प्राचीन स्थल याद आते हैं। लेकिन जब इस संदर्भ में थोड़ा विचार करते हैं तो हम पाते हैं कि हस्तलेखा, कला रचनाएं और पुरातनविदों द्वारा खोजी गयीं वस्तुएं भी इसी श्रेणी में आती हैं, इनमें से हर एक पूर्जवों के जीवन के बारे में हमें बताती हैं। यहां तक कि अगर और गहराई में अध्ययन करें तो कुछ और चीज़ें भी हैं जिन्हें सांस्कृतिक धरोहर की श्रेणी में रखा जा सकता है। जैसे भाषा, विचार, रीति-रिवाज, परंमपराएं इत्यादि।
सवाल यह होता है सांस्कृतिक धरोहर से वस्तुतः क्या अभिप्राय है और इसमें क्या क्या चीज़ें शामिल हैं? संस्कृति का एक आयाम कला रचनाओं पर आधारित होता है जैसे संगीत, सिनेमा, थिएटर, किताब, और इसी प्रकार की चीज़ें। संस्कृति के दूसरे भाग में समाज में लोगों की दिनचर्या में प्रचलित व्यवहार, रीति-रिवाज, कपड़े, बात करना, गाड़ी इत्यादि शामिल हैं। संस्कृति के इस भाग पर संभवतः ज़्यादातर लोग ध्यान देते हैं और उनके कार्यक्रम इसी के ऊपर केन्द्रित होते हैं। हम सब यह देखते हैं कि संस्कृति के इस भाग को मज़बूत बनाने के लिए संस्कृति को प्रचलित करने का शब्द प्रयोग होता है और इससे अभिप्राय लोगों के व्यवहार को किसी ख़ास तरफ़ मोड़ना होता है।
हक़ीक़त यह है कि संस्कृति उस पेड़ की तरह है जिसका धड़ और शाखाएं शताब्दियों में हीं नही बल्कि सहस्त्राब्दियों में आकार लेती हैं और इससे मिलने वाले पत्ते और फल उसके भीतर होने वाले क्रिया और प्रतिक्रिया का नतीजा होते हैं। अब अगर इस पेड़ को हमेशा फलदायक रखना है तो स्वाभाविक है कि उसकी जड़ और उसके आस-पास के माहौल पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
हर जाति व राष्ट्र की पहचान के प्रतीक और वास्तविक आधार ही सांस्कृतिक धरोहर हैं जो भूतकाल से चले आ रहे हैं और इन्हें विद्वानों की नज़र में एक छोटी सी लड़ी में नहीं पिरोया जा सकता बल्कि हर चीज़ इन्हीं के अधीन होती है। सांस्कृतिक धरोहर का हर चीज़ पर प्रभाव पड़ता है। सांस्कृतिक धरोहर उस पेड़ की तरह है जिसकी छांव में हम पैदा होते हैं और फलते फूलते हैं और यह हमारी जीवन शैली पर असर डालती है। अलबत्ता हमारी जीवन शैली भी उसके विकास में प्रभावी होती है किन्तु सांस्कृतिक धरोहर को पूरी तरह मिटाया नहीं जा सकता। जिस तरह भी जीवन बिताएं यहां तक कि सांस्कृतिक धरोहर की शाखाओं को काट दें फिर भी इसकी जड़ बाक़ी रहती है और फिर से उससे शाखाएं और कलियां फूटने लगती हैं।
सांस्कृतिक धरोहर हमारे पास अपने पूर्वजों से संपर्क स्थापित करने और उनकी पहचान के लिए एकमात्र संतोषजनक मार्ग है। इसके ज़रिए आप अपने पूर्वजों की जीवन शैली, रीति-रिवाज यहां तक कि उनके विचारों का भी पता लगा सकते हैं। इसी प्रकार सांस्कृतिक धरोहर के ज़रिए किताब से ज़्यादा बेहतर ढंग से आप इतिहास को समझ सकते हैं। जैसे अमरीका में इस प्रकार सांस्कृतिक धरोहर पर भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि उसका इतिहास बहुत सीमित है। केवल इस देश के स्थानीय नागरिक किसी सीमा तक अपने थोड़े से बची सांस्कृतिक धरोहर का संदर्भ दे सकते हैं। किन्तु ईरान जैसे प्राचीन देश में शहरी और ग्रामीण जीवन की निशानियां हज़ारों साल पुरानी हैं और उनका संदर्भ देने तथा पूर्वजों के सांस्कृतिक धरोहर को पहचानने के लिए बहुत से स्रोत मौजूद हैं।
ईरान की कई हज़ार साल पुरानी सभ्यता, इस देश की जनता के लिए अमर धरोहर है। इस धरोहर में ईरानी राष्ट्र की ऐतिहासिक पहचान मौजूद है। इस धरोहर के विविधतापूर्ण प्रतीक हैं कि इनमें से हर एक किसी न किसी रूप में ईरान की प्राचीन संभ्यता के जगमगाते अतीत का पता देता है। इन्हीं प्रतीकों में से एक ईरानी कलाकारों के कौशल का नमूना हस्तकला उद्योग है।
लगभग 8 से 4 हज़ार ईसा पूर्व का युग नवपाषाण युग कहलाता है। नवपाषाण युग को कृषि के शुरु होने और पशुपालन का दौर कहा जाता है। इस युग में मौजूदा ईरान सहित दक्षिण-पश्चिमी एशिया के कुछ क्षेत्रों में इंसान आजीविका इकट्ठा करने तथा शिकार करने के चरण से कृषि और पशुपालन की ओर उन्मुख हुआ। इस युग के आविषकारों में नौका निर्माण और पहिये उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार इस दौर में इंसानों ने एक साथ मिल कर गांव के रूप में रहना शुरु किया। एक साथ रहने से इमारतों के निर्माण में विकास हुआ और खेती के लिए सिंचाई के साधन मुहैया हुए। नवपाषाण युग के ईरान में सबसे पुराने अवशेष पश्चिमी ईरान के ईलाम क्षेत्र में अलीकश और किरमानशाह के निकट गंज दर्रे व आसयाब नामक प्राचीन टीले हैं।
जो लोग इस विशाल क्षेत्र में रहते थे, उन्होंने पहली बार एक छोटे से गुट में एक स्थान पर रहना शुरु किया और इस प्रकार सबसे पहले वजूद में आने वाले गावों में से एक गांव अस्थित्व में आया। इस स्थल से प्राप्त होने वाले अवशेष पत्थर के उपकरण बनाने में मनुष्य की गतिविधियों के गवाह हैं। जैसे विभिन्न डिज़ाइन की दांतदार तलवारें।
उस समय के इंसान के लिए यह ज़रूरी था कि वह थोड़े से अनाज के दाने बोकर अधिक मात्रा में अनाज पैदा करके उनका भंडारण करे। दूसरी ओर वह गर्मी और आर्द्रता का मुक़ाबला करने तथा अनाज को बर्बाद होने से बचाना चाहता था। इसलिए उसने प्राकृतिक आकार से प्रेरणा लेकर पानी और मिट्टी से, मिट्टी के आरंभिक बर्तन बनाए।
पश्चिमी ईरान के कुर्दिस्तान प्रांत के ज़ीविए टीले से एक अवशेष बरामद हुआ है। यह अवशेष बीसवीं शताब्दी में की गयी खुदाई के नतीजे में बरामद हुआ। यह अवशेष एक टूटे हुए बर्तन है जिसका हत्था या दस्ता बाज़ की शक्ल का है। यह बर्तन कलाकारी का बहुत ही सुंदर नमूना है। यह आसमानी रंग का बर्तन चौदह सेंटीमीटर ऊंचा है और एक बड़े बर्तन का भाग था जिसे विशेष समारोह में इस्तेमाल किया जाता था।
किए गए शोध व अध्ययन तथा विभिन्न स्थानों पर की गयी खुदाई से मिलने वाले अवशेष के अनुसार, ईरान को भारत और चीन के साथ दुनिया में हस्तकला उद्योग का पालना व केन्द्र माना जाता है। एक दृष्टि से ईरान इन देशों सबसे ऊपर है और वह ईरान के हस्तकला उद्योग की विविधता है। ईरान में अब तक 152 प्रकार के हस्तकला उद्योग का पता लगाया जा चुका है और उन उद्योगों के अधीन अगर हस्तकला उद्योगों को शामिल कर लें तो इनकी संख्या 253 हो जाएगी।
ईरान में हस्तकला उद्योग का इतिहास भारत और चीन से पुराना है। इन देशों में हस्तकला उद्योग ने सांस्कृतिक धरोहर को मूल्यवान बनाने के अलावा हज़ारों वर्षों से सामाजिक एवं आर्थिक संतुलन को बनाए रखने में भी मदद की है। क्योंकि इस प्रकार के उद्योग ने नगरीय एवं ग्रामीय क्षेत्रों के बहुत से उद्योगपतियों के लिए काम और आय का स्रोत मुहैया किया और हस्तकला उद्योग को ख़ास तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के फलने फूलने में महत्वपूर्ण तत्व माना गया है।
हज़ारों साल पुराने हस्तकला उद्योग के नमूने, अपने समय की संस्कृति, कला, आस्था और रीति-रिवाज का पता देते हैं। यह अवशेष हमें बताते हैं कि अतीत में लोगों की सोच क्या थी, सृष्टि से उनका संबंध कैसा था, और उनका भौतिक जीवन किस प्रकार का था। इन चीज़ों को सजाने के लिए नहीं बनाया गया था। हस्तकला उद्योग विगत में लोगों की दिनचर्या का हिस्सा थे। मिसाल के तौर पर ईरानी बाग़ों में क़ालीन और हाथ की बुनी हुई चटाइयों पर बैठते थे। ऐसे बर्तनों में पानी पीते थे जिन पर उनकी संस्कृति व कला को दर्शाने वाले चित्र बने हुए थे। अपने हाथ के बिने हुए कपड़े पहनते थे। जो कुछ था वह कला थी जो उनके जीवन को सुंदर बनाती थी।