ईरान की सांस्कृतिक धरोहर-7
मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सिरामिक व टाइल की कला का स्रोत है क्योंकि टाइल के दो भाग होते हैं।
मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सिरामिक व टाइल की कला का स्रोत है क्योंकि टाइल के दो भाग होते हैं। पहला भाग टाइल का ढांचा होता है जो मिट्टी का होता है और दूसरा भाग टाइल का ऊपरी भाग होता है जिसके ऊपर शीशे जैसा खनिज रंग चढ़ाया जाता है। जिस टाइल पर चिकनी मिट्टी की कोट चढ़ाई जाती है उसे सिरामिक टाइल या संक्षेप में सिरामिक कहा जाता है। ग़ैर खनिज- ग़ैर कार्बन पदार्थ को भी आम ज़बान में सिरामिक कहा जाता है।
सिरामिक शब्द यूनानी भाषा के केरामोस शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ है गीली मिट्टी। सिरामिक उस कला व ज्ञान को कहते हैं जिससे ग़ैर तरल व टूटने योग्य चीज़ बनायी जाए जिसका कच्चा माल मिट्टी होती है। किन्तु संस्कृत भाषा में सिरामिक का उल्लेख ज़्यादा पुराना है जिसका अर्थ है पकी हुयी चीज़।
आज सिरामिक उन सभी उद्योग को कहा जाता है जिसमें किसी न किसी शक्ल में मूल पदार्थ सिलिकॉन होता है जिसे निर्धारित तापमान में भट्टी में पकाया जाता है। सिरामिक के ठंडा हो जाने के बाद उसकी ऊपरी सतह को चमकीली, साफ़, सुंदर, वाटर प्रूफ़, केमिकल प्रूफ़ और अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ बनाने के लिए, खनिज रंग की एक कोट के साथ पकाते हैं। सिरामिक के ऊपर जिन रंगों की कोट चढ़ाई जाती है वे प्रायः खनिज पदार्थ और सिलिकॉन से बनते हैं यह परत दिखने में शीशे की परत लगती है जो सिरामिक की ऊपरी सतह पर होती है।
आज टाइल और सिरामिक इमारत में मसाले के तौर पर सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली चीज़ों में शामिल है। टाइल का इतिहास कई हज़ार साल ईसापूर्व पुराना है। मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए कुम्हार द्वारा इस्तेमाल होने वाला पहिया, मनुष्य के हाथों सबसे पहले आविष्कार होने वाली चीज़ों में शामिल है। इसका सबसे पुराना पहिया मिस्र में मिला है। अतीत में उपासना स्थलों, मक़बरों, घरों, फ़ुटपाथ, गिरजाघरों और शहरों को सजाने के लिए सिरामिक का इस्तेमाल किया जाता था किन्तु केन्द्रीय अमरीका और मैक्सिको में एक हज़ार ईसापूर्व से लेकर सोलहवीं ईसवी शताब्दी के बीच बनी हुयी ऐसी टाइल भी बरामद हुयी है जिसे सोने और चांदी के टुकड़ों के साथ प्रतिमाओं और संगीत के उपकरणों को सजाने के लिए प्रयोग किया जाता था। मिस्री लोग उपासना स्थल की दीवारों और खंबों को सिरामिक, शीशों और मूल्यवान पत्थरों से सजाते थे।
ईरानी सिरामिक के कलाकार भी इस हस्तकला उत्पाद को सजाने के लिए इस्तेमाल करते थे। दक्षिण एशिया से उत्तरी अफ़्रीक़ा तक फैले इस्लामी जगत यहां तक कि युरोप में इस्लामी इमारतों में इन टाइलों को इस्तेमाल किया जाता था। ये कोट वाली टाइलें अपने ऊपर एक दूसरे से लिपटे हुए ब्राइट कल के विविधतापूर्ण चित्रों के साथ जब एक दूसरे के पास चिपकायी जाती थीं तो बहुत ही अनोखे चित्र को अस्तिव देती थीं।
ईरानी उद्योगपति टीन, तांबे, कोबाल्ट, मैगनेशिय़म सुरमा जैसे धातु के आक्साइड को टाइल को रंगने के लिए इस्तेमाल करते थे क्योंकि यह रंग अधिक चमकदार होते थे और टाइल को मज़बूत बनाते थे।
ईरान में सिरामिक के जो टुकड़े मिले हैं वह आठ सहस्त्राब्दी ईसापूर्व के हैं। यह टुकड़े पश्चिमी ईरान के किरमानशाह प्रांत के गंज दर्रे नामक इलाक़े और उत्तरी ईरान के बहशहर के नज़दीक कमरबंद नामक गुफा में मिले हैं। इसके इलावा पांच सहस्त्राब्दी ईसापूर्व के भी अवशेष मिले हैं जिनसे पता चलता है कि मिट्टी के बर्तनों के कारख़ानों में सिरामिक के उत्पाद भी बनाए जाते थे और उन्हें बर्तनों को सुंदर बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
दक्षिण-पश्चिमी ईरान में स्थित चुग़ाज़न्बील उपासना स्थल की दीवारों की कोट चढ़ी हुयी ईंट 13 शताब्दी ईसापूर्व की है जो आज तक मौजूद है। इसके इलावा शूश में बने सिरामिक उत्पाद और कुर्दिस्तान के ज़ीविये के सिरामिक उत्पादों पर खनिज रंग की पतली कोट चढ़ी हुयी है जो यह दर्शाती है कि ईरानी कलाकार कई सहस्त्राब्दी ईसापूर्व से खनिज रंग की कोट चढ़ाने और सिरामिक के उत्पाद बनाना जानते हैं।
हख़ामनेशी शासन काल की जो 550 से 331 ईसापूर्व शताब्दी का काल है, शूश और तख़्त जमशीद इलाक़ों से बहुत सी खनिज रंग की कोट चढ़ी टाइलें बरामद हुयी हैं। ये कोट नीले, सफ़ेद, पीले और हरे रंग की हैं। हख़ामनेशी काल के बर्तनों में ज़्यादा तर बर्तन बिना चित्र के हैं किन्तु इनमें ज़्यादातर बर्तनों पर दुधिया रंग की कोट चढ़ी है। इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी है कि पुरातनविदों का मानना है कि हख़ामनेशी काल में मिट्टी के बर्तन और सिरामिक के उत्पाद की कला में प्रगति इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि इस शासन काल के राजाओं ने मिट्टी के बर्तन के बजाए सोने और चांदी के बर्तनों के निर्माण पर ज़्यादा ध्यान दिया।
तीसरी ईसवी शताब्दी अश्कानी शासन श्रंख्ला का दौर है। इस दौर को ईरान में सिरामिक उद्योग के पतन का दौर माना जाता है। इस दौर में मिट्टी के बर्तन पूरी तरह नज़रअंदाज़ किए गए और बहुत कम प्रचलित थे। किन्तु इसके बावजूद इस दौर के जो नमूने मिले हैं, उनसे पता चलता है कि मिट्टी के बर्तनों पर खनिज रंग की कोट चढ़ाई जाती थी। इस दौर में सिरामिक उद्योग के सबसे महत्वपूर्ण नमूने मिट्टी के ताबूत हैं जिन पर हरे और नीले रंग की कोट चढ़ी हुयी है।
ईरान में 227 से 561 ईसवी के बीच सासानी काल में सिरामिक उद्योग में अश्कानी शासन काल की तुलना में बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं आया। सासानी काल में भी सिरामिक के उत्पादों पर नीले और हरे रंग की कोट चढ़ायी जाती थी। लेकिन इस दौर में सिरामिक पर चढ़ने वाली कोट अधिक आकर्षक दिखाई देती है। इस दौर में सिरामिक के उत्पाद को सुंदर बनाने की एक कला यह थी कि मिट्टी के बर्तन पर गीली मिट्टी के छोटे टुकड़े चिपका कर उभरे हुए चित्र बनाए जाते थे।
सातवीं ईसवी शताब्दी में सासानी शासन श्रंख्ला का अंत हो गया और ईरान में एक नई संस्कृति व सभ्यता वजूद में आयी जो इस्लामी ईरानी सभ्यता के नाम से मशहूर हुयी।
इस चरण के बाद लोगों की ज़िन्दगी के सभी भाग में, जिसमें कला और हस्तकला उद्योग शामिल हैं, बहुत गहरे बदलाव आए। इस्लामी संस्कृति व सभ्यता का काल अब तक जारी है जिसके दौरान सिरामिक उद्योग ने बहुत से उतार चढ़ाव देखे हैं।
अगर इस्लामी काल में ईरान में कला के उज्जवल दौर की बात की जाए तो यह दौर छठी और सातवीं हिजरी शताब्दी बराबर बारहवीं और तेरहवीं ईसवी शताब्दी का दौर है। इस दौर में सिरामिक उद्योग बहुत फला फूला और इस दौर में सुनहरे और नीले रंग के बर्तन बनाए गए। इन बर्तनों पर एक रंग की कोट चढ़ाई जाती थी। ये रंग नीले, हरे, आसमानी और फ़िरोज़ी रंग के होते थे जो ईरान की प्राचीन सिरामिक कला का क्रम है। इन बर्तनों की डिज़ाइन और रचनात्मक चित्र इन्हें पूर्ववर्तियों की कलाकृतियों से बेहतर साबित करते हैं।
ईरान में कला के सबसे ज़्यादा फलने फूलने का एक और महत्वपूर्ण दौर सफ़वी काल है। इस दौर में सिरामिक उद्योग ने नई ऊंचाई तय की। इस दौर में नीले और सफ़ेद रंग के मिट्टी के बर्तन उत्पादित होते थे और दूसरे देशों में निर्यात होते थे। गम्बरून नामक सुनहरे रंग के मिट्टी के बर्तन इसी दौर में प्रचलित थे। सुनहरे रंग के मिट्टी के बर्तनों को यूरोपीय देश गम्बरून कहते थे। इसका कारण यह था कि ये बर्तन सफ़वी शासन काल में नेदरलैंड के निवासियों के हाथों मौजूदा बंदर अब्बास से जिसे उस समय गम्बरून बंदरगाह कहा जाता था, यूरोप निर्यात किए जाते थे। इस्फ़हान में शैख़ लुत्फ़ुल्लाह और इमाम मस्जिद की दीवारों पर सात रंग की टाइलें भी सफ़वी शासन काल में सिरामिक का एक और उत्पाद है जो विश्व प्रसिद्ध है। शायद ही कोई कलाकार हो जिसने सात रंग वाली टाइल का नाम न सुना हो।
आज दुनिया में खाने के बर्तन, चाय के बर्तन, टवायलेट के फ़्लश, बेसिन, बिजली के कुछ उपकरणों, इमारत के भीतरी और बाहरी रूप में, और उद्योगों में भी न जलने वाले पदार्थ के रूप में सिरामिक का इस्तेमाल हो रहा है। दुनिया के एक तिहाई उद्योग सिरामिक उद्योग हैं।
सिरामिक के उत्पादों में सख़्त मौसम, तापमान में बदलाव, ज़न्ग न लगने, बैक्टेरिया और दीमक जैसे विनाशकारी तत्वों के मुक़ाबले की क्षमता, वे विशेषताएं हैं जिनसे सिरामिक उत्पाद बहुत दिनों तक इस्तेमाल होते हैं। अगर ऐसा न होता तो आज दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की जीवन शैली और उन सभ्यताओं के बारे में पता न चलता जो इतिहासपूर्व में मौजूद थीं।
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