संसदीय और विशेषज्ञ परिषद के चुनाव
26 फ़रवरी को ईरान में संसद के दसवें और वरिष्ठ नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद के पांचवें दौर के चुनाव होने वाले हैं।
26 फ़रवरी को ईरान में संसद के दसवें और वरिष्ठ नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद के पांचवें दौर के चुनाव होने वाले हैं।
ईरान में संसद और संसदीय व्यवस्था को क्या महत्व प्राप्त है और उसकी भूमिका की परिभाषा संविधान में किस प्रकार की गयी है?
ईरानी सांसदों का चयन प्रत्यक्षरूप से जनता करती है। ईरानी संविधान की धारा नंबर 76 के अनुसार संसद को देश के समस्त मामलों की जांच- पड़ताल का अधिकार प्राप्त है। ईरानी संविधान में सांसदों को जो अधिकार दिया गया है वह संसद के स्थान व महत्व का सूचक है। सांसदों को ईरानी संविधान में दिया गया एक अधिकार यह है कि वे संसद में हर प्रकार का बयान देने में पूरी तरह स्वतंत्र व आज़ाद हैं और संसद में क़ानून के परिप्रेक्ष्य में जो बयान उन्होंने दिया है उसके कारण उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती।
ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी में जिन चीज़ों का जानना आवश्यक है वह एक सांसद के दायित्व हैं। ईरान की संसद में सांसदों को जो अधिकार दिये गये हैं उसके परिप्रेक्ष्य में उन पर भारी व महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी होती है।
सांसद और कुल मिलाकर मजलिसे शुराये इस्लामी के दो महत्वपूर्ण दायित्व हैं एक कानून बनाना और दूसरे उन पर निगरानी करना।
ईरानी संविधान की 71वीं धारा के अनुसार ईरानी संसद मजलिसे शुराये इस्लामी को क़ानून बनाने का अधिकार है। संसद, सार्वजनिक मामलों में संविधान के परिप्रेक्ष्य में रहकर क़ानून बना सकती है। इस आधार पर संसद में जिस सुझाव या प्रस्ताव को पेश किया जाता है उसे विधेयक कहते हैं और सरकार की ओर से क़ानूनी चरणों को पूरा करके बाद उसे कानूनी रूप धारण करने के लिए संसद में पेश किया जाता है। इसी तरह एक विधेयक को संसद या प्रांतों की उच्च परिषद में पेश करने वाले सांसदों की संख्या कम से कम 15 होनी चाहिये।
बजट पारित करना, समझौते पारित करना, अंतरराष्ट्रीय समझौतों की पुष्टि कर देना, सीमावर्ती चिन्हों को परिवर्तित करना या युद्ध जैसी आपात स्थिति में सीमितताओं को लागू कर देना संसद के कार्यक्षेत्र में है। ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी पर क़ानून बनाने के अलावा उस पर निगरानी की भी ज़िम्मेदारी है।
ईरानी संविधान के अनुसार मंत्रियों का चयन राष्ट्रपति करता है और उसके बाद विश्वासमत प्राप्त करने के लिए उसे संसद में पेश किया जाता है और संसद को उनके नामों पर सहमति जताने या न जताने का पूरा अधिकार होता है।
संविधान की धारा 76 के अनुसार संसद को देश के सभी मामलों की जांच -पड़ताल का अधिकार प्राप्त है। इस आधार पर जांच -पड़ताल का विषय आम है और इसमें देश के मंत्रालय सहित समस्त भाग शामिल हैं। देश के संचालन में ईरानी संविधान का आधार आम जनमत की राय है। संविधान के अनुसार ईरान की इस्लामी व्यवस्था में संसद को बहुत अधिकार हैं। वास्तव में कहा जा सकता है कि जिन सांसदों का चयन प्रत्यक्षरूप से जनता करती है उनके माध्यम से संसद में विधेयक पेश किये जाते हैं, और वे क़ानून के रूप में पारित होते हैं। दूसरे शब्दों में संसद बहुत से निर्णयों ,क़ानूनों और कार्यक्रमों का आधार व केन्द्र होती है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान के अनुसार संसद/ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रचारिक, सैनिक, नैतिक और न्यायिक सहित समाज की विभिन्न आवश्यकताओं व क्षेत्रों में कानून बनाने का केन्द्र है जिसे विधि पालिका भी कहा जाता है। संसद वास्तव में जनता की राय का निचोड़ है और संसद में चयन करने वालों, चयन होने वालों की शर्तों और चुनाव के तरीक़ों की व्याख्या संविधान में की गयी है। ईरानी संसद या विधि पालिका का संविधान में इतना अधिक महत्व है कि संविधान का एक तिहाई भाग उसी से विशेष है और इन अधिकारों ने संसद को विशेष व महत्वपर्ण स्थान प्रदान कर दिया है। इस आधार पर ईरान की इस्लामी व्यवस्था में संसद का स्थान सर्वोपरि है और इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान की धारा 59 के अनुसार इस्लामी गणतंत्र ईरान में संसद फैसला लेने का महत्वपूर्ण केन्द्र है।
पिछले वर्षों में इस्लामी गणतंत्र ईरान में नौ बार संसद का गठन सही समय पर हुआ है और देश में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका के दृष्टिगत कभी ऐसा नहीं हुआ है कि देश, संसद के बिना रहा हो। संविधान की धारा 63 के अनुसार सांसदों का कार्यकाल चार वर्षों के लिए होता है और सांसदों का चुनाव पहले वाले सांसदों की कार्यावधि समाप्त होने से पहले होना चाहिये ताकि देश किसी भी समय संसद के बिना न रहे।
ईरानी संसद में इस समय सांसदों की संख्या 290 है। वर्ष 1998 में जनमत संग्रह के बाद से ईरान की राजनीतिक और भौगोलिक आदि परिस्थिति के दृष्टिगत हर दस वर्ष के बाद अधिक से अधिक 20 सांसद बढ़ाये जा सकते हैं। ज़रतुश्ती, यहूदी और ईसाई सहित सभी अल्पसंख्यक अपना एक- एक प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजते हैं।
ईरान की संसद संविधान के परिप्रेक्ष्य में आम मामलों में कानून बना सकती है। संविधान की धारा 72 के अनुसार ईरानी संसद ऐसा कानून नहीं बना सकती जो संविधान या आधिकारिक धर्म के विरुद्ध हो। इस बात पर नज़र रखना निरीक्षक परिषद की ज़िम्मेदारी है।
संविधान की धारा 122 और 137 के आधार पर मंत्री और राष्ट्रपति संसद के समक्ष उत्तरदायी हैं। इस आधार पर सांसद उनसे सवाल कर और सफाई की मांग सकते हैं। सांसदों को इस बात का अधिकार है कि वे जब भी ज़रूरी समझें मंत्रिमंडल या किसी एक मंत्री से स्पष्टीकरण मांग कर सकते हैं और इसी तरह जब वे आवश्यक समझें उसके विरुद्ध महाभियोग की घोषणा कर सकते हैं। अगर संसद में किसी मंत्री या मंत्रिमंडल को विश्वासमत प्राप्त न हो तो मंत्रिमंडल या मंत्री को त्यागपत्र देना पड़ेगा।
इसी तरह अगर राष्ट्रपति कार्यपालिका के प्रबंधन में अपने दायित्वों का निर्वाह न करे तो कम से कम एक तिहाई सांसद भी उससे स्पष्टीकरण मांग सकते हैं और संसद में यह बात पेश किये जाने के बाद राष्ट्रपति को चाहिये कि वह एक महीने के अंदर संसद में जाकर उन मामलों के बारे में सफाई दे जिनके बारे में उससे स्पष्टीकरण मांगा गया है। राष्ट्रपति के स्पष्टीकरण के बाद अगर दो तिहाई से अधिक सांसदों ने राष्ट्रपति पर ग़ैर ज़िम्मेदारी से काम लेने के पक्ष में मत दिया तो संविधान के अनुसार इस बात की सूचना ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता को दी जायेगी।
इसी प्रकार किसी को संसद की कार्यवाही या विधि पालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की कार्य शैली पर आपत्ति हो तो वह अपनी शिकायत को लिखित रूप में संसद में पेश कर सकता है। संसद की ज़िम्मेदारी है कि वह इन शिकायतों पर भी ध्यान दे और उनका पर्याप्त उत्तर दे।
ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी में जो भी चीज़ें पारित होती हैं उन्हें निरीक्षक परिषद को भेजा जाता है। निरीक्षक परीषद का दायित्व है कि जिस दिन उसके पास पारित होने वाला प्रस्ताव पहुंचता है उस दिन से लेकर अधिक से अधिक 10 दिन के अंदर इस बात की समीक्षा करे कि वह इस्लाम और ईरानी संविधान के परिप्रेक्ष्य से बाहर तो नहीं है और अगर निरीक्षक परिषद ने देखा कि पारित होने वाला प्रस्ताव इस्लाम और संविधान के विरुद्ध है तो वह पुनरविचार के लिए दोबारा संसद के पास वापस भेज देगी और निरीक्षक परिषद द्वारा ऐसा न करने की स्थिति में पारित होने वाला प्रस्ताव क़ानून का रूप धारण कर लेगा और उस पर अमल किया जायेगा। संविधान के अनुसार निरीक्षक परिषद धर्मशास्त्रियों और विधि विशेषज्ञों से गठित होती है और उसका उद्देश्य इस्लामी आदेशों की रक्षा और संसद द्वारा पारित प्रस्तावों में पूर्णरूप से संविधान का ध्यान रखना है। निरीक्षक परीषद में 6 एसे न्यायीप्रेमी धर्मशास्त्री होते हैं जो अपने समय की आवश्यकताओं से भली-भांति अवगत होते हैं और उनका चयन वरिष्ठ नेता करते हैं। इसी प्रकार निरीक्षक परिषद में 6 विधि विशेषज्ञ होते हैं जो न्याय पालिका के प्रमुख की ओर से पेश किये जाते हैं और संसद की राय से उनका चयन होता है। कुल मिलाकर निरीक्षक परिषद के 12 सदस्य होते हैं।
संसद में जो प्रस्ताव पारित होते हैं वे इस्लाम और संविधान के अनुसार हैं या नहीं इसके पता लगाने की ज़िम्मेदारी निरीक्षक परिषद के अधिकांश सदस्यों की राय पर निर्भर है। निरीक्षक परिषद पर इसी प्रकार वरिष्ठ नेतृत्व का चयन करने वाली परिषद के चुनाव, राष्ट्रपति के चुनाव और संसद के लिए होने वाले चुनाव की निगरानी की ज़िम्मेदारी होती है। उल्लेखनीय है कि ईरान की संसद मजलिसे शुराये इस्लामी का पहला दौर जून वर्ष 1980 को स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के आदेश से आरंभ हुआ था। ईरान की संसद वास्तव में ईरानी राष्ट्र की इच्छाओं का प्रतीक है और संविधान की धारा 84 के अनुसार जिन सांसदों का चयन किया जाता है वे समस्त ईरानी राष्ट्र के प्रतिनिधि हैं और जिन सांसदों से मिलकर संसद बनती है वे सबके सब ईरानी राष्ट्र के समक्ष ज़िम्मेदार हैं।