Oct २६, २०१६ १५:२४ Asia/Kolkata

मंगलवार 28 सितम्बर को ज़ायोनी शासन के पूर्व राष्ट्रपति शिमोन पेरिज़ का 93 साल की आयु में निधन हुआ।

मरने से पहले वे कई दिन तक कोमा में रहे। इस समय बेलारूस के भाग विश्नवा नामक शहर में जो उस समय पोलैंड का भाग था, पेरिज़ का जन्म हुआ था लेकिन 1934 में वे अपने परिवार के साथ फ़िलिस्तीन की ओर पलायन कर गए। शिमोन पेरिज़ 25 साल के थे कि अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में इस्राईल नाम अवैध शासन की स्थापना की घोषणा की गई। पेरिज़ के जीवन पर एक दृष्टि डालने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ज़ायोनी शासन के गठन, फ़िलिस्तीनियों को उनकी मातृभूमि से ज़बरदस्ती बाहर निकालने, यहूदियों को फ़िलिस्तीन में लाकर बसाने, अवैध ज़ायोनी कॉलोनियों के निर्माण, वर्ष 1993 में ओसलो शांति समझौते, वर्ष 1996 में दक्षिणी लेबनान में आक्रोश के गुच्छे या (Grapes of Wrath) नामक अभियान, दक्षिणी लेबनान में ही क़ाना शरणार्थी शिविर पर हमले और फ़िलिस्तीन के पहले और दूसरे इंतेफ़ाज़ा आंदोलन के शुरू होने में शिमोन पेरिज़ ने सीधी भूमिका निभाई थी।

पेरिज़ वर्ष 1947 में अपने राजनैतिक आदर्श डेविड बिन गोरियन के नेतृत्व में काम करने वाले हगाना नामक अर्ध सैनिक आतंकवादी गुट में शामिल हो गए और यही गुट आगे चल कर इस्राईल की सेना का मुख्य आधार बना और इसने फ़िलिस्तीनियों को उनकी मातृभूमि से ज़बरदस्ती बाहर निकालने और वहां यहूदी पलायनकर्ताओं को लाकर बसाने में अहम भूमिका निभाई। शिमोन पेरिज़, हगाना के लिए हथियार ख़रीदने का काम किया करते थे। मई 1948 में इस्राईल की स्थापना के बाद, इस अवैध शासन के पहले प्रधानमंत्री के रूप में बिन गोरियन ने 24 वर्षीय पेरिज़ को नौसेना अध्यक्ष के पद पर तैनात किया। 1952 में वे इस्राईल के युद्ध मंत्रालय में उप महानिदेशक और फिर 1953 से 1959 तक महानिदेशक के पद पर काम करते रहे। 1959 से 1965 तक वे इस्राईल के युद्ध मंत्री का सहायक रहे और 1974 में इस्हाक़ राबीन के मंत्रीमंडल में पेरिज़ को युद्ध मंत्री बनाया गया। वे तीन साल तक इस पद पर बाक़ी रहे। 1995 में एक बार फिर वे एक साल के लिए इस्राईल के युद्ध मंत्री बने।

अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में शिमोन पेरिज़ का पहला राजनैतिक पद इस्राईल की संसद नेसेट की सदस्यता था। वे 1959 में सांसद बने और वर्ष 2007 तक, जब वे इस्राईल के राष्ट्रपति बने, हमेशा नेसेट के सदस्य रहे। पेरिज़ इस्राईल में सत्ता के उच्च स्तर तक पहुंचे। राष्ट्रपति बनने से पहले वे ज़ायोनी शासन के पांच मंत्रिमंडलों में शामिल रहे और दो बार प्रधानमंत्री बने। शिमोन पेरिज़ वर्ष 2007 में ज़ायोनी शासन के नवें राष्ट्रपति बने और सात साल तक यह पद उनके पास रहा। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पेरिज़ ने कुल मिला कर पंद्रह साल तक मंत्री के रूप में विभिन्न मंत्रालयों और सात साल ज़ायोनी शासन के राष्ट्रपति के रूप में काम किया। इसी तरह उन्होंने इस्राईल के सैन्य परमाणु कार्यक्रम के विकास में भी प्रभावी भूमिका निभाई और ज़ायोनी शासन के परमाणु कार्यक्रम के संस्थापक के नाम से प्रख्यात हुए। शिमोन पेरिज़ पहले व्यक्ति हैं जो इस्राईल के प्रधानमंत्री भी बने और राष्ट्रपति भी।

पेरिज़ अपने राजनैतिक जीवन में इस्राईल के चार दलों के सदस्य रहे। आरंभ में वे मपाई पार्टी के सदस्य थे लेकिन 1965 में वे बिन गोरियन के साथ इस दल से अलग हो गए और उन्होंने राफ़ी पार्टी की स्थापना की। दो ही साल बाद 1967 में उन्होंने मपाई और राफ़ी पार्टियों के गठजोड़ का मार्ग प्रशस्त किया और लेबर पार्टी का गठन किया। 1977 से 1992 तक वे लेबर पार्टी के महासचिव रहे। नेसेट के सत्रहवें चुनाव से पहले वे कादीमा पार्टी से जुड़ गए। वास्तव में उन्होंने एरियल शेरोन, एहुद ओलमर्ट और ज़िपी लिवनी जैसे लोगों के साथ मिल कर कादीमा पार्टी का गठन किया था।

इस्राईल के सभी अपराधों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शिमोन पेरिज़ शामिल रहे। अर्ध सैनिक आतंकी संगठन हागाना के मुख्य सदस्य के रूप में उन्होंने अतिग्रहित फ़िलिस्तीन का भौगोलिक ढांचा बदलने के लिए फ़िलिस्तीनियों को इस क्षेत्र से भगाने और पलायनकर्ता यहूदियों को बसाने तथा यहूदी कालोनियों के निर्माण में सीधी भूमिका निभाई। उनकी निर्दयता का चरम बिंदु 1996 के अप्रैल महीने में देखने को मिला जब उन्होंने ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री के रूप में लेबनान के प्रतिरोध को समाप्त करने के उद्देश्य से इस देश पर हमले का आदेश दिया। इस युद्ध में इस्राईल के सैनिकों ने पेरिज़ के आदेश पर दक्षिणी लेबनान के क़ाना शरणार्थी शिविर पर हमला कर दिया जिसमें 250 से अधिक लोग शहीद व घायल हुए जिनमें बड़ी संख्या बच्चों व महिलाओं की थी। तभी से शिमोन पेरिज़ को क़ाना के जल्लाद के नाम पहचाना जाने लगा।

शिमोन पेरिज़ के राष्ट्रपति रहते हुए ज़ायोनी शासन ने दो युद्ध किए। पहला वर्ष 2008 में ग़ज़्ज़ा के विरुद्ध और दूसरा 2012 में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध के ख़िलाफ़। इन दोनों युद्धों में हज़ारों लोग हताहत और घायल हुए। वर्ष 2010 में ग़ज़्ज़ा पट्टी के लोगों के लिए मानवता प्रेमी सहायताएं लेकर जाने वाले तुर्की के समुद्री जहाज़ पर हमला और दसियों सहायताकर्मियों की हत्या भी इस्राईल में शिमोन पेरिज़ के राष्ट्रपति काल में ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए अपराधों में से एक है। इसके अलावा पेरिज़ ने इस्राईल के कुछ अपराधों में अप्रत्यक्ष भूमिका भी अदा की। वे वर्ष 1982 में लेबनान पर इस्राईल के सैन्य अतिक्रमण के मुख्य समर्थक थे जिसमें बीस हज़ार से अधिक आम नागरिक मारे गए। इसी तरह वर्ष 1987 और 2000 में पहले और दूसरे इंतेफ़ाज़ा आंदोलन को कड़ाई से कुचलने के मुख्य समर्थकों में से एक पेरिज़ थे। पहले इंतेफ़ाज़ा आंदोलन में लगभग तीन हज़ार फ़िलिस्तीनी शहीद हुए और हज़ारों अन्य घायल हुए जबकि दूसरे इंतेफ़ाज़ा आंदोलन में भी तीन हज़ार से अधिक लोग हताहत और कई हज़ार घायल हुए। शिमोन पेरिज़, वर्ष 2006 से जारी ग़ज़्ज़ा के परिवेष्टन के भी मुख्य समर्थकों में से थे और यह परिवेष्टन उनके राष्ट्रपति काल के सात बरसों में निरंतर जारी रहा और इस समय भी जारी है।

शिमोन पेरिज़ द्वारा किए गए असंख्य अपराधों के बावजूद संसार के कुछ राजनेता और संचार माध्यम उन्हें शांति प्रेमी के रूप में याद करते हैं। इसका मुख्य कारण वर्ष 1993 में ओसलो में होने वाले शांति सम्मेलन में उनका भाग लेना था। इस सम्मेलन से, जिसका उद्देश्य अरब देशों द्वारा इस्राईल को औपचारिक रूप से मान्यता देना था, फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध ज़ायोनियों के अपराध में कोई कमी नहीं आई बल्कि इस्राईल के साथ अरब देशों के औपचारिक व अनौपचारिक कूटनैतिक संबंधों की बहाली का मार्ग प्रशस्त हो गया। वस्तुतः यह सम्मेलन मध्यपूर्व में शांति स्थापना के लिए आयोजित हुआ ही नहीं था बल्कि इसका उद्देश्य ज़ायोनी शासन के हितों को पूरा करना था। ओसलो सम्मेलन में तीन लोगों ने मुख्य भूमिका निभाई थी, इस्राईल के तत्कालीन प्रधानमंत्री इस्हाक़ राबीन, तत्कालीन विदेश मंत्री शिमोन पेरिज़ और पीएलओ के प्रमुख यासिर अरफ़ात। इस सम्मेलन में इन तीनों की भूमिका के दृष्टिगत ही उन्हें शांति के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बहरहाल अब ओसलो के शांति समझौते के तीनों संस्थापकों में से कोई भी जीवित नहीं है।

शिमोन पेरिज़ की मौत के बाद एक विषय जिसने मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया, कुछ अरब नेताओं विशेष कर फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास की प्रतिक्रिया थी। उन्होंने कहा कि पेरिज़ केवल इस्राईल के आध्यात्मिक पिता नहीं थे बल्कि वे फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के भी नेता थे। महमूद अब्बास ने पेरिज़ के अंतिम संस्कार में भी भाग लिया। यह ऐसी स्थिति में है कि पूर्व ज़ायोनी राष्ट्रपति की मौत पर ब्रिटेन के प्रख्यात पत्रकार राबर्ट फ़िस्क ने कहा कि शिमोन पेरिज़ का नाम मुझे दक्षिणी लेबनान के क़ाना गांव में ज़ायोनियों के अपराध की याद दिलाता है। उन्होंने समाचारपत्र इंडिपेंडेंट में लिखा कि यद्यपि पश्चिमी संचार माध्यम पेरिज़ को एक शांति प्रेमी व्यक्ति के रूप में याद करते हैं लेकिन मुझे उनके नाम से अपराध और रक्तपात की याद आती है। मध्यपूर्व के राजनैतिक मामलों के विशेषज्ञ और प्रख्यात टीकाकार राबर्ट फ़िस्क ने लिखा है कि पश्चिमी मीडिया के प्रचार के विपरीत शिमोन पेरिज़ शांति प्रेमी नहीं थे। उनका कहना है कि पेरिज़ की मौत की ख़बर सुन कर मुझे ख़ून, आग और हथियारों की याद आ गई। मैंने उनके कामों के परिणामों को निकट से देखा था, टुकड़े-टुकड़े हो चुके बच्चों को देखा था।

 

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