Oct ३०, २०१६ १५:११ Asia/Kolkata

सऊदी अरब ने पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और सीरिया में तकफ़ीरी आतंकी संगठन बनाने में प्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई।

सभी तकफ़ीरी आतंकी संगठनों की जड़े वहाबी विचारधारा में फैली हुई हैं जो सऊदी अरब की सत्ताधारी विचारधारा है। आले सऊद ने विशुद्ध इस्लाम को कमज़ोर करने के लिए जो मोक्षदाता धर्म है तथा अत्याचारी शासनों के लिए बड़ी चुनौती बन जाता है, मुस्लिम देशों में तकफ़ीरी और वहाबी विचारधारा का प्रचार शुरू कर दिया। इसी रणनीति के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, इराक और सीरिया में अलक़ायदा, तालेबान और दाइश जैसे संगठन बनाए गए और कई एशियाई व अफ़्रीक़ी देशों में अलग अलग नामों से यह संगठन सक्रिय हो गए। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान तथा अलक़ायदा का गठन कैसे हुआ इस बारे में हम पिछले कार्यक्रम में बात कर चुके हैं। तालेबान और अलक़ायदा की तरह  ही दाइश का गठन इराक़ में अमरीका और उसके यूरोपीय घटकों से सऊदी अरब के स्वार्थों के समन्वित हो जाने का नतीजा है। वर्ष 2003 में अमरीका के हमले से पहले तक इराक़ गंभीर सांस्कृतिक, जातीय, आर्थिक व राजनैतिक खाई के भहाने पर खडा था। सद्दाम की अत्याचारी सरकार ने अपनी दमनकारी कार्यवाहियों से इस खाई पर पर्दा डाल रखा था। इराक़ पर अमरीका का हमला हुआ तो यह देश बिखराव की स्थिति में पहुंच गया तथा अमरीकी हमले ने इस बिखराव का विकट संकट का रूप दे दिया।

इराक़ में शीया समुदाय बहुसंख्यक है। जनसंख्या की दृष्टि से शीयों के बाद सुन्नी समुदाय और कुर्द जाति के लोगों का नंबर आता है। तुर्कमन और ईज़दी जाति के लोग भी इराक़ में बसते हैं। इराक़ को स्वाधीनता मिलने के समय से ही शीया समुदाय को हाशिए पर रखा गया तथा सत्ता सुन्नी समुदाय के हाथ में रही। सद्दाम शासन के दौरान शीया समुदाय के वरिष्ठ धर्मगुरुओं को शहीद किया गया और जेलों में डाल दिया गया। अमरीका ने वर्ष 2003 में इराक़ पर हमला तो कर दिया लेकिन उसका वह लक्ष्य पूरा नहीं हो सका जिसके लिए यह साज़िश रची गई थी। इराक़ में चुनाव कराए गए और इन चुनावों के नतीजे में जो सरकारें बनीं वह सऊदी अरब की पसंद की नहीं थीं। इराक़ में बनने वाले लोकतांत्रिक सरकारों के इस्लामी गणतंत्र ईरान से अच्छे संबंध रहे जबकि आले सऊद सरकार इराक़ में अपनी पैठ नहीं बना पायी। यह स्थिति देखकर सऊदी अरब ने इराक़ को अस्थिर करने और वहां अशांति फैलाने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी। इसी क्रम में वहाबी तकफ़ीरी विचारधारा रखने वाले संगठन दाइश का गठन हुआ जो शुरू में अलग नाम से गतिविधियां कर रहा था।

वर्ष 2003 में अमरीकी हमले के बाद अबू मुसअब ज़रक़ावी के नेतृत्व में तकफ़ीरी आतंकी संगठन ने अपनी गतिविधियां शुरू कीं और अलक़ायदा के अनेक तत्व इस संगठन से जुड़ गए। ज़रक़ावी जार्डनियन मूल का चरमपंथी था। ज़रक़ावी ने इराक़ में तौहीद व जेहाद नाम का संगठन बनाया तथा ओसामा बिन लादेन की बैअत कर ली। ज़रक़ावी ने और भी संगठन बनाए तथा कुछ क़बीलों को अपने साथ मिला लिया हलफ़ुल मुतैयबीन या पाकीज़ा लोगों की संधि नाम का गठबंधन तैयार कर लिया। वर्ष 2006 में इराक़ के दियाला क्षेत्र में ज़रक़ावी मारा गया तो अबू उमर बग़दादी ने उसका स्थान संभाल लिया। वर्ष 2010 में अबू उमर बग़दादी को इराक़ी सेना ने मार गिराया जिसके बाद अबू बक्र बग़दादी ने आतंकी संगठन का नेतृत्व शुरू कर दिया।

वर्ष 2011 में अमरीका तथा कुछ यूरोपीय देशों ने अपने क्षेत्रीय घटकों, तुर्की, सऊदी अरब और क़तर से मिलकर सीरिया के ख़िलाफ़ साज़िश रखी तो अलक़ायदा की एक विंग अन्नुसरह फ़्रंट ने अबू मुहम्मद जौलानी के नेतृत्व में इस देश में गतिविधियां शुरू कर दीं। अबू बक्र बग़दादी ने जब यह देखा कि अन्नुसरह फ़्रंट के विचार उसके विचारों से तालमेल रखते हैं तो उसने एक आडियो संदेश जारी करके अन्नुसरह को दाइश का उप संगठन घोषित कर दिया। वर्ष 2013 में बग़दादी के संगठन ने अपना नाम दाइश इस्लामिक स्टेट इन इराक़ एंड सीरिया रख लिया ताकि दोनों देशों में गतिविधियां कर सके। बग़दादी का मानना था कि अन्नुसरह फ्रंट को दाइश के नेतृत्व में काम करना चाहिए लेकिन अन्नुसरह फ़्रंट के लड़ाकों ने इसे स्वीकार नहीं किया। हालांकि इससे पहले जौलानी इराक़ में अबू बक्र बग़दादी के साथ गतिविधियां कर चुका था। यहीं से दाइश और अन्नुसरह फ़्रंट की लड़ाई शुरू हो गई तथा बश्शार असद सरकार के विरुद्ध लड़ने के साथ ही यह संगठन आपस में भी भिड़ गए। जब दोनों आतंकी संगठनों की आतंकी लड़ाई बहुत बढ़ गई तो अलक़ायदा सरग़ना एमन अज़्ज़वाहेरी ने विवाद ख़त्म करवाने के लिए घोषणा की कि जौलानी का फ़ैसला सही है और दाइश को इराक़ तथा सीरिया दोनों देशों में सक्रिय होने के बजाए केवल इराक़ में सक्रिय रहना चाहिए और सीरिया में अन्नुसरह को गतिविधियां अंजाम देना चाहिए। ज़वाहेरी के इस घोषणा का अबू बक्र बग़दादी ने विरोध किया। इस तरह दोनों संगठनो की लड़ाई तेज़ हो गई और दोनों ओर से बहुत से आतंकी मारे गए। गंभीर मतभेदों के बावजूद दाइश और अन्नुसरह फ़्रंट को सऊदी अरब, क़तर और तुर्की की सरपरस्ती हासिल रही।

जिबहतुन्नुसरह या अन्नुसरह फ़्रंट जिसने अब अपना नाम बदलकर जिबहत फ़त्हिश्शाम रख लिया है अलावा दाइश को सीरिया में दो बड़े तकफ़ीरी आतंकी गुटों में  माना जाता है। सीरिया में पश्चिमी देशों और उनके क्षेत्रीय घटकों ने जो संकट पैदा किया उसके नतीजे में यह देश तकफ़ीरी आतंकी संगठनों का ठिकाना बन गया है। दाइश और अन्नुसरह फ़्रंट के अलावा जैशुल इस्लाम संगठन भी बड़े पैमाने पर सक्रिय आतंकी संगठन है जिसे सऊदी अरब का समर्थन प्राप्त है। इस संगठन ने सितम्बर 2013 में ज़हरान अल्लूश के नेतृत्व में अपनी गतिविधियां शुरू कीं। ज़हरान अल्लूश के पिता बड़े वहाबी मुफ़्तियों में गिने जाते थे। जैशुल इस्लाम में छोटे छोटे 50 वहाबी विचारधारा वाले आतंकी संगठन शामिल हैं। जैशुल इस्लाम के आतंकी दमिश्क़ तथा आस पास के क्षेत्रों में गतिविधियां करते हैं। जैशुल इस्लाम को सीरिया में सऊदी अरब की सेना के रूप में देखा जाता है। सऊदी अरब ने छोटै छोटे आतंकी संगठनों के बीच गहरे मतभेद हो जाने और आपसी लड़ाई शुरू हो जाने के बाद जैशुल इस्लाम नाम का संगठन बनाया और इसमें सारे संगठनों को शामिल कर दिया। इस संगठन में दसियों हज़ार आतंकी शामिल हैं। दिसम्बर 2015 में एक पूर्व नियोजित और सटीक हवाई हमले में ज़हरान अल्लूश अपने कई साथियों के साथ मारा गया जिसके बाद जैशुल इस्लाम को बहुत गहरा आघात लगा और यह संगठन बहुत कमज़ोर हो गय। सीरियन इस्लामिक फ़्रंट नाम का संगठन भी एक बड़ा आतंकी संगठन है। इस संगठन ने दिसम्बर 2012 में 11 आतंकी संगठनों के गठबंधन के रूप में अपना काम शुरू किया। इस संगठन का मूल सरग़ना हस्सान अबूद था जिसने इराक़ पर अमरीका का क़ब्ज़ा होने के बाद इस देश में जाकर आतंकी संगठनों के साथ सहयोग किया। इराक़ से लौटने के बाद सीरियाई सरकार ने उसे गिरफ़तार करके जेल में डाल दिया। वर्ष 2011 में हथियारबंद आतंकियों ने जेल पर हमला किया तो वह जेल से फ़रार होने में कामयाब हो गया। सीरियन इस्लामिक फ़्रंट में हुम्स का अलहक़ बटालियन नामक संगठन, इदलिब का अंसारुश्शाम संगठन, दैरुज़्ज़ूर का जैशुत्तौहीद संगठन, और हमा का मुजाहेदीन शाम बटालियन नामक संगठन शामिल हुए। यह संगठन तकफ़ीरी वहाबी संगठन हैं सीरिया में गतिविधियां कर रहे हैं। इन संगठनों ने पूरे देश में बड़े बड़े जनसंहार किए हैं, अल्संख्यकों को अपनी बर्बरता का निशाना बनाया है। यह संगठन शीयों और ईसाइयों को ख़त्म कर देने का संकल्प रखते हैं। उनका इरादा यह है कि सीरिया में कट्टरपंथी सुन्नी शासन की स्थापना करें। यह संगठन ख़ुद को अलक़ायदा का भाग समझते हैं और दाइश से लड़ रहे हैं।

 

 

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