Nov १२, २०१६ १७:२२ Asia/Kolkata

हमने सीरिया में सक्रिय तकफ़ीरी व आतंकी गुटों के बारे में बात की थी जिनमें सबसे प्रमुख दाइश और नुस्रा फ़्रंट हैं।

इन दो गुटों के साथ ही सीरिया में दसियों अन्य आतंकवादी गुट भी सक्रिय हैं। पिछली कड़ी में उनमें से कुछ गुटों की ओर संकेत किया गया था। सीरिया में सक्रिय आतंकी गुटों की एक सबसे बड़ी विशेषता इनका बहुराष्ट्रीय होना है। सीरिया संसार के दसियों देशों के हज़ारों आतंकियों की गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। यूरोप, अफ़्रीक़ा, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और मध्य एशिया व कॉकेशिया के क्षेत्र के हज़ारों नागरिक सीरिया में आतंकी गुटों के सदस्य हैं। अलबत्ता सीरिया व इराक़ में कुछ विशेष देशों के आतंकी सबसे अधिक हैं। इसका कारण इन देशों द्वारा क्षेत्र में संकट पैदा करने की नीति और चरमपंथ व हिंसा का प्रचार है।

सीरिया में विभिन्न देशों के आतंकियों की नागरिकता के बारे में विभिन्न प्रकार के आंकड़े सामने आए हैं। 80 से 90 देशों के आतंकी, सीरिया में आतंकवादी व तकफ़ीरी गुटों के सदस्यों के रूप में काम कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार आतंकी गुट दाइश के ज़्यादातर सदस्य अरब देशों के और संख्या की दृष्टि से क्रमशः सऊदी अरब, ट्यूनीशिया, मोरोको और मिस्र के हैं। दाइश के 25 प्रतिशत सदस्य सऊदी नागरिक हैं। आतंकी गुटों में सऊदी नागरिकों की बड़ी संख्या में उपस्थिति, सीरिया में संकट पैदा करने, विध्वंस और लाखों निर्दोष लोगों के जनसंहार में सऊदी अरब की केंद्रीय भूमिका की सूचक है। सीरिया में सऊदी अरब के आतंकियों की संख्या बीस से बाईस हज़ार तक है। वस्तुतः सीरिया में आतंकी गुटों का मुख्य ढांचा ही सऊदी अरब के नागरिकों से मिल कर बना है। सभी प्रजातांत्रिक मानकों से कोसों दूर सऊदी सरकार, सीरिया में प्रजातंत्र की स्थापना और तानाशाही से संघर्ष के प्रयास की दावेदार है। अरब देशों में इस्लामी जागरूकता की लहर आने के बाद आले सऊद ने महसूस किया कि उसकी स्थिति डांवाडोल हो रही है और अरब देशों में उसका प्रभाव घटने लगा है। यही कारण है कि इराक़ व सीरिया को आले सऊद ने इस्लामी जागरूकता का मार्ग बदलने का मैदान बना लिया ताकि अरब देशों में जनता द्वारा अपनी भूमिका अदा किए जाने से उत्पन्न होने वाली चिंताओं को दूर कर सके।

आले सऊद ने तुर्की के साथ मिल कर और पश्चिमी देशों के समर्थन से अपने दीर्घकालीन लक्ष्यों की प्राप्ति और ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में डटे हुए प्रतिरोध के मोर्चे को तोड़ने के मैदान के रूप में सीरिया को चुना। आले सऊद को शिया मुसलमानों से बहुत अधिक द्वेष है और उसने ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से ही शियों से शत्रुता व उनसे लोगों को डराने को अपनी क्षेत्रीय नीति में सबसे ऊपर रख दिया है। ज़ायोनी शासन से युद्ध में हिज़्बुल्लाह की विजय और इस अवैध शासन की निरंतर पराजय कभी भी आले सऊद को अच्छी नहीं लगी। सऊदी अरब ने लेबनान में पश्चिम के समर्थक और ज़ायोनी शासन से सांठ-गांठ के पक्षधर धड़े का समर्थन करके हिज़्बुल्लाह और प्रतिरोध के मोर्चे को क्षति पहुंचाने की कोशिश की है।

इस बीच सीरिया की सरकार द्वारा प्रतिरोध के मोर्चे के समर्थन और ज़ायोनी शासन से संघर्ष की अनदेखी नहीं की जा सकती। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभ से ही ज़ायोनी शासन से संघर्ष को अपनी क्षेत्रीय नीतियों में सर्वोपरि रखा जबकि आले सऊद को प्रतिरोध के मोर्चे से अत्यधिक द्वेष था। सीरिया का मैदान, सऊदी अरब के लिए एक उचित अवसर बन गया कि वह अपने विचार में प्रतिरोध के मोर्चे को ध्वस्त कर दे। सऊदी अधिकारी सोच रहे थे कि वे अधिक से अधिक तीन महीने में बश्शार असद की सरकार को गिरा कर क्षेत्र में अपने दृष्टिगत लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। इसी परिप्रेक्ष्य में सऊदी अरब और कुछ अन्य अरब देशों से तकफ़ीरी आतंकियों का रेला सीरिया पहुंच गया लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो पाया। सीरिया के मित्र उसकी मदद के लिए आ गए और उन्होंने क्षेत्र में तकफ़ीरी आतंकियों के सरग़नाओं के सपनों को पूरा नहीं होने दिया।

सऊदी अरब, तुर्की और कुछ अरब व पश्चिमी देशों के समर्थन वाले आतंकी गुटों के हमले सीरिया में प्रतिरोध के मोर्चे के कारण जितना अधिक विफलता का सामना करना पड़ता उतना ही अधिक वे अपने अपराधों और सीरिया के ख़िलाफ़ विध्वंसक कार्यवाहियों में वृद्धि करते चले जा रहे थे ताकि शायद लोगों में भय व आतंक फैला कर प्रतिरोध के जियालों और सीरिया की धैर्यवान जनता के संकल्प को कमज़ोर कर दें। इसी लिए विभिन्न देशों से आने वाले आतंकियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी।

दाइश, नुस्रा फ़्रंट और कुछ अन्य आतंकी गुटों ने सऊदी अरब के समर्थन से विभिन्न देशों में आतंकियों को भर्ती करने के केंद्र खोल रखे हैं और उन्होंने हज़ारों लोगों को भर्ती करके विभिन्न लक्ष्यों के साथ सीरिया रवाना किया है। ध्यान योग्य बिंदु यह है कि ये गुट यूरोप में भी हज़ारों लोगों को भर्ती करने में सफल रहे है।। फ़्रान्स, बेल्जियम, ब्रिटेन, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों के आतंकी सीरिया में मौजूद हैं। अब सभी के लिए यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि सऊदी अरब, सीरिया में चरमपंथ व हिंसा को बढ़ावा दे कर क्षेत्र में अपने कुछ विशेष लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है जिनमें क्षेत्र के राजनैतिक मामलों को बिगाड़ना और न्याय प्रेमी, शांति प्रेमी व प्रगति प्रदान करने वाले इस्लाम से संघर्ष करना शामिल हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि आले सऊद वास्तव में अपनी क्षेत्रीय नीतियों द्वारा ज़ायोनी शासन की सेवा कर रहा है।

पिछले पांच बरसों में जिन सरकारों ने सीरिया में तकफ़ीरी व आतंकी गुटों का समर्थन किया है वे अब इस समर्थन का तावान अदा कर रही हैं। तकफ़ीरी व आतंकी गुट अब केवल सीरिया व मध्यपूर्व के देशों की जनता के लिए ख़तरा नहीं रह गए हैं बल्कि वे एक वैश्विक ख़तरे में बदल चुके हैं। दमिश्क़, बग़दाद, इस्तंबोल, अन्कारा, पेरिस और ब्रसेल्ज़ में होने वाले विस्फोटों ने दर्शा दिया है कि आतंकवाद की सही अर्थों में कोई सीमा नहीं है। खेद की बात है कि क्षेत्र की कुछ सरकारों और इसी तरह पश्चिमी देशों ने इससे पाठ नहीं लिया है। हालांकि वे ज़बान से तो आतंकवाद से संघर्ष की बात करते हैं लेकिन व्यवहारिक रूप से आतंकवाद से संघर्ष का उनका कोई गंभीर संकल्प दिखाई नहीं देता।

आतंकी और तकफ़ीरी गुटों से संघर्ष का मार्ग, दिखावे के गठजोड़ बनाना, कुछ युद्धक विमानों को उड़ाना और आतंकियों के ठिकानों को लक्ष्य बनाना नहीं है बल्कि इसका सही मार्ग, तकफ़ीरी व आतंकी गुटों के आर्थिक व वैचारिक स्रोतों को समाप्त करना है। चरमपंथ, हिंसा और आतंकवाद के प्रचार के स्रोतों को पहचानना कोई मुश्किल काम नहीं है। आज जगज़ाहिर है कि सऊदी अरब पर राज करने वाली वहाबियत ही क्षेत्र में चरमपंथ और हिंसा के प्रचार का मुख्य स्रोत है। यह वह बात है जिसे पश्चिमी देशों के राजनैतिक व संचारिक हल्क़े भी खुल कर स्वीकार करते हैं लेकिन पश्चिमी सरकारों की सतह पर, सऊदी अरब के साथ संबंधों में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता बल्कि इसके उलट पश्चिमी देशों के हथियार सऊदी अरब में भरे जा रहे हैं जिन्हें यमन की निर्दोष जनता के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा रहा है फिर सीरिया में आतंकी गुटों के हवाले किया जा रहा ताकि वे उनके माध्यम से जनता का संहार करें।

पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि यह नीति अनिश्चित काल तक जारी नहीं रह सकती। हर गुज़रते दिन के साथ सऊदी अरब पर शासन कर रहे आले सऊद वंश की चरमपंथी व हिंसक प्रवृत्ति सबके लिए अधिक स्पष्ट होती जा रही है। एक दशक पहले तक पश्चिम में राजनैतिक व संचारिक हल्क़ों के स्तर पर शायद ही कोई आले सऊद को क्षेत्र में चरमपंथ व हिंसा का स्रोत बताने की हिम्मत जुटा पाता था लेकिन आजकल यह एक साधारण से विषय में बदल गया है जिस पर प्रतिदिन बातें होती हैं। पश्चिमी सरकारें, अपनी जनता द्वारा आले सऊद की सरकार की वास्तविक प्रवृत्ति को पहचान लिए जाने के बाद अब सऊदी अरब की क्षेत्रीय नीतियों पर ध्यान दिए बिना इस देश के साथ अपने संबंधों को पहले की तरह जारी नहीं रख सकेंगी।

 

 

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