तकफ़ीरी आतंकवाद-52
आप शुद्ध इस्लाम की शिक्षाओं और बिद्अत, शिफ़ाअत, क़ब्र के दर्शन और तवस्सुल के बारे में तकफ़ीरियों के विरोधाभासी विचार से परिचित हुए।
तकफ़ीरियों का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम का शुभ जन्म दिवस की वर्षगांठ या स्वर्गवास की बरसी मनाना, क़ब्र का दर्शन, ईश्वर से दुआओं में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की दुहाई देना और उनको अपनी मुक्ति का माध्यम क़रार देना धर्म में शियों की ओर से शामिल की गयी बिद्अत कहते हैं। बिद्अत का अर्थ है धर्म में कोई चीज़ अलग से शामिल करना जो उसका हिस्सा न हो। तकफ़ीरी वहाबी इसी ग़लत विचार के आधार पर शियों का ख़ून बहाना सही समझते हैं। हमने पवित्र क़ुरआन की आयतों और सुन्नी व शियों की पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों के पर आधारित किताब और रिवायत के ज़रिए यह स्पष्ट किया कि ये तकफ़ीरी वहाबी हैं जिन्होंने धर्म में बिद्अत पैदा की और वे इस्लामी शिक्षाओं के ग़लत अर्थ को आधार बनाकर ऐसे अपराध करते हैं जिनका शांति व न्याय के ध्वजवाहक धर्म इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। तकफ़ीरी वहाबी न सिर्फ़ शियों बल्कि सुन्नी संप्रदाय के उन लोगों का भी जनसंहार करते हैं जो उनकी बात का विरोध करते हैं। विभिन्न इस्लामी मतों का बड़ा भाग तकफ़ीरी वहाबियों के ख़िलाफ़ है। शाफ़ेई सुन्नी मत के धर्मगुरु शैख़ अहमद दहलान वहाबियत को मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब की दिमाग़ की उपज मानते और उसकी आस्था के बारे में कहते हैं, “मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब अपने इस गढ़े हुए मत के ज़रिए यह सोच रहे थे कि इसके ज़रिए लोग एकेश्वरवाद की ओर उन्मुख और अनेकेश्वरवाद से दूर होंगे। उन्होंने उन आयतों की एकेश्वरवादियों के संबंध में व्याख्या की जो अनेकेश्वरवादियों के बारे में उतरी थी।”
किताब हाशिया अलष शरहस्सग़ीर के लेकख अल्लामा अहमद सावी मालेकी वहाबियत के बारे में कहते हैं, “वह हेजाज़ की भूमि पर एक मत है। सावधान रहिए कि वे झूठे हैं जिन पर शैतान हावी हो चुका है और उनके दिल से ईश्वर की याद हटा दी है। वह शैतान की टोली है। जान लीजिए कि शैतान की टोली ही घाटा उठाने वालों में है। अनन्य ईश्वर उन्हें जड़ से उखाड़ फेंके।”
हनफ़ी मत के धर्मगुरु जमील सिदक़ी वहाबियत के बारे में कहते हैं, “ईश्वर वहाबियों का सत्यानास करे कि हर बात में मुसलमानों को काफ़िर कहते हैं। मानो उनकी पूरी कोशिश मुसलमानों को काफ़िर ठहराने पर केन्द्रित है। वे उन लोगों को काफ़िर कहते हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम के माध्यम से ईश्वर से दुआ मांगते हैं। उन्हें शर्म नहीं आती कि किस तरह ख़ुद नास्तिक सरकार से अपनी ज़रूरतों को पूरी करने के लिए मदद मांगते हैं। ऐसी सरकार जो मुसलमानों की दुश्मन और उनसे लड़ रही है और उनके बिखेरने की कोशिश में है।”
सऊदी अरब के मालेकी मत के धर्मगुरु मोहम्मद बिन अलवी भी वहाबी विचारधारा के आलोचकों में गिने जाते थे। वह मस्जिदुल हराम में हदीस, धर्मशास्त्र और इतिहास की शिक्षा देते थे। उनकी किताब छपने के बाद वहाबियों ने उनके ख़िलाफ़ मुक़द्दमा चलाया और उन्हें मौत की सज़ा दी। वह नास्तिकता के ख़िलाफ़ अपनी एक किताब में लिखते हैं, “हमारा ऐसे लोगों से सामना है जो नास्तिकता व अनेकेश्वरवाद को फैलाने और ग़लत नाम व विशेषताओं के साथ आदेश फैलाने में माहिर हैं। ऐसी बातें जो एकेश्वरवाद और पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी पर विश्वास रखने वाले मुसलमान को शोभा नहीं देती। कुछ वहाबी उन लोगों को जो उनके विचार के ख़िलाफ़ हैं, धर्म में फेर बदल करने वाले, मदारी, अनेकेश्वरवादी व नास्तिक कहते हैं। कुछ नादान लोग इस तरह की भद्दी शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं। ऐसी शब्दावली जो सड़क छाप लोग बोलते हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें सही तरह से लोगों को आमंत्रित करने और डिबेट का तरीक़ा नहीं आता।”
हनफ़ी मत के धर्मगुरु सय्यद इब्राहीम रावी रफ़ाई जिन्होंने ‘अलअवराक़ुल बग़दादिया फ़िल हवादेसिन नजदिया’ नामक किताब लिखी है, वहाबियत के अपराध के बारे में कहते हैं, “वहाबी वे लोग हैं जिन्होंने मुसलमानों के साथ जंग में लोगों को क़त्ल करने उनके माल लूटने यहां तक कि बच्चों को क़त्ल करने जैसा महाअपराध किया। वे इस तरह का अपराध करते समय कहते हैःये नास्तिक हैं और उनके पैदा होने वाले बच्चे भी नास्तिक हैं। यह बात मशहूर है कि वे अपने सिवा सारे मुसलमानों को काफ़िर कहते हैं। उन मुसलमानों को जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि मुझे जेहाद के लिए नियुक्त किया गया है ताकि लोगों को एकेश्वरवाद की ओर बुलाऊं, वे मोहम्मद की पैग़म्बरी पर आस्था रखें, नमाज़ा क़ायम करें और ज़कात दें और जब उन्होंने ऐसा किया तो मेरी ओर से उनका ख़ून और माल सुरक्षित है और उनका हिसाब ईश्वर के पास है। इस रिवायत को बुख़ारी ने उद्धरित किया है।
मूसिल के दाइश के हाथों अतिग्रहण के बाद, इराक़ के सुन्नी धर्मगुरुओं ने दाइश के अपराध के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए उसकी भर्त्सना की। इस बारे में इराक़ के सुन्नी धर्मगुरुओं के संघ के प्रमुख ख़ालिद अलमला ने कहा, “तकफ़ीरियों की आपराधिक साज़िश का लक्ष्य इराक़ के भीतर विभिन्न मतों व संप्रदायों को ख़त्म करना है। जो कुछ मूसिल में हो रहा है वह मानवता के माथे पर क्लंक के टीके के समान है। वे तलअफ़्र के लोगों को अपनी बैअत अर्थात आज्ञापालन के लिए मजबूर कर रहे हैं। मानो हम लोग उमवी व अब्बासी शासकों के अत्याचार भरे दौर में लौट गए हैं जब शासक लोगों की गर्दन मारते और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों और धर्मगुरुओं को जेल में डाल देते थे जो उनके विचारों का विरोध करते थे।”
इराक़ के सुन्नी मत के मुफ़्ती शैख़ महदी सुमैदई दाइश के बारे में कहते हैं, “दाइश के आतंकी मुसलमानों का जनसंहार कर रहे है लेकिन मूर्ति पूजने वालों से वफ़ादारी कर रहे हैं। इस तरह इस गुट की प्रवृत्ति हमारे सामने स्पष्ट हो गयी है जो मुसलमानो की जान, माल और इज़्ज़त पर डाका डालना सही समझता है। वे नरक की आग में जलेंगे।”
शैख़ अब्दुल्ला अज़ावी मूसिल शहर की धर्मगुरु परिषद के प्रमुख आतंकवादी गुट दाइश के बारे में कहते हैं, “दाइश के ख़िलाफ़ जेहाद अनिवार्य है। सुन्नियों का उन अपराधों से कोई संबंध नहीं है जो दाइश इराक़ी राष्ट्र के ख़िलाफ़ कर रहा है। हम इन अपराधों और जनसंहारों की कड़ाई से निंदा करते हैं।”
इराक़ के एक और सुन्नी मुफ़्ती व धर्मगुरु शैख़ अहमद अलकबीसी आईएस के ख़िलाफ़ जेहाद को अनिवार्य क़रार देते हुए कहते हैं, “वे इस्राईल और सऊदियों से हाथ मिलाए हुए हैं और इस्लाम को कमज़ोर करने के लिए लड़ रहे हैं। मैं यह बात विश्वास कह रहा हूं कि दाइश वहाबियत की शाखा है जो इस्लाम को तेज़ी से मिटाना चाहती है। दाइश ज़ायोनियों की मदद से लीबिया, ट्यूनीशिया, यमन, सोमालिया और इराक़ में फैला है।”
मिस्र की अलअज़हर यूनिवर्सिटी ने एक बयान में आतंकवादी गुट दाइश की कड़ाई से निंदा करते हुए इसके तत्वों को ख़्वारिज बताया है। अलअज़हर ने दाइश के मुसलमान जवानों को अपनी ओर खींचने के प्रयास की भर्त्सना की और इस गुट के व्यवहार को गुमराह करने वाला बताया कि जिसके पीछे इस्लामी देशों को अस्थिर करना लक्ष्य है। अलअज़हर यूनिवर्सिटी की ओर से जारी बयान में आया है, “दाइश इस्लाम के नाम पर मुसलमान जवानों को ख़ुद में शामिल कर रहा है। हालांकि इस्लाम उनसे विरक्तता का एलान करता है।” अलअज़हर ने दुनिया के मुसलमानों से अपील की है कि वे इस चरमपंथी गुट के निमंत्रण से धोखा न खाएं। अलअज़हर विश्वविद्यालय के बयान में आगे आया है, “दाइश और ख़्वारिज में कोई अंतर नहीं है जिन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़िलाफ़ बग़ावत की और उन्हें नास्तिक कहा। यहां तक कि जो भी उनके मत के ख़िलाफ़ था उसे नास्तिक कहा। यह विचारधारा इस्लामी शिक्षाओं के संबंध में निराधार बातें फैला रहा है और ग़लत-ग़लत बातें इस्लाम से जोड़ रहा है ताकि दुनिया के लोग इस्लाम से नफ़रत करें। उन्होंने इस्लाम की बर्बरतापूर्ण व रक्तपिपासु छवि पेश की है हालांकि इस्लाम इन सभी चीज़ों की भर्त्सना करता है।”