Jul २३, २०१७ २०:०८ Asia/Kolkata

आतंकवादी गुट दाइश ने इराक में अपनी तीन वर्षीय उपस्थिति के दौरान जो अपराध किये हैं उन्हें जान कर मानवता कांप जाती हैं।

आतंकवादी गुट दाइश केवल मानवता विरोधी नहीं है बल्कि वह संस्कृति विरोधी भी है क्योंकि उसका अस्तित्व ही हिंसा है। दाइश अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रहा है। इसी कारण वह मौजूद सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट करने की चेष्टा कर रहा है ताकि नई संस्कृति व पहचान उत्पन्न कर सके। दाइश ने इराक में यही काम किया और उसने जिन क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया उनमें धार्मिक, एतिहासिक और शैक्षिक धरोहरों को भी निशाना बनाया। दाइश द्वारा अपने अतिग्रहित क्षेत्रों में धार्मिक, इतिहासिक और शैक्षिक धरोहरों के लक्ष्य बनाये जाने से इराक में दाइश की तथाकथित ख़िलाफ़त के बारे में गम्भीर संदेह उत्पन्न हो गये। दाइश सुन्नी संप्रदाय को आधार बनाकर अपनी ख़िलाफत बनाने की चेष्टा में था पंरतु उसने हर संप्रदाय से अधिक सुन्नी संप्रदाय की धार्मिक, इतिहासिक और शैक्षिक धरोहरों को नष्ट किया। आतंकवादी गुट दाइश ने अपने अतिग्रहित क्षेत्रों में सांस्कृतिक धरोहरों को लक्ष्य बनाकर दर्शा दिया कि वह अधिक समय तक नहीं रहेगा कि सरकार का गठन कर सके और उसकी सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल सके।  

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अब इराक में दाइश का लगभग अंत हो चुका है परंतु उसके क्रिया- कलापों से इराकी समाज में जो प्रभाव पड़े हैं वे बहुत दिनों तक बाक़ी रहेंगे। दाइश की मानवता विरोधी हिंसा से उसके अतिग्रहित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की शांति व संस्कृति नष्ट हो गयी और इसी तरह वहां रहने वाले लोगों की मानसिक शांति भी समाप्त हो गयी। दाइश की हिंसात्मक कार्यवाहियों व अपराधों से उसके अतिग्रहित क्षेत्रों के लोगों की मनोदशा पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और जिन लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से दाइश के अपराधों को देखा है उनमें से बहुत से लोगों से सांस्कृतिक व मानव विकास की कार्यवाहियों की अपेक्षा कम से कम कुछ समय के लिए नहीं की जा सकती।

इराक के नैनवा प्रांत के विभिन्न क्षेत्र तीन वर्षों तक आतंकवादी गुट दाइश के कब्ज़े में थे इस दौरान उसने 155 धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिया जिनमें से 74 धार्मिक स्थलों का संबंध शीया मुसलमानों से था जबकि 46 का संबंध सुन्नी मुसलमानों, 26 का संबंध ईज़दी संप्रदाय और नौ का संबंध ईसाईयों से था। दाइश ने जिन धार्मिक स्थलों को तबाह किया उनमें सबसे महत्वपूर्ण हज़रत युनूस, हज़रत जिरजीस और हज़रत शीस की पावन समाधियों पर बने मज़ारों और इसी प्रकार नैनवां प्रांत के केन्द्र मूसिल नगर में दानियाल पैग़म्बर की पावन समाधि पर बने मज़ार की ओर संकेत किया जा सकता है। ये मज़ार एतिहासिक वास्तुकला के प्रतीक और इराक की इतिहासिक धरोहर का भाग थे। आतंकवादी गुट दाइश ने इराक में अपनी उपस्थिति के अंतिम दिनों में भी बड़ा सांस्कृति अपराध अंजाम दिया और मूसिल नगर की ऐतिहासिक नूरी मस्जिद को बम से उड़ा दिया जिससे इस मस्जिद के मीनार सहित उसके कुछ भाग तबाह हो गये। यह मस्जिद लगभग 800 साल पुरानी और  मूसिल नगर की प्रतीक थी।

आतंकवादी गुट दाइश ने इराक के नैनवा प्रांत के निमरूद शहर की 70 प्रतिशत से अधिक सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट कर दिया। यह इतिहासिक अपराध इस सीमा तक निंदनीय था कि यूनेस्को के अधिकारियों ने इसे इतिहासिक धरोहरों के विरुद्ध अभूतपूर्व अपराध बताया और इसे युद्धापराध की संज्ञा दी। दाइश के आतंकवादियों ने निमरूद नगर की सांस्कृतिक धरोहरों को तबाह करने के अलावा इस नगर की बहुत सी इतिहासिक धरोहरों और मूल्यवान वस्तुओं को तस्करों को बेच दिया और उससे बहुत अधिक पैसा कमाया। दाइश ने यह जो चोरी की उसकी तुलना जर्मनी के उन नाज़ी सैनिकों से की जानी चाहिये जिन्होंने अपने अतिग्रहित देशों व क्षेत्रों में सांस्कृतिक धरोहरों की लूट- पाट की। कहा जाता है कि जिन सांस्कृतिक धरोहरों को बेचा गया और उनकी तस्करी की गयी उनमें से बहुत को यूरोपीय देशों और तुर्की भेजा गया।

इराक के नैनवां प्रात का हतरा नगर भी अश्कानी शासकों के काल की सभ्यता प्रतीक है और इसी कारण उसका नाम मानवता की धरोहर रखा गया है। इस नगर में मौजूद सांस्कृतिक धरोहरों को भी दाइश के आतंकवादियों ने लक्ष्य बनाया और इस नगर की इतिहासिक धरोहरों को भी तबाह कर दिया। दाइश ने इराक विशेषकर निमरूद नगर में जिन सांस्कृतिक धरोहरों को तबाह किया है उन्हें मानव इतिहास की संयुक्त धरोहर समझा जाता है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के पूर्व महासचिव बान की मून ने दाइश के इन अपराधों की प्रतिक्रिया में कहाः हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को जान- बूझ कर नष्ट करना युद्धापराध है और कुल मिलाकर वह मानवता के विरुद्ध हमले का सूचक है।

आतंकवादी गुट दाइश ने इराक में जो इतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों को तबाह किया है उस पर मिस्र के प्रसिद्ध विश्व विद्यालय अलअज़हर ने भी प्रतिक्रिया जताई और धार्मिक दृष्टि से इस कार्य को हराम घोषित किया।

इस संबंध में उसने एक विज्ञप्ति जारी करके घोषणा की कि मूर्ति होने के बहाने करके प्राचीन धरोहरों को दाइश द्वारा नष्ट किये जाने की कार्यवाहियां समस्त विश्व वासियों के हक में बड़ा अपराध हैं।

इराक में आतंकवादी गुट दाइश द्वारा किये गये सांस्कृतिक अपराध के एक महत्वपूर्ण भाग का संबंध शैक्षणिक संस्थानों व केन्द्रों के नष्ट किये जाने से है। 10 जून वर्ष 2014 को मूसिल विश्व विद्यालय में अंतिम परीक्षा होने थी परंतु उसने घोषणा की कि सुरक्षा कारणों से छात्र अपने- अपने घरों को वापस चले जायें। मूसिल विश्व विद्यालय को सुरक्षा कारणों और दाइश के अपराधों के भय से बंद कर दिया गया जिसकी वजह से हज़ारों छात्र परीक्षा देने और शिक्षा ग्रहण करने से वंचित हो गये। इसी तरह दाइश के आतंकवादियों ने मूसिल के सार्वजनिक और मूसिल विश्वविद्याल के केन्द्रीय पुस्तकालय को आग लगा दी जिसमें लाखों मूल्यवान इतिहासिक पुस्तकें जल कर राख हो गयीं। दाइश के आतंकवादियों ने दावा किया कि यह पुस्तकें बिदअत हैं और उनका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है इसलिए इन्हें जला दिया जाना चाहिये।

आतंकवादी गुट दाइश ने इराक में अपनी तीन वर्षीय उपस्थिति के दौरान 138 स्कूलों पर हमला किया जिनमें बहुत से स्कूल पूर्ण रूप से नष्ट हो गये और आतंकवादी गुट दाइश के भय से हज़ारों छात्र शिक्षा ग्रहण करने से वंचित हो गये। इस समय इराक में 30 लाख से अधिक छात्रों को स्कूल जाने में कोई रुचि नहीं है जबकि 12 लाख छात्र स्कूल जाने से भी वंचित हैं। बहुत से परिवारों ने विवश होकर सुरक्षा कारणों से अपने बच्चों को स्कूल ही नहीं भेजा। इसके अलावा आतंकवादी गुट दाइश के अपराधों के कारण हज़ारों इराकी छात्र देश से पलायन करने पर बाध्य हुए। शिक्षा ग्रहण करने से इराकी बच्चों के वंचित हो जाने और शिक्षकों के पलायन कर जाने से इराक को वर्षों तक उसके परिणामों को भुगतना पड़ेगा। साथ ही दाइश के अपराधों के कारण जो बच्चे शिक्षा ग्रहण करने से वंचित हो गये हैं वे इसके दुष्परिणामों का अनुभव अपने जीवन में करेंगे।

आतंकवादी गुट दाइश के व्यवहार में नागरिक सभ्यता नाम की थोड़ी से चीज़ भी नहीं है और यह चीज़ इस बात का कारण बनी कि वर्ष 2014 से 2017 के वर्षों के दौरान इराक में नागरिक सभ्यता की दिशा में हर प्रकार की कार्यवाही स्थगित हो गयी। इसी कारण नागरिक सभ्यता की दिशा में काम करने वाले लोग, पत्रकार और प्रतिभाशाली व्यक्ति अपनी जान के भय से इराक से भाग गये और अगर ये लोग इराक में दाइश का अंत हो जाने के बाद स्वदेश नहीं लौटे तो इराक को इस क्षति का भी सामना करना पड़ेगा। कुल मिलाकर  कहा जा सकता है कि इराक में तीन वर्षों के दौरान दाइश ने अपनी उपस्थिति के दौरान इस देश की संस्कृति, इतिहास, ज्ञान और पहचान को नष्ट कर दिया और उनमें से कुछ क्षति तो एसी है जिसकी भरपाई ही नहीं हो सकती। आतंकवादी गुट दाइश द्वारा इतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों को ध्वस्त किये जाने को इसी दिशा में देखा जा सकता है।

 

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