इराक़, दाइश के बाद।
इराक के प्रधानमंत्री हैदर अलएबादी ने 9 जुलाई को आधिकारिक रूप घोषणा की थी कि मूसिल नगर से आतंकवादी गुट दाइश का सफाया हो गया।
अब आतंकवादी गुट नैनवां प्रांत के हुवैजा और तलअफ़र नगरों तक सीमित हो गया है। इराक अब आतंकवादी गुट दाइश के बाद के दौर में प्रविष्ट हो गया है। इससे पहले वाले कार्यक्रम में इराकी सरकार की पहली प्राथमिकता के रूप में हमने मूसिल नगर के पुनरनिर्माण की समीक्षा की गयी थी।
आतंकवादी गुट दाइश के बाद इराक में जो राजनीतिक प्राथमिकताएं हैं और जिनपर सरकार को ध्यान देना चाहिये उन्हें मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है।
पहली राजनीतिक प्राथमिकता इराक से अलग होने के लिए कुर्दिस्तान क्षेत्र में संभावित जनमत संग्रह का होना है।
नौ जुलाई को आधिकारिक रूप से घोषणा की गयी कि मूसिल नगर आज़ाद हो गया परंतु उससे एक महीने पहले इराक के कुर्दिस्तान क्षेत्र के प्रमुख मसऊद बारेज़ानी ने घोषणा की थी कि इराक से अलग होने के लिए इस क्षेत्र में 25 सितंबर 2017 को जनमत संग्रह आयोजित होगा। इस आधार पर इराक के प्रधानमंत्री हैदर अलएबादी के सामने एक बड़ी चुनौती यह है कि वह कुर्दिस्तान क्षेत्र में जनमत संग्रह के विषय की समीक्षा करें और इस विषय पर ध्यान दें।
हालिया तीन वर्षों के दौरान मसऊद बारेज़ानी ने किन कारणों से अपना ध्यान कुर्दिस्तान क्षेत्र को इराक से अलग करने पर केन्द्रित कर रखा है आज उसकी चर्चा नहीं करेंगे परंतु महत्वपूर्ण विषय यह है कि इराक से कुर्दिस्तान के अलग होने के लिए जनमत संग्रह का आयोजन इस देश के संविधान के विरुद्ध है। वर्ष 2005 में इराक का जो संविधान बना है उसकी एक धारा के अनुसार इराक एक स्वतंत्र व स्वाधीन देश है और उसकी राजनीतिक व्यवस्था संसदीय व फेडरल है। इस धारा के अनुसार इराक की राजनीतिक व्यवस्था फेडरल है और इराकी संविधान की किसी भी धारा या अनुच्छेद में नहीं आया है कि फेडरल क्षेत्र इस देश से अलग हो सकते हैं। दूसरी ओर इराकी संविधान के लिए जो जनमत संग्रह हुआ था उसमें कुर्दों सहित समस्त जातियों ने भाग लिया था और उन सबने इसे स्वीकार किया था। इस आधार पर इराकी संविधान में कुर्द आवासीय क्षेत्रों सहित किसी भी क्षेत्र के अलग होने के अधिकार को न केवल दृष्टि में नहीं रखा गया है बल्कि इस प्रकार के विषय का पेश किया जाना इराक की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के ख़िलाफ़ है जिसके ख़तरनाक परिणाम सामने आ सकते हैं।
अब इराक में आतंकवादी गुट दाइश की पराजय निश्चित हो जाने के बाद हैदर अलएबादी की सरकार को चाहिये कि वह सबसे पहले क़दम के रूप में इस विषय पर ध्यान दे। इराक के प्रधानमंत्री हैदर अलएबादी ने कुर्दिस्तान क्षेत्र में कराये जाने वाले संभावित जनमत संग्रह की प्रतिक्रिया में कहा है कि यह जनमत संग्रह ग़ैर कानूनी है और उसके परिणाम को मानना हमारे लिए आवश्यक नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह विषय आतंरिक समस्या का कारण बनेगा। इराकी प्रधानमंत्री की इस प्रतिक्रिया में तीन मुख्य बिन्दु हैं। पहला बिन्दु यह है कि वह इस जनमत संग्रह को ग़ैर क़ानूनी मानते हैं। दूसरा बिन्दु यह है कि कुर्दिस्तान क्षेत्र में होने वाले जनमत संग्रह के परिणाम को इराकी सरकार के लिए मानना आवश्यक नहीं होगा और यह महत्वपूर्ण बिन्दु है क्योंकि उससे एक ओर यह बात समझ में आती है कि कुर्दिस्तान इराकी संप्रभुता का भाग है और दूसरी ओर अगर कुर्दिस्तान क्षेत्र में संभावित जनमत संग्रह हो भी गया और वहां के लोगों ने उसके पक्ष में वोट दिया तब भी उसके परिणामों को इराकी सरकार के लिए मानना आवश्यक नहीं होगा। वास्तव में इराकी प्रधानमंत्री ने जो यह कहा है कि इसके नतीजे को मानना आवश्यक नहीं है वह वास्तव में कुर्दिस्तान की स्थानीय सरकार के लिए एक प्रकार की चेतावनी भी है। हैदर अलएबादी ने जो प्रतिक्रिया जताई उसमें तीसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इससे इराक की आंतरिक कठिनाइयों में वृद्धि हो जायेगी। इस समय कुर्दिस्तान की स्थानीय सरकार को बगदाद की केन्द्रीय सरकार से विजयों पर मतभेद हैं जिसके कारण उसे विभिन्न समस्याओं का सामना है जैसे राजनीतिक गुटों के मध्य मतभेदों का अधिक हो जाना, आर्थिक भ्रष्टाचार और तेल से होने वाले आमदनी में ध्यान योग्य कमी हो जाना। जनमत संग्रह कराये जाने के लिए किये जाने वाले प्रयास से कुर्दिस्तान की स्थानीय और बगदाद की केन्द्रीय सरकार के मध्य अधिक गम्भीर समस्याएं अस्तित्व में आ सकती हैं।
कुर्दिस्तान क्षेत्र में संभावित रूप से होने वाले जनमत संग्रह के संबंध में इराकी प्रधानमंत्री हैदर अलएबादी और दूसरे इराक़ी अधिकारियों और कुछ कुर्दों ने जो प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं उसके बावजूद इराकी सरकार को चाहिये कि वह कुर्दिस्तान के स्थानीय अधिकारियों से वार्ता आरंभ करे और उसे अपनी पहली प्राथमिकता क़रार दे।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आतंकवादी गुट दाइश के बाद इराकी सरकार को चाहिये कि वह इस देश के आंतरिक मामलों में विदेशियों के हस्तक्षेप से मुकाबला करे। इराक में तेल के जो स्रोत व भंडार हैं उस पर पश्चिमी शक्तियों की लोभ की दृष्टि है। साथ ही इराकी समाज का जो जातीय और धार्मिक तानाबाना है उसके कारण क्षेत्रीय देश विशेषकर सऊदी अरब इराक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। वर्ष 2014 में आतंकवादी गुट दाइश ने इराक के काफी क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था उसमें इस हस्तक्षेप की ध्यान योग्य भूमिका रही है। इस आधार पर कुद्सुल अरबी समाचार पत्र के एक विश्लेषक सईद अश्शहाबी का मानना है कि मूसिल में जो उपलब्धि मिली उससे इराकी प्रसन्न हैं और उन्होंने सड़कों पर निकल कर खुशी मनाई परंतु अमेरिकियों की दूसरी नीति है। उनके अनुसार इराक एक अच्छा शिकार है जब वे सद्दाम की सरकार गिराने के लिए इराक में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस बड़े देश में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली थी। वर्ष 2003 के युद्ध के बाद इराक में जो राजनीतिक व सुरक्षा शून्य उत्पन्न हो गया था उसका लाभ उठाया और इराक के स्रोतों पर उनकी लोभ की दृष्टि थी। इराकियों का मानना है कि तीन साल पहले जो दाइश इस देश में आया वह अपने आप नहीं आया बल्कि उन इराकियों से प्रतिशोध लेने के लिए आया जो इराक की स्वाधीनता और संप्रभुता की सुरक्षा पर आग्रह करते थे।
इराकी सरकार की एक राजनीतिक प्राथमिकता इस देश में संसदीय और प्रांतीय परिषदों का चुनाव करवाना है। इससे पहले प्रांतीय परिषदों का चुनाव जारी वर्ष के आरंभ में होने वाला था परंतु इस चुनाव को सुरक्षा कारणों विशेषकर आतंकवादी गुट दाइश से लड़ाई के कारण विलंबित कर दिया गया। इराक में संसदीय चुनावों का जो महत्व है उसकी तुलना प्रांतीय परिषदों के लिए होने वाले चुनावों से नहीं की जा सकती। इस आधार पर इन चुनावों का आयोजन इराकी सरकार और राजनीतिक गुटों दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इराकी संविधान की धारा 47 के अनुसार इस देश की फेडरल सरकार में विधि पालिका के दो भाग हैं एक सांसद और दूसरे प्रांतीय परिषदों के प्रतिनिधि। इसी प्रकार इराकी संविधान की 55वीं धारा के अनुसार सांसदों का कार्यकाल चार साल के लिए होता है। नये सांसदों के लिए जो चुनाव होता है वह पुराने सांसदों का कार्यकाल समाप्त होने से 45 दिन पहले होता है। अभी पिछली बार इराक का संसदीय चुनाव 31 अप्रैल 2014 को हुआ था। इस आधार पर इराक के अगले संसदीय चुनाव को वर्ष 2018 में होना चाहिये।
संसदीय चुनावों का महत्व इसलिए है कि कानून बनाने की ज़िम्मेदारी उस पर है और जिन सांसदों का चयन जनता करती है संविधान के अनुसार वे राष्ट्रपति का चयन करते हैं और राष्ट्रपति भी प्रधानमंत्री के लिए किसी व्यक्ति का नाम पेश करता है। संसद को चाहिये कि प्रधानमंत्री जिन व्यक्तियों का नाम मंत्रीमंडल के लिए पेश करता है वह उसे मत दे। इस आधार पर इराक की फेडरल व्यवस्था में संसद का स्थान व भूमिका स्पष्ट है।
वर्ष 2005 में इराकी संविधान बनने के बाद से अब तक इस देश में तीन बार संसदीय चुनाव हो चुके हैं। पहला संसदीय चुनाव वर्ष 2006 में, दूसरा 2010 में और तीसरा 2014 में हुआ था जबकि वर्ष 2018 में होने वाला चौथा संसदीय चुनाव होगा।
इराक में जो संसदीय चुनाव होते हैं वे इस देश के राजनीतिक गुटों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इसी कारण हर बार के संसदीय चुनावों में भाग लेने वाले गुटों व पार्टियों की संख्या पहले वाले चुनाव की तुलना में अधिक रही है। वर्ष 2006 में जो संसदीय चुनाव हुए थे उसमें 275 सीटों के लिए 152 राजनीतिक पार्टियों ने भाग लिया था। इसी प्रकार वर्ष 2010 में 325 सीटों के लिए 181 राजनीतिक पार्टियों ने भाग लिया था जबकि वर्ष 2014 में 328 सीटों के लिए 277 राजनीतिक पार्टियों ने भाग लिया था। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 की समाप्ति तक वर्ष 2018 में होने वाले संसदीय चुनाव में भाग लेने वाली 300 पार्टियों का नाम पंजीकृत हो चुका है और संसद की सीटों में भी वृद्धि होगी।
वर्ष 2018 में जो संसदीय चुनाव होगा वह इससे पहले तीन बार होने वाले संसदीय चुनावों से अधिक महत्वपूर्ण होगा क्योंकि वह आतंकवादी गुट दाइश के बाद के काल में होगा। इस बार होने वाले संसदीय चुनाव में जहां आतंकवाद से मुकाबला अलएबादी सरकार की एक विशेषता समझी जायेगी वहीं इस चुनाव में शायद इराकी जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण भाग न ले सके। जिन लोगों के बारे में संभावना है कि वे शायद वर्ष 2018 के चुनाव में भाग न ले सकें उनमें अधिकांश बेघर सुन्नी मुसलमान हैं जो आतंकवादी दाइश के हमलों के कारण बेघर हो गये हैं। इस दृष्टि से भी इराकी सरकार को चाहिये कि वह समस्त इराकियों के चुनाव में भाग लेने के लिए प्रयास करे क्योंकि अगर इराकी सरकार इस दिशा में काम नहीं करती है तो यह उस पर दबाव डालने और इराक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के लिए दूसरे देशों को बहाना मिल जायेगा।
अंत में कहना चाहिये कि इराकी सरकार और इस देश की राजनीतिक पार्टियों व गुटों ने तीन वर्षों तक इस देश में आतंकवादी गुट दाइश की उपस्थिति से काफी पाठ ले लिया होगा और उन्हें चाहिये कि वे राष्ट्रीय हितों पर अपनी पार्टी व गुट के हितों को प्राथमिकता न दें। क्योंकि अगर इस प्रकार की ग़लती हुई तो इराक दोबारा हिंसा और आतंकवी गुटों की गतिविधियों का मैदान बन सकता है और इस स्थिति में राष्ट्रीय हितों के अलावा लोगों और पार्टी व गुटों के हित भी गम्भीर रूप से ख़तरे में पड़ जायेंगे। बहरहाल आतंकवादी गुट दाइश के बाद इराक को हर समय से अधिक एकता व एकजुटता और बुद्धि व होशियारी से काम लेने की ज़रूरत है।