Oct ०८, २०१७ १६:१० Asia/Kolkata

आतंकी गुट दाइश के नियंत्रण वाले अनेक शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों को मुक्त कराने में इराक़ व सीरिया की सेनाओं और स्वयं सेवी बलों की सफलता के बाद इन दोनों देशों में दाइश की समाप्ति की उलटी गिनती शुरू हो गई है।

सैनिक पहलू से इस तकफ़ीरी आतंकी गुट की पराजय की तस्वीर बड़ी तेज़ी से पूरी होती जा रही है। मूसिल से लेकर लेबनान व सीरिया की सीमावर्ती पहाड़ियों तक दाइश की निरंतर पराजय ने इस आतंकी गुट के पतन की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है। लेबनान के अन्नहार समाचारपत्र ने हाल ही में एक रिपोर्ट में दैरुज़्ज़ूर में सीरियाई सेना के पहुंचने को दाइश के साथ लड़ाई में बश्शार असद की एक बड़ी अहम सफलता और इस गुट के लिए हानिकारक वार बताया है। यह शहर फ़ुरात नदी के तट पर स्थित है और तेल का एक अहम केंद्र समझा जाता है। दैरुज़्ज़ूर पर नियंत्रण करके दाइश ने आय का एक मूल्यवान स्रोत हासिल कर लिया था।

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अन्नहार समाचारपत्र के टीकाकार ने सीरियाई सेना की विजयों को एक नया रणनैतिक परिवर्तन बताया है और कहा है कि यह परिवर्तन पूरे सीरिया में आतंकवाद के ताबूत में आख़री कील साबित होगा। लेबनान के अलबना समाचारपत्र ने भी क्षेत्र में दाइश की पराजय के प्रभावों के एक अन्य पहलू की ओर संकेत करते हुए लिखा है कि दैरुज़्ज़ूर का परिवेष्टन समाप्त हो जाने के बाद सीरिया के बारे में कई यूरोपीय देशों की नीतियों में परिवर्तन देखने में आया है और अब वे बश्शार असद के सत्ता से हटने के बारे में बात नहीं कर रहे हैं।

इस बीच ज़ायोनी शासन के नेता, समीक्षक और संचार माध्यम, जो बश्शार असद की पराजय के संबंध में अपनी आशाओं को बर्बाद होता देख रहे हैं, अब उनकी और सीरियाई सेना व उसके घटकों की विजय की बात करने लगे हैं। अलबना ने लिखा है कि यह घटना, जिसे रूस के राष्ट्रपति और ईरान के विदेश मंत्री ने एक अहम विजय बताया है, आतंकी गुटों के समर्थकों और उन्हें अस्तित्व प्रदान करने वालों को बहुत भारी पड़ेगी। रूस के राष्ट्रपति विलादिमीर पुतीन ने दैरुज़्ज़ूर शहर को स्वतंत्र कराने में सीरियाई सेना की सफलता के बाद बश्शार असद के नाम बधाई संदेश में इसे एक रणनैतिक विजय बताया और कहा कि यह घटना, आतंकियों से पूरे सीरिया को मुक्त कराने के मार्ग में अहम क़दम है।

इन्हीं सफलताओं के बाद यूरोपीय सरकारों विशेष कर ब्रिटेन और फ़्रान्स ने घोषणा की है कि बश्शार असद का सत्ता से हटना, सीरिया में शांति प्रक्रिया के आरंभ के लिए पूर्व शर्त नहीं है। फ़्रान्स के विदेश मंत्री ने अपनी बग़दाद की यात्रा में यह दर्शाने के लिए कि फ़्रान्स की सरकार अब सीरिया में कोई समस्या उत्पन्न नहीं करेगी, एक अहम बिंदु की ओर संकेत किया और कहा कि सीरिया के राष्ट्रपति बश्शार असद के सत्ता में रहने या हटने जैसी फ़्रान्स की कोई पूर्व शर्त नहीं है और पेरिस इस बारे में सीरियाई जनता के फ़ैसले का समर्थन करेगा।

ब्रिटेन के विदेश मंत्री ने भी इस संबंध में अपने देश के रुख़ की घोषणा करते हुए कहा कि पहले हम पूर्व शर्त के रूप में कहते थे कि बश्शार असद को सत्ता से हटना होगा लेकिन अब हम कहते हैं कि उनका सत्ता से हटना, सत्ता के हस्तांतरण की राजनैतिक प्रक्रिया के अंतर्गत होना चाहिए। अलबत्ता फ़्रान्स के अधिकारियों ने कुछ ही दिन बात कहा कि शांति प्रक्रिया में बश्शार असद का कोई स्थान नहीं होगा और इसी प्रकार के विरोधाभासी बयानों से पता चलता है कि वे पिछले छः साल में इराक़ व सीरिया में अपनी नीतियों की विफलता को स्वीकार कर रहे हैं। वे पहले सीरिया के बारे में इस तरह की परिस्थिति की कल्पना भी नहीं कर रहे थे।

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पश्चिम वालों का सोचना था कि वे तीन महीने से भी कम समय में बश्शार असद की सरकार को गिरा देंगे और फिर दमिश्क़ में ऐसी सरकार को सत्ता में पहुंचाएंगे जो पश्चिम व ज़ायोनी शासन की कठपुतली हो और प्रतिरोध के मोर्चे को समाप्त कर दे। सीरिया संकट के अस्तित्व में आने और उसमें अमरीका व यूरोपीय देशों की भूमिका पर एक सरसरी नज़र डालने से दाइश के ख़िलाफ़ सीरिया व इराक़ की सेना और स्वयं सेवी बलों की विजय के महत्व को अच्छी तरह से समझ जा सकता है।

दाइश के अस्तित्व की बुनियाद वर्ष 2003 में इराक़ पर अमरीका के हमले के समय ही पड़ गई थी। अमरीका को आशा थी कि वह इस तकफ़ीरी व आतंकी गुट का पोषण करके इराक़ में अशांति को अपने हिसाब से नियंत्रित करेगा और इस देश में अपने लक्ष्य प्राप्त कर लेगा। वास्तव में इराक़ में वातावरण को अशांत बनाने और इस देश के शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों पर तकफ़ीरी व आतंकी गुटों के क़ब्ज़े से बग़दाद की सरकार को एक ऐसी सरकार बनाने की कोशिश की गई कि जो केवल सुरक्षा स्थापित करने और अशांति से मुक़ाबला करने में अपनी पूरी कोशिश और वित्तीय संसाधन लगा दे। वह ऐसी सरकार हो जो अपनी शांति व सुरक्षा के लिए अमरीका की मदद पर निर्भर हो।

उत्तरी अफ़्रीक़ा के पीड़ित ग्रस्त देशों में जनता के आंदोलनों ने अमरीका को एक नया अवसर उपलब्ध करा दिया कि वह, वृहत्तर मध्यपूर्व या ग्रेटर मिडल ईस्ट की अपनी योजना को, जिसे उसने वर्ष 2003 में इराक़ के अतिग्रहण के समय आरंभ किया था, पुनः आगे बढ़ाए। अमरीका और नैटो में उसके घटकों ने इस बात की कोशिश की कि अत्याचारी शासकों के ख़िलाफ़ अरब देशों की जनता के आंदोलनों का रुख़ मोड़ कर उन्हें उत्तरी अफ़्रीक़ा व मध्यपूर्व में अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें।

मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थन वाली मुहम्मद मुरसी की सरकार का तख़्ता पलट दिए जाने से इस देश के युवाओं की क्रांति विफल हो गई। लीबिया में क़ज़्ज़ाफ़ी की सरकार के अंत के बाद यह देश कई हिस्सों में बंट गया और तकफ़ीरी व आतंकी गुटों की गतिविधियों के मैदान में बदल गया। अलबत्ता सीरिया की स्थिति अन्य संकटग्रस्त अरब देशों से भिन्न रही। यह देश, ट्यूनीशिया, मिस्र और लीबिया से अलग था और मध्यपूर्व के अहम क्षेत्र में इनमें से किसी भी देश की रणनैतिक स्थिति सीरिया जैसी नहीं थी। सीरिया की रणनैतिक पोज़ीशन इस बात का कारण बनी कि क्षेत्र और क्षेत्र से बाहर की शक्तियां इस देश में व्यापक संकट उत्पन्न करने के लिए विद्रोहियों व आतंकी गुटों का समर्थन करें।

यूरोपीय देश सोच रहे थे कि सीरिया की क़ानूनी सरकार के विरोधियों का समर्थन करके और विदेशों में रह रहे बश्शार असद के विरोधियों को एकजुट करके वे तीन महीने से भी कम समय में इस देश की क़ानूनी सरकार को गिरा देंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सीरिया प्रतिरोध के मोर्चे के केंद्र में स्थित है और उसके ईरान व हिज़्बुल्लाह जैसे सशक्त और निष्ठावान समर्थक हैं। दूसरी ओर सीरिया में रूस के भी अनेक हित हैं जो इस देश में यूरोपीय सरकारों और उनके क्षेत्रीय घटकों द्वारा संकट उत्पन्न किए जाने के कारण ख़तरे में पड़ गए थे। लाज़ेक़िया में तरतूस बंदरगाह, भूमध्य सागर में रूस का अंतिम सैन्य ठिकाना है जो बश्शार असद की सरकार गिरने की स्थिति में रूस के हाथ से निकल जाता और मध्यपूर्व में अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए उसके पास कोई साधन नहीं बचता।

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इस प्रकार राजनैतिक, सुरक्षा व भौगोलिक परिस्थितियों ने मिली कर सीरिया संकट में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के गठन का कारण बनी। इन हालात में यूरोपीय संघ विशेष कर ब्रिटेन और फ़्रान्स, क्षेत्र से बाहर के खिलाड़ियों के रूप में बश्शार असद के विरोधी पाले में चले गए और सीरिया की क़ानूनी सरकार को गिराने की कोशिश करने लगे लेकिन सीरिया की सरकार पर कड़े प्रतिबंध लगा कर और सरकार विरोधियों का भरपूर समर्थन करके भी वे अपना यह लक्ष्य हासिल नहीं कर सके। उनकी इस नीति का परिणाम सीरिया में तकफ़ीरी आतंकी गुटों का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाने के रूप में सामने आया और ये गुट सीरिया व इराक़ में अपने पश्चिमी आक़ाओं के अधीन बाक़ी नहीं रहे बल्कि ख़ुद उन्हें भी आंखें दिखाने लगे। इस तरह वे, यूरोपीय सरकारों के लिए भी ख़तर बन गए।

यूरोप वाले सोच रहे थे कि वे तकफ़ीरी आतंकी गुटों को मज़बूत बना कर सीरया में और उच्च स्तर पर मध्यपूर्व में अपने लक्ष्य हासिल कर लेंगे लेकिन व्यवहारिक रूप से जैसे जैसे सीरिया का संकट लम्बा खिंचता गया, वैसे वैसे यूरोप में आतंकवाद के ख़तरे में वृद्धि होती चली गई यहां तक कि यूरोप को दाइश के विरुद्ध गठजोड़ बनाने पर विवश होना पड़ा। यही कारण है कि यूरोपीय देशों के पास क्षेत्र में अपनी नीतियों पर पुनर्विचार के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। इराक़ और सीरिया में तकफ़ीरी आतंकी गुटों से लोहा लेने वाला एकमात्र बल, प्रतिरोध का मोर्चा है जिसमें इराक़ व सीरिया की सेनाएं, स्वयं सेवी बल और इस्लामी गणतंत्र ईरान शामिल हैं। अलबत्ता दाइश का पतन शुरू होने का मतलब यह नहीं है कि क्षेत्र में अमरीका व यूरोपीय सरकारों के षड्यंत्र ख़त्म हो गए हैं लेकिन अब वे प्रतिरोध के मोर्चे की अनदेखी नहीं कर सकते।

 

 

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