Oct ०८, २०१७ १६:१७ Asia/Kolkata

इससे पहले वाले कार्यक्रम में हमने आतंकवादी गुट दाइश की पराजय और सीरिया में होने वाले परिवर्तनों के संबंध में पश्चिमी सरकारों के दृष्टिकोणों में बदलाव की चर्चा की थी।

सीरिया और इराक में इन देशों की सेनाओं एवं स्वयं सेवी बलों को जो सफलताएं मिली हैं उससे पूरा समीकरण प्रतिरोध के हित में हो गया है। जो देश व सरकारें तकफीरी आतंकवादी गुटों का समर्थन कर रही थीं उन्होंने भी इन सफलताओं को देखकर राजनीतिक मंच पर अपना दृष्टिकोण बदल लिया। वास्तव में डेमोक्रेसी और आज़ादी की आड़ में इन आतंकवादी गुटों के समर्थन पर आधारित जो नीति थी उसका लक्ष्य सीरिया में इस देश के राष्ट्रपति बश्शार असद की कानूनी सरकार को गिराना और इराकी सरकार को कमज़ोर करना था परंतु अंत में इस नीति की उपयोगिता समाप्त हो गयी। तकफीरी आतंकवादी गुटों की समर्थक सरकारों के पास इन गुटों को अपने ठिकानों से पीछे ढ़केलने में इराकी और सीरियाई सैनिकों एवं स्वयं सेवी बलों को मिलने वाली सलफता को स्वीकार कर लेने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं था। वर्ष 2014 में आतंकवादी गुट दाइश ने जब इराक के मूसिल नगर पर कब्ज़ा कर लिया तो दाइश के समर्थकों ने अमेरिका की अगुवाई में उससे मुकाबले के लिए तथाकथित अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बना लिया। इस गठबंधन में यूरोप, प्रशांत महासागर और मध्यपूर्व की बहुत सी सरकारें शामिल हैं परंतु यह गठबंधन दाइश को आघात पहुंचाने से अधिक इस प्रयास में है कि किस तरह इस गुट का अमेरिका और उसके क्षेत्रीय घटकों विशेषकर सऊदी अरब और जायोनी शासन की नीतियों के परिप्रेक्ष्य में दिशा निर्देशन करे। यह गठबंधन चाहता था कि दाइश की सहायता व समर्थन से इराक व सीरिया की भूमि के एक भाग को इन देशों से अलग करके उन लक्ष्यों को प्राप्त कर ले जिसे वर्ष 2003 में इराक के अतिग्रहण के दौरान अमेरिकी भी प्राप्त न कर सके थे। इसी कारण दाइश द्वारा मूसिल पर कब्ज़ा कर लेने के बाद अमेरिका के खुफिया व सुरक्षा अधिकारी दाइश से मुकाबले के बारे में कहते थे कि मूसिल को दाइश से वापस लेने में 10 वर्ष से अधिक का समय लगेगा। वास्तव में अमेरिका और उसके यूरोपीय व क्षेत्रीय घटकों का कहना था कि दाइश 10 वर्ष से अधिक समय तक रहेगा और इस प्रकार की बातें करके वे आतंकवादी गुट दाइश की शक्ति को इराकी सेना और स्वयं सेवी बलों के लिए बहुत बढ़ा चढ़ाकर बयान करते थे परंतु इराकी सेना और इस देश के स्वयं सेवी बलों और ईरान, सीरिया, लेबनान और रूस में उनके समर्थकों व मित्रों का संकल्प व शक्ति उससे भी बहुत अधिक है जितना दाइश के समर्थक उसके लिए बयान करते थे।

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आतंकवादी गुट दाइश द्वारा इराक के मूसिल नगर पर कब्ज़ा कर लेने के बाद ईरान, सीरिया, रूस और लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन ने उससे मुकाबले के लिए एक गठबंधन बनाया। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इराकी सरकार को सैनिक परामर्श की सहायता देकर दर्शा दिया कि विश्व में आतंकवाद से मुकाबले के लिए कौन सा देश दृढ़ संकल्प है। रोचक बात यह है कि पश्चिमी देश ईरान पर आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाते हैं और तेहरान पर निराधार आरोप मढ़ते हैं। इन समस्त दावों व आरोपों के खिलाफ ईरान ने इराकी सरकार की जो सहायता की उससे व्यवहारिक रूप से इराक में दाइश की प्रगति रुक गयी और यह वह बिन्दु है जिसे इराक के सैनिक व राजनीतिक अधिकारियों ने बारमबार स्वीकार किया है। आतंकवादी गुट दाइश केवल क्षेत्र का राजनीतिक व भौगोलिक मानचित्र परिवर्तित करने के लिए नहीं आया था बल्कि उसका अंतिम लक्ष्य ईरान में प्रभाव जमाकर अशांति फैलाना था। जब दाइश ने सीरिया और इराक में अपनी गतिविधियां आरंभ की तो उस समय दाइश और जो शक्तियां उसका समर्थन कर रही थीं उन्हें इस बात में संदेह नहीं था कि कोई भी शक्ति दाइश को पराजित नहीं कर सकती। उनके अनुसार एक वह समय था जब उन क्षेत्रों पर उसमानी और बनी अब्बासी शासक, शासन करते थे और अब दोबारा इतिहास दोहराया जाने वाला है। इसी आधार पर रियाज़ और अंकारा की ओर से आतंकवादी गुट दाइश की विशेष सहायता की जाती थी।

वर्ष 2014 में दाइश द्वारा इराक के मूसिल नगर पर कब्ज़े के दौरान तुर्की ने बड़ी सरलता से अपने कूटनयिकों और नागरिकों को मूसिल से बाहर निकाल लिया और दाइश के सामने अपने सैनिक दल को करकूक प्रांत के पश्चिम में स्थित बाशिक़ा की ओर रवाना किया और जब इराकी अधिकारियों ने तुर्की के इस कार्य पर आपत्ति जताई तो उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह किसी भी स्थिति में इस क्षेत्र से नहीं जायेगा। तुर्की के तत्कालीन प्रधानमंत्री के सहायक नोअमान कूर तलमूश ने इराकी अधिकारियों की आपत्ति के जवाब में कहा कि उसमानी शासन की समाप्ति के अंतिम दिनों में होने वाला लूज़ान समझौता हमें अपनी भूमि में प्रवेश की अनुमति देता है। उस समय सऊदी नरेश के बेटे मोहम्मद बिन सलमान ने इराक में दाइश के तेज़ी से किये जाने वाले हमलों के दौरान कहा था कि दाइश एक सुन्नी आंदोलन है जो अन्याय के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है। इन बातों से हटकर देखें तो बहुत सारे प्रमाण मौजूद हैं जो इस बात के सूचक हैं कि सऊदी अरब और तुर्की के खुफिया तंत्रों के दाइश से विस्तृत संबंध हैं।

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मूसिल के तीन वर्षों तक दाइश के कब्ज़े में रहने के बाद भी अमेरिका, यूरोपीय सरकारें और दाइश के समर्थक क्षेत्र के कुछ देश भी न केवल अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सके बल्कि वे इस बात के साक्षी हैं कि शक्ति का संतुलन तकफीरी आतंकवादियों के मुकाबले में प्रतिरोध के हित में परिवर्तित हो गया है। सीरिया और इराक में इन देशों की सेनाओं के साथ मिलकर स्वयं सेवी बलों ने भी दाइश से मुकाबले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब आतंकवादी गुट दाइश से मुकाबले में मूसिल के पश्चिम में इस गुट का गढ़ तबाह हो गया तो वह समझ गया कि वह किसी भी स्थिति में मुकाबला नहीं कर सकता और अगर वह मुकाबला करना चाहेगा तो उसे बहुत अधिक जानी क्षति उठानी पड़ेगी। मूसिल के पश्चिम में बंदी बना लिये गये दाइश का एक कमांडर स्वयं सेवी बलों की शक्ति की ओर संकेत करते हुए कहता है अगर “हश्द” न होता तो असंभव था कि मूसिल में या दूसरे स्थानों पर एक मिली मीटर भूमि भी हमसे वापस ले लेते।

इराक और सीरिया में स्वयं सेवी बल बड़ी बहादुरी व साहस के साथ लड़ रहे हैं और वह हार- जीत को नहीं पहचानते। एसे बल के सामने आतंकवादी गुट दाइश के पास आत्म समर्पण कर देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। आतंकवादी गुट दाइश से मुकाबले में ईमान और ऊंचे मनोबल की भावना उन लोगों में बहुत मजबूत है जो ईरान, अफगानिस्तान और लेबनान से दाइश के मुकाबले के लिए इराक और सीरिया गये हैं। प्रतीत यह हो रहा है कि अमेरिका और उसके क्षेत्रीय घटक जिन्होंने बहुत पैसा खर्च करके दाइश को बनाया है, इस बात को पसंद नहीं करेंगे कि आसानी से दाइश को किनारे लगा दिया जाये। न आतंकवादी गुट दाइश के नेता और न ही इस गुट को बनाने में प्रभावी भूमिका निभाने वाले देशों के खुफिया तंत्र व सरकारें इस बात को पसंद करेंगी कि दाइश की पूरी तरह सैनिक पराजय हो और वह समाप्त हो जाये। इस आधार पर कहा जा सकता है कि दाइश के पीछे हटने का अर्थ उसका खत्म हो जाना नहीं है। राजनीतिक टीकाकार इस आतंकवादी गुट की भावी चाल के संबंध में विभिन्न विचार पेश कर रहे हैं। साथ ही इस आतंकवादी गुट ने पिछले तीन वर्षों के दौरान इराक और सीरिया के भविष्य को एक दूसरे से जोड़ दिया। सीरिया में तकफीरी गुटों का जो भविष्य होगा उसका प्रभाव इराक के भविष्य में भी पड़ेगा।

 

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