Mar १७, २०१८ १७:११ Asia/Kolkata

इराक़ का चौथा संसदीय चुनाव 12 मई 2018 को आयोजित होगा।

इससे पहले वाले कार्यक्रम में हमने आगामी इराक़ी संसदीय चुनाव के महत्व के बारे में आपको बताया था। इस कार्यक्रम में हम इराक़ के चुनाव क़ानून, चुनाव के आकड़े और अब तक बनने वाले गठबंधनों पर नज़र डालेंगे।

इराक़ी संसद में 328 सीटें हैं। क़ानून के अनुसार हर एक लाख आबादी पर एक सीट है और हर प्रांत अपने आधिकारिक कार्यालय सीमा के अनुसार एक चुनावी क्षेत्र है। इराक़ी संसद मे अल्पसंख्यकों के लिए भी पांच सीटें हैं जिनमें बग़दाद, नैनवा, दहूक, करकूक और अरबील प्रांत हैं। इज़दी अल्पसंख्यकों की एक सीट नैनवा प्रांत में, अल्पसंख्यक अलवी समुदाय की एक सीट नैनवा प्रांत में तथा साएबीन समुदाय की एक सीट बग़दाद में है। 

 

चुनाव क़ानून के अनुसार प्रत्याशी नामांकन सेन्ट लीग मैथड द्वारा कर सकते हैं। इस क़ानून के आधार पर 

इस क़ानून के आधार पर संसदीय सीट, मतगणना और पार्टी के सदस्यों की गिनती के बाद उनमें बांटी जाएगी। इस क़ानून के आधार पर प्रत्याशियों की संख्या, तीन लोगों से कम या चुनाव क्षेत्र की सीटों से दो गुना अधिक नहीं होनी चाहिए। मतदाता वोटिंग लिस्ट में अपने नामों को चेक करने के बाद, मतदान केन्द्रों पर जाकर अपने पसंद के किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। चुनाव में आज़ाद उम्मदीरवार के रूप में भी खड़ हुआ जा सकता है।

इराक़ी संसदीय चुनाव में मतगणना का हिसाब, दा हान्ट और सेन्ट लीग मैथेड से होगा। वर्ष 2010 का संसदीय चुनाव दा हान्ट मैथेड के अनुसार आयोजित हुआ था जिसमें सही वोट को हर प्रांत में दृष्टिगत रखी गयी सीटों की संख्या पर विभाजित किया जाता है और उसके बाद इन सीटों की संख्या के अनुसार चुनाव में भाग लेने वाले हर एक गठबंधन पर मतों का विभाजन करके, इस चुनाव में भाग लेने के लिए हर गठबंधन की भागीदारी को निर्धारित किया जाता है। इस क़ानून का बहुत अधिक विरोध विशेषकर छोटी पार्टियां करती थीं क्योंकि यह क़ानून, चुनाव में भाग लेने वाले गठबंधन को यह संभावना प्रदान करता है कि वह उन छोटी पार्टियों और दलों के वोटों को जो मापदंड तक नहीं पहुंचे हैं, स्वयं से विशेष कर लें। इसी बीच किसी भी गठबंधन का नेता, अपने निकटवर्ती प्रत्याशियों को छोटी पार्टियों के वोट के सहारे संसद में भेजते हैं और इस प्रकार से संसद में शक्ति का संतुलन बनाए रखते हैं।

वर्ष 2014 का संसदीय चुनाव सेन्ट लीग मैथेड के अनुसार आयोजित हुआ और संसद में भारी बहुमत से अगले चुनाव की बुनियाद भी यही सिद्ध हुआ। इस क़ानून में कमी यह है कि इस शैली में संभव है कि हर चुनाव क्षेत्र से विशेष सीट, को भी एक पार्टी एक तिहाई वोट से जीत ले जबकि क़ानून की मांग है कि छोटी पार्टियों की भी संसद में भागीदारी होनी चाहिए।

सद्दाम के बाद इराक़ में पहला संसदीय चुनाव वर्ष 2005 में आयोजित हुआ था। इस चुनाव में शिया मुसलमानों की पार्टियों से बने गठबंधन एकजुट इराक़ गठबंधन ने 48 प्रतिशत मत प्राप्त करके 140 संसदीय सीटों पर जीत दर्ज की। यह चुनाव इराक़ के अतिग्रहण के काल में आयोजित हुए थे जिसमें सूची या लिस्ट के हिसाब से चुनाव हुए थे। इसमें मतदाताओं को केवल सूची या लिस्ट को ही मत देना था। इसीलिए इस चुनाव में धार्मिक और जातीय द्वेष बहुत अधिक था और छोटे दलों में तो मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा ही नहीं हुई और इसी लिए वर्ष 2009 में देश के चुनाव क़ानून पर पुर्नविचार का सुझाव पेश किया गया। इस चुनाव में 152 पार्टियों ने 275 सीटों के लिए कांटे का मुक़ाबला किया जबकि कुछ सुन्नी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था।

सद्दाम के बाद दूसरा संसदीय चुनाव 2010 में आयोजित हुआ जिसमें 12 गठबंधन के साथ देश की 181 पार्टियों ने भाग लिया। इस अवसर पर संसदीय सीटों को बढ़ा कर 325 कर दिया गया। अतीत की तुलना में इस चुनाव में देश के सभी धार्मिक और जातीय दलों और पार्टियों ने गठबंधन के रूप में भाग लिया। उदाहरण स्वरूप अलइराक़िया गठबंधन में शिया दल, सेकल्युलर, सुन्नी पार्टियां तथा बास पार्टी से निकट दलों ने भाग लिया। इस गठबंधन के नेता अयाद अल्लावी थे। इस गठबंधन ने ज़बरदस्त जीत दर्ज की। इस चुनाव में शिया गुटों का वोट बढ़ा किन्तु शिया गुटों की स्थिति, सुन्नी गुटों के बीच अधिक एकजुटता और पश्चिमी देशों के समर्थन के कारण बहुत कमज़ोर हुई।

वर्ष 2014 के चुनाव में संसदीय सीटें बढ़कर 328 हो गयीं। चुनाव में 277 पार्टियों पर आधारित 39 गठबंधन के बीच कांटे का मुक़ाबला हुआ। यह चुनाव भी सेन्ट लीग मैथेड के आधार पर आयोजित हुए थे।  इस चुनाव में नूरी मालेकी के नेतृत्व में क़ानून की संप्रभुता गठबंधन ने 328 सीटों में से 94 पर जीत दर्ज की थी और इस प्रकार से उसने संसदीय चुनाव में बहुमत प्राप्त कर लिया।

मई 2018 के चुनाव ऐसी स्थिति में आयोजित हो रहे हैं कि वर्ष 2010 और 2014 की भांति चुनाव में मुख्य मुक़ाबला शिया, सुन्नी और कुर्दों के बीच है। इस चुनाव में 27 गठबंधन और 205 राजनैतिक दल भाग ले रहे हैं जिनमें से 143 पार्टियां गठबंधन के रूप में सामने आएंगी जबकि 62 दल स्वतंत्र रूप से इसमें सीधे भाग लेंगे। यह चुनाव ऐसी स्थिति में आयोजित हो रहे हैं कि अलजज़ीरा टीवी चैनल के अनुसार इस बार के चुनाव का मापदंड चुनावी सूझबूझ है। यह चुनावी सूझबूझ देश के तीनों गुटों शिया, सुन्नी और कुर्दियों में भलिभांति देखी जा सकती है।

वर्ष 2018 के संसदीय चुनाव के समय हैदर अलएबादी और नूरी मालेकी के बीच मतभेद के कारण हिज़्बुद्दावा दो लिस्ट के साथ अगले चुनाव में भाग लेगी। इस लिस्ट का नेतृत्व नूरी मालेकी करेंगे जबकि दूसरी लिस्ट की अध्यक्षता हैदर अलएबादी के पास होगी। हरीस हसन अलक़रवी एटलांटिक परिषद में जनवरी 2018 में छपे अपने लेख में कहते हैं कि हिज़बुद्दावा पार्टी एक प्रकार से दो भागों में विभाजित हो चुकी हैं। वास्तव में हिज़्बुद्दावा पार्टी अगले चुनावी मुक़ाबले में उतरने से पहले ही आपस में भिड़ गयी है।

इराक़ी टीकाकार बाक़िर हकीम के अनुसार वर्ष 2018 के चुनाव में शिया मुसलमान छह गठबंधनों के साथ भाग लेंगे जिसमें नूरी मालेकी के नेतृत्व में क़ानून की संप्रभुता गठबंधन, हैदर अलएबादी के नेतृत्व में नस्र गठबंधन, हादी आमेरी के नेतृत्व में फ़त्ह गठबंधन, मुक़तदा सद्र के नेतृत्व में साएरून गठबंधन, अम्मार हकीम के नेतृत्व में हिकमा गठबंधन और हम्मा हम्मूदी के नेतृत्व में सुप्रिम काउंसिल गठबंधन भाग लेगा।

क़ानून की प्रभुसत्ता नामक गठबंधन वर्ष 2014 के चुनाव की भांति नूरी मालेकी के नेतृत्व में भी 2018 के संसदीय चुनाव में भाग लेगी जिसके बहुमत पाने की बहुत अधिक आशा है। अलबत्ता इस बारे में रिपोर्टें मिली हैं कि इराक़ के सुप्रिम इस्लामी काउंसिल गठबंधन ने भी नूरी मालेकी के गठबंधन को समर्थन दे दिया है।

इराक़ के वर्तमान प्रधानमंत्री और जमाअतुद्दावा पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैदर अलएबादी के नेतृत्व में नस्र गठबंधन अगले चुनाव में अपनी क़िसमत अज़माने जा रहा है। यह गठबंधन देश का सबसे बड़ा गठबंधन है जिसमें 31 पार्टियां शामिल हैं। यद्यपि आगामी चुनाव में नस्र गठबंधन के सबसे बड़े गठबंधन बनकर उभरने की आशा है किन्तु इस गठबंधन को अपने कुछ सांसदों और पार्टी के वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोपों का सामना है। इस आधार पर सादेक़ून और हालिया में अम्मार हकीम के नेतृत्व वाली इराक़ की नेश्नल हिकमत पार्टी ने इस गठबंधन का साथ छोड़ दिया। इराक़ी मामलों के टीकाकार ज़ैद अली ने 28 दिसम्बर 2017 को अलजज़ीरा में लिखा था कि हैदर अलएबादी आतंकवाद के संघर्ष को तुरुप के पत्ते के रूप में अलगे चुनाव में प्रयोग कर सकते हैं और इसी विषय को अपना एजेन्डा बना सकते हैं जबकि उन्होंने नूरी मालेकी के शासन काल में देश के एक तिहाई भाग पर दाइश के नियंत्रण पर उनकी कड़ी आलोचना की थी।

सद्र धड़ा भी देश में टेक्नोक्रेट सरकार के गठन की मांग करता रहा है जिसमें विशेषज्ञ और दक्ष लोग शामिल हों न कि राजनेता। यह धड़ा मुक़तदा सद्र के नेतृत्व में साएरून नामक गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगा।

यह ऐसी स्थिति में है कि अम्मार हकीम इस्लामी सुप्रिम काउंसिल से अलग हो गये और उन्होंने नेश्नल हिकमा पार्टी बना ली। उन्होंने पहले हैदर अलएबादी के साथ गठबंधन किया किन्तु आख़िर में उन्होंने इस गठबंधन की लिस्ट पर आपत्ति जताते हुए इस गठबंधन को छोड़ दिया। इस प्रकार से हैदर अलएबादी के गठबंधन को बड़ा धचका लगा और अम्मार हकीम अब हिकमा गठबंधन के साथ आगामी चुनाव में भाग लेंगे।  

इराक़ में सुन्नी अरबों की संख्या लगभग 20 प्रतिशत है और यह देश के अल्पसंख्यक समझे जाते हैं। इराक़ की वर्तमान संसद में सुन्नी अरबों के लिए 74 सीटें हैं जो लगभग 22 प्रतिशत समझी जाती हैं। सुन्नी अल्पसंख्यकों में विभिन्न राजनैतिक और आस्था संबंधी रुझान रखने वाले विभिन्न गुट शामिल हैं।  इराक़ में सुन्नी समुदाय के लोग भौगोलिक रूप से बिखराव का शिकार हैं। इराक़ में सुन्नी आबादी अंबार, सलाहुद्दीन, बग़दाद, नैनवा, करकूक इत्यादि में है।

इसके साथ ही इराक़ी सुन्नी मुसलमानों को सुन्नी समुदाय की राजनैतिक प्रक्रिया में अधिक रुचि न होने का भी सामना है। इसी के साथ इराक़ी सुन्नी मुसलमानों में मतभेद भी बहुत अधिक हैं जिसके कारण कम आबादी के साथ इनमें गठबंधन बहुत अधिक हैं।

बहरहाल इराक़ के अगले संसदीय चुनाव में बहुत की कांटे का मुक़ाबला होगा क्योंकि देश के तीन ही वर्ग सुन्नी, शिया और कुर्द पूरी तरह से चुनाव में भाग ले रहे हैं। इराक़ के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है वह भ्रष्टाचार है और टीकाकार ज़ैद अली का कहना है कि वर्तमान इराक़ी संसद में देश में भ्रष्टाचार से निपटने की उचित क्षमता नहीं है।

 

 

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