Mar २८, २०१६ १८:२६ Asia/Kolkata

ईरान की इस्लामी शासन व्यवस्था में वरिष्ठ नेता को विशेष स्थान प्राप्त है।

ईरान की इस्लामी शासन व्यवस्था में वरिष्ठ नेता को विशेष स्थान प्राप्त है। संविधान के अनुसार वरिष्ठ नेता को अति विशेष अधिकार प्राप्त हैं। जहां पर ईरान की शासन व्यवस्था में वरिष्ठ नेता का एक क़ानूनी महत्व है वहीं उनका एक आध्यात्मिक स्थान भी है। 

  यही कारण है कि लोगों का उनसे आध्यात्मिक लगाव है। वरिष्ठ नेता की बातें जहां आम लोगों के लिए विशेष महत्व रखती हैं वहीं यह अधिकारियों के लिए मार्गदर्शन का स्थान रखती हैं। सन 1394 हिजरी शमसी के दौरान इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने विभिन्न अवसरों पर देश के अधिकारियों का मार्गदर्शन किया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई, हर हिजरी शमसी वर्ष के आरंभ पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में नए साल के लिए एक नारा या स्लोगन देते हैं। 1394 हिजरी शमसी के आरंभ के अवसर पर उन्होंने “राष्ट्र व सरकार सहृद्यता व एक आवाज़” का नारा दिया था। उन्होंने इस नारे को परिभाषित करते हुए कहा कि यदि सरकार और जनता के बीच सहकारिता में दोनों ओर से सहयोग जारी रहे तो एसे में जनता की जो आकांक्षा है वह निश्चित रूप में पूरी होगी। सरकार और जनत के बीच जितना अच्छा तालमेल होगा उसी अनुपात में दोनो पक्षों के काम आगे बढ़ते रहेंगे। दोनों अर्थात सरकार और जनता को एक-दूसरे पर विश्वास करना चाहिए।

वह विषय जिसने पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस्लामी गणतंत्र ईरान के अधिकारियों के ध्यान को अपनी ओर आकृष्ट कर रखा था, परमाणु वार्ता थी। यह परमाणु वार्ता लंबे समय तक ईरान और गुट पांच धन एक के बीच जारी रही। ईरान द्वारा परमाणु तकनीक से शांतिपूर्ण लाभ उठाने और अत्याचारपूर्ण प्रतिबंधों को हटाने जैसे विषयों को लेकर परमाणु वार्ता, पिछले वर्ष बहुत ही संवेदनशील चरण में पहुंच गई थी। इस्लामी गणतंत्र ईरान के वरिष्ठ नेता होने के नाते आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस बारे में अपने दृष्टिकोण से जनता और अधिकारियों को अवगत करवाया। उन्होंने सबसे पहले तो शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों पर बल देते हुए कहा कि पवित्र क़ुरआन और इस्लामी नियमों के अनुसार परमाणु शस्त्रों का उत्पादन, उनका भण्डारण और इसी प्रकार इनका प्रयोग, हराम है।

  उन्होंने कहा कि इन्ही बातों के दृष्टिगत ईरान परमाणु शस्त्रों के निर्माण के लिए प्रयासरत नहीं है। उन्होंने कहा कि इसका संबन्ध न तो उनसे अर्थात अमरीकियों से है और न ही परमाणु वार्ता से है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि वे लोग भलिभांति जानते हैं कि इस बारे में ईरान के लिए रुकावट, धार्मिक आदेश है न कि पश्चिम की धमकियां या उनका दबाव।

वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रपति डा. हसन रूहानी को 21 अक्तूबर 2015 को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में सरकार को उन बिंदुओं से अवगत करवाया गया था जिनको वार्ता के दौरान, वार्ताकारों को दृष्टिगत रखना था। इस पत्र में वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा था कि यह सरकारें विशेषकर अमरीका, किसी भी स्थिति में विश्वास योग्य नही है इसलिए जो भी समझौता किया जाए उसके लिए उनसे पर्याप्त गैरेंटी अवश्य ली जाए।

अपने पत्र के अंत में वरिष्ठ नेता ने इस महत्वपूर्ण बिंदु की ओर भी संकेत किया था कि प्रतिबंधों का हटाया जाना हालांकि बहुत ज़रूरी है किंतु देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने और ईरानी जनता की आर्थिक स्थिति के सुधारने में प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था की सर्वाधिक आवश्यकता है। पिछले दो वर्षों के दौरान इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था की बहुत अधिक सिफारिश की है। प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था को वास्तव में स्वदेशी उत्पाद और “नौलेज बेस्ड” या ज्ञान पर आधारित होना चाहिए। प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था के परिणाम स्वरूप मिलने वाली आर्थिक स्वतंत्रता के कारण अमरीका, किसी भी बहाने से ईरान पर न तो प्रतिबंध लगा सकेगा और न ही दबाव बना सकेगा। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था का मुख्य केन्द्र स्वदेशी उत्पाद है। इस बारे में वे कहते हैं कि प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए स्वदेशी उत्पाद को बढ़ावा देना होगा। यदि एसा हो जाता है तो देश में रोज़गार सृजन के सुअवसर उपलब्ध होंगे और बेरोज़गारी जैसी सामाजिक समस्या, कम होते-होते धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। वे कहते हैं कि मुख्य कार्य स्वदेशी उत्पादन है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई, प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था के दूसरे आधार का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि इस अर्थव्यवस्था का एक अन्य मूलभूत स्तंभ, ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था है। वास्तव में यह स्वदेशी उत्पाद पर ही आधारित अर्थव्यवस्था है जिसकी जड़ें देश के भीतर होती हैं। वरिष्ठ नेता का कहना है कि स्वदेशी उत्पादन की जड़े इतनी अधिक मज़बूत होती हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के आर्थिक झटके उसे डिगा नहीं सकते बल्कि वह उनसे प्रभावित ही नहीं होती। इसलिए हमें प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था को अपनाना चाहिए।

सन 1394 हिजरी शमसी के दौरान ईरान में घटने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक, देश में होने वाले संसदीय एवं वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली समिति के चुनाव थे। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता सदैव ही चुनावों में भागीदारी के लिए जनता को प्रेरित करते आए हैं। वे कहते हैं कि देश के भविष्य का निर्धारण करने के लिए जनता को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए। 26 फ़रवरी को होने वाले चुनावों में जनता ने बढ़चढकर भाग लिया। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने चुनावों के आयोजन के बाद इन्हें उचित ढंग से कराने के लिए प्रशासन की सराहना की और जनता द्वारा इनमें भाग लेने के बारे मे कहा कि इन चुनावों में भाग लेकर ईरानी जनता ने देश की इस्लामी व्यवस्था के प्रति अपना भरोसा पुनः जताया है। उन्होंने कहा कि यह बात बहुत महत्व रखती है।

  वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार चुनावों में विजयी होने वालों को संबोधित करते हुए कहा कि जनता ने अपनी भूमिका निभाई और बड़े अच्छे ढंग से निभाई। अब आपका नंबर है। उन्होंने कहा कि अब सांसदों और विशेषज्ञ असेंब्ली के चुने गए सदस्यों के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का मौक़ा है।

वरिष्ठ नेता ने केवल ईरान के आरंतिक मामलों तक ही अपना ध्यान सीमित नहीं किया बल्कि इस्लामी जगत और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली गतिविधियों पर भी उनकी पैनी नज़र रही। सीरिया, इराक़, यमन और कुछ अफ़्रीकी देशों में मुसलमानों के विरुद्ध होने वाली कार्यवाहियां उनसे छिपी नहीं हैं। इस बारे में वे कहते हैं कि तकफ़ीरी आतंकवादी गुट वास्तव में अमरीका की ओर से मुसलमानों के विरुद्ध एक बहुत गहरा षडयंत्र हैं। उन्होंने कहा कि इस समय अमरीकी कहते हैं कि वे आतंकवाद के विरुद संघर्ष करना चाहते हैं जबकि युद्धोन्मादी रक्त पिपासू, आतंकवादी गुटों को स्वयं उन्होंने ही जन्म दिया है। दाइश को किसने अस्तित्व प्रदान किया है? वे स्वयं यह बात स्वीकार करते हैं कि इस आतंकवादी गुट को बनाने में उनकी भूमिका रही है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के मार्गदर्शन के कारण तकफीरी आतंकवादियों से मुक़ाबले के क्षेत्र में ईरान ने अबतक निर्णायक भूमिका निभाई है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि सीरिया और इराक़ में अमरीका, सऊदी अरब और तुर्की के तत्वों से संघर्ष, किसी भी स्थिति में ईरान को अतिग्रहणकारी ज़ायोनियों से मुक़ाबला करने से नहीं रोक सकता। वे कहते हैं कि हमने अपने देश के भीतर, इराक़ में, सीरिया में और लेबनान सब जगह उन लोगों के साथ सहयोग किया है जो ज़ायोनी शासन के विरुद्ध हैं। हमने एसों की सहायता की है और आगे भी करेंगे। हम ज़ायोनी शासन के विरुद्ध डटे हुए हैं। आयतुल्ला ख़ामेनेई कहते हैं कि अति क्रूर एवं भयावह आतंकवादी, ज़ायोनी हैं और हम उनसे मुक़ाबला कर रहे हैं।

यमन, सऊदी अरब का पड़ोसी देश है जो पिछले एक वर्ष से, तेल से संपन्न इस देश के आक्रमणों का निशाना बना हुआ है। कितने अफ़सोस की बात है कि स्वंय को विश्व के मुसलमानों का समर्थक कहने वाला देश, एक निर्धन मुसलमान देश की जनता के विरुद्ध जघन्य अपराध कर रहा है। कुछ पश्चिमी तथा अरब देशों के समर्थन से किये जाने वाले इस सऊदी आक्रमण के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यमन में सऊदी अरब ने वास्तव में बहुत ही घृणित एवं जघन्य अपराध किय हैं। वे कहते हैं कि रियाज़ ने जो कुछ अपराध यमन में किये हैं निश्चित रूप में उसका सामना स्वयं सऊदी अरब को करना होगा। यमन में एक वर्ष तक इतने आक्रमण और अपराध करने के बावजूद सऊदी अरब को वहां किसी भी प्रकार की सफलता नही मिल सकी। इस संबन्ध में वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यमन में घटने वाली घटनाएं बताती हैं कि सऊदी अरब के भीतर यमन के बारे में एक एसा गुट फैसले ले रहा है जिसमें किसी भी प्रकार की दूरदर्शिता नहीं पाई जाती बल्कि वह पूर्ण रूप से जाहिल है।

सऊदी अरब के अधिकारियों की अयोग्यता का एक उदाहरण 2015 में घटने वाली मिना त्रासदी है। मिना त्रासदी के दौरान विभिन्न देशों के हज़ारों हाजी मारे गए। इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मिना त्रासदी को देखकर यह कहा जा सकता है कि यह घटना मेज़बान देश की अयोग्यता और लापरवाही के कारण घटी। यह कोई रानीतिक घटना नहीं है बल्कि यह उन सैकड़ों हाजियों का विषय है जो उपासना के दौरान सऊदी सरकार की लापरवाही के कारण मारे गए। वास्तव में मिना घटना को बहुत ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए।


टैग्स