Apr १५, २०१८ १३:०७ Asia/Kolkata

पिछले कार्यक्रम में ब्रिटेन में धार्मिक व जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों और इसी तरह महिलाओं व बच्चों के अधिकारों के हनन की ओर संकेत किया गया।

इस कार्यक्रम में हम ब्रिटेन में मानवाधिकार के हनन के अन्य विषयों पर प्रकाश डालेंगे। मज़दूरों, कर्मिकों और कर्मचारियों, शिक्षकों, प्रोफ़ेसरों यहां तक कि चिकित्सकों के अधिकारों का हनन उन मामलों में से है जिनका ब्रिटेन में व्यापक स्तर पर हनन होता है। समाचारपत्र गार्डियन ने 31 अक्तूबर 2016 को अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि पेंशन कम किए जाने और लोगों को नौकरियों से निकाले जाने के कारण पोस्ट, रेलवे और विमानन उद्योग के हज़ारों कर्मचारियों ने हड़ताल की।

इसी तरह जनवरी 2015 में लंदन में बस सर्विस के चालकों ने कम वेतन और नौकरी की ख़राब स्थिति के चलते व्यापक हड़ताल की थी। बस सर्विस के लगभग 27 हज़ार कर्मचारियों ने अपनी यूनियन के समन्वय से इस हड़ताल में भाग लिया। पूरे ब्रिटेन की यूनिवर्सिटियों के प्रोफ़ेसर भी कई बार अपने कम वेतन और सुविधाओं की ख़राब स्थिति के कारण हड़ताल कर चुके हैं। इसी तरह स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी और डॉक्टर भी अपने अधिकारों के हनन के कारण कई बार हड़ताल कर चुके हैं। डॉक्टरों का कहना था कि सरकार नए समझौतों को लागू करके उनकी कार्यवाधि को बढ़ाएगी और वेतन कम करेगी।

ब्रिटेन में मानवाधिकार के हनन का एक अन्य विषय सामाजिक असुरक्षा है। सन मैगज़ीन ने 28 अक्तूबर सन 2016 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसके अनुसार ब्रिटेन की सकड़ों पर इस समय लगभग 50 हज़ार यौन शोणकर्ता मौजूद हैं। यह संख्या पिछले दशक की तुलना में 70 गुना बढ़ी है। सामाजिक असुरक्षा के कारण आत्महत्या जैसी गंभीर सामाजिक समस्याएं और युवाओं के बीच अवसाद जैसे रोग बढ़ने लगे हैं। गार्डियन पत्रिका ने 12 मई सन 2016 को एक रिपोर्ट में लिखा था कि वर्ष 2015 में ब्रिटेन में आत्महत्या करने वालों की संख्या पिछले बीस बरसों की तुलना में अभूतपूर्व थी। बच्चों और किशोरों में अवसाद भी ब्रिटेन की सामाजिक समस्याओं में से एक है। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं के प्रति बढ़ती चिंता, आतंकी ख़तरों में वृद्धि और सामाजिक असुरक्षा, ब्रिटेन के बच्चों व किशोरों की अहम समस्याओं में शामिल है।

ब्रिटेन में अधिकतर संचार माध्यम बड़ी आसानी से इस देश के जातीय व धार्मिक अल्पसंख्यकों का अनादर करते हैं। यह स्थिति इस हद तक पहुंच गई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के उच्च मानवाधिकार आयोग के प्रमुख ज़ैद राद हुसैन ने 24 अप्रैल सन 2015 को एक बयान जारी करके कहा था कि सन पत्रिका की ओर से पलायनकर्ताओं को काकरोच बताया जाना अत्यंत निंदनीय है। उन्होंने कहा कि नाज़ी काल के संचार माध्यम लोगों से कहते थे कि उच्चाधिकारी, काकरोचों और चूहों को समाप्त करना चाहते हैं। इस प्रकार के शब्द और वह भी बड़ी संख्या में प्रकाशित होने वाली पत्रिका में अस्वीकार्य और द्वेष फैलाने वाले हैं। इसी समाचारपत्र में केटी हापकिंज़ का एक लेख प्रकाशित हुआ था जिससे काफ़ी हंगामा मचा था। उन्होंने इस लेख में सुझाव दिया था कि भूमध्य सागर में पलायनकर्ताओं को लेकर आने वाली नौकाओं के ख़िलाफ़ युद्धक नौकाओं का इस्तेमला किया जाना चाहिए। उन्होंने अपने लेख में पलायनकर्ताओं को जंगली इंसान बताया था।

ब्रिटेन हमेशा से अन्य देशों में अभिव्यक्ति, आस्था और सभाओं की स्वतंत्रता की मांग करता आया है और इसे वह अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के लिए हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। यह ऐसी स्थिति में है कि जब स्वयं ब्रिटेन अभिव्यक्ति, आस्था और सभाओं के आयोजन की स्वतंत्रता के अधिकार का सबसे बड़ा हननकर्ता रहा है। इसी तरह ब्रिटेन में पत्रकारों के अधिकारों का भी बहुत हनन होता है। इस देश की सरकार आतंकवाद से संघर्ष और राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने से पत्रकारों को गिरफ़्तार करती रहती है। ब्रिटिश सरकार इन्हीं बहानों से पत्रकारों का लाइसेंस ज़ब्त कर लेती है और कभी कभी तो उन्हें निर्वासित कर देती है। इस संबंध में एक ब्रिटिश पत्रकार सारा हेरीसन की ओर संकेत किया जा सकता है जिन्हें अंग्रेज़ अधिकारियों के भ्रष्टाचार को सार्वजनिक करने वाली वेबसाइट विकी लीक्स के साथ सहयोग करने के कारण ब्रिटेन निर्वासित कर दिया गया है।

ज़ायोनी लाबियों की गतिविधियों के बारे में बात करना और इस्राईली शासन के अपराधों को सार्वजनिक करना, ब्रिटेन की सरकार की रेड लाइनों में से एक है और व्यवहारिक रूप से इस देश के संचार माध्यमों, पत्रकारों, यूनिवर्स्टियों के प्रोफ़ेसरों और आम लोगों को इस्राईल की आलोचना का अधिकार नहीं है। डेली टेलीग्राफ़ के अनुसार चार अप्रैल सन 2016 को ब्रेडफ़ोर्ड नगर में लेबर पार्टी के सांसद नाज़शा ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के अपराधों की आलोचना करते हुए इस्राईल को अमरीका में स्थानांतरित किए जाने की मांग की। उन्होंने इसी तरह अपने ट्वीट में कहा था कि अमरीकी खुले मन से इस्राईलियों को बांहों में लेंगे और साथ ही इससे मध्यपूर्व में अमरीका का विदेशी हस्तक्षेप भी समाप्त हो जाएगा। नाज़शाह के इस ट्वीट पर स्वयं उनके दल के लोगों और ज़ायोनी लाबी ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई जिसके बाद वे अपने पद से त्यागपत्र देने पर मजबूर हो गए।

ब्रिटिश सरकार और ब्रिटेन की गुप्तचर संस्थाओं की ओर से इस देश के नागरिकों की जासूसी, ब्रिटेन में मानवाधिकार के हनन का एक अन्य विषय है। टेलीफ़ोनी संवादों को रिकार्ड करना, फ़ोन टैपिंग, बड़ी संख्या में गुप्त कैमरे लगाना और अस्पष्ट सुरक्षा कारणों से लोगों के घरों पर हमले करना, ब्रिटेन में मानवाधिकारों का व्यापक हनन समझा जाता है। कुछ दस्तावेज़ों से पता चलता है कि चेलटनहाम के किसी केंद्र में ब्रिटिश सरकार की ओर लोगों के संवाद सुनने और उनके बारे में सूचनाएं एकत्रित करने के उद्देश्य से इलेक्ट्रानिक यंत्र लगाए गए हैं। वर्ष 1984 में दूर संचार के क़ानून में किए गए एक संशोधन के आधार पर ब्रिटेन की गुप्तचर संस्थाओं को यह शक्ति हासिल हुई है। पीसी वर्ल्ड ने 10 अप्रैल 2015 को एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार ब्रिटेन के एक मानवाधिकार संगठन ने न्यायालय में मुक़द्दमा दायर करके इस देश में फ़ोन टैपिंग बंद किए जाने की मांग की थी। प्राइवेसी इंटरनेश्नल के उपाध्यक्ष एरिक किंग कहते हैं कि इन सूचनाओं का प्रयोग, जिनमें से कुछ, नागरिकों के स्वेच्छा से हासिल की गई हैं, कुछ चोरी की गई हैं और कुछ ज़ोर-ज़बरदस्ती करके प्राप्त की गई हैं, मानवाधिकार का हनन है और इसे रुकना चाहिए।

हिंसा व यातनाओं के साथ ब्रिटेन में जेलों की दयनीय स्थिति भी इस देश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की अहम चिंताओं में से एक है। क़ैदियों को पुलिस द्वारा भी और जेल प्रशासन द्वारा भी मारा पीटा जाता है और यातनाओं का निशाना बनाया जाता है। बंदियों के साथ अनुचित व्यवहार, उनके बीच अवसाद फैलने बल्कि आत्म हत्या की घटनाओं में वृद्धि का कारण बना है। 11 दिसम्बर 2016 को एक्सप्रेस समाचारपत्र में प्रकाशित होने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले सात साल में ब्रिटेन और वेल्ज़ में गिरफ़्तार होने वालों में से 400 बंदियों ने अपनी गिरफ़्तारी के कुछ ही समय बाद आत्म हत्या कर ली। ब्रिटेन की जेलों में क़ैद बंदियों के बीच मानसिक रोगियों की संख्या भी चिंताजनक है। गार्डियन ने 23 अक्तूबर 2015 को बताया था कि ब्रिटेन की जेलों में चार हज़ार से अधिक मानसिक रोगी हैं। जेलों की क़ैदियों की अधिक भीड़ और स्वास्थ्य व चिकित्सा मानकों की अनदेखी भी इस देश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की चिंताओं में से एक है।

दास प्रथा विदित रूप से पश्चिमी देशों में समाप्त हो चुकी है लेकिन यह ब्रिटेन में अब भी जारी है। इंडिपेंडेंट ने 22 अगस्त 2016 को अपनी एक रिपोर्ट में सालवेशन ग्रुप के हवाले से बताया था कि पिछले चार साल में ब्रिटेन और वेल्ज़ में दास प्रथा का शिकार होने वालों की संख्या पांच गुना हो गई है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटेन में लगभग तेरह हज़ार लोग व्यवहारिक रूप से दासों की ज़िंदगी जी रहे हैं। इसमें महिलाओं को देह व्यापार के लिए मजबूर करना, ज़बरदस्ती मज़दूरी कराना, और कारख़ानों व खेतों में काम करवाना शामिल है।

ब्रिटेन में मानवाधिकार के हनन के सबसे बुरे विषयों में से एक शरणार्थियों और पलायनकर्ताओं के साथ लोगों का रवैया है। इस देश में शरणार्थियों की गिरफ़्तारी के आंकड़े काफ़ी चिंताजनक हैं। पुलिस और सुरक्षा कर्मी अधिकांश अवसरों पर बिना किसी कारण के शरणार्थियों को अकेले या सार्वजनिक रूप से गिरफ़्तार करते हैं। वर्ल्ड बुलेटिन नामक वेबसाइट ने 8 दिसम्बर 2016 को बताया था कि ब्रिटेन में हर दिन औसतन 40 शरणार्थियों को गिरफ़्तार किया जाता है। शरणार्थियों व पलायनकर्ताओं की अनुचित स्थिति पर ब्रिटेन की जनता और नागरिक समाज ने गहरी आपत्ति जताई है। 8 नवम्बर 2015 को ब्रिटेन में सैकड़ों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने शरणार्थियों व पलायनकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ बेडफ़ोर्ड में शरणार्थियों की जेल के सामने प्रदर्शन किया था और तुरंत इस केंद्र को बंद करने की मांग की थी।

 

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