May ०६, २०१८ ११:४६ Asia/Kolkata

सऊदी अरब के वर्तमान शासक "सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़" ने जनवरी 2015 को इस देश की सत्ता संभाली थी।

 सत्ता में पहुंचते ही सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ ने सबसे पहला काम यह किया कि अपने बेटे "मुहम्मद बिन सलमान" को सऊदी अरब की सत्ता में उच्च पद पर पहुंचा दिया।  सऊदी शासक सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ ने अपने बेटे मुहम्मद बिन सलमना को पहले देश का रक्षामंत्री बनाया और उसके बाद उन्हें उप युवराज घोषित कर दिया।  कुछ समय के बाद मुहम्मद बिन सलमान, युवराज बन गए।  वर्तमान समय में सऊदी अरब के युवराज और रक्षामंत्री इस देश के भविष्य का निर्धारण अपने हिसाब से कर रहे हैं।  इस प्रकार से सऊदी अरब की विदेश नीति संरक्षकवाद से निकलकर आक्रामक हो गई है।  इसका खुला उदाहरण यमन पर सऊदी अरब का हमला है।  सऊदी अरब, फ़ार्स की खाड़ी के छोटे-छोटे देशों के साथ वर्चस्ववादी व्यवहार अपना रहा है।  अब सऊदी अरब ने इराक़ के साथ अपने संबन्ध सुधारने के प्रयास तेज़ कर दिये हैं।

 

इराक़ के साथ संबन्ध सुधारने की राह में रेयाज़ ने पहला काम यह किया कि 25 वर्षों से बग़दाद में बंद पड़े अपने दूतावास को पुनः खोला।  25 वर्षों के बाद दिसंबर 2015 को इराक़ में सऊदी अरब का दूतावास फिर खोला गया।  इराक़ में सऊदी अरब के नए राजदूत के रूप में "सामिर अस्सबहान" ने बग़दाद में कार्यभार संभाला।  अपने कार्यकाल के दौरान अस्सबहान ने इराक़ में कुछ एसे काम किये जिसके कारण इराक़ सरकार ने उनको अपने देश से निकल जाने के लिए कहा।  सऊदी अरब के राजदूत ने इराक़ के क़बीलों के सरदारों से मिलकर उन्हें सरकार विरोधी प्रदर्शनों के लिए उकसाना आरंभ किया।

सऊदी अरब की ओर से इराक़ के साथ संबन्ध बहाल करने के मार्ग में जो महत्वपूर्ण क़दम उठाए गये उनमें से एक दोनो देशों के नेताओं की एक दूसरे देश की यात्राएं हैं।  इस क्रम में सबसे पहले सऊदी अरब के विदेशमंत्री "आदिल अलजुबैर" ने फ़रवरी 2017 को बग़दाद की यात्रा की।  इस प्रकार पिछले 27 वर्षों में सऊदी अरब के किसी वरिष्ठ अधिकारी की इराक़ की पहली आधिकारिक यात्रा थी।  बाद में इराक़ के प्रधानमंत्री हैदर अलएबादी ने सन 2017 में सऊदी अरब की दो बार यात्राएं कीं।  इन यात्राओं में उन्होंने सऊदी अरब के युवराज से भी भेंटवार्ता की।

इसके बाद सऊदी अरब के अधिकारियों के अनुरोध पर इराक़ के सद्र धड़े के नेता मुक़तदा सद्र ने जुलाई 2017 को सऊदी अरब की यात्रा की।  अपनी यात्रा के दौरान मुक़तदा सद्र ने जद्दा में मुहम्मद बिन सलमान से भेंटवार्ता की थी।  इराक़ के गृहमंत्री ने भी अगस्त 2017 को एक शिष्टमण्डल के साथ सऊदी अरब का सफ़र किया था।  इन यात्राओं के बावजूद जब इस बात की घोषणा की गई कि सऊदी अरब के युवराज मार्च या अप्रैल 2018 में इराक़ की यात्रा करने वाले हैं तो इसका इराक़ में कड़ा विरोध किया गया।  यही कारण था कि सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने मुहम्मद बिन सलमान की इराक़ यात्रा का खण्डन किया।

सऊदी मामलों के एक जानकार उमर करीम का कहना है कि सऊदी अरब, इराक़ के साथ न केवल अपने कूटनैतिक संबन्धों में सुधार चाहता है बल्कि वह बग़दाद के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबन्धों को भी अधिक से अधिक मज़बूत करने के प्रयास कर रहा है।  पिछले दो वर्षों के दौरान सऊदी अरब ने इराक़ के बारे में जो काम किये हैं वे उमर करीम के दावे की पुष्टि करते हैं।  इसी परिप्रेक्ष्य में सऊदी अरब की एयर लाइन्स की ओर से इराक़ की उड़ान आरंभ करना तथा 27 वर्षों के बाद सऊदी अरब और इराक़ की सीमा पर स्थित "अरअर" पास का खोला जाना।  इसी प्रकार इराक़ के अरबील नगर में सऊदी अरब के काउन्सलेट का खुलना और बसरा तथा नजफ़ में सऊदी अरब की ओर से काउन्सेलट खोलने पर इराक़ सरकार की सहमति आदि।

यहां पर यह सवाल पैदा होता है कि सऊदी अरब, इराक़ के साथ अपने संबन्धों को इतनी तेज़ी से सुधारने में क्यों लगा हुआ है?  एसा लगता है कि इसका मुख्य कारण यह है कि सऊदी अरब, इराक़ियों के निकट अपनी छवि सुधारना चाहता है।  मध्यपूर्व मामलों के जानकारों का कहना है कि हालिया कुछ वर्षों के दौरान इराक़ में अशांति पैदा करने में सऊदी अरब की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।  यह टीकाकार कहते हैं कि सऊदी अरब की इराक़ से सीमा मिलती है जिसका लाभ उठाते हुए सऊदी अरब ने बहुत से आतंकवादियों को इराक़ भेजा।  इसके अतिरिक्त सऊदी अरब, इराक़ सरकार के विरोधियों का भी खुलकर समर्थन कर रहा है।  रेयाज़, इराक़ के सुन्नी बाहुल्य क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाकर स्थानीय लोगों को विद्रोह के लिए उकसाता रहता है।  यही वह बाते हैं जिनके कारण इराक़ियों के निकट सऊदी अरब की छवि ख़राब है।

सऊदी अरब का महत्वपूर्ण लक्ष्य इराक़ के भीतर अपने प्रभाव को अधिक से अधिक बढ़ाना है।  पिछले कुछ वर्षों के दौरान इराक़ के अतिवादी गुटों का समर्थन करने के बावजूद सऊदी अरब अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सका।  अब उसने इराक़ के शिया गुटों से निकट होने की रणनीति अपनाई है।  रेयाज़ का प्रयास है कि वह शिया गुटों से निकट होकर इराक़ में अस्थिरता पैदा करे।  अपने इसी उद्देश्य तक पहुंचने के लिए सऊदी अरब ने इराक़ के शिया बाहुल्य नगरों नजफ़ और बसरा में काउन्सलेट खोलने की योजना बनाई है।

इराक़ में 12 मई को संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं।  सऊदी अरब चाहता है कि वह इराक़ के अतिवादी सुन्नी गुटों का आर्थिक समर्थन करने के साथ ही साथ इस देश के शिया धड़ों के साथ मित्रता बढ़ाकर इराक़ के भीतर शियों के प्रभाव को रोका जाए।  शिया धड़ों के साथ मेलजोल बढ़ाकर सऊदी अरब इस देश में शिया गठबंधन की विजय को संदिग्ध बनाना चाहता है।

इराक़ के साथ अपने संबन्धों को पुनः सुधारने के पीछे सऊदी अरब का एक अन्य उद्देश्य, इस्लामी गणतंत्र ईरान के प्रभाव को कमज़ोर करना है।  सन 2003 में इराक़ की शासन व्यवस्था में परिवर्तन के साथ ही उससे ईरान के संबन्ध मैत्रीपूर्ण हो गए थे।  इसके कई कारण थे जैसे दोनों का पड़ोसी होना या संयुक्त धार्मिक पहचान आदि।  ईरान आरंभ से ही इराक़ की एकता, अखण्डता और उसकी संप्रभुता पर बल देता आया है।  आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भी ईरान ने इराक़ का खुलकर समर्थन किया।  सऊदी अरब, क्षेत्र में ईरान को अपने सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी समझता है। यही कारण है कि इराक़ के साथ अपने संबन्धों को सुधारकर इराक़ में बढ़ते ईरान के प्रभाव को रोकना चाहता है। 

इस बारे में कैलीफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में मध्यपूर्व मामलों के प्रोफेसर "इब्राहीम अलमराशी" कहते हैं कि इराक़ के साथ अपने संबन्ध अच्छे करके सऊदी अरब वास्तव में ईरान के प्रभाव को कम करने के प्रयास में है। 

 

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