ईश्वरीय आतिथ्य- 8
रमज़ान का पवित्र महीना चल रहा है। पूरे संसार में मुसलमान, रोज़े रख रहे हैं।
इस महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने का विशेष महत्व है। इसको पढ़कर मनुष्य स्वयं को बुराइयों से बचाता है। उचित यह होगा कि पवित्र क़ुरआन पढ़ते समय उसमें सोच-विचार किया जाए। उसके अर्थ को समझ जाए। यह ऐसी किताब है कि जिसके बारे में जितना अधिक सोचा जाए उससे उतना अधिक लाभ होता है। इस पवित्र किताब में बताई गई बातों में सोच-विचार करके नई-नई बातों को समझा जा सकता है।
पवित्र क़ुरआन के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि क़ुरआन, उचित मार्ग का मार्गदर्शन करता है। यह एसी पुस्तक है जिसमें वास्तविकताओं का उल्लेख करते हुए पढ़ने वाले को अधिक से अधिक जागरूक करने का प्रयास किया गया है। इसके दो रूप हैं। एक रूप वह है जो दिखाई देता है और दूसरा वह रूप जो दिखाई तो नहीं देता किंतु मनुष्य के अन्तर्मन को प्रकाशमई करता है। इसका दूसरा रूप बहुत ही गहरा है। क़ुरआन एक सिद्धांत है और इसके हर सिद्धांत से कई सिद्धांत निकलते हैं। इसमें आश्चर्यचकित करने वाली ऐसी बाते हैं जिनका अंत नहीं है। यह हमेशा ताज़ा है कभी पुराना नहीं होता। इसकी आयतें, मार्गदर्शन की मशाल और तत्वदर्शिता का स्रोत हैं।
निःसन्देह, पवित्र क़ुरआन जैसी किताब केवल पढ़ने के लिए नहीं भेजी गई है। यह एसी किताब है जिसमें ईश्वर की वास्तविक पहचान, एकेश्वरवाद के रहस्य, ईश्वरीय दूतों की विशेषताएं, अदृश्य संसार के रहस्य, सृष्टि पर राज करने वाले ईश्वरीय नियम, मानव की सही पहचान और उसके अंत की गाथा, गुज़रे हुए लोगों और आने वाले ज़माने के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। क़ुरआन में उस सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था का उल्लेख किया गया है जिसकी आवश्यकता मनुष्य को सदैव रहती है।
पवित्र क़ुरआन का अनुसरण, मनुष्य को अत्याचारियों के चंगुल से स्वतंत्र कराता है। यह मनुष्य को अज्ञानता, कुरीतियों और शैतानी षडयंत्रों से सुरक्षित बनाता है। इसी के साथ उसका आत्म उत्थान करके पवित्र कर देता है। पवित्र क़ुरआन में अमर मानदंड हैं जो झूठ और सच के बीच स्पष्ट मेयार है। इन विशेषताओं को पहचानकर क़ुरआन की महानता को सरलता से समझा जा सकता है।
आप जानते होंगे कि जहां पर पूरी तरह से अंधेरा छा जाए वहां की कोई भी चीज़ दिखाई नहीं देती। एसे स्थान पर हर चीज़ एक जैसी है याहे छोटी या बड़ी। इसका कारण यह है कि अंधेरे में चीज़ों का पहचनना संभव नहीं है। अब यदि उस अंधकारमय स्थान पर थोड़ा सा भी प्रकाश आ जाए तो फिर वहां पाई जाने वाली चीज़ों को देखा जा सकता है किंतु यदि अधिक प्रकाश हो तो फिर सबकुछ बहुत ही स्पष्ट रूप में दिखाई देने लगेगा। पवित्र क़ुरआन को नूर या प्रकाश कहा गया है। सूरे निसा की आयत संख्या 174 के एक भाग में ईश्वर कहता है कि हमने तुम्हारे लिए स्पष्ट प्रकाश भेजा।
क़ुरआन की शिक्षाओं में हर वह चीज़ जो मनुष्य को विकास की ओर ले जाए उसे प्रकाश कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप बुद्धि, मनुष्य के मार्गदर्शन का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। क़ुरआन हमेशा बुद्धिमानों की प्रशंसा करता है। यह किताब सबको चिंतन-मनन और क़ुरआन में गहराई से सोचने का निमंत्रण देती है। क़ुरआन में तफक्कुर, तदब्बुर, हिक्मत और इल्म जैसे शब्दों का प्रयोग इस वास्तविकता को स्पष्ट करता है कि आयतों में गहन सोच-विचार करके ठोस वास्तविकताओं को समझा जा सकता है। आज वैज्ञानिक इस निष्कर्श पर पहुंचे हैं कि क़ुरआन की आयतों के बारे में सोच-विचार करके सृष्टि के बहुत से रहस्यों को समझा जा सकता है। सूरे साद की आयत संख्या 29 में ईश्वर कहता है कि यह वह किताब है जो बरकत वाली है जिसे हमने तुमपर उतारा है ताकि इसकी आयतों में सोच-विचार करो।
इस आयत में ईश्वर, पवित्र क़ुरआन को भेजने का उद्देश्य बयान करते हुए कहता है कि लोगों को केवल इसके पढ़ लेने को ही पर्याप्त नहीं समझना चाहिए बल्कि इसमें सोच-विचार करना चाहिए। लोगों को क़ुरआन के मुख्य लक्ष्य को अनेदखा नहीं करना चाहिए। क़ुरआन में एक शब्द "तदब्बुर" का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ होता है किसी बात को बहुत गहराई से समझना। इसका एक अर्थ यह है कि क़ुरआन की शिक्षाओं से पाठ लेना। मनुष्य को क़ुरआन से पाठ लेकर उसपर अमल भी करना चाहिए क्योंकि क़ुरआन का मुख्य लक्ष्य लोगों को अमल के लिए प्रेरित करना है ताकि वे इसका सही लाभ उठा सकें। क़ुरआन एसे लोगों की निंदा करता है जो इसकी आयतों में सोच-विचार किये बिना ही इसके अच्छे परिणाम की अभिलाषा करते हैं। क़ुरआन का कहना है कि उसकी आयतों में गहराई से सोच-विचार किया जाए। इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि क़ुरआन की आयतों में बड़ी गहराई से सोच-विचार करना, दिलों की बहार है।
निःसन्देह, पवित्र क़ुरआन से दिल लगाने का महत्वपूर्ण मार्ग उसकी शिक्षाओं पर अमल करना है। यह ईश्वरीय किताब, व्यक्ति या समाज के मार्गदर्शन के लिए बहुत अच्छा कार्यक्रम है। यदि इसे उचित ढंग से लागू किया जाए तो संसार की तस्वीर ही बदल जाएगी। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई सबको क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल करने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि अगर हम यह मानते हैं कि क़ुरआन पर अमल इस किताब का मुख्य बिंदु है तो फिर इसको केवल पढ़ना काफ़ी नहीं है। हमें अपने समाज में क़ुरआन को प्रचलित करना चाहिए। हमको यह बात समझनी चाहिए कि क़ुरआन में बताई गई बातें सच हैं।
क़ुरआनी शिक्षाओं पर अमल करने के कुछ चरण हैं। इन चरणों को तै करके ही क़ुरआन को समझा जा सकता है। पहला चरण उसे पढ़ना है। दूसरा चरण क़ुरआन के अनुवाद को समझना है। तीसरा चरण अनुवाद को समझने के बाद उसमें सोच-विचार करना है। जो व्यक्ति क़ुरआन में जितना अधिक सोच-विचार करेगा वह उसको उतना ही अधिक समझेगा। वास्तविकता यह है कि क़ुरआन एक सामान्य किताब नहीं है। क़ुरआन ईश्वर की किताब है जिसको बहुत ही स्पष्ट अंदाज़ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर नाज़िल किया गया। क़ुरआन सच्चाई और जिसे सच्चाई के साथ ही उतारा गया। इसको भेजने वाला एसा है जिसका कोई समकक्ष नहीं है। इसको लाने वाले जिब्रील हैं। क़ुरआन को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र सीने पर उतारा गया। यह दोनों ही बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन बिंदुओं को समझने से क़ुरआन की बहुत सी बातें समझ में आती हैं। क़ुरआन में सोच-विचार करने के लिए बुद्धि की आवश्यकता है क्योंकि बुद्धि से ही सही बात को समझा जा सकता है। क़ुरआन शरीफ़ में एक स्थान पर ईश्वर कहता है कि यह एसी मुबारक किताब है जिसको हे पैग़म्बरे तुझपर नाज़िल किया ताकि उसकी आयतों में सोच-विचार करो और उससे पाठ लो।
आयतों में सोच-विचार करने की एक अन्य शर्त, दिल पर लगे हुए जंक को दूर करना है क्योंकि जिस दिल पर ज़ंग लगा होगा वह क़ुरआन को समझ नहीं सकता। क़ुरआन की कुछ आयतें स्पष्ट हैं जिन्हे सरलता से समझा जा सकता है। कुछ ऐसी आयते हैं जिनको समझने के लिए कुछ अन्य बातों का जानना ज़रूरी है। इनको मोहकम और मुतशाबे आयात कहा जाता है। ऐसे लोग जिनके दिलों पर ज़ंग लगा है वे अपनी आसानी और मतभेद फैलाने के लिए मुतशाबे आयातों का दुरूपयोग करते हैं। हालांकि इन आयतों की वास्तविक जानकारी केवल ईश्वर और उनके पास है जो बहुत गहरी जानकारी रखते हैं। इस प्रकार मनुष्य, क़ुरआन को समझकर उसपर अमल करते हुए कल्याण प्राप्त कर सकता है।
जाने माने दार्शनिक मुल्ला सद्रा सूरे वाक़ेआ की भूमिका में लिखते हैं कि मैंने दर्शनशास्त्र की बहुत सी किताबों का अध्ययन किया। इन किताबों को पढ़ने के बाद मैं सोचने लगा था कि मैं बहुत ज्ञानी हूं। बाद में मैंने स्वयं को वास्तविक ज्ञान से दूर पाया। अपनी आयु के अन्तिम समय में मेरे मन में यह विचार आया कि क्यों न मैं पवित्र क़ुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथनों में सोच-विचार करूं। मैंने देखा कि अबतक के मेरे प्रयास व्यर्थ गए क्योंकि मैंने देखा कि मैं प्रकाश के स्थान पर छाया में खड़ा हुआ था। बाद में मुझपर ईश्वर की कृपा हुई। मैंने क़ुरआन में बहुत गइराई के साथ सोच-विचार शुरू किया और उसकी व्याख्या करने में लग गया। एसा करने पर मुझको एसा लगा जैसे कि ज्ञान के द्वार मेरे लिए खुल रहे हैं।