Jun ०३, २०१८ ११:५४ Asia/Kolkata

पवित्र रमज़ान का महीना चल रहा है और इस वर्ष इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी की बर्सी भी रमज़ान में पड़ रही है।

पवित्र रमज़ान, ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है, यह महीना क़ुरआन की बहार और आत्मा की शुद्धि का महीना है। इस महीने में ईश्वर ने अपने बंदों को रोज़ा रखने की शक्ति प्रदान की और सभी लोग उस महिने में ईश्वर के दरबार में क्षमा याचना करते हैं। पवित्र क़ुरआन ने रमज़ान के महीने को लोगों के मार्गदर्शन का महीना क़रार दिया है। यह वह महीना है जिसके आरंभिक दस दिन कृपा, दूसरे दस दिन क्षमा याचना और तीसरे दस दिन नरक की आग से मुक्ति है। इस महीने में रोज़ेदारों के लिए विशेष पुण्यों का उल्लेख किया गया है और निश्चित रूप से यह पुण्य उन लोगों से संबंधित है जिन्होंने इस महीने की वास्तविकता को समझ लिया और इसकी बातों को अपने कर्मों और व्यवहारों में ढाल लिया हो। इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान को उन महीनों में बताते हैं जिनमें मनुष्य के लिए बहुत सारी विभूतियां होती हैं। उनका मानना है कि यह विभूतियां उन्हीं लोगों के भाग्य में लिखी जाती हैं जो इस महीने में उससे लाभ उठाने के पात्र होते हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान के महीने पर विशेष ध्यान देते थे और उनका मानना था कि इस महीने में जाने से पहले हमें सुधार, आत्मशुद्धि और आंतरिक इच्छा को छोड़ की आवश्यकता होती है और अतीत की तुलना में अपने विदित और आंतरिक रूप को परिवर्तित करे, प्रायश्चित करें और अल्लाह से बात करने के लिए स्वयं को तैयार करें ।

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह पवित्र रमज़ान के महीने में रोज़ेदारों को सलाह देते हुए कहते हैं कि स्वयं का सुधार करें और ईश्वर के अधिकारों पर ध्यान देना शुरु करें, अपने अच्छे और शालीन बर्ताव से प्रायश्चित करें, यदि ख़ुदा न करें पाप हो जाए, तो पवित्र रमज़ान के महीने में दाख़िल होने से पहले तौबा करें और ईश्वर से मन की बात करने के लिए ज़बान को आदी बनाएं।

 

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह रोज़ेदारों और बंदों के सुधार की शर्त, दूसरों की बुराई और दूसरों पर आरोप लगाने से बचना है। उनका यह कहना है कि अपने शरीर के अंगों पर नियंत्रण, ईश्वर के दरबार में मनुष्य के रोज़े के स्वीकार होने का कारण बन सकता है और मनुष्य को ईश्वरीय कृपा का पात्र बना देता है और व्यक्ति का रोज़ा, शैतानी बहकावे के मुक़ाबले में मजब़ूत ढाल सिद्ध होता है। इमाम ख़ुमैनी बल देते हैं कि इस काम के लिए ईश्वर को वचन देना होगा और अपने लिए ऐतिहासिक फ़ैसला करना होगा। वह कहते हैं कि अपने ईश्वर से प्रतिबद्धता करे कि पवित्र रमज़ान के महीने में दूसरों की बुराई, दूसरों पर आरोप लगाने और दूसरों को बुरा भला कहने से बचेंगे। ज़बान, आंख, हाथ, कान और दूसरे अंगों को अपने नियंत्रण में रखे। अपनी करनी और कथनी पर नज़र रखें, शायद इसी शालीन काम के कारण ईश्वर आप पर ध्यान दे और अपनी कृपा का पात्र बना ले और रमज़ान का महीना ख़त्म होने के बाद जिसमें शैतान आज़ाद हो जाता है, आप पूरी तरह सुधरा होना चाहिए, अब शैतान के धोखे में न आएं और सभ्य रहें।

 

पवित्र रमज़ान में इमाम ख़ुमैनी के विशेष कार्यक्रमों में उपासना और रात में पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज़ थी। इमाम ख़ुमैनी उपासना को ईश्वरीय प्रेम तक पहुंचने का साधन मानते हैं और स्पष्ट रूप से कहते हैं कि प्रेम की वादी में उपासन को स्वर्ग में पहुंचने के साधन के रूप में देखना नहीं चाहिए। इस बारे में इमाम खुमैनी के एक साथी कहते हैं कि इस महीने में इमाम ख़ुमैनी के जीवन में दूसरे महीनों की तुलना में विशेष परिवर्तन हो जाता है, इस प्रकार से कि इस पूरे महीने में पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते, दुआ करते और रमज़ान के बारे में ईश्वर से निकट होने वाली अन्य काम अर्थात मुस्तह्हब काम भी करते थे।

पवित्र रमज़ान के विशेष कामों और उपासनाओं में एक पवित्र क़ुरआन की तिलावत करना और उसकी व्याख्या और उसके अर्थ को गहराई से समझना है। इस बात के दृष्टिगत कि पवित्र क़ुरआन रमज़ानुल मुबारक में उतरा और इस महीने में पवित्र कुरआन की तिलावत का बहुत अधिक पुण्य है, इस्लामी रिवायतों में रमज़ान के महीने को क़ुरआन की बसंत बताया गया है। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह पवित्र रमज़ान के महीने में क़ुरआने मजीद की तिलावत पर विशेष ध्यान देते थे। उनको जब भी मौक़ा मिलता, चाहे थोड़ा ही क्यों न हो, क़ुरआन की तिलावत करते थे। कई बार देखा गया है कि इमाम ख़ुमैनी दस्तरख़ान पर खाने लगने से पहले के समय में जो सामान्य रूप से बेकार गुज़र जाता है, पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते हैं।

रात की नमाज़ के बाद से सुबह ही नमाज़ तक वह पवित्र क़ुरआन की तिलावत करते थे। इमाम ख़ुमैनी के साथ पवित्र नगर नजफ़ में रहने वाले उनके एक साथी कहते हैं कि पवित्र रमज़ान के महीने में हर दिन वह पवित्र क़ुरआन के दस पारों की तिलावत करते थे। अर्थात हर तीन दिन में एक क़ुरआन ख़त्म करते थे, इसके अतिरिक्त हर वर्ष पवित्र रमज़ान से पहले, वह आदेश देते थे कि उनके निकट साथी पवित्र क़ुरआन को ख़त्म करने की कुछ बैठकें आयोजित करें।

पवित्र क़ुरआन का उतरना, शबे क़द्र, फ़रिश्तों और रूह का उतरना, भाग्य निर्धारण और दूसरी चीज़ें, हर एक अध्यात्मिक खाद्य और आसमानी दस्तरख़ान का हिस्सा हैं और यही वह चीज़ें हैं जिसकी वजह से कहा जाता है कि रमज़ान का महीना ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है। इमाम ख़ुमैनी की नज़र में पवित्र रमज़ान का महीना, ईश्वरीय महीना है जिसमें सभी को ईश्वर ने अपनी मेहमान नवाज़ी के लिए बुलाया है। इमाम ख़ुमैनी इस आतिथ्य के महत्व के बारे में कहते हैं कि भौतिक जीवन में अल्लाह की मेहमान नवाज़ी का अर्थ यह है कि हम अपनी समस्त संसारिक इच्छाओं से परहेज़ करें। इमाम खुमैनी की नज़र में इस मेहमान नवाज़ी को न समझ पाना, मनुष्य के क्रियाकलाप से संबंधित है विशेषकर इस काल में जब मनुष्यों पर बहुत अधिक अत्याचार हो रहे हैं और उन पर युद्ध थोपे जा रहे हैं, पवित्र रमज़ान में ईश्वरीय आतिथ्य को न समझ पाने का कारण है। इमाम ख़ुमैनी इस बारे में इस प्रकार कहते हैं, आप सभी को अल्लाह की मेहमान नवाज़ी का निमंत्रण दिया गया है, आप सभी अल्लाह के मेहान हैं, बुरी आदतें छोड़ने की मेहमानी, यदि मनुष्य के भीतर तनिक भी आंतरिक इच्छा हो, तो वह इस आतिथ्य में शामिल नहीं हो सकता या अगर उसमें शामिल हो भी गया है तो उससे लाभ नहीं उठा सकता। यह समस्त झंझठें जो दुनिया में हम देखते हैं, इसीलिए है कि हमने इस मेहमान नवाज़ी से लाभ ही नहीं उठाया, अल्लाह के निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया, प्रयास करे कि इस दावत को स्वीकार करें।

दूसरी ओर इमाम ख़ुमैनी का कहना था कि रोज़ेदार न अत्याचार करता है और न ही न अत्याचार सहन करता है, अत्याचारग्रस्त होता है, इमाम ख़ुमैनी इस बारे में कहते हैं कि इस पवित्र रमज़ान के महीने में मुसलमानों को सामूहिक रूप से ईश्वरीय आतिथ्य में शामिल हो जाना चाहिए , आत्मशुद्धि और आत्मनिर्माण करना चाहिए, स्वयं को अत्याचार सहन करने वाला न बनाएं क्योंकि अत्याचार सहन करने वाला, अत्याचार करने वालों के समान है, दोनों ही आत्मशुद्धि न होने का परिणाम है, यदि हम इस तक पहुंच गये, तो हम न  अत्याचार स्वीकार करेंगे और न ही अत्याचारी होंगे, यह सभी इसीलिए कि हमने आत्म निर्माण नहीं किया।

 

इमाम ख़ुमैनी बल देकर कहते हैं कि यदि पवित्र रमज़ान की समाप्ति पर आपके कर्मों और व्यवहार में कोई परिवर्तन न पैदा हो और पवित्र रमज़ान से पहले की आपकी जीवन शैली में कोई अंतर न हो, तो यह पता चलता है कि रोज़े से जो आप से चाहा गया था व्यवहारिक नहीं हो सका। इमाम ख़ुमैनी पवित्र रमज़ान से निकल जाने को, ईश्वरीय होने पर निर्भर मानते हैं और यह विश्वास रखते हैं कि मोमिन की ईद, महीने की समाप्ति में निहित है। वह कहते हैं कि आप यह सोचिए कि यदि इस मेहमान नवाज़ी से सही ढंग से बाहर निकल आएगा, उसी समय ईद होगी। ईद उन लोगों के लिए है जो इस मेहमान नवाज़ी में शामिल हो गये और इस आथित्य से लाभ उठाया हो। जैसा कि इच्छाओं को छोड़ा हो और आंतरिक इच्छा जो मनुष्य की राह की सबसे बड़ी रुकावट है, उन से दूर रहे। पवित्र रमज़ान का महीना, मनुष्य को बहुत से कामों में सफल बना देता है। रमज़ान का महीना, मनुष्य को ऐसा बना देता है ताकि दूसरे रमज़ान तक वह नियंत्रण में रहे और ईश्वरीय आदेशों का उल्लंघन न करे।

 

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