ईदुल फ़ित्र के बारे में वरिष्ठ नेता के विचार
ईद का दिन मुसलमानों के लिए खुशी का दिन है।
यह खुशी, एक महीने तक लगातार रोज़े रखने और ईश्वर को उसका आभार व्यक्त करने के कारण है। ईद की नमाज़ को मुसलमानों की एकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। ईरान में यह नमाज़ इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई पढ़ाते हैं। ईद की नमाज़ के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान के अधिकारी और तेहरान में मौजूद इस्लामी देशों के राजदूत ईद की बधाई देने और उनकी बातों को सुनने के लिए वरिष्ठ नेता के निवास स्थल जाते हैं।
ईद और रमज़ान के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नाती इमाम हसन अलैहिस्सलाम का कहना है कि ईश्वर ने रमज़ान के महीने को अपने बंदों के बीच प्रतिस्पर्धा का मैदान बनाया है ताकि वे ईश्वर के आदेशों का पालन करते हुए उसकी प्रसन्नता प्राप्त कर सकें। रमज़ान के दौरान ईश्वर के आदेशों का पालन करने वालों को ईद के दिन पुरस्कृत किया जाता है और अवहेलना करने वालों को क्षति उठानी पड़ती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ईद की नमाज़ के पहले ख़ुत्बे में सबको ईद की बधाई देते हुए रमज़ान के महीने में ईरानी राष्ट्र द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक प्रगति को स्वीकार योग्य बताया है। इस बारे में वरिष्ठ नेता ने स्पष्ट किया कि जब हम पिछले वर्षों की तुलना में आध्यात्म की तुलना करते हैं तो यह पाते हैं कि तुल्नात्मक रूप में बाद वाले वर्षों में आध्यात्मिक प्रगति अधिक रही है। हर आने वाले वर्षों में पिछले वर्षों की तुलना में रमज़ान के दौरान आध्यात्म की ओर झुकाव देखने को मिलता है। यही है वह प्रतिस्पर्धा का मैदान जिसका पहले उल्लेख किया गया था।
वर्तमान समय में बड़ी शक्तियां, संचार माध्यमों को प्रयोग करते हुए विभिन्न शैलियों में लोगों को आध्यात्म से दूर कर रही हैं। यह शक्तियां आधुनिक तकनीक से लाभ उठाते हुए लोगों को विभिन्न प्रकार के कामों में व्यस्त रखती हैं ताकि वे आध्यात्म से दूर रह सकें। वे कहते हैं कि ईरानी राष्ट्र, वर्तमान समय में आध्यात्म तथा नैतिकता के पतन के मुक़ाबले में डटा हुआ है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इसका अर्थ यह है कि ईरानी राष्ट्र जागरूकता, प्रयत्नशील तथा आशावादी विचार के साथ जी रहा है।
वरिष्ठ नेता ने अपने ईद के भाषण में विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर निकाली गई राष्ट्रव्यापी भव्य रैलियों की ओर संकेत किया। उन्होंने कहा कि विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर निकाली जाने वाली रैलियां, वास्तव में इस्लामी गणतंत्र ईरान की एक अद्वित्तीय पहचान है। उनका कहना था कि इस वर्ष की विश्व क़ुद्स दिवस की रैलियां, पिछले वर्ष की तुलना में अधिक व्यापक और विस्तृत थीं। इन रैलियों मे ईरानी लोग भूखे, प्यासे, तेज़ धूप में रैलियों में आए थे। हालांकि विश्व क़ुद्स दिवस की रैलियां ईरान के अतिरिक्त विश्व के कई अन्य देशों में भी निकाली गईं। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मुझे जो रिपोर्टें मिली हैं उनसे पता चलता है कि इस साल संसार के अन्य देशों में भी व्यापक स्तर पर विश्व क़ुद्स दिवस की रैलियां निकाली गईं। वे कहते हैं कि यह बात इस अर्थ में है कि शत्रुओं के दुष्प्रचारों बावजूद फ़िलिस्तीनिय के समर्थन के बारे में ईरान की अन्य इस्लामी देशों के साथ निकटता अधिक हुई है।
इस बात से पश्चिमी सरकारों का ग़ुस्सा और अधिक हो गया है कि शत्रुओं के मुक़ाबले में कड़े प्रतिरोध के कारण ईरान, अन्य राष्ट्रों के लिए आदर्श बन गया है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि ईरानी राष्ट्र की दृढ़ता को कमज़ोर करने के शैतानी दुश्मनों के प्रयास विफल रहेंगे। अपनी बात की पुष्टि में वरिष्ठ नेता ने ट्रम्प के उस बयान का उल्लेख किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि हमने पश्चिमी एशिया में सात ट्रिलियन डालर ख़र्च किये किंतु हमें उसका कोई परिणाम नहीं मिला। उन्होंने कहा कि ट्रम्प की यह स्वीकारोक्ति इस अर्थ में है कि हर प्रकार की शरारतों और धोखेबाज़ियों के बावजूद क्षेत्र में अमरीका विफल रहा है।
इसी के साथ वरिष्ठ नेता ने ईरानी राष्ट्र को चेतावनी दी कि वे शत्रुओं के घिनावने षडयंत्रों के प्रति सचेत रहें। उन्होंने कहा कि राष्ट्र को अमरीका के उन आर्थिक दबावों से होशियार रहना चाहिए जिसके माध्यम से वे राष्ट्र को निराश करना चाहते हैं। उन्होंने शत्रुओं के इन षडयंत्रों से मुक़ाबले के कुछ उपाय भी बताए जो इस प्रकार हैं- स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना, अनावश्यक वस्तुओं के आयात को रोकना, भ्रष्टाचार से संघर्ष, अधिक से अधिक बचत करना और अनावश्यक विदेश यात्राओं से बचना आदि। वरिष्ठ नेता ने कहा कि इन सुझावों में सबसे महत्वपूर्ण बात राष्ट्रीय एकता है। इस बारे में वे कहते हैं कि इस समय शत्रु, देश के मुक़ाबले में आ खड़ा हुआ है। एसे में हमे एक-दूसरे के हाथों में हाथ देकर एकजुट रहना चाहिए। हमे देश के स्वावलंबन के लिए एक साथ मिलकर एक दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
वरिष्ठ नेता के अनुसार न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि पूरे इस्लामी जगत में एकता होनी चाहिए। उन्होंने देश के अधिकारियों और इस्लामी देशों के राजदूतों के साथ भेंट में कहा कि मेरे हिसाब से इस्लामी राष्ट्रों के बीच एकता बहुत ज़रूरी है। वे कहते हैं कि शत्रुओं का मुख्य हथकण्डा, मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाना है। इस समय वर्चस्ववाद की मुख्य नीति, मुसलमान राष्ट्रों के बीच मतभेद फैलाने के साथ ही हर राष्ट्र के भीतर भी मतभेद फैलाना है। आज तुम इस नीति और उसके प्रभावों को देख सकते हो। यमन, सीरिया और इराक़ की दुखदाई घटनाएं, इसी का उदाहरण है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि मुसलमानों विशेषकर पश्चिमी एशिया में मतभेद फैलाने का सबसे बड़ा तत्व ज़ायोनी शासन है। यह अवैध शासन, विभिन्न षडयंत्रों के माध्यम से मुसलमानों के बीच मतभेद फैला रहा है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि ज़ायोनी शासन, बाक़ी रहने वाला नहीं है। यह बात हमें अनुभवों से पता चलती है। इस शासन की मुख्य समस्या इसका अवैध होना है। वे ज़ायोनी शासन की समस्या का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि यह एक अवैध शासन है। इसका आधार ही ग़लत है। पहले एक राष्ट्र को उसकी मातृभूमि से निकलने पर विवश किया गया। ऐसे राष्ट्र को जिसका पुराना इतिहास रहा है। क्या एक एसे राष्ट्र को भुला देना संभव होगा जिसका इतिहास भी प्राचीन है? यह कैसे संभव है? अब अगर कुछ कमज़ोर राष्ट्र, अवैध ज़ायोनी शासन के साथ कूटनैतिक संबन्ध स्थापित कर लें तो इससे समस्या का समाधान नहीं हो सकता। ज़ायोनी शासन की मुख्य समस्या उसका अवैध होना है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने स्पष्ट किया कि फ़िलिस्तीन संकट का समाधान कुछ ऐसे देशों के हाथों में नहीं है जिन्होंने अवैध ज़ायोनी शासन से कूटनीतिक संबन्ध स्थापित कर लिए हैं। वे कहते हैं कि यह राष्ट्रों का मामला है। ज़ायोनी शासन के अवैध होने की बात राष्ट्रों के दिलों से निकल नहीं सकती। उन्होंने कहा कि अमरीकी दूतावास को तेलअवीव से बैतुल मुक़द्दस ले जाने से अवैध ज़ायोनी शासन को वैधता नहीं मिल सकती और यह प्रयास बेकार सिद्ध होगा। वे कहते हैं कि इस शासन का आधार ही निराधार है और ईश्वर की कृपा तथा मुसलमान राष्ट्रों की हिम्मत से इसका विनाश होकर रहेगा।
वरिष्ठ नेता ने कई साल पहले फ़िलिस्तीन संकट का न्यायपूर्ण, लोकतांत्रित एवं एतिहासिक समाधान पेश किया था। इसी समाधान को उन्होंने ईद के दिन देश के अधिकारियों के साथ होने वाली मुलाक़ात में फिर दोहराया। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीन के वास्तविक या मूल नागरिकों को ही स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के गठन करने का अधिकार है चाहे वे यहूदी हों, चाहें इसाई हों और या फिर मुसलमान हों। लेकिन यह अधिकार उनको नहीं है जो दूसरे स्थानों से आकर फ़िलिस्तीन में रहने लगे हैं और वहां के मूल नागरिक नहीं हैं। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अवैध ज़ायोनी शासन का विनाश सुनिश्चित है। वे कहते हैं कि अवैध ज़ायोनी शासन के विनाश की स्थिति में क्षेत्र के मुसलमान राष्ट्र सरलता से एकजुट हो सकते हैं। क्षेत्र में मतभेद का मुख्य कारण ज़ायोनी शासन ही है। जब यह समाप्त हो जाएगा तो क्षेत्रीय देश परस्पर एकजुट होने में सफल हो जाएंगे। वे कहते हैं कि इस्लामी राष्ट्र एकता की छत्रछाया में उच्च शिखर तक पहुंच सकते हैं।