ईरानी संस्कृति और कला-26
ईरान में प्राचीनकाल से बाज़ारों का अस्तित्व पाया जाता है।
इनका महत्व इतना अधिक है कि इन्हें शहरों का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। आधुनिक बाज़ार के साथ ही यह प्राचीन बाज़ार आज भी ईरान के कई शहरों में पाए जाते हैं। यह बाज़ार केवल व्यापारिक गतिविधियों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि इनमें मस्जिद, धर्मशालाएं, पानी के बड़े-बड़े जल भण्डार और स्नानगृह आदि पाए जाते हैं। अपने महत्व के कारण इनमें केवल व्यापारिक गतिविधियां ही नहीं बल्कि सामाजिक गतिविधियां भी होती रहती हैं।
ईरान के प्राचीन बाज़ार में से एक, लार का "बाज़ारे क़ैसरिया" भी है। बाज़ारे क़ैसरिया फ़ार्स प्रांत के लार नगर में स्थित है। यह बाज़ार प्राचीन वास्तुकला का अदभुत नमूना पेश करता है। शताब्दियां गुज़र जाने के बावजूद आज भी यह बाज़ार हर प्रकार के उतार-चढ़ाव को सहन करते हुए बड़ी मज़बूती से मौजूद है। बहुत से एतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि लार का प्राचीन बाज़ार, ईरान में बनाए जाने वाले बाज़ारों का प्रेरणास्रोत रहा है।
ईरानी मामलों के एक अमरीकी जानकार आर्थर पोप का मानना है कि ईंटों का गुंबद बनाने में ईरान का संसार में पहला स्थान है। ईरान के वास्तुकारों ने चार कोनों पर गुंबद बनाने जैसे जटिल विषय को बड़ी सरलता से हल कर दिया। उनका मानना है कि शायद यही कारण है कि अश्कानी काल की ऊबड़-खाबड़ ताक़ें, इस्लामी काल में भव्य गुंबदों मे परिवर्तित हो गईं। इसके बाद सफ़वी काल में इनमें और निखार आया। वास्तुकला की इस सुन्दरता को लार के प्राचीन बाज़ार क़ैतरिया में देखा जा सकता है।
क़ैसरिया बाज़ार में दो बड़ी गैलिरयां हैं। एक उत्तर से दक्षिण की ओर और दूसरी पूरब से पश्चिम की ओर। यह गैलिरयां, चारसूक़ नामक स्थान पर एक दूसरे को काटती हैं। चारसूक़ के ऊपर एक बड़ा सा गुंबद बना हुआ है। "फ़साई" के नाम से मशहूर मिर्ज़ा हुसैन शीराज़ी ने "फार्सनामे नासेरी" में लार के प्राचीन बाज़ार के बारे में लिखा है कि अब लार में प्राचीन धरोहरों में जामा मस्जिद और क़ैसरिया बाज़ार ही बचे हैं। इसकी दीवारें और छत चूने और पत्थर से बनी हुई हैं। बहुत से एतिहासिक स्रोतों में मिलता है कि लार की जामा मस्जिद और वहां के क़ैसरिया बाज़ार का निर्माण सन 700 ईसवी में किया गया था। हालांकि समय गुज़रने के साथ ही इसमें कुछ परिवर्तन हुए हैं।
उन पहले पर्यटकों का नाम जिन्होंने लार के क़ैसरिया बाज़ार का उल्लेख किया हैं उनका नाम है फिग्यूरोआ गार्सिया डीसिल्वा है। उन्होंने 1617 में ईरान की यात्रा की थी। क़ैसरिया बाज़ार के बारे में वे लिखते हैं कि वह चीज़ जिसने लार नगर को महत्वपूर्ण बना दिया है, वहां का व्यापारिक केन्द्र अर्थात बाज़ार है। उनका कहना है कि निःसन्देह, यह एशिया का सबसे महत्वपूर्ण बाज़ार है। डीसिल्वा का कहना है कि लार का क़ैसरिया बाज़ार, यूरोपीय बाज़ारों का मुक़ाबला कर सकता है।
जैसाकि हमने बताया था कि क़ैसरिया बाज़ार में दो बड़ी गैलिरयां हैं। इनमें से एक उत्तर से दक्षिण की ओर और दूसरी पूरब से पश्चिम की ओर है। यह गैलिरयां, चारसूक़ नामक स्थान पर एक दूसरे को काटती हैं। चहार सूक़ के हर कोने पर दुकान बनी हुई है। यह बाज़ार का सबसे आकर्षक स्थल है। इसपर बने गुंबद को चूने और पत्थर से बनाकर टाइलों से सजाया गया है। इसकी ऊंचाई 18 मीटर है। हवा की निकासी के उद्देश्य से गुंबद पर हवाकश बनाए गए हैं।
बाज़ार के प्रवेश द्वार पर पत्थर के शिलालेख लगे हुए हैं। इन शिलालेखों पर क़ाजारी काल में की गई बाज़ार की मरम्मत के बारे में लिखा है। इनपर बहुत ही सुन्दर हस्तलीपि में लिखा हुआ है। गुंबद में नीचे की ओर शाह अब्बास के काल का शिलालेख है जिसपर क़ैसरिया बाज़ार के पुनर्रनिर्माण का इतिहास लिखा हुआ है।
वर्तमान समय में क़ैसरिया बाज़ार की सतह उसके निकटवर्ती सड़कों से लगभग दो मीटर नीचे की ओर है। यह इसलिए है कि बाज़ार के भीतर का वातावरण ठंडा रहे। लार की जलवायु के दृष्टिगत यह शैली सबसे उपयुक्त है। क्षेत्र में भूकंप की संभावना के दृष्टिगत बाज़ार की इमारत को बहुत मज़बूत ढंग से बनाया गया है। इस बाज़ार के चारों ओर धर्मशालाएं बनी हुई हैं जिनमें सफवी काल की वास्तुकला का प्रयोग किया गया है। यह धर्मशाला चौकोर है। इस समय धर्मशालाओं के कमरों का प्रयोग बाज़ार के भण्डार के रूप में किया जाता है।
लार के क़ैसरिया बाज़ार 850 किलोमीटर उत्तर में भी एक बाज़ार स्थित है जिसका नाम क़ैसरिया है। क्षेत्रफल तथा वास्तुकला की दृष्टि से यह ईरान की वास्तुकला का अद्वितीय नमूना है। यह बाज़ार इस्फ़हार नगर के केन्द्र में स्थित है। इस्फ़हान, ईरान का एसा नगर है जिसमें विभिन्न कालों की वास्तुकला के नमूने पाए जाते हैं। इस्फहान का क़ैसरिया बाज़ार, मैदाने इमाम में स्थित है जो नक्शे जहान के नाम से मश्हूर रहा है। यह लगभग एक हज़ार साल पुराना है। इस बाज़ार की मरम्मत सफ़वी काल में की गई थी। इसकी विशेष बात यह है कि यह आज भी अपनी पारंपरिक शैली में मौजूद है। इस्फहान के कैसरिया बाज़ार के बारे में सबसे पहले ईरानी इतिहासकार "माफ़रूख़ी" ने चौथी हिजरी में लिखा था। वे लिखते हैं कि यह बाज़ार, दवाज़दा खुर्शीद नामक क्षेत्र में स्थित है। एक समय में यह स्थान इस्फहान के चार मश्हूर दरवाजों में से एक था।
प्राचीनकाल में इस्फ़हान के लोग बड़े पैमाने पर विशेष आयोजन विशेषकर नौरोज़ मनाया करते थे। इस प्रकार के आयोजनों के कारण कपड़ों, खाने-पीने की वस्तुओं और अन्य चीज़ों की आवश्यकता होती थी। यह आवश्यक वस्तुएं अधिकार इसी बाज़ार में उपलब्ध थीं। लेखक का कहना है कि उनके हिसाब से इस्फ़हान के क़ैसरिया बाज़ार की विशेषता उसका बहुत बड़े भू-भाग में स्थित होना है। माफ़रूख़ी लिखते हैं कि इस्फ़ाहन के प्राचीन क़ैसरिया बाज़ार के छह दरवाज़े थे। इसमें 400 दूकाने थीं। यहां पर चार धर्मशालाएं थीं। इनके अतिरिक्त बाज़ार में दो मस्जिदें भी थीं। बाज़ार में नाना प्रकार की वस्तुएं पाई जाती थीं। इस्फ़हार के बाज़ार में रोम और मिस्र के कपड़े, भारत की वस्तुएं, आज़रबाइजान की चादरें, काशान के क़ालीन और बहुत सी खाने की वस्तुएं थीं।
एक फ़्रांसीसी पर्यटक जान शार्लिन क़ैसरिया बाज़ार के बारे में लिखते हैं कि इस्फ़हान का बड़ा बाज़ार नक़्शे जहान नामक क्षेत्र में स्थित है। इसमें टाइल्स का काम बड़ी ही निपुर्णता से किया गया है। बाज़ार के मुख्य द्वार को कुछ पेंटिंग से सजाया गया है जिसपर शाह अब्बास के जीवन से संबन्धित कुछ दृष्य दिखाए गए हैं जैसे उज़बिकों के साथ शाह अब्बास युद्ध करते हुए, शाह अब्बास शिकार खेलते हुए, यूरोपियों से भेंट करते हुए शाह अब्बास आदि।
इस बाज़ार में बहुत भीड़ रहती है जिसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। बाज़ार के एक कोने में टाइल्स से बनी हुई एक एसी मूर्ति है जिसका सिर मनुष्य का, उसका शरीर शेर का और दुम अहदहे की है। इसको तीर चलाते हुए दर्शाया गया है। यह मूर्ति, ईरानी कैलेण्डर के नवें महीने आज़र का प्रतीकात्मक चित्र है। इसे इसलिए बनाया गया है क्योंकि कहा जाता है कि इस्फ़हान नगर का निर्माण इसी महीने में आरंभ किया गया था। कुछ किताबों में इस प्रतीक को इस्फ़हान जैसे एतिहासिक नगर के प्रतीक के रूप में पेश किया गया है।
कुछ साल पहले तक तीन मंज़िला दो इमारतें बाज़ार के दोनों ओर मौजूद थीं जहां पर शाम के समय दुकानदार इकटठा हुआ करते थे। यहां पर एक बड़ा चायघर था जिसमें लकड़ी तथा पत्थर की बेंचें थीं। यहां पर कुछ स्थानीय वादक आकर वाद्य यंत्र बजाया करते थे। इस बाज़ार का एक छोर इस्फ़हान की जामा मस्जिद से जाकर मिलता है जिसके बाद फिर से बाज़ार शूरू हो जाता है। बाज़ार के भीतर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को एक स्थान पर देखा जा सकता है जैसे मिठाई, वनस्पतियां, कपड़े, बर्तन और बहुत सी अन्य पारंपरिक वस्तुएं।