Feb २०, २०१९ १५:४७ Asia/Kolkata

इस बात में शक नहीं कि इस्लामी वास्तुकला के इतिहास में मस्जिद की वास्तुकला की समीक्षा बहुत अहम विषय हैं।

मस्जिदें और उनकी सुंदर वास्तुकला अपने समय का सच्चा परिचय कराती हैं। मस्जिदें और उनकी वास्तुकला मुसलमान राष्ट्रों के बीच सौंदर्य कला की कोमल भावना को परखने का वास्तविक माध्यम समझी जाती हैं। मस्जिद की वास्तुकला विभिन्न समाजों की धार्मिक संस्कृति से किसी न किसी तरह प्रभावित है। पिछले कार्यक्रम में हमने मस्जिद के प्रवेश द्वार, आंगन व हॉल के बारे में अहम बिन्दु बयान किए। इस कार्यक्रम में मस्जिद की वास्तुकला के सबसे अहम भाग अर्थात मेहराब और उसकी डिज़ाइन के बारे में आपको बताएंगे।             

मेहराब, मुसलमान वास्तुकारों का नमोन्वेष है, जिसका संबंध इस्लाम के उदय के  आरंभिक वर्षों से है। सबसे पहली मेहराब मदीना स्थित मस्जिदुन नबी में वर्ष 24 हिजरी क़मरी बराबर सन 644 ईसवी और दूसरी मेहराब 53 ईसवी बराबर 672 हिजरी क़मरी में बनी थी। मेहराब की मौजूदा शक्ल का संबंध 90 हिजरी क़मरी बराबर 708 ईसवी से है। उसके बाद से मेहराब क़िबले की दिशा के निर्धारण के लिए इस्तेमाल होने लगी।

मेहराब क़िबले के निर्धारण के लिए होती है। यह हमेशा मस्जिद में होती है लेकिन मदरसों और क़ब्रस्तानों में भी बनाई जाती हैं। मेहराब विदित रूप में मस्जिद के मुख्य हाल में विशेष रूप का कटाव होती है और यह हिस्सा फ़्रेम, विशेष रंग व मसाले की वजह से मस्जिद के अन्य भाग की तुलना में विशिष्ट लगता है। जब मस्जिद में नमाज़ सामूहिक रूप से पढ़ी जाती है जिसे नमाज़े जमाअत कहते हैं, तब नमाज़ पढ़ाने वाला इमाम मेहराब में खड़ा होता है और नमाज़ पढ़ता है। लगभग पूरे इस्लामी इतिहास में मेहराब की मूल डिज़ाइन एक जैसी थी और इसमें अंतर सिर्फ़ सजावट की डिज़ाइन की वजह से होता है। मेहराब को प्लास्टर ऑफ़ पेरिस के, रंग बिरंगी टाइलों, संगे मरमर या ईंट के काम से सजाया जाता है।               

क्रिसेंट आर्च या घोड़े की नाल की तरह के ताक़ वाली इमारतों के नमूने ईरान में इतिहास पूर्व के है। ईरान में कुछ क्षेत्रों में उपासना स्थल 3000 से 4000 साल पुराने है जिनमें क्रिसेंट आर्च या घोड़े की नाल की तरह ताक़ हैं जो मौजूदा दौर की मस्जिद के मेहराबों से बहुत मिलते जुलते हैं। मस्जिद की मेहराब को देखने से लगता है कि हेलाली ताक़ अर्थात क्रिसेंट आर्च की इस पर छाप है। इसलिए इस बात की संभावना है कि मेहराब ईरानी मुसलमान वास्तुकार का नवोन्मेष हो जिसने प्राचीन ईरान की वास्तुकला की संस्कृति को इस्लामी इमारतों से जोड़ दिया है।

मस्जिद की मेहराब की उपयोगिता की अन्य उपासना स्थलों से तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि मेहराब मस्जिद में अलग से कोई जगह नहीं है जो बलि चढ़ाने, या किसी प्रकार के अपराध को स्वीकार करने से विशेष हो, बल्कि मेहराब की एकमात्र उपयोगिता क़िबले की दिशा का निर्धारण करना है। मस्जिद की मेहराब, गिरजाघरों के मेहराब से मौलिक व विदित रूप से अलग है। मेहराब के क़िबले की ओर होने की वजह से लोग उसकी ओर मुंह करके खड़े होते और नमाज़ पढ़ते हैं, जबकि गिरजाघरों में बनी मेहराबों में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और उनके साथियों के चित्र बने होते हैं। इसी तरह गिरजाधर की मेहराब में प्रतिमा भी लगी होती है। मस्जिद की मेहराब में इस तरह की कोई चीज़ नहीं बनायी जा सकती। मेहराब में इंसानी चित्र बनाना वर्जित है।

इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी लगता है कि मेहराब का अर्थ भी बताते चलें। मेहराब का अर्थ है शैतान के ख़िलाफ़ संघर्ष करने का साधन और वास्तुकला में उस जगह को कहते हैं जहां प्रवचनकर्ता बैठता है और ताक़ जैसा आकार क़िबले की दिशा बताता है।          

मस्जिद का दिल मेहराब है और इसका ज्योमितीय रूप इस तरह का होता है कि नमाज़ पढ़ने वाले को क़िबले की दिशा बताता है। मेहराब हमेशा मस्जिद के मुख्य हॉल के प्रवेश पर होता और उसी की ओर नमाज़ पढ़ने के लिए लोग लाइन में खड़े होते हैं। मस्जिद के भीतरी भाग में मेहराब को बहुत ही सुंदर बनाया जाता है। अलबत्ता मेहराब की दीवार में खिड़की नहीं होती, बल्कि आस-पास से पर्याप्त मात्रा में प्रकाश मेहराब तक पहुंचता है।

ईरान में जिन मस्जिदों के मेहराब बहुत ही सुदंर डिज़ाइन के हैं उनमें इस्फ़हान की जामा मस्जिद, वरामीन की जामा मस्जिद, इस्फ़हान की शैख़ लुत्फ़ुल्लाह मस्जिद, यज़्द की मस्जिदे कबीर, अर्दस्ततान की जामा मस्जिद, फ़ार्स की नयरीज़ मस्जिद और काशान की मीर एमादी मस्जिद के मेहराब उल्लेखनीय हैं।

ईरानी वास्तुकारों की कला का उत्कृष्ट नमूना इस्फ़हान की जामा मस्जिद का अलजायतू मेहराब है कि जिसके बारे में आपको संक्षेप में बताएंगे।     संगीत
इस्फ़हान की जामा मस्जिद, उन मस्जिदों में है जिसकी डिज़ाइन ईरानी है और ईरान की मशहूर इमारतों में इसकी गिनती होती है। अलबत्ता विभिन्न ऐतिहासिक कालों में इस मस्जिद की मुख्य इमारतों में अलग से भाग शामिल किए गए यहां तक कि यह मस्जिद अपनी मौजूदा रूप में आ गयी। इस मस्जिद का सबसे पुराना भाग 481 हिजरी क़मरी बराबर 1088 ईसवी में सलजूक़ी शासन काल का है। मस्जिद के मुख्य प्रांगण में चार ऐवान बने हुए हैं और उसके पश्चिमी छोर पर ईंट का बना छोटा हॉल है जिसे ओलजाएतो कहा जाता है। ऐवान इमारत के उस छतदार हिस्से को कहते हैं जो सामने से खुला होता है और उसमें दरवाज़ा और खिड़की नहीं होती और उसके सामने आंगन होता है।

फ़्रांसीसी पुरातन विद आंद्रे गोदार ने इस्फ़हान की जामा मस्जिद ओलजायतो हॉल के इस भाग के बारे में लिखा हैः "ओलजायतो नामक शासक ने इसके निर्माण का आदेश दिया और इसमें मंगोल शैली के चित्रों से सुसज्जित बहुत ही सुदंर मेहराब है। लेकिन मंगोल चित्र ज़्यादा टिकाउ नहीं थे। बाद में आले मुज़फ़्फ़र शासन काल में इस मेहराब की दोबारा मरम्मत हुयी। उसे इस्लामी व ईरानी कलाओं से सजाया गया जिससे इस्लामी वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना उभर कर सामने आया।"                  

अलजायतो हॉल के दक्षिणी छोर में एक मेहराब और मिंबर है। मेहराब प्लास्टर ऑफ़ पेरिस और मिंबर तक्षण कला से सुसज्जित है। इस मिंबर के निर्माण की तारीख़ नहीं लिखी है, लेकिन इस पर बनी ज्यामितीय डिज़ाइन बिल्कुल स्पष्ट है। ओलजायतो मेहराब के निर्माण कीत रीख़ 710 हिजरी क़मरी बराबर 1310 ईसवी है। इस पर शिलालेख लगा हुआ और फूल-बूटे के बने चित्र गच प्लास्टर की महारत का उत्कृष्ट नमूना हैं। यह मेहराब वास्तुकला की शेली और प्लास्टर के काम की डिज़ाइन की दृष्टि से, उस दौर के बचे हुए अन्य मेहराब से अलग है। प्लास्टर के काम के बीच में इसके निर्माण और उस दौर के शासन काल की विशेषताओं के बारे में कुछ बिन्दुओं का उल्लेख है। मुख्य शिलालेख के चारों ओर पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ कथन हैं जो मस्जिद का सम्मान करने की अहमियत के बारे में है। इसी तरह मेहराब में वास्तुकार का नाम भी लिखा है।

1881 ईसवीं में ईरान का भ्रमण करने वाली फ़्रांसीसी पर्यटक मैडम ड्योलाफ़ुआ ने इस मेहराब को देखने के बाद, इसमें हुए प्लास्टर के काम की महारत का उत्कृष्ट नमूना बताया है। इस ऐतिहासिक इमारत ने अपने पूरे इतिहास में विभिन्न प्रकार की घटनाओं जैसे आग लगने की घटना का अनुभव किया लेकिन इन सभी घटनाओं से इमारत को गंभीर नुक़सान नहीं पहुंचा बल्कि आंशिक मरम्मत के साथ ही वह अच्छी स्थिति में बची हुयी है। इस्फ़हान की जामा मस्जिद और इसकी ऐतिहासिक मेहराब, इस्फ़हान के पर्यटन आकर्षण में है। हर दिन बड़ी संख्या में देशी विदेशी पर्यटक इस ऐतिहासिक स्थल को देखने आते हैं।

 

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