Feb २७, २०१९ १७:४० Asia/Kolkata

मस्जिद ईश्वर का घर और उसकी बंदगी का स्थान है।

इस्लामी संस्कृति व विचारों में मस्जिद को हमेशा पवित्र स्थल माना गया है। यह पवित्र स्थल ईश्वर के भक्तों के लिए आस्था के उच्च चरण को हासिल करने का स्थान होने के साथ साथ ऐसा स्थान है जहां सबसे बड़े क्रान्तिकारी व राजनैतिक फ़ैसले यहां तक कि रणनैतिक परामर्श भी लिए गए हैं। इसी तरह मस्जिद को इस्लामी संस्कृति, कला व सभ्यता का गढ़ माना जाता है। यह ऐसा स्थान है जिसने लोगों में एकता व सहयोग की भावना पैदा की और उनके सामाजिक मामलों को सुव्यवस्थित किया।

मस्जिदों की इमारत की बाहरी विशेषता के कारण यह इमारत दूसरी अन्य इमारतों से अलग होती हैं। मस्जिदों में आमतौर पर स्तंभ, गुंबद और कमान की भांति प्रविष्ट द्वार या दरवाज़ा होता है। या यूं कहें कि यह तीन चीज़ें मस्जिद की अपनी विशेषताएं हैं किन्तु मस्जिद की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसका गुंबद होता है। इस्लामी जगत में पहले गुंबद छोटे हुआ करते थे जिन्हें क़िबला पहचानने और मस्जिद के भीतर प्रकाश पहुंचाने के लिए बनाया जाता था किन्तु बाद में धीरे धीरे मस्जिदों के गुंबद बड़े होते गये। बड़े गुंबद का यह लाभ होता है कि से देखने वालों को भी क़िबले की दिशा के बारे में दूर से ही पता चल जाता है। गुंबद में मस्जिद का हाल, नमाज़ पढ़ने की जगह और पेश इमाम के ख़ड़े होने के विशेष स्थान को शामिल कर लिया गया। मस्जिदों के गुंबदों के बड़े होने की वजह से मस्जिदों में और भी रौनक़ पैदा हो गयी और उसकी बाहरी बनावट और भी सुन्दर हो गयी। कहा जाता है कि प्राचीन काल में नमाज़ियों के सिरों पर साए के लिए गुंबदों का प्रयोग किया जाता किन्तु कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि गुंबद, स्वर्ग के बाग़, आसमानी विभूतियों तथा उच्च स्थान को दिखाने का रहस्य है जो मस्जिद की ऊंची ऊंची मीनारों के साथ बनाया जाता है।

मानव इतिहास अपने आरंभ से अब तक ईश्वर की उपासना की मिसालों से भरा पड़ा है। हालांकि विभिन्न जातियों में विभिन्न दौर में उपासना की शैली अलग रही है लेकिन सबका सार एक रहा है और वह ईश्वर से संपर्क बनाना है जो सृष्टि का रचयिता व सर्वशक्तिमान है।

ईरान में ताक़, गुंबद और धनुषाकार प्रविष्ट द्वार का अतीत बहुत पुराना है। प्राचीनकाल के वास्तुकारों के देश के विभिन्न क्षेत्रों में इस प्रकार के दुर्लभ और आश्चर्यजनक नमूने देखे जा सकते हैं। उदाहरण स्वरूप ईरान के दक्षिण पश्चिम में हफ़्त तप्पे के निकट दूरन्ताश शहर में मक़बरों और चग़ाज़्बील उपासना स्थल, पूर्वी सीस्तान के क्षेत्रों तथा ईरान के उत्तरी और पूर्वोत्तरी क्षेत्रों में इन उत्कृष्ट नमूनों को देखा जा सकता है।

इन ऐतिहासिक इमारतों के अवशेष में बड़े मुखौटे के साथ गुंबदों, लकड़ियों के बल्लियां और बड़े हाल में विभिन्न प्रकार के स्तंभ बने हुए देखे जा सकते हैं। ईरानी वास्तुकला में जब एक चार कोने वाली इमारत को गुबंद द्वारा सुन्दर बनाया जाता है तो सबसे पहले उसकी दीवारों को आठ कोणीय और उसके बाद सोलह कोणीय बनाकर उसके बाद दायरे में बदल दिया जाता है और यह काम कोनों को रूप देकर संभव बनाया जा सकता है।

ईरानी वास्तुकारों ने कोनों को ढांकने या उनको रूप देने के लिए दो शैलियां अपनाई हैं जिनमें से को सेकन्ज और दूसरे को तुरनबेह कहा जाता है। दीवार के कोनों के निर्माण के लिए लकड़ी और चूने का प्रयोग किया जाता है। रोचक बिन्दु यह है कि इस प्रकार के ताक़ या कोने बनाने की प्रक्रिया ईरान से पूरी दुनिया में फैली है और यूरोपीय भाषाओं में भी इसके असली नाम से मिलते जुलते नाम रखे गये हैं।

विभिन्न ऐतिहासिक कालों के गुंबदों और उनके अवशेषों को देखने से यह पता चलता है कि ईरानी वास्तुकार, गुंबद को ढांकने या उसको घेरने के लिए अर्धगोल या अर्धत्रिकोण रूप को उचित नहीं समझते थे।  उन्होंने अंडाकार रूप का चयन किया जो गणित के सूक्ष्म सिद्धांतों और मज़बूत क़ानूनों पर आधारित थे।  इसी प्रकार भूस्खलन के मुक़ाबले में भी यह बहुत मज़बूत होती है। इस प्रकार के गुंबदों को हलूचीन या बिज़ कहते हैं जो अर्ध अंडे के रूप से काफ़ी हद तक मिलती है और निर्माण के बाद बहुत मज़बूत होते थे।

 

ईरानी गुंबद किसी भी प्रकार के सांचे के बिना ही बनाए जाते हैं। केन्द्रीय स्थान में एक ऊंची सरिया लगाते हैं और उसके आसपास के क्षेत्रों को लकड़ियों और साइकिलों की रिम से भर देते हैं ताकि हिल ना सके। उसके बाद उसकी दीवारें बनाना शुरु करते हैं और दीवार बनाते बनाते गुबंद निर्माण की ओर बढ़ते हैं। ईरानी गुंबदों में दो भाग होते हैं एक भीतरी और एक बाहरी, भारतीय भाग अर्धअंडाकार होती है जबकि बाहरी भाग कुछ अलग ही होता है।  ईरानी गुंबद कई प्रकार के होते हैं, एक पिरामिड जैसा, दूसरा मटमैला या अंडे की ज़र्दी जैसा और प्याज़ के रंग जैसा होता है। दुनिया के विभिन्न देशों में ईरानी गुंबदों की निशानियां देखी जा सकती हैं और यूरोप के बहुत से देशों के वास्तुकारों ने ईरानी गुंबदों की वास्तुशैली के विभिन्न नमूनों का भी उल्लेख किया है।

गुंबदे सुल्तानिए, दुनिया में ईंट से बना हुआ सबसे बड़ा गुंबद है जो मंगोल राजा ओलजाइतू ईलख़ान के काल में बना था। यह इमारत, ईरान की महत्वपूर्ण वास्तुकला और दुनिया की ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में शामिल है। सुल्तानिया, एक सुन्दर और बड़ी मस्जिद है और फैलाव तथा वास्तुकला की दृष्टि से दुनिया की मूल्यवान धरोहरों में है।  सुल्तानिया इमारत ईरान के पश्चिमोत्तर में स्थित ज़ंजान शहर के निकट स्थित है। इस इमारत में आठ छोर हैं और हर छोर ही लंबाई लगभग 17 मीटर है। मस्जिद के गुंबद के इर्दगिर्द आठ मीनार बने हुए हैं। ईरान में सबसे प्राचीन और बड़ा गुंबद, गुंबदे सुल्तानिया है जिसकी ऊंचाई 54 मीटर और गुंबद के दहाने का व्यास लगभग 26 मीटर है।  इस गुंबद को फ़ीरोज़े की सुन्दर टाइलों से सजाया गया है। गुंबद के आसपास के क्षेत्रों को पवित्र क़ुरआन की आयतों से सुसज्जित किय गया है। इस गुंबद को 702 हिजरी क़मरी बराबर 1302 ईसवी में बनाया गया। बताया जाता है कि इटली के फ़्लोरेंस शहर में बना बड़ा गुंबद, इसी गुंबद से प्रेरित होकर बनाया गया है।

बहुत से टीकाकारों का मनना है कि पूर्वी ईरान विशेषकर ख़ुरासान क्षेत्र, ईरान की असल वास्तुकला का केन्द्र है। यहां पर बनी हुई बहुत सी इमारतें, ईरानी वास्तुकला और उसकी सुन्दरता की गाथा सुनाते हैं। इन इमारतों में हाल, गुंबद और प्लास्टर आफ़ पेरिस के नमूने देखे जा सकते हैं।

सेमनान की मस्जिदे जामे, फ़ुरूमद की जामे मस्जिद, गुनाबाद की मस्जिदे जामे, ज़ूज़न की जामे मस्जिद और सावे की जामे मस्जिद, असल ईरानी वास्तुकला के मुंह बोलते उदाहरण हैं।

मस्जिदे जामे फ़ुरुमद, ख़्वारज़्मशाहियान काल की महत्वपूर्ण वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है जो शाहरूद शहर के 165 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मस्जिद में दो हाल, और दक्षिणी व उत्तरी हालों के दोनों ओर बड़े से प्रांगड़ बने हुए हैं। मस्जिद का मुख्य प्रवेश द्वार लखौरियों और प्लास्टर आफ़ पेरिस से बनाया गया है। मुख्य द्वारा पर पवित्र क़ुरआन की आयतों का शिलालेख और सुन्दर डिज़ाइनों का नज़ारा भी किया जा सकता है।

यज़्द की फ़हरज नामक मस्जिद, उन मस्जिदों में है जो अपनी प्राचीनता और वास्तुकला की विशेषता के कारण लोगों ध्यान का केन्द्र है। फ़हरिज मस्जिद, यज़्द के निकट एक गांव में स्थित है, यह मस्जिद 1400 साल पुरानी है। मस्जिद की इमारत में मौजूद प्रांगड़ और उसके आसपास बनी हुई चीज़ों को देखकर पता चलता है कि इस मस्जिद को पवित्र नगर मदीने की मस्जिदे नबवी को आदर्श मानकर बनाया गया है। इस मस्जिद में एक मीनार है जो दूर से ही नज़र आती है और यह गांव की निशानी में बदल चुकी है। गुंबद और इमारत को कच्ची ईंट से बनाय  गया है और इसकी दीवार में कोई भी खिड़की दिखाई नहीं देती। (AK)            

 

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