Apr १७, २०१९ १५:०९ Asia/Kolkata
  • अनमोल बातें- 19

आईए हम आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के एक और नैतिकता के पाठ को सुनते हैं।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि, इंसान ख़ुद को प्राप्त अनुकंपाओं से दुश्मनी रखने वालों को अनदेखा करे।

"आदाउन्नेअम" इसका इशारा ऐसे लोगों की ओर है जो ईश्वर द्वारा किसी को दी गई अनुकंपाओं के दुश्मन हैं। आपको ईश्वर ने ज्ञान दिया, आपने लोगों के बीच आदर और ख्याति प्राप्त की, इश्वर ने आपको धन दिया और इसी तरह विभन्न अनुकंपाएं ईश्वर ने आपको दीं, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो ईश्वर द्वारा आप को दी गई अनुकंपाओं के दुश्मन हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि ऐसे लोगों के अंदर ईर्ष्या होती है और वास्तव में जिनके भीतर ईर्ष्या होती है और वह आपके दुश्मन बन जाते हैं, इसका अर्थ यह है कि वे आपके दुश्मन नहीं होते हैं वे उन अनुकंपाओं के दुश्मन होते हैं जिनको ईश्वर ने आपको दिया है।

इमाम फ़रमाते हैं कि धैर्य रखो, ऐसे लोगों से मुक़ाबला न करो चाहे वे तुम्हारे विरुद्ध बातें करें या तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई षड्यंत्र करें और चाहे कोई और कार्य करें। तुम अपने ऐसे दुश्मनों के उत्तर में धैर्य और संयम से काम लो क्योंकि ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसने तुम्हारे संबंध में ईश्वर के नज़दीक पाप किया है यानी तुम्हारी बुराई की है, तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई साज़िश की है या तुम्हारे लिए कुछ भी बुरा किया है इन सब के बावजूद तुम उसी की तरह उससे बर्ताव न करो, उसका जवाब न दो, ताकि ईश्वर ऐसे लोगों के पापों को सज़ा स्वयं दे क्योंकि उससे अच्छी सज़ा देने वाला कोई नहीं है।

यह ऐसे ही होगा जैसे आप मान लें कि कोई आपका दुश्मन है केवल इसलिए कि आप लोगों के एक समुह में सबसे अधिक आदरणीय हैं आपकी इज़्ज़त सबसे अधिक है। ऐसे दुश्मन की सबसे बड़ी सज़ा यह है कि आप अपनी इज़्ज़त में चार चांद लगाएं और ऐसे काम करें जिससे लोगों के बीच आपकी इज़्ज़त 10 गुना अधिक हो जाए। यह सबसे अच्छा जवाब है ऐसे दुश्मनों का जो आपकी अनुकंपाओं से ईर्ष्या करते हैं और आप जब इस तरह से उसका जवाब देंगे तो ईश्वर आपको और अधिक गुणों से मालामाल करेगा और आप पर और अधिक अनुकंपाएं होंगी।

एक अन्य नैतिकता के पाठ में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई फ़रमाते हैं कि, सुलेमान बिन जाफ़र बताते हैं कि मैंने सुना है हज़रत इमाम मूसा बिन जाफ़र अलैहिस्सलाम से कि वे फ़रमाते थे कि हज़रत अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम एक ऐसे व्यक्ति के पास से गुज़रे जो निर्थक बातें कर रहा था। ऐसी बातें कर रहा था जो बेबुनियाद थीं, गैर पारुरी थीं और जो सुनने वाले और न ही बोलने वाले, किसी के लिए भी लाभदायक नहीं थीं।

अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम एक रास्ते से गुज़र रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति खड़ा हुआ है और बेबुनियाद की बातें कर रहा है, ऐसी बातें कि जिसका न कोई सिर है और न पैर और न ही इन बातों से उसका कोई लाभ होने वाला है। हज़रत अमीरुल मोमेनीन खड़े हो गए और उस व्यक्ति से फ़रमाया, तुम ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हो कि जिसको तुम्हारी निगरानी पर तैनात फ़रिश्ते लिख रहे हैं। तुम जो कुछ कह रहे हो उन सबको यह फ़रिश्ते वैसे ही लिख रहे हैं। एक-एक शब्द जैसे-जैसे तुम अपनी ज़बान से निकाल रहे हो वह लिखे जा रहे हैं और यह भी संभव है कि यह लिखा हुआ बाद में तुम्हारे घाटे का सौदा बन जाए। जान लो, हमेशा वही बोलो जो तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण हो और वह बातें जो तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण न हों बल्कि हानिकारक हों उनके बोलने से कोई फ़ायदा नहीं है, हमेशा समझ बूझकर बात करो। (RZ)

 

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