अनमोल बातें- 37
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं" दो आदतों से बचो एक कम हौसला और दूसरे आलस्य।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई जवानों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हौसला इंसान के लिए ईश्वर की बहुत बड़ी नेअमत है।
हौसला एक ऐसी नेअमत है जिस पर बहुत से लोग ध्यान नहीं देते हैं जबकि हौसला इंसान की उन्नति व प्रगति का बहुत बड़ा रहस्य है। इस दुनिया में जितने भी बड़े- बड़े कार्य हुए हैं और हो रहे हैं उन्हें अंजाम देने वालों के हौसले बुलंद थे और हैं। इंसान का हौसला उड़ान भरने का पंख हाता है। जिस इंसान का हौसला ऊंचा होता है वह अपनी बुद्धि के अलावा शारीरिक शक्ति से भी लाभ उठाता है। हदीस में है कि जिस इंसान का हौसला कम होता है वह सत्य व हक़ पर धैर्य नहीं कर सकता। इस हदीस का एक अर्थ यह निकलता है कि जो इंसान सत्य व हक़ पर बाकी रहना चाहता है उसे चाहिये कि वह अपने हौसले को ऊंचा रखे।
हौसले के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं" इंसान की कीमत उसके हौसले के बराबर है" हज़रत अली अलैहिस्लाम के इस कथन से यह स्पस्ट है कि हौसला बहुत महत्व रखता है यहां तक कि आपने उसे इंसान की क़ीमत का मापदंड करार दिया है।
अब आइये सुस्ती व आलस्य के बारे में चर्चा करते हैं।
सुस्ती वह आदत है जिसकी वजह से इंसान अपने अंदर मौजूद क्षमताओं का सही तरह से न प्रयोग कर पाता है और न ही लाभ उठा पाता है और बहुत से कार्यों को अंजाम देने में आना- कानी करता है। उदाहरण के तौर पर सही समय पर नमाज़ नहीं पढ़ता है जितना हो सकता है उसके पढ़ने में विलंब करता है। इसी तरह वह दूसरे बहुत सारे कार्यों को अंजाम देने में आलस्य से काम लेता है जबकि आलस्य वह बुरी आदत व नैतिक बीमारी है जो इंसान को पीछे ले जाती है और उसके आगे बढ़ने के मार्ग की बहुत बड़ी बाधा है।
पैग़म्बरे इस्लाम की हदीस है कि हर मुसलमान मर्द और औरत पर हलाल व वैध आजीविका के लिए प्रयास करना अनिवार्य है। इस हदीस से यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि जब हलाव व वैध आजीविका के लिए प्रयास ज़रूरी व अनिवार्य है तो आलस्य करना सही नहीं है। अगर कोई व्यक्ति हलाल आजीविका के लिए प्रयास नहीं करता है तो वह इस हदीस पर अमल नहीं कर रहा है और ईश्वरीय धर्म इस्लाम में जिस चीज़ को अंजाम देना अनिवार्य किया गया है वह उपासना ज़रूर है। तो हलाल व वैध आजीविका के लिए प्रयास करना उपासना है।
आलस्य की निंदा करते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि आलस्य कामयाबी की मुसीबत है। जो व्यक्ति हमेशा आलस्य से काम लेता है वह कभी भी अपनी आकांक्षाओं को प्राप्त नहीं कर सकता। आलस्य वह आदत है जो इंसान को आगे ही नहीं बढ़ने देती। जो इंसान इज़्ज़त की ज़िन्दगी करना चाहता है उसे चाहिये कि वह आलस्य छोड़कर प्रयास करे ताकि वह दूसरों के सामने हाथ न फैलाये।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि आलस्य और कम हौसले से बचो क्योंकि यह दोनों हर बुराई की जड़ हैं।
एक अन्य हदीस में है कि जो इंसान सांसारिक कार्यों में आलस्य से काम लेता है वह परलोक के कार्यों में अधिक आलसी होता है। जो इंसान कम हौसले और आलस्य से काम लेगा वह लोक- परलोक दोनों में घाटा उठायेगा। इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि कार्य व प्रयास का छोड़ना बुद्धि को कम करता है। आप एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं" आजीविका कमाने और अपनी ज़िन्दगी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आलस्य से काम न लो क्योंकि हमारे पूर्वज इसके लिए प्रयास करते थे।"